NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
त्रासदी और पाखंड के बीच फंसी पटियाला टकराव और बाद की घटनाएं
मुख्यधारा के मीडिया, राजनीतिक दल और उसके नेताओं का यह भूल जाना कि सिख जनता ने आखिरकार पंजाब में आतंकवाद को खारिज कर दिया था, पंजाबियों के प्रति उनकी सरासर ज्यादती है। 
परमजीत सिंह जज
13 May 2022
Patiala

पंजाब के बहुतेरों के लिए, 13 अप्रैल 1978 बैसाखी का एक रविवार उनके दिलो-दिमाग में भुतहा यादों के रूप में स्पष्टता से अंकित हो गया है। इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की गई थी। यही वह दिन था, जब पंजाब में समस्याओं की शुरुआत हुई थी। इसके पहले, कई राजनीतिक दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी ने 1977 में कांग्रेस पार्टी को परास्त कर दिया था और उसे केंद्र की सत्ता में आए अभी साल भर ही हुआ था। जयप्रकाश नारायण (जेपी) की “संपूर्ण क्रांति” के उद्घोष के साथ इस तरह उम्मीद का एक युग शुरू ही हुआ था।    

केंद्र में जनता पार्टी की जीत के बाद हुए विधानसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस की हार हुई थी और शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री नियुक्त किए गए थे। इस बीच, जरनैल सिंह भिंडरावाले को दमदमी टकसाल का नया प्रमुख नियुक्त किया गया था। उन्होंने निरंकारी संप्रदाय के खिलाफ सिखों के पवित्र ग्रंथ का अपमान करने का आरोप लगाते हुए अपने पूर्ववर्ती के विरुध्द धर्मयुद्ध की अलख जलाए रखी थी। भिंडरावाले के एक भड़काऊ भाषण के बाद, उनके सिख अनुयायियों का एक समूह, और अखंड कीर्तन का एक जत्था, स्वर्ण मंदिर से निरंकारी मण्डली पर हमला करने के लिए कूच कर गया था। उस संघर्ष में 17 लोग मारे गए थे। 

तब किसी को भी यह अनुमान नहीं था कि यह संघर्ष एक त्रासदी में बदल जाएगा, जिससे कि आगे और भी अधिक लोगों की मौतें होंगी या उनकी हत्या की जाएंगी। दो संप्रदायों के बीच का टकराव, किस तरह खालिस्तान की मांग को उठाते हुए एक पूर्ण उग्रवादी आंदोलन में परिणत हो गया, इस पर अलग-अलग राय हैं। एक विचार यह है कि कांग्रेस पार्टी और अकाली दल के नेता उग्रवाद के हिंसक फैलाव के लिए जिम्मेदार थे। यह बात किस हद तक सही है, यह अंदाजा लगाना कठिन है, लेकिन जैसा कि बाद के घटनाक्रमों से पता चलता है कि पंजाब सूबे के लोगों के लिए उग्रवादी हिंसा को एक त्रासदी में बदलने से कम से कम रोका तो जा ही सकता था। पर इस टकराव को विस्तार देने में पंजाब की दोनों प्रमुख पार्टियों की कुछ न कुछ भूमिका अवश्य रही है, इस बारे में एक तर्कसंगत आधार है। हालांकि, धार्मिक मामलों और मुद्दों पर हस्तक्षेप करना देश भर में सत्ता के खेल में लगे लोगों का पसंदीदा टाइम पास बना हुआ है।

राजनीतिक दलों ने इसके बाद भी देश या सूबे की सत्ता हासिल करने के लिए जनता की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर प्रकट और सचेत रूप से उसका शोषण ही किया है। नतीजतन, आज हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां धार्मिक भावनाएं सार्वजनिक स्थान पर इस हद तक पहुंच गई हैं कि मीडिया रोजाना फालूत की ऐसी बहसों में लिप्त हो गया है, जो हमारे संविधान में परिकल्पित एक समतावादी, स्वतंत्र और समावेशी समाज के स्वप्न को कभी भी साकार नहीं होने दे सकता है।

पंजाब में आतंकवादी आंदोलन, जिसे खालिस्तान आंदोलन भी कहा जाता है, 1993 में व्यवस्थित रूप से दबा दिया गया था। इसके बाद 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या जैसी केवल एक बड़ी आतंकवादी घटना हुई थी। हालांकि, छोटे-मोटे संगठन, जो ज्यादातर भारत के बाहर सक्रिय रहे हैं, वे यदा-कदा कुछ मुद्दे उठा कर खालिस्तान पर बहस छेड़ते रहते थे। दिलचस्प बात यह है कि यह आमतौर पर चुनाव के दौरान ही होता है। इससे, हमें कुछ राजनीतिक दलों की इस मंशा को समझना चाहिए कि उन्हें लगता है कि खालिस्तान मुद्दे पर लोगों में भावनात्मक ज्वार पैदा होंगी। पर ऐसी अपेक्षा करने वाले अधिकतर नेता यह भूल जाते हैं कि पंजाब की पुलिस उग्रवादी आंदोलन को इसलिए दबा सकी थी क्योंकि आम सिख जनता उग्रवाद से निराश-हताश हो गई थी, उसका इससे पूरी तरह मोहभंग हो गया था। 

