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ख़बरों के आगे पीछे: हिंदुत्व की प्रयोगशाला से लेकर देशभक्ति सिलेबस तक
देश में हर रोज़ हो रहीं घटनाओं के बीच बहुत सी ख़बरें आगे-पीछे हो जाती हैं। ख़बरों के इस राउंड-अप में पुरानी ताजी ख़बरों को एक साथ बताया गया है। जिसमें आर्थिक-राजनीतिक सब तरह की ख़बरें हैं।
अनिल जैन
09 Jan 2022
Kejriwal
केजरीवाल भाजपा को टक्कर देने के लिए उनकी ही टेक्निक का इस्तेमाल कर रहे हैं। (फ़ोटो- अरविंद केजरीवाल ट्विटर)

देशभर में हर रोज़ इतनी घटनाएँ घट रही हैं कि एक खबर पर चर्चा पूरी नहीं पाती कि दूसरी खबर आ जाती है। इस तरह लोगों के ध्यान में भी केवल नई खबरें ही रह पातीं हैं और पिछली खबरें छूट जाती हैं। “खबरों के आगे पीछे” में महत्वपूर्ण खबरों को शृंखलाबद्ध करने की कोशिश की गई है। 

कोरोना में जनता कंगाल, सरकार होती मालामाल

कोरोना महामारी के दो साल में आम लोगों की कमाई घटी है। नौकरियां गई हैं, रोजगार ठप्प हुए हैं, बीमारी पर इलाज में लोगों के पैसे खर्च हुए हैं और महामारी से जुड़े दूसरे असर से भी करोड़ों लोग आर्थिक संकट में आए हैं। लेकिन इस संकट के बीच भी भारत सरकार की कमाई जारी रही। सरकार ने लोगों को राहत देने की बजाय उनकी जेब में बचे खुचे पैसे भी निकालने का पूरा बंदोबस्त किया। सरकार ने खुद बताया है कि भारतीय रेलवे ने अलग-अलग उपायों से कितने पैसे कमाए हैं, बैंकों ने लोगों पर शुल्क बढ़ा कर कितनी कमाई की है और पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस आदि के दाम बढ़ा कर सरकार ने कितनी कमाई की है।

भारतीय रेलवे ने बताया कि उसने अप्रैल 2020 से सितंबर 2021 तक तत्काल टिकट, प्रीमियर तत्काल, और डायनेमिक किराए से 1718 करोड़ रुपए कमाए। ध्यान रहे इस दौरान 90 फीसदी ट्रेनें बंद रहीं लेकिन सरकार ने विशेष ट्रेनें चला कर यात्रियों से जो अनाप-शनाप किराया वसूला, उसकी कमाई अलग है। पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद को बताया कि वित्त वर्ष 2020-21 में सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों पर शुल्क से 3 लाख 71 हजार करोड़ रुपए की कमाई की। यह रिकार्ड कमाई है। इसी तरह सरकारी बैंकों ने महामारी के बीच बचत खातों में न्यूनतम जमा नहीं रखने वालों से हजारों करोड़ रुपए कमाए और एक बड़ी रकम जन धन खातों से काटी है। सरकार ने अपनी कमाई बढ़ाने के लिए बैंकों से पैसा निकालने, एटीएम से पैसे का लेन-देन करने पर शुल्क भी बढ़ा दिया है। साथ ही ऑनलाइन खाने के ऑर्डर और ऐप आधारित टैक्सी सेवा पर भी पांच फीसदी जीएसटी लगा दिया औ रजूतों पर 5 से बढ़ा कर 7 फीसदी कर दिया।

हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला

मध्य प्रदेश सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र उत्तर प्रदेश की तर्ज पर मध्य प्रदेश को हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला बना रहे है। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह मध्य प्रदेश में हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय बनने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी ही पहल पर धर्मांतरण रोकने का कानून मध्य प्रदेश में बन गया है और आंदोलनकारियों से सरकारी संपत्ति के नुकसान की भरपाई कराने वाला कानून भी राज्य सरकार ने बना दिया है। इसके अलावा देश या दुनिया में कहीं भी 'हिंदुत्व के सम्मान’ को कथित ठेस पहुंचाने वाली कोई भी घटना होती है तो सबसे पहले विरोध की आवाज मध्य प्रदेश से आती है। सबसे पहले मुकदमा भी वहीं दर्ज होता है और राज्य के गृह मंत्री की ओर से सबसे पहले चेतावनी जारी जाती है। खुद गृह मंत्री ऐसे मुकदमों की निगरानी करते हैं और हिंदू धर्म की 'आन-बान-शान’ सुनिश्चित करते हैं। रायपुर में हुई कथित धर्म संसद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उनकी हत्या का समर्थन करने वाले कथित संत कालीचरण को छत्तीसगढ़ पुलिस ने मध्य प्रदेश के खजुराहो से गिरफ्तार किया तो मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने परोक्ष रूप से कालीचरण का बचाव करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने कालीचरण को मध्य प्रदेश से गिरफ्तार कर अंतरराज्यीय प्रोटोकॉल उल्लंघन किया है।

इसी तरह हिंदी फिल्मों में आइटम डांस वगैरह करने वाली पोर्न स्टार सनी लियोनी के उस एल्बम से भी मध्य प्रदेश के गृह मंत्री की धार्मिक भावनाएं आहत हो गईं, जिसमें मधुबन में राधिका के नाचने की तुलना जंगल में मोर नाचने से की गई है। उन्होंने कहा कि गाना वापस लो, वरना मुकदमा दर्ज होगा। इस एल्बम को जारी करने वाली कंपनी को गाना वापस लेना पड़ा। यही नहीं, स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी भी राज्य में कई महीनों तक एक ऐसे जोक की वजह से जेल मे रहे, जो उन्होंने बोला भी नहीं था। इससे पहले फैब इंडिया ने अपने एक विज्ञापन में दिवाली के त्योहार को 'जश्न-ए-रिवाज’ कहा तो मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने सबक सिखाने की चेतावनी दी, जिसके बाद वह विज्ञापन वापस हुआ। उसी समय एक ज्वेलरी के एक विज्ञापन में दो युवतियों का प्रेम दिखाया गया तो उसे भी वापस लेने के लिए गृह मंत्री मिश्रा ने फतवा जारी किया था। स्टैंडअप कॉमेडियन वीर दास ने अमेरिका में एक कार्यक्रम में 'भारत के दो रूप’ का मजाक सुनाया तब भी सबसे तीखी प्रतिक्रिया मध्य प्रदेश से ही आई थी। 

प्रधानमंत्री को होना था शर्मिंदा लेकिन चहकते हुए दिखे

आखिरकार समाजवादी पार्टी से जुड़े पी जैन के यहां भी आयकर विभाग का छापा पड़ गया। पिछले दिनो एक दूसरे पी जैन के यहां छापा पड़ा था, जिनके बारे में मीडिया के जरिए प्रचारित किया गया किया गया कि वे सपा से जुड़े हैं। हालांकि छापे में जिस भारी मात्रा में नकदी और सोना मिला, वह केंद्र सरकार के लिए शर्मिंदगी का सबब होना चाहिए, क्योंकि सरकार का ही दावा था कि नोटबंदी से काले धन की समस्या खत्म हो गई है। लेकिन शर्मिंदा होने के बजाय खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी रैलियों में इस छापे को लेकर चहकते हुए सपा पर तंज कसे। लेकिन बाद में खुलासा हुआ कि जिसके यहां छापा पड़ा वह तो भाजपा से जुड़ा हुआ इत्र कारोबारी है।

सपा नेता अखिलेश यादव ने भी कहा कि इस बार गलती से केंद्रीय एजेंसियों ने भाजपा के आदमी के यहां पर ही छापा मार दिया। भाजपा की बुरी तरह भद्द पिटी और मीडिया को भी खामोश होना पड़ा। दरअसल दोनों पी जैन कानपुर के हैं और दोनों इत्र के कारोबारी हैं। सपा वाले पी जैन यानी पुष्पराज जैन ने कुछ समय पहले समाजवादी इत्र बाजार में लांच किया था। अब उनके यहां और कुछ अन्य कारोबारियों के यहां आयकर विभाग ने छापेमारी की। इससे पहले भाजपा से जुड़े पीयूष जैन के यहां जीएसटी और आयकर विभाग ने छापा मारा था, जिसमें 200 करोड़ रुपए के करीब नकद और 60 किलो से ज्यादा सोना जब्त हुआ था। हालांकि अब कहा जा रहा है कि जीएसटी की टीम ने नकद पैसे को टर्नओवर मान लिया है। इस तरह पीयूष जैन के मामले पर लीपापोती शुरू हो गई और सपा वाले पी जैन यानी पुष्पराज जैन के यहां छापा पड़ गया। माना जा रहा है कि पहले छापे के आठ दिन बाद आयकर विभाग ने अपनी 'गलती’ सुधारी और सपा के विधान पार्षद (एमएलसी) और कारोबारी पुष्पराज जैन के यहां छापा मारा। इस पूरे वाकये से जाहिर होता है कि केंद्र सरकार चुनाव के वक्त विपक्षी दलों के खिलाफ अपनी एजेंसियों का किस बेशर्मी से इस्तेमाल करती है।

