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ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
अनिल जैन
29 May 2022
Kejriwal
फ़ोटो- Mint

दिल्ली में तीन नगर निगमों को मिलाकर, एक कर दिया गया और तीन की जगह एक नियम आयुक्त की नियुक्ति भी हो गई है। तीनों निगमों के एकीकरण के नाम पर दिल्ली में निगम का चुनाव टला हुआ है। बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार परिसीमन करा रही है और उसके बाद सीटों की संख्या 272 से काफी कम हो जाएगी। इसे लेकर दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी परेशान है, क्योंकि पंजाब के चुनाव नतीजों के बाद उसको अंदाजा था कि वह दिल्ली में नगर निगम में भी जीत दर्ज करेगी। पर निगम का चुनाव अनिश्चितकाल के लिए टला है। इस बीच दिल्ली विधानसभा को खत्म किए जाने की चर्चा तेज हो गई है। गौरतलब है कि दिल्ली में विधानसभा 1993 में बनी थी और लंबे समय के बाद 1993 में मुख्यमंत्री चुनने की परंपरा शुरू हुई थी। अब आम आदमी पार्टी को लग रहा है कि लगातार दो बार मिली हार के बाद भाजपा की केंद्र सरकार विधानसभा खत्म करके दिल्ली को पूरी तरह केंद्र शासित प्रदेश बना सकती है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा दिलाने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बयान देते रहे हैं लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई आंदोलन शुरू नहीं किया और अब लग रहा है कि दिल्ली का अर्ध राज्य का दर्ज़ा भी कहीं खत्म न हो जाए। दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के अधिकारों से जुड़ा एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उसके फैसले के बाद गतिविधियां तेज होगी।

बिहार में छापेबाजी कितनी कारगर होगी? 

केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने पिछले सप्ताह लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और उनकी दो बेटियों सहित कुल 15 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और दिल्ली, पटना, छपरा सहित कुल 16 जगहों पर छापेमारी की। यह मामला 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहने के समय का है। सीबीआई का कहना है कि उस समय रेलवे में ग्रुप 'डी’ की भर्ती के बदले में लालू प्रसाद ने अपने परिवार के लोगों के नाम से कुल एक लाख पांच हजार वर्ग फीट जमीन अलग-अलग लोगों से थी। इस छापे की टाइमिंग हैरान करने वाली है। इसीलिए ऐसा लग रहा है कि पिछले कुछ दिनों से बिहार में चल रही राजनीतिक गतिविधियों का भी इसमें कुछ न कुछ रोल है। जुलाई 2017 मे राजद का साथ छोड़ने के बाद पहली बार पिछले महीने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राबड़ी देवी के आवास पर हुई इफ्तार दावत में शिरकत की। उसके बाद नीतीश की पार्टी की इफ्तार दावत में तेजस्वी शामिल हुए। उसके बाद जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी ने नीतीश से मुलाकात की। नीतीश के आश्वासन पर तेजस्वी ने अपना आंदोलन रोक दिया। उसके एक हफ्ते में लालू परिवार के यहां छापा पड़ गया। इस पूरे घटनाक्रम में खबर आई थी लालू प्रसाद के पटना लौटने पर दोनों पार्टियां फिर पहले की तरह साथ आ सकती हैं। अगले महीने 11 जून को लालू प्रसाद अपना जन्मदिन मनाने के लिए पटना जाएंगे और वहां नीतीश के साथ उनकी मुलाकात होने वाली है। ऐसे समय में लालू परिवार के ऊपर छापे का सीधा राजनीतिक कनेक्शन दिख रहा है। लेकिन अगर नए राजनीतिक समीकरण बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है तो ऐसे छापों से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा।

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में राहत कितने दिन की?

केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी के लिए उत्पाद शुल्क मे कटौती की है। पिछले छह महीने मे यह दूसरी कटौती है। पहली कटौती नवंबर के पहले हफ्ते में हुई थी, जब केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपए और डीजल पर 10 रुपए उत्पाद शुल्क घटाया था। उससे जो राहत मिली थी वह साढ़े चार महीने रही थी। नवंबर मे कमी हुई थी और जनवरी मे उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यो के चुनावों की घोषणा हुई थी। पांचों राज्यों के चुनाव नतीजे 10 मार्च को आए थे। उसके बाद कोई 12 दिन कीमतें स्थिर रही और फिर 22 मार्च से उनमें बढ़ोतरी शुरू हुई। नवंबर में केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपया उत्पाद शुल्क कम किया था और 22 मार्च से शुरू हुई बढ़ोतरी के बाद दो हफ्ते में कीमत 10 रुपए 40 पैसे प्रति लीटर बढ़ गई। यानी सरकार ने जितना घटाया उसके दोगुना सरकारी कंपनियों ने बढ़ा दिया। यह नाक घुमा कर पकड़ने का तरीका है। इसीलिए सवाल है कि इस बार जो राहत मिली है वह कब तक रहेगी? यह सवाल इसलिए भी अहम है, क्योंकि अगले दो-चार महीने में कोई चुनाव नहीं है। अब अगला चुनाव नवंबर-दिसंबर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में है। बहरहाल, ऐसा संभव नहीं है कि पेट्रोल-डीजल के दाम आज कम किए गए है तो अगले छह महीने यानी नवंबर-दिसंबर तक कम रहेंगे। रूस-यूक्रेन का युद्ध अब भी चल रहा है और तेल उत्पादक देश उत्पादन नहीं बढ़ा रहे हैं। इस बीच खबर है कि कच्चे तेल की कीमतों में एक बार फिर बढ़ोतरी शुरू हो गई है। सो, संभव है कि सरकार ने जो राहत दी है वह एकाध महीने से ज्यादा न चले। लेकिन उससे पहले इस बात का प्रचार जोर-शोर से चलेगा कि सरकार ने बड़ी राहत दी। सोचने वाली बात है कि देश के लोगों की कैसी कंडिशनिंग हो गई है कि कटौती के बाद भी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 95 रुपए लीटर से ज्यादा है और देश के कई शहरों में कीमत अब भी एक सौ रुपए लीटर से ज्यादा है फिर भी कहा जा रहा है कि पेट्रोल सस्ता हो गया! जब कीमत 70 रुपए लीटर थी तो एक रुपया बढ़ने से पेट्रोल महंगा होता था लेकिन अब 120 लीटर से साढ़े नौ रुपया कम होने पर सस्ता हो जाता है!

फिर भी सुरक्षित नहीं कश्मीरी पंडित कर्मचारी 

केंद्र में आठ साल से भाजपा की सरकार है, जिसके लिए कश्मीर और कश्मीरी पंडित बड़ा मुद्दा रहे हैं। भाजपा ने कई साल तक पीडीपी के साथ राज्य में सरकार चलाई। उसके बाद पिछले चार साल से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। करीब तीन साल पहले तो राज्य का विशेष दर्ज़ा भी खत्म कर दिया गया और राज्य का बंटवारा हो गया। राज्य का प्रशासन सीधे तौर पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के हाथ में है। सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती भी भारी संख्या में है। इसके बावजूद आतंकवादियों की कमर तोड़ देने का दावा करने वाली सरकार कश्मीरी पंडित कर्मचारियों की रक्षा नहीं कर पा रही है तो उनके तबादले कर रही है। गौरतलब है कि पिछले दिनों एक कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की बड़गाम में सरकारी दफ्तर में घुस कर हत्या कर दी गई थी। उसके बाद बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने सड़कों पर आकर प्रदर्शन किया। वे सुरक्षा देने या जम्मू इलाके में अपना तबादला करने की मांग रहे थे। लगातार कई दिन के प्रदर्शन के बाद ऐसा लग रहा है कि सरकार ने तबादले शुरू किए हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत घाटी में लौटे कश्मीरी पंडितों को दूर-दराज के इलाकों में नियुक्त किया गया था। अब सरकार उन्हें या तो जिला मुख्यालयों में भेज रही है या वे जहां रहते हैं उसके आसपास उनकी तैनाती की जा रही है। लेकिन तबादले के बाद भी उनको कितनी सुरक्षा मिलेगी, यह कहा नहीं जा सकता।