इसके अलावा, पंद्रह साल के उग्रवादी आंदोलन के दौरान, पंजाब में कहीं भी हिंदू-सिख संघर्ष या दंगे का शायद ही कोई उदाहरण मिलता है। यहां तक कि विभाजनकारी ताकतें भी राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द को कभी नहीं तोड़ सकीं। इसके बारे में कई कैफियतें दी जा सकती हैं।  

अभी हालिया हुए विधानसभा चुनाव (2022) में आम आदमी पार्टी को अभूतपूर्व बहुमत मिलने के बाद से पंजाब का राजनीतिक परिदृश्य अचानक से बदल गया है। चुनाव परिणाम ने उन दोनों दलों के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया है, जिन्होंने वैकल्पिक रूप से लंबे समय तक राज्य पर शासन किया है। यदि 1977 वह वर्ष था, जब पंजाब में कांग्रेस के वर्चस्व को गंभीर चुनौती दी गई थी, तो 2022 एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन का वर्ष है, जिसने कुछ अन्य बहुत आवश्यक बदलाव लाने की उम्मीद लोगों में जगा दी है। आप सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। 

बहरहाल, पराजित पार्टियां अगले चुनाव का चैन से नहीं बैठेंगी। इस दिशा में अभी से लग जाने के संकेत मिलने रहे हैं। पंजाब में बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर प्राथमिक स्तर पर सवाल उठते दिख रहे हैं, हालांकि वास्तविकता यह है कि हाल तक इस तरह की चिंताओं को दूर करने के लिए कुछ भी ऐसा नहीं किया गया है, जो असाधारण हो। 

पंजाब में शिवसेना के कई विधायक हैं, लेकिन एक दबाव समूह या वैचारिक ताकत के तौर पर उसकी कोई राजनीतिक मौजूदगी नहीं है। इन संगठनों को आम तौर पर नजरअंदाज ही किया गया है क्योंकि उनका महाराष्ट्र की शिवसेना के साथ कोई राजनीतिक-वैचारिक संबंध नहीं है। हालांकि, 29 अप्रैल को पटियाला शिवसेना ने एक पूर्व घोषणा के तहत खालिस्तान के खिलाफ एक जुलूस निकाला था। इसी बीच कुछ सिख संगठन कहीं से नमूदार हो गए और शिवसेना के सदस्यों के साथ उनकी झड़प हुई। 

पुलिस ने स्थिति पर तुरंत काबू पा लिया लेकिन मीडिया ने इस झड़प को असलियत से दूर इस कदर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया कि मानो कुछ भयानक घटित हो गया है। सिख और हिंदू नेता इस घटना की निंदा करने के लिए तुरंत सामने आ गए। इसके बाद अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए उन सामान्य प्रशासनिक कार्रवाइयां की गईं, जो ऐसे मौके पर एक राज्य सरकार यह दिखाने के लिए करती है कि अमन सद्भाव बनाने के लिए उसकी तरफ से 'कुछ किया गया’ है। दरअसल, ऐसा कुछ होना भी नहीं था क्योंकि पंजाब में सांप्रदायिक तनाव का कोई इतिहास नहीं रहा है- यहां तक कि उग्रवाद-आतंकवाद के दौर में भी ऐसा नहीं हुआ है। और खालिस्तान आंदोलन वस्तुतः कुछ सिख प्रवासी समूहों को छोड़कर इतिहास का एक हिस्सा है।  

कुछ दिनों के भीतर, जैसे ही पटियाला की घटनाएं बासी पड़ने लगी थीं कि तभी 5 मई को स्थानीय पंजाबी चैनलों पर खबर आई कि करनाल पुलिस ने हरियाणा में हथियारों से लदी एक कार जब्त की है। न्यूज-18 के पंजाबी चैनल ने बताया कि स्थानीय स्तर पर निर्मित करीब 30 पिस्तौल और विस्फोटक सामग्री से भरे तीन कंटेनर मिले हैं। हालांकि बाद में इसे सुधार करते हुए कहा गया कि केवल एक पिस्तौल बरामद हुई है पर कथित तौर पर विस्फोटक सामग्री ले जा रहे कंटेनरों पर कोई पुष्टि नहीं की गई। इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है,(खबर लिखे जाने तक), जिनमें ज्यादातर सिख हैं। यह भी पता चला कि वे कथित तौर पर जब्त किए गए प्रतिबंधित पदार्थ को वितरित करने के लिए हैदराबाद जा रहे थे। पूरा एपिसोड खालिस्तान कनेक्शन को रेखांकित करने के उद्देश्य से खेला गया एक नाटक प्रतीत होता है, जबकि किसी को याद रखना चाहिए कि आतंकवादी आंदोलन के दौरान, उग्रवादी/आतंकवादी देसी कट्टे नहीं बल्कि ए.के.47 राइफल्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे थे। 

हालांकि, एक दिन पहले पाकिस्तान से भारतीय क्षेत्र पर उड़ान भरने वाले एक ड्रोन की कहानी विस्फोटक छोड़ने से जुड़ी थी, और एक साजिश सी लग रही थी-लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि असल में यह क्या मामला था। इसके बाद धर्मशाला में 8 मई को हिमाचल प्रदेश विधानसभा भवन की दीवार पर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लिखे मिले और उसके झंडे लगाए गए। इन मामलों की जांच के लिए हमारे पास दो एसआईटी हैं-एक पंजाब सरकार ने पटियाला टकराव की जांच के लिए गठित की है, और दूसरी, हिमाचल सरकार द्वारा गठित छह सदस्यीय टीम है। 

पंजाब में जो कुछ हो रहा है,वह त्रासदी और पाखंड के बीच का मसला है। जैसा कि कार्ल मार्क्स ने बहुत पहले बताया था, अगर इतिहास अपने को दोहराता है, तो पहली बार वह त्रासदी होती है और दूसरी बार वह पाखंड होता है। यह स्पष्ट है कि हिमाचल में आप की बढ़ती लोकप्रियता मौजूदा राजनीतिक सत्ता के वर्चस्व के लिए खतरा है। हिमाचल प्रदेश के लोग भी सत्ता में आने वाले दो परस्पर पूरक दलों के बीच फंसे हैं। ऐसे में कोई भी इस बात को ताड़ सकता है कि खालिस्तान पर मचाए जा रहे शोर का सीधा मतलब पंजाब में आम आदमी पार्टी को मिली शानदार जीत को नकारना है। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के महत्त्वपूर्ण हिस्से पंजाबी भाषी हैं, हालांकि कुछ जिलों में बोलियां अलग-अलग हैं। यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तरह की रणनीति का अंत त्रासदी में हो सकता है लेकिन इस समय, यह एक प्रहसन की तरह लगता है, और इससे ज्यादा यह कुछ भी नहीं है। 

(लेखक गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं और इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।) 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Caught Between Tragedy and Farce: Patiala Clash and After

punjab
Punjab politics
Punjab Sikh
Khalistan in Punjab
Khalistan News
Punjab Aap
Aap punjab

Related Stories

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस से लेकर पंजाब के नए राजनीतिक युग तक

त्वरित टिप्पणी: जनता के मुद्दों पर राजनीति करना और जीतना होता जा रहा है मुश्किल

आर्थिक मंदी का पंजाब में दिख रहा साफ असर


बाकी खबरें

  •  अफ़ज़ल इमाम
    यूपी में और तेज़ हो सकती है ध्रुवीकरण की राजनीति
    20 Feb 2022
    फ़िलहाल ज़मीनी स्तर पर जो स्थिति नज़र आ रही है, उसमें भाजपा के पास वर्ष 2017 के विधानसभा व 2019 के लोकसभा वाले आक्रामक तेवर में लौटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    यूपी में जनता के मुद्दों से भागती भाजपा, पंजाब में 'आप' से डरी कांग्रेस!
    19 Feb 2022
    यूपी में कल रविवार को तीसरे चरण का मतदान है. वहां भाजपा ने अचानक 'आतंकवाद' का शिगूफा छोड़ा है. जनता के सारे मुद्दों को 'आतंक' से दबाने की जोरदार कोशिश हो रही है. इसी तरह पंजाब में कल राज्य की सभी 117…
  • up elections
    राजेंद्र शर्मा
    बैठे-ठाले : वोट चरती गाय, बेईमान पब्लिक और ख़तरे में रामराज्य!
    19 Feb 2022
    अब तो वोटों की कुछ फसल गाय चर गयी और बाक़ी पब्लिक यह कहकर उखाड़ ले गयी कि पांच साल गाय के लिए ही सरकार चलाए हो, गायों से ही वोट ले लो!
  • bihar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : बालू खनन का विरोध कर रहे ग्रामीणों के साथ पुलिस ने की बर्बरता, 13 साल की नाबालिग को भी भेजा जेल 
    19 Feb 2022
    17 फ़रवरी की दोपहर बाद से ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई, जिसमें बिहार पुलिस, कुछ ग्रामीणों(महिलाओं और बच्चे भी) के हाथ बांध कर उनके साथ बर्बरता करती नज़र आ रही है। इसके विरोध में 19 फ़रवरी को…
  • Jalandhar
    न्यूज़क्लिक टीम
    जालंधर टू अमृतसरः सुनो तो, क्या बोले है पंजाब
    19 Feb 2022
    ग्राउंड रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने जालंधर से लेकर अमृतसर में अलग-अलग पेशों से जुड़े लोगों से बातचीत की और चुनावी मुद्दों का जायजा लिया। लेखक, फिल्ममेकर, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्रों,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License