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भारत
राजनीति
जीपीसीएल के भूमि हड़पने से भावनगर के किसान बने दिहाड़ी मजदूर 
2018 की शुरुआत में जीपीसीएल ने बदी, थोरडी और रणपार गांव के लगभग 250 किसानों की ज़मीनों पर कब्जा कर लिया था। बावजूद मुक़दमेबाज़ी और किसानों के विरोध के और भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच कंपनी ने लगभग 3,901 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था। 
दमयन्ती धर
03 Apr 2021
Translated by महेश कुमार
घोघा तालुका के वे किसान जिन्होंने अपनी जमीन पूरी तरह या आंशिक रूप से खो दी है
घोघा तालुका के वे किसान जिन्होंने अपनी जमीन पूरी तरह या आंशिक रूप से खो दी है

2018 की शुरुआत में भावनगर के रणपर के एक गुमनाम गाँव के किसान चंदूभाई शांजी सोलंकी जब सुबह को नींद से जागे तो वे हर रोज़ की तरह अपने बदी गाँव की खेती की ज़मीन पर गए। यह फसल काटने का मौसम था और चंदूभाई अपनी आधी फसल की कटाई कर चुके थे। जब वे अपने ज़मीन पर पहुंचे तो चंदूभाई उस दिन अपनी खेत में प्रवेश नहीं कर पाए क्योंकि पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और उन्हें बताया कि उनकी जमीन अब गुजरात पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (GPCL) की संपत्ति है। वह आखिरी दिन था जब चंदूभाई सोलंकी ने किसान के रूप में काम किया था।

उन्होनें न्यूज़क्लिक को बताया, “12 सदस्यों का मेरा परिवार 42 बीघा जमीन से होने वाली कमाई पर निर्भर था। अब हम में से छह लोग भावनगर शहर में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं। मैं ज़मीन खोने के बाद काम ढूँढने सबसे पहले भावनगर शहर गया था। मैनहोल खोदने से लेकर निर्माण स्थलों पर जो भी काम मिला मैंने उसे किया। पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद भी मैं केवल 200-250 रुपये ही कमा सकता था जो परिवार के लालन-पालन के लिए काफी नहीं था। इसलिए, परिवार के अन्य सदस्य भी शहर में मुझसे जुड़ गए ताकि हमारी पारिवारिक आय बढ़ सके।

चंदूभाई सोलंकी जिन्होंने 2018 में अपनी सारी जमीन खो दी थी और अब वे एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं

लगभग तीन साल पहले, उस दिन की घटनाओं को याद करते हुए चंदूभाई ने बड़े उदास मन से कहा कहा कि उन्होंने पुलिस से बहुत अनुरोध किया कि वे मुझे अपनी बची हुई फसल की कटाई करने दें। मैंने उन्हें यह बताने की भी कोशिश की कि मेरे परिवार ने खेतों में पैसा और महीनों की मेहनत लगाई है। लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी। कटाई में आमतौर पर कुछ दिन लगते हैं। मैंने अपनी उपज का लगभग आधा हिस्सा काट लिया था और उस दिन मुझे बाकी बची फसल काटनी थी। मैंने अपनी जमीन खोई और साथ वह पैसा भी जिसे मैंने उस सीजन की फसल उगाने में लगाया था।”

2018 में जीपीसीएल ने बदी, सुर्खा, थोरडी और रणपार गाँवों के 250 किसानों की ज़मीनों को भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच लगभग 3,901 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था। जीपीसीएल ने यहाँ लिग्नाइट का खुला खनन शुरू कर दिया है। 

उल्लेखनीय रूप से गुजरात सरकार ने भावनगर में घोघा तालुका के 12 गांवों में 1993 से 1994 के बीच थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए, एक कॉलोनी के बनाने के लिए, लिग्नाइट का खनन करने और राख डंपिंग करने के लिए जिसे थर्मल प्लांट में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है, 3,377 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। 

जमीन पर कब्जे की प्रक्रिया दिसंबर 2017 में शुरू हुई थी।

इससे प्रभावित किसानों ने दिसंबर 2017 में एक बड़े पैमाने का विरोध प्रदर्शन किया था जिसके बाद भावनगर पुलिस ने घोघा पुलिस स्टेशन और वर्त्ज पुलिस स्टेशन में 10 प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज कीं थी जिसमें उन पर ग्रामीणों को लाभ के लिए उकसाने और पुलिस के काम में बाधा डालने के आरोप लगाए गए थे। 10 किसानों में से तीन का नाम दोनों एफआईआर में दर्ज़ था।

खनन स्थल रास्ता  

फरवरी 2018 में किसानों ने गुजरात के उच्च न्यायालय में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ अपील की थी।

अप्रैल 2018 में पुलिस ने घोघा तालुका के बदी गांव में विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे, जिनमें से कई घायल हो गए थे।

चूंकि प्रभावित इलाकों से किसानों ने भारी संख्या में विरोध करना शुरू कर दिया था इसलिए पुलिस को बदी गांव में तैनात कर दिया गया था जहां उन्होंने महीनों तक डेरा डाले रखा था। पुलिस ने भारी संख्या में गांव में मार्च किया और चार से अधिक लोगों को एक जगह इकट्ठा होने पर रोक लगा दी थी और इलाके में धारा 144 लागू कर दी थी। 

कई किसान जो अपनी सारी जमीन खो चुके थे, वे भावनगर शहर में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने पर मजबूर हो गए थे। 

“मेरे पास सुरखा गाँव में छह बीघा और बदी में 40 बीघा जमीन थी। मैंने इन ज़मीनों को 2018 में खो दिया था। मैं शहर में अब दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता हूं। 15 सदस्यों का मेरा परिवार मुश्किल से मेरी आमदनी पर ज़िंदा रह पाता है। उक्त बातें 44 वर्षीय हिम्मतभाई कटारिया ने बताई। 

हिम्मतभाई कटारिया ने अपनी सारी जमीन खो दी और अब शहर में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं

बदी गांव के किसान नरेंद्रसिंह गोहिल ने बताया, “मैंने 27 बीघा ज़मीन खो दी है और शेष 30 बीघा खनन स्थल से मुश्किल से 500 मीटर की दूरी पर है। मैं वहां फसलों की बुआई के मामले में थोड़ा आशंकित हूं क्योंकि कंपनी किसी भी दिन मेरी जमीन छीन सकती है। पिछली बार उन्होंने (GPCL) जमीन पर कब्जा कर लिया था, और किसानों को अपनी फसल काटने का मौका भी नहीं दिया था। सभी को भारी नुकसान हुआ।” 

उन्होंने कहा, “पुलिस ने हमारी जमीन को घेर लिया था और हमें फसल भी काटने का मौका नहीं दिया था। मैंने लगभग 100 मन फसल खो दी और लगभग 50,000 रुपये का नुकसान हुआ।”

हालांकि, जमीन खोना केवल इसका नकारात्मक पक्ष नहीं है। किसानों को पिछले तीन वर्षों से जीपीसीएल (GPCL) खुली खनन के प्रतिकूल प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है।

दिसंबर 2019 में किसानों को तब झटका लगा जब उन्होंने देखा कि लगभग 250 मीटर के खेत के एक टुकड़े को कम से कम 100 मीटर ऊंचा उठा दिया गया था। नवंबर 2020 में एक ऐसी ही घटना घटी जब लगभग 800 मीटर लंबी और 300 मीटर चौड़े जमीन के टुकड़े को, जिसमें गौचर और कृषि भूमि दोनों शामिल थी, कम से कम 50 फीट ऊंचा उठा दिया गया था।

रमेश भाई अपनी जमीन के उस टुकड़े की तरफ इशारा कर रे हैं जिसे अचानक ऊंचा उता दिया गया था

रमेशभाई ने न्यूज़क्लिक को बताया, “होयदार गांव में मेरी 18 बीघा जमीन थी, जिसमें से लगभग सात या आठ बीघा जमीन को ऊंचा उठा दिया गया था। यह सब अचानक हुआ। एक सुबह कुछ किसानों ने, जो मेरी जमीन से गुजर रहे थे, देखा और फिर हमने जीपीसीएल अधिकारियों और भावनगर के कलेक्टर को इस बारे में सूचित किया। कलेक्टर ने घटनास्थल का दौरा किया और ऊँची भूमि के चारों ओर एक बाड़ लगवा दी थी। जीपीसीएल अधिकारियों ने कोई उपाय नहीं किया और न ही कोई कारण बताया कि ज़मीन की ऊंचाई क्यों उठाई गई थी।”

"अब यह बाड़ मेरी जमीन से होकर गुजरती है, जो उठे हुए भाग को बांटती है। मैंने अपनी जमीन का एक हिस्सा खो दिया लेकिन किसी ने अभी तक मुझे कोई मुआवजा नहीं दिया है।”

प्रवीणसिंह गोहिल, जिन्होंने 2018 में 15 बीघा जमीन खो दी थी, ने न्यूज़क्लिक को बताया, “इलाके में जब से खनन शुरू हुआ है तब से पानी भी धीरे-धीरे खारा हो रहा है। हवा में हर समय धूल उड़ती रहती है। न पिछले सीजन अच्छी फसल हुई थी। आम जिसकी पैदावार यहां अच्छी थी, वह अब नहीं होती हैं।”

15 बीघा ज़मीन खोने वाले प्रवीणसिंह गोहिल अब खेती करने के लिए जमीन किराए पर लेते हैं

अंधकारमय भविष्य को देखते हुए गोहिल ने कहा: "मैं सिर्फ खेती करना जानता हूँ, इसलिए मैंने खेती करने के लिए 2018 में जमीन किराए पर ली थी।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Land Lost to GPCL, Bhavnagar Farmers Turn to Daily Wage Labour

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