कुतुब मीनार की खुदाई भी होगी ही

सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे के मामले की सुनवाई करते हुए 1991 के धर्मस्थल कानून के बारे में जो टिप्पणी की है उसका दूरगामी असर होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून में यह प्रावधान है कि किसी धर्मस्थल की 15 अगस्त 1947 वाली स्थिति को नहीं बदला जाएगा। लेकिन उसका सर्वे करने में इस कानून से कोई बाधा नहीं है। इसका मतलब है कि सर्वे उन हजारों धर्मस्थलों का हो सकता है, जिनकी सूची राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या उसके बगल बच्चा संगठनों ने यह कहते हुए बना रखी है कि इन स्थानों को मुस्लिम आक्रांताओं या शासकों ने तोड़ा है। इस आधार पर मथुरा में भी सर्वे और आइकॉनोग्राफी होगी और कुतुब मीनार में भी होगी। वैसे कुतुब मीनार कोई धार्मिक ढांचा नहीं है, अलबत्ता वहां एक मस्जिद भी है। दरअसल पिछले सप्ताह संस्कृति सचिव गोविंद मोहन कुतुब मीनार पहुंचे थे। उसके बाद अचानक यह खबर आई कि संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को कुतुब मीनार की खुदाई का आदेश दिया है। यह खबर इतनी फैली कि संस्कृति मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी कि उसने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है। यह सही है कि संस्कृति मंत्रालय ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है। लेकिन बताया जा रहा है कि मंत्रालय ने पुरातत्व विभाग को कुतुब मीनार परिसर में मौजूद मूर्तियों की आइकॉनोग्राफी करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि वहां आने वाले पर्यटकों को हिंदू और जैन मूर्तियों के बारे में बताया जाए और साइनबोर्ड लगा कर दिखाया जाए कि ये मूर्तियां किधर हैं। यह पहला चरण है। इसके बाद माना जा रहा है कि यह साबित करने का काम होगा कि यह किसी मुस्लिम शासक ने नहीं बनाया था, बल्कि यह सन टावर है, जिसे गुप्त वंश के शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनवाया था। कुछ दिन पहले ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के क्षेत्रीय निदेशक रहे धर्मवीर शर्मा ने यह दावा किया था।

सिब्बल के पास तीन पार्टियों का ऑफर था

इस समय जब कांग्रेस के एक दर्जन से ज्यादा दिग्गज नेता राज्यसभा में जाने के लिए एड़ियां रगड़ रहे हैं, तब कपिल सिब्बल के पास तीन पार्टियों का ऑफर था। तीन अलग-अलग राज्यों में तीन अलग-अलग पार्टियों ने सिब्बल को राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन सिब्बल ने मौका दिया समाजवादी पार्टी को। सिब्बल ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया और समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो गए। समाजवादी पार्टी को भी उन्हें राज्यसभा भेजने में अपना फायदा दिखा। वैसा ही फायदा झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद भी देख रहे थे लेकिन सिब्बल ने समाजवादी पार्टी को चुना। गौरतलब है कि हाल ही में जेल से रिहा हुए आजम खान ने अखिलश यादव पर दबाव बनाया था कि वे कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजें, क्योंकि सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी बड़ी मदद की थी। अखिलेश ने भी आजम खान की सिफारिश इसलिए मान ली क्योंकि इसमें उनको दो फायदे दिखे। पहला तो यह कि दिल्ली में एक बड़ा चेहरा और मजबूत वकील उनके साथ रहेगा और दूसरे आजम खान की नाराजगी दूर होगी। बहरहाल, सिब्बल की तो राज्यसभा सुनिश्चित हो गई। अब देखना है कि उनके साथ कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और अन्य नेताओं का क्या होता है?

यूपी विधानसभा में भगवा, लाल, हरी, पीली टोपियां

उत्तर प्रदेश की नई विधानसभा का सत्र बहुत रंगारंग टोपियों वाला दिख रहा है। पहले विधानसभा में सिर्फ समाजवादी पार्टी के विधायक लाल टोपी पहन कर आते थे। सरकार के मंत्री और भाजपा के विधायक भगवा गमछा रखते थे लेकिन अब उन्होंने भी भगवा टोपी पहननी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर भगवा टोपी पहनी है। इसलिए भाजपा के नेता भगवा गमछा की जगह या उसके साथ-साथ भगवा टोपी भी पहनने लगे है। सो, पूरा सदन लाल और भगवा टोपियों से भरा हुआ दिख रहा है। लेकिन ऐसा नही है कि सिर्फ ये दो रंग ही सदन में दिख रहे हैं। इसमें पीला रंग सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने जोड़ा है। इस बार ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से जीते विधायक पीले रंग की टोपी और पीला गमछा धारण कर सदन में आ रहे हैं। इस बार राष्ट्रीय लोकदल के आठ विधायक हैं और वे लोग हरी टोपी पहन कर सदन में आ रहे हैं। बसपा के पास अब सिर्फ एक विधायक है, जो नीले रंग की टोपी और नीले रंग का गमछा डाल कर सदन में आ रहे हैं। सो, पूरा सदन रंग-बिरंगा हो रहा है।

ये भी पढ़ें: ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

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