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एमएसएमईज़ (MSMEs) के मदद के लिए अपनाई गई लोन की नीति रही बेअसर: सर्वे
बैंक जब अपना ही एनपीए नहीं संभाल पा रहे तो नए MSMEs को लोन कैसे देंगे? बैंक के बड़े अधिकारियों का कहना है कि MSMEs को देने में बड़ा ‘क्रेडिट रिस्क’ है।’
बी. सिवरामन
15 Jul 2021
एमएसएमईज़ (MSMEs) के मदद के लिए अपनाई गई लोन की नीति रही बेअसर: सर्वे
Image courtesy : DNA India

यूके की प्रसिद्ध बिज़नेस पत्रिका ‘इकनाॅमिस्ट’(Economist)  ने लिखा है, ‘‘एमएसएमई ऋणदाता (MSME lenders) के लिए कोविड-19 अस्तित्व का खतरा प्रस्तुत कर रहा है, फिर भी महामारी के बाद की दुनिया में इन्हें ऋण की जरूरत पहले की तुलना में कहीं अधिक होगी।’’आखिर, कितना कमजोर किया है MSMEs को इस महामारी ने, और इनको मजबूत करने के लिए बैंक क्या कर रहे हैं? आइये हम देखें।

संयोग से इमर्जेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम या ECLGS के तहत बीमार MSMEs को पुनर्जीवित करने हेतु 3 लाख करोड़ का क्रेडिट गारंटी कार्यक्रम निर्मला सीतारमन द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम का ‘हाई पाइंट’ था; और इससे हमारी अर्थव्यवस्था को प्रेरित किया जा सकता था।

क्या इससे कुछ हासिल हुआ? क्या आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम ने MSMEs को प्रोत्साहित किया है और उन्हें एक मजबूत लाइफलाइन दी है? या, अब भी वे कर्ज में डूबे हुए हैं? 28 जुलाई 2021 को, यानि एक साल से अधिक समय के बाद, सीतारमन को ECLGS को 50 प्रतिशत, यानि 1.5 लाख करोड़ रु से बढ़ाना पड़ा था, और उसके तहत एमएसएमईज़ के लिए कुल क्रेडिट विस्तार की मात्रा 4.5 लाख करोड़ कर दी गई थी।

परोक्ष रूप से यह एक किस्म की स्वीकृति है कि 3 लाख करोड़ की मूल सीमा अपर्याप्त थी। यद्यपि इसे ‘फिस्कल प्रूडेंस’(fiscal prudence) के रूप में वर्णित किया जा सकता है, अर्थव्यवस्था में  इतनी कम रिकवरी साबित करती है कि मोदी सरकार का आत्मनिर्भर भारत अभियान हमारी अर्थव्यवस्था को प्रेरित करने के लिए बहुत ही अपर्याप्त रहा। और अब हम देखें कि पिछले एक वर्ष में इसका MSMEs पर क्या प्रभाव पड़ा।

सइंस, टेक्नाॅलाॅजी इन्जीनियरिंग पार्क यानि स्टेप ने 2029 MSMEs का टेलिफोन द्वारा सर्वे किया। स्टेप एक इन्क्यूबेटर है जो रीजनल इन्जीनियरिंग काॅलेज, ट्रिची से सम्बद्ध MSMEs में तकनीकी आविष्कारों को प्रोत्साहित करता है। उसने अपने सर्वे में दिखाया है कि 40 प्रतिशत से अधिक बीमार MSMEs आज भी बंद पड़े हैं। अभी तक वे संकट से उबरे नहीं हैं। सर्वे के निष्कर्ष उनके आधिकारिक वेबसाइट trecstep.com में अपलोड किये गए हैं।

कुछ जांच परिणाम परेशान करने वाले हैं। सर्वे किये गए 94 प्रतिशत MSMEs ने रिपोर्ट किया कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में महामारी के चलते उनकी बिक्री यानी सेल में कमी आ गई। 42 प्रतिशत ने बताया कि उनके सेल्स में 50 प्रतिशत गिरावट आई थी, और 91 प्रतिशत ने तो बताया कि वे घाटे में आ गए। जबकि सर्वे में भाग लेने वाले 63 प्रतिशत MSMEs को उस वित्तीय वर्ष में 5 लाख से कम का घाटा लगा, 27 प्रतिशत को 6-10 लाख का घाटा लगा था और 10 प्रतिशत को 10 लाख से अधिक घाटा लगा। जिन 1900 MSMEs ने रिपोर्ट किया था, उनमें से 44 प्रतिशत 1 अप्रैल 2020 से काम नहीं कर रहे थे और केवल 10 प्रतिशत लाॅकडाउन के दौर को छोड़कर पुर्ण क्षमता के साथ काम कर रहे थे। 33 प्रतिशत में श्रमिकों का ले-ऑफ (lay-off) हो गया था, 28 प्रतिशत ने वेतन कटौती की थी और 23 प्रतिशत ने श्रमिकों की छंटनी कर दी थी। हम इसे MSMEs की तबाही कहें तो क्या यह अतिश्योक्ति होगी?

यदि श्रमिकों के रोज़गार खत्म होने की दृष्टि से देखा जाए तो रिकवरी को कितनी अच्छी मानें? यद्यपि सर्वे यह स्पष्ट नहीं करता कि श्रमिक स्थानीय थे या प्रवासी, यह जरूर पता लगता है कि जब लाॅकडाउन समाप्त हुआ तो ले-ऑफ और छंटनी के शिकार श्रमिकों का एक छोटा हिस्सा-31 प्रतिशत ही वापस काम की तलाश में इन MSMEs में लौटा।

सर्वे में भाग लेने वाले MSMEs का प्रोफाइल प्रस्तुत करते हुए सर्वे कहता है कि इनमें 72 प्रतिशत 5 वर्ष से अधिक पुराने हैं, 86 प्रतिशत का निवेश तकरीबन 50 लाख था, 92 प्रतिशत का सेल्स टर्नओवर 1 करोड़ से कम था जबकि केवल 2 प्रतिशत का सेल्स टर्नओवर 5 करोड़ से अधिक था। इनमें से 69 प्रतिशत में करीब 10 श्रमिक काम कर रहे थे और 8 प्रतिशत में 20 से अधिक।

सर्वे के माध्यम से हैरत में डालने वाली एक जानकारी यह मिलती है कि प्रतिक्रिया जाहिर करने वाले 1900 MSMEs में से मात्र 694, यानि 36.52 प्रतिशत ने रिपोर्ट किया कि वे घाटे को बैंक कर्ज के जरिये पूरा कर सके, 631, लेकिन, 33.21 प्रतिशत  MSMEs ने बताया कि उन्हें अन्य स्रोतों से कर्ज लेना पड़ा। 285 ने अपनी जायदाद (estate) बेच दिये और 400 ने अपने खुद के फंड से ही पुनः निवेश किया। आखिर क्या बात है कि करीब एक-तिहाई MSMEs को बैंक के बजाए अन्य स्रोतों से ऋण लेना पड़ा? न्यूज़क्लिक की ओर से हमने कुछ MSME मलिकों और बैंक ब्रांच मैनेजरों से बात की।

वर्धराजन वेंकटरमन, अम्बतूर आद्योगिक क्षेत्र में न्यू सेंचुरी एंटरप्राइसेज़ नाम के एसएमई के मालिक हैं। वे कहते हैं कि ऐसा इसलिए है कि बैंकों ने अस्थाई तौर पर नए MSMEs के लिए लोन के आवेदन को रोक दिया। बैंक केवल उन MSMEs के लोन मंजूर कर रहे हैं जो ईसीएलजीएस के अंतरगत आते हैं, क्योंकि बैंकों को इस बाबत कोटा पूरा करना होता है।

सर्वे पर टिप्पणी करते हुए, कर्नाटक के सेवानिवृत्त कनारा बैंक अधिकारी, वीएसएस शास्त्री ने इस बात को सत्यापित करते हुए कहा, ‘‘नए MSMEs को लोन कैसे मिले जब अपना ही एनपीए बोझ नहीं सम्भल रहा। फिर महामारी के प्रभाव के चलते और तकनीकी रूप से अर्थव्यवस्था के मंदी से उबरने के बावजूद ‘लो इकनाॅमिक टेक ऑफ ' के कारण भी MSMEs के लिए लोन देने में बड़ा ‘क्रेडिट रिस्क’ है।’’

स्टेप-आरईसी सर्वे की कुछ कमजोरियों को गिनाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘इस सर्वे को प्रधान मंत्री द्वारा 12 मई 2020 को आत्मनिर्भर भारत स्कीम की घोषणा और निर्मला सीतारमन द्वारा 21 मई 2020 ईसीएलजीएस की घोषणा के एक वर्ष बाद किया गया है। स्वाभाविक है कि प्रश्नावलि में एक प्रश्न का होना लाज़मी था कि इन MSME प्रतिवादियों ने क्या आत्मनिर्भर भारत लोन गारंटी स्कीम के तहत बैंक लोन के लिए आवेदन किया था; या कि उन्होंने ताजा MSME लोन के लिए आवेदन किया था; और परिणाम क्या रहा? सर्वे में यह प्रश्न छोड़ देना उसे कमज़ोर बनाता है।’’

इसके अलावा शास्त्री कहते हैं,‘‘ केंद्र की नीति है कि पीएसयूज़ को अपनी खरीद का 25 प्रतिशत MSMEs के माध्यम से सोर्स करना चाहिये। पर उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों ने भले ही 25 प्रतिशत का कोटा तय किया था, सरकार ने माना कि दिसम्बर 2019 तक केंद्रीय पीएसयूज़ (central PSUs)द्वारा केवल 10 प्रतिशत प्रोक्योरमेंट MSMEs से किया जा रहा था। सरकार ने अब तक स्पष्ट नहीं किया कि ऐसा क्यों हुआ। सर्वे ने इस पक्ष को भीं नहीं छुआ। एक और मुद्दा है राष्ट्रीय विद्युत नीति 2021 के तहत संभावित विद्युत शुल्क में बढ़ोत्तरी। यद्यपि सर्वे बाकी मामलों में काफी सटीक है और सामयिक भी, पर यदि वे ऐसे प्रासंगिक सवालों को प्रश्नावलि में जोड़ते तो वे माइक्रो स्तर पर संबंधित सरकारी योजनाओं के स्वतंत्र परिणाम-आधारित निष्पादन मूल्यंकन (performance evaluation)  में बेहतर योगदान कर सकते थे।’’

यद्यपि यह एक छोटा सैम्पल सर्वे है जो तमिल नाडु तक सीमित है, इससे हम अखिल-भारतीय स्तर पर MSMEs की सच्चाई समझ सकते हैं, क्योंकि यह राज्य उन्नत राज्यों में गिना जाता है। और, सबसे बड़े हैरत की बात तो यह है कि ये परिणाम आत्मनिर्भर भारत अभियान के एक वर्ष के अंदर प्रकट हो रहे हैं। MSME मंत्रालय के अपने आंकड़ों के आधार पर देखें तो आज के दौर में MSMEs ही अर्थव्यवस्था और निर्यात के लिए प्रमुख विकास इंजन हैं। सर्वे के परिणामों से तो लगता है कि भारत सरकार को अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों ने सही ही प्रस्ताव रखा होगा कि पहले से कर्ज में डूबे हुए बीमार MSMEs को ईसीएलजीएस के माध्यम से पुनर्वित्त करना होगा ताकि उन्हें जिन्दा किया जा सके। पर यदि अर्थव्यवस्था में वृद्धि को नये आवेग देने की दृष्टि से देखा जाए तो पहले से कर्ज में डूबे हुए व बीमार MSMEs को और अधिक लोन देने जितना, या शायद उससे अधिक महत्वपूर्ण है, नए MSMEs के उद्भव को प्रोत्साहित करना। परंतु दुखद बात है कि MSMEs को सरकारी सहयोग अधिकांशतः कर्जदार MSMEs के लिए कुछ एक क्रेडिट गारंटी योजनाओं तक सीमित रहा। नए MSMEs के लिए व्यापक पैमाने पर लोन की व्यवस्था देने वाली कोई स्कीमें नहीं हैं। यही कारण है कि महामारी वर्ष 2020-21 में परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे, जैसा कि सर्वे से प्रतीत होता है। अपने नज़दीकी आर्थिक सलाहकारों, जिनके प्रस्ताव अभी तक रंग नहीं लाए, के अलावा पीएमओ को अपनी आंखें ऐसे स्वतंत्र सर्वे के प्रति खुली रखनी चाहिये, ताकि उन्हें जमीनी सच्चाइयों का पता चले। इसके बिना आत्मनिर्भर भारत अभियान अधूरे मन से उठाया गया प्रभावहीन कदम ही साबित होगा।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।) 

MSMEs
ECLGS
Micro Small and Medium Enterprises
Udyog Aadhaar
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Loan Policy
economic crises

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