NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
लखनऊ : मो. शोएब व रॉबिन वर्मा कब रिहा होंगे?
देश में इन दिनों जो माहौल है, उसमें सवाल पूछना, विरोध करना ही ‘गुनाह’ है। रिहाई मंच इसी की ‘सज़ा’ झेल रहा है। अजय सिंह का विशेष स्तंभ फ़ुटपाथ। 
अजय सिंह
13 Jan 2020
Robin Shoib
फोटो (बाएं से) रॉबिन वर्मा, मो. शोएब

लखनऊ की ज़िला जेल से कुछ दिन पहले मानवाधिकार कार्यकर्ता व भूतपूर्व पुलिस अधिकारी सरवन राम दारापुरी, कांग्रेस कार्यकर्ता व कलाकार सदफ़ जाफ़र और संस्कृतिकर्मी दीपक कबीर ज़मानत पर रिहा हो गये। लेकिन रिहाई मंच के अध्यक्ष व मानवाधिकारवादी वकील मोहम्मद शोएब और रिहाई मंच के कार्यकर्ता व लखनऊ के एक डिग्री कॉलेज में अध्यापक रॉबिन वर्मा को अभी तक रिहा नहीं किया गया है। ये दोनों लगभग एक महीने से लखनऊ ज़िला जेल में बंद हैं और अदालत में इनकी ज़मानत की अर्ज़ियों पर सुनवाई टलती जा रही है।

इसकी क्या वजह हो सकती है? क्या इसकी वजह यह है कि मोहम्मद शोएब और रॉबिन वर्मा रिहाई मंच से जुड़े हैं, जिस पर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की ‘टेढ़ी निगाह’ है और वह ‘बदला लेने’ को उतारू हैं? क्या इसी के चलते इन दोनों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सरकार ‘सबक सिखा’ रही है?

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और संभावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में 19 दिसंबर 2019 को लखनऊ में जनता के विभिन्न तबकों व जन संगठनों की ओर से धरना, प्रदर्शन और रैली का आयोजन किया गया था। उसी सिलसिले में मोहम्मद शोएब, सरवन राम दारापुरी, सदफ़ जाफ़र, रॉबिन वर्मा और दीपक कबीर को पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया। दस-पंद्रह दिनों के बाद दारापुरी, सदफ़ जाफ़र व दीपक कबीर को ज़मानत मिल गयी और वे रिहा हो गये। लेकिन 76 साल के मोहम्मद शोएब व नौजवान रॉबिन वर्मा की अभी तक रिहाई नहीं हुई है।

रिहाई मंच सरकार की नज़रों में इसलिए गड़ता रहा है कि इसके कार्यक्रमों में पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी, भूतपूर्व पुलिस अधिकारी व जज, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता और अन्य जाने-माने लोग हिस्सा लेते रहे हैं। 2007 से ही रिहाई मंच उत्तर प्रदेश में मुठभेड़ के नाम पर हत्याओं और मