NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन का असर: सिर्फ़ राजनीतिक तौर पर नहीं सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर भी बदल रहा है पंजाब
"आज यदि पंजाब अपनी तस्वीर आईने में देखे तो खुद पर चढ़े हुए रूप को देखकर शायद वह खुशी से शर्मा जाए। किसान मोर्चा में हमने देखा कि औरतें भाषण दे रही हैं, मर्द खाना बना रहे हैं अब यह बातें सिर्फ़ मोर्चे तक ही नहीं रहेंगी। जब ये लोग अपने घरों में आएंगे तब भी बात समानता की होगी।”
शिव इंदर सिंह
28 Feb 2021
किसान आंदोलन
पंजाब में घर और बाहर महिलाएं हर जगह अग्रिम मोर्चे पर मौजूद हैं। बरनाला पंचायत से पहले की तस्वीर।

भाजपा की केन्द्र सरकार और उसके आईटी सेल के हमलों के बावजूद पंजाब में किसान आंदोलन लगातार अपने पैर पसार रहा है। राज्य में हो रही बड़ी महापंचायतें इस बात की गवाह हैं। राज्य में हाल ही के दिनों में हुए शहरी निकाय चुनावों पर किसान आंदोलन का प्रभाव साफ दिखाई दिया है। इन चुनावों में भाजपा का सफ़ाया तो हुआ ही है साथ ही पंजाबियों ने उसके पूर्व मित्र अकाली दल को भी नकार दिया। पंजाब का बुद्धिजीवी वर्ग इस किसान आंदोलन को बड़े सकारात्मक और आशावादी नज़रिए से देख रहा है। उनका मानना है कि यह आंदोलन सिर्फ पंजाब के राजनीतिक वातावरण को ही नहीं बदलेगा बल्कि सांस्कृतिक व समाजिक तौर पर भी सकारात्मक परिवर्तन लाएगा।

पंजाब के इन नगर निगम, नगर कौंसिल व नगर पंचायत चुनाव में बेशक कांग्रेस पार्टी ने बड़ी बढ़त हासिल की है, लेकिन इस चुनाव पर किसान आंदोलन की गहरी छाप स्पष्ट दिखाई देती है। भले ही किसान संगठन अपने-आप को चुनावी राजनीति से दूर रख रहे हैं पर पंजाब के लोगों के हर वर्ग की यह सोच बन रही है कि नए कृषि कानून सभी वर्गों के लिए खतरनाक हैं। शहर का व्यापारी व मजदूर वर्ग किसान आंदोलन के पक्ष में खड़ा है।

भाजपा का सांप्रदायिक कार्ड राज्य के इन चुनावों में बिल्कुल फेल हो गया है। लोगों ने बड़ी गिनती में आज़ाद उम्मीदवारों को जिताया है। राजनीतिक विशेषज्ञ इस घटना को किसान आंदोलन के पक्ष में देख रहे हैं।

पंजाब के मानसा जिला के बुढलाडा, बोहा और बरेटा से सबसे ज्यादा आज़ाद उम्मीदवार जीते हैं। जालंधर के आदमपुर नगर काउंसिल के सभी आज़ाद उम्मीदवार जीते हैं। इसी तरह  करतारपुर नगर काउंसिल के 15 में से 9 वार्डों में आज़ाद उम्मीदवार जीते हैं। आनंदपुर साहिब के 13 के 13 वार्डों में से ही आजाद उम्मीदवार जीते हैं। नूरमहल के 13 में से 12 सीटें आज़ाद उम्मीदवारों ने जीती हैं। तरनतारन जिला के पट्टी तहसील की 9 कौंसिल सीटों पर भाजपा के सभी उम्मीदवार कुल मिलाकर मात्र 81 वोट हासिल कर सकें जबकि वहां नोटा को 164 वोट प्राप्त हुई।

इन स्थानीय चुनावों में आजाद उम्मीदवार सबसे बड़ा पक्ष बनकर उभरे हैं जिससे किसान आंदोलन का असर स्पष्ट दिखाई देता है। चुनाव नतीजों के अनुसार नगर निगम, नगर कौंसिल व नगर पंचायतों में 392 आज़ाद उम्मीदवार जीते हैं जिनमें से नगर निगमों में 18, नगर कौंसिल में 374 आज़ाद उम्मीदवार जीते हैं। जिला जालंधर में सबसे ज्यादा 59 आज़ाद उम्मीदवार और दूसरे नंबर पर जिला मानसा में 53 आजाद उम्मीदवार जीते हैं। इसी तरह जिला रोपड़ में 39, संगरूर में 130,बरनाला में 31, बठिंडा में 29, नया शहर में 18,मोहाली में 20 व फतेहगढ़ साहिब में 15 आजाद उम्मीदवार जीतने में सफल हुए हैं।

पत्रकार हमीर सिंह का कहना है कि हालांकि कांग्रेस इन चुनावों में बड़ी पार्टी बनकर उभरी है लेकिन यह कांग्रेस के कामों पर मुहर नहीं है बल्कि सच्चाई यह है कि विरोधी पक्ष ताकतवर नहीं था। किसान आंदोलन का प्रभाव था, लोग भाजपा के साथ साथ अकाली दल से भी खफ़ा थे क्योंकि अकाली दल पहले कृषि कानूनों का समर्थन करता रहा है।

पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर रौनकी राम का कहना है, "कृषि कानूनों के खिलाफ बने माहौल ने ऐसा माहौल बना दिया है कि शहरों में खेती आधारित व्यापारी ने अपनी सूझ से वोट डाली है। शहर के मजदूर को भी एहसास होने लगा कि ये कृषि कानून उनके लिए भी खतरनाक हैं। उनकी वोट ने भी रंग दिखाया है"

इन चुनावी नतीजों के अनुसार पंजाब के भाजपा अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के पैतृक हलके पठानकोट में भाजपा को 50 में से सिर्फ 11 सीटें मिली हैं। भाजपा के सीनियर नेता तीक्षण सूद के अपने जिला होशियारपुर में भाजपा को नगर निगम की 50 में से सिर्फ 4 सीटें ही मिल पाई हैं। भाजपा के भूतपूर्व मंत्री सुरजीत ज्याणी के जिला फाजिल्का की अबोहर नगर निगम (जहां से वे भाजपा के विधायक हैं) में भाजपा का खाता भी नहीं खुल पाया।

पंजाब की राजनीति को समझने वाले विद्वान प्यारा लाल गर्ग बताते हैं, "कृषि कानूनों की मार सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों तक होगी, जिस कारण शहर के लोग जागरूक हुए हैं उन्होंने यह साबित कर दिया है कि पंजाब में भाजपा के साम्प्रदायिक एजेंडे की कोई जगह नहीं है।"

इन चुनाव नतीजों में वाम पार्टियों ने भी कई जगह अच्छा प्रदर्शन किया है। मानसा जिला के जोगा की नगर पंचायत चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सभी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।

इन शहरी चुनावों में भाजपा को शुरू से ही किसान आंदोलन के गुस्से का सामना करना पड़ा। भाजपा को इन चुनावों में खड़े करने के लिए उम्मीदवार भी नहीं मिल पा रहे थे। बहुत जगह लोगों ने अपने घरों के सामने लिखकर टांग दिया था कि हमारे घर कोई भाजपा का उम्मीदवार वोट मांगने न आए। भाजपा के बहुत से उम्मीदवारों ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा ताकि लोगों के गुस्से का सामना ना करना पड़े।

भाजपा के आईटी सेल द्वारा लगातार किसान नेताओं के खिलाफ कुप्रचार जारी है, किसान नेताओं  को गालियां दी जा रही है, उन्हें बदनाम करने की कोशिशें की जा रही हैं, उनके बारे में झूठी खबरें चलाई जा रही है। इन तमाम हरकतों के बावजूद लोगों में किसान नेताओं का जनाधार व किसान आंदोलन का घेरा लगातार विशाल होता जा रहा है। चंडीगढ़, जगराउं और बरनाला में हुई महापंचायत इसकी सुबूत हैं।

चंडीगढ़ में 20 फरवरी को हुई किसान महापंचायत को भरपूर समर्थन मिला। बरनाला में हुई किसान पंचायत बारे अनुमान लगाया जा रहा है के डेढ़ लाख से अधिक लोग मौजूद रहे।  'संयुक्त किसान मोर्चा' द्वारा दिए जा रहे प्रोग्रामों को पंजाब के लोगों द्वारा पूरा समर्थन दिया जा रहा है चाहे वह 23 फरवरी का 'पगड़ी संभाल जट्टा'  हो,  24 फरवरी का 'दमन विरोधी दिवस' हो,  26 फरवरी का 'नौजवान किसान दिवस' या फिर 27 फरवरी का गुरु रविदास और शहीद चंद्रशेखर आजाद को याद करके 'किसान मजदूर एकता दिवस' मनाने का ऐलान हो।

पंजाब में किसान संघर्ष ने सिर्फ राजनीतिक तौर पर ही नहीं पंजाब को सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर भी बदला है। गांव में भाईचारिक एकता बनी है लोगों के छोटे-मोटे झगड़े खत्म हुए हैं।

पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ की छात्रा बलजिंदर कौर का कहना है "आज यदि पंजाब अपनी तस्वीर आईने में देखे तो खुद पर चढ़े हुए रूप को देखकर शायद वह खुशी से शर्मा जाए। किसान मोर्चा में हमने देखा कि औरतें भाषण दे रही हैं, मर्द खाना बना रहे हैं अब यह बातें सिर्फ मोर्चे तक ही नहीं रहेंगी। जब ये लोग अपने घरों में आएंगे तब भी बात समानता की होगी। यह मोर्चा सांस्कृतिक तौर पर भी पंजाब को बहुत कुछ दे रहा है। औरत मर्द की समानता का मुद्दा, जात-पात के अंतर को मिटाने का मुद्दा, ऐसे कितने ही मुद्दे हैं जिनसे यह आंदोलन संवाद रचा रहा है। पुरानी रूढ़ियों को  खत्म कर रहा है।"

पंजाब के प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर बावा सिंह का कहना है, "इस आंदोलन के आगे के सफर बारे अभी कुछ कहना मुश्किल है लेकिन यह बात साफ है कि आंदोलन ने परंपरागत राजनीतिक पार्टियों को नकार दिया है। आने वाले समय में पंजाब में एक नई तरह की राजनीति का आगाज होगा। सामाजिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक तौर पर भी इस आंदोलन के गहरे प्रभाव बने रहेंगे। मोदी सरकार ने इस आंदोलन को दबाने की लोगों को आपस में लड़ाने की बहुत कोशिशें कीं चाहे जात-पात के नाम पर हो, कम्युनिस्ट या सिखों के नाम पर हो लेकिन इस आंदोलन ने सब को फेल कर दिया। यह आंदोलन अपनी राह  खुद बना रहा है।"

(पंजाब स्थित लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

farmers protest
kisan andolan
punjab
Farm Bills
BJP

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License