बंगाल से सबक नहीं सीखा

किसी भी राज्य में ऐन चुनाव से पहले जब केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई होती है तो वह निश्चित रूप से केंद्र सरकार की मंजूरी से होती है। इसलिए भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री एजेंसियों को कितना भी स्वतंत्र और निष्पक्ष बताएं, कोई उन पर भरोसा नहीं करता। इसीलिए उत्तर प्रदेश में सपा नेताओं और उनके करीबी कारोबारियों के यहां छापेमारी हुई तो सहज रूप से माना गया कि केंद्र सरकार चुनाव से पहले अखिलेश यादव को कमजोर और परेशान करने के लिए ऐसा कर रही है। लेकिन लगता है कि केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के अनुभव से सबक नहीं लिया। वहां भी चुनाव से ऐन पहले ममता बनर्जी के परिवार के लोगों और पार्टी के नेताओं को परेशान किया गया था। कोयला तस्करी का आरोप लगा कर ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी से पूछताछ के लिए सीबीआई और ईडी की टीमें पहुंची थीं। इस मौके पर ममता बनर्जी ने भी खूब नाटक किया। वे सीबीआई की टीम पहुंचने से पहले अपने भतीजे अभिषेक के घर पहुंच गईं और वहां से अभिषेक की छोटी बच्ची को अपने साथ लेकर निकलीं और उसे अपने घर ले गईं। इस तरह उन्होंने मैसेज दिया कि केंद्र सरकार उनके परिवार को परेशान कर रही है। इसी तरह चुनाव से ठीक पहले उनकी पार्टी के नेताओं को गिरफ्तार किया गया, जिनकी जमानत के लिए वे खुद थाने में जाकर बैठ गईं। इन सब घटनाओं से उनके प्रति सहानुभूति बनी। अब उत्तर प्रदेश में ऐन चुनाव से पहले छापेमारी करके केंद्रीय एजेंसियों ने समाजवादी पार्टी के लिए इसी तरह का मौका बनवाया है।

दलबदल से सबसे ज्यादा चिंतित केजरीवाल

देश के राजनीतिक इतिहास में अनेक पार्टियां ऐसी हुई हैं, जो बनती और बिखरती रही हैं। पार्टियों के टूटने का इतिहास भी बहुत व्यापक है। बहुजन समाज पार्टी की एक समय ऐसी स्थिति थी कि हर चुनाव में कांशीराम और मायावती विधायक, सांसद जिताते थे और वे टूट कर दूसरी पार्टियों में चले जाते थे। लेकिन तब भी उन लोगों ने वैसी चिंता नहीं की, जैसी पार्टी टूटने की चिंता केजरीवाल को हो रही है। कांग्रेस भी रोज टूट रही है, उसके लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, लेकिन पार्टी के नेता विधायकों, सांसदों, पार्षदों आदि को पार्टी नहीं छोड़ने की शपथ नहीं दिला रहे हैं। केजरीवाल पिछले दिनों चंडीगढ़ गए, जहां नगर निगम के चुनाव में उनके 14 पार्षद जीते हैं तो उन्होंने विजय यात्रा निकाली और सभी पार्षदों को सार्वजनिक रूप से शपथ दिलाई कि वे आम आदमी पार्टी नहीं छोड़ेंगे। यह सही है कि भाजपा उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है लेकिन क्या शपथ दिलाने से पार्षद मान जाएंगे? केजरीवाल इसी तरह गोवा गए तो वहां उन लोगों को शपथ दिलाई, जिनको पार्टी की टिकट दी जा रही है। आम आदमी पार्टी की टिकट लेने वालों को एक हलफनामा देना पड़ रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि वे जीतने के बाद पार्टी नहीं छोड़ेंगे। यह राजनीति में विचारधारा के खत्म होने की सबसे बडी मिसाल है।

आरिफ मोहम्मद खान ने रास्ता दिखाया

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने देश भर की राज्य सरकारों को रास्ता दिखा दिया है। विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर विवाद हुआ तो आरिफ मोहम्मद खान ने चांसलर पद छोड़ने का ही ऐलान कर दिया। उन्होंने इसका कोई कारण नहीं बताया लेकिन कहा कि अगर राज्य सरकार राज्यपाल को सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर पद से हटाने का विधेयक लाती है तो वे तुरंत उस पर दस्तखत कर देंगे। ध्यान रहे मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति राज्यपाल के यहां से होती है। बिहार सहित कई राज्यों में इसे लेकर बड़े विवाद हुए हैं। ऐसे ही एक विवाद के बाद आरिफ मोहम्मद खान ने अपनी जिम्मेदारी छोड़ने का ऐलान किया। अब कई राज्यों में सरकारों ने अपने आप राज्यपालों से यह अधिकार छीनना शुरू कर दिया है। बिहार में बनने वाले दो नए विश्वविद्यालयों के लिए ऐसा कानून बना है, जिसके मुताबिक नियुक्तियों का अधिकार राज्यपाल के पास नहीं, बल्कि राज्य सरकार के पास होगा। महाराष्ट्र में भी राज्य सरकार ऐसा कानून लाने जा रही है। केरल के राज्यपाल ने भले नाराज होकर सुझाव दिया था लेकिन पश्चिम बंगाल शिक्षा मंत्री ब्रत्या बसु ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि राज्य सरकार कानून लाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ही सभी विश्वविद्यालयों का चांसलर बनाने पर विचार कर रही है। अभी इस तरह का ट्रेंड सिर्फ विपक्ष के शासन वाले राज्यों में दिख रहा है क्योंकि टकराव भी वहीं हैं, लेकिन आने वाले दिनों में हो सकता है कि, जहां टकराव नहीं हो वहां भी सरकारें इस किस्म की पहल करें।

कर्नाटक में इतिहास दोहराया जाएगा!

कर्नाटक, उत्तराखंड और दिल्ली इन तीन राज्यों में भाजपा की राजनीति को लेकर एक चीज कॉमन है। तीनों राज्यों में जब भी भाजपा की सरकार बनी है तब तीन मुख्यमंत्री बदले गए हैं। दिल्ली में पहली बार 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे और भाजपा की सरकार बनी थी। तब मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने थे। बाद में उनको हटा कर साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया और 1998 के चुनाव से ठीक पहले सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री बनी थीं। इसी तरह उत्तराखंड में भाजपा की पहली सरकार 2000 में बनी थी तो दो साल में दो मुख्यमंत्री बने। पहले नित्यानंद स्वामी और फिर भगत सिंह कोश्यारी। दूसरी बार 2007 में भाजपा की सरकार बनी तो तीन मुख्यमंत्री बने। पहले भुवन चंद्र खंडूरी, फिर रमेश पोखरियाल निशंक और फिर खंडूरी। तीसरी बार 2017 में सरकार बनी तो पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने फिर तीरथ सिंह रावत और फिर पुष्कर सिंह धामी।

कर्नाटक में भाजपा की पहली सरकार 2008 के विधानसभा चुनाव के बाद बनी थी और बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने थे। बीच में उनको हटा कर डीवी सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया था और फिर उनको हटा कर जगदीश शेट्टार मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा की दूसरी सरकार 2018 में बनी और बीएस येदियुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर सके। लेकिन उसी विधानसभा में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार गिरा कर 2019 में फिर येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने। दो साल के बाद उनको हटा कर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक का इतिहास फिर दोहराया जाएगा। बोम्मई को हटाने की चर्चा शुरू हो गई है। कर्नाटक में 2023 के मई में चुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि अगले साल पांच राज्यों के चुनाव के बाद कर्नाटक में बदलाव हो सकता है। हालांकि अभी भाजपा की ओर से इनकार किया जा रहा है लेकिन भविष्य किसने देखा है।

देशभक्ति के एजेंडे में ‘83’

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल देशभक्ति के एजेंडे पर भाजपा को मात देने की जी तोड़ कोशिश में जुटे हैं। इसके लिए वे हर वह काम कर रहे हैं, जो भाजपा कर चुकी है या करने की सोच सकती है। भाजपा ने तिरंगा यात्रा निकाली तो केजरीवाल ने पूरी दिल्ली में सौ-सौ फीट ऊंचे पोल लगवा कर उस पर तिरंगा लगवाना शुरू कर दिया। दिल्ली की सड़कों पर तीन रंग की झालरें लगवा दी गईं। उन्होंने भाजपा से एक कदम आगे बढ़ कर स्कूलों में देशभक्ति का पाठ्यक्रम शुरू करा दिया। अब केजरीवाल ने देशभक्ति के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए 1983 में भारतीय टीम के क्रिकेट विश्व कप जीतने पर बनी फिल्म ‘83’ को कर मुक्त कर दिया है। अभी दूसरे किसी राज्य ने फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा नहीं की है। 1983 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के ज्यादातर खिलाड़ी पंजाब, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के थे। कप्तान कपिल देव खुद हरियाणा के हैं लेकिन इन राज्यों की बजाय दिल्ली ने फिल्म को सबसे पहले टैक्स फ्री किया। उनको पता है कि फिल्म में तिरंगा लहराने के ढेर सारे दृश्य हैं इसलिए यह देशभक्ति की फिल्म है। इससे पंजाब की राजनीति में भी फायदा होगा। इसलिए उन्होंने मौके पर चौका लगा दिया।

ये भी पढ़ें: ख़बरों के आगे-पीछे : संसद का मखौल, बृजभूमि का ध्रुवीकरण और अन्य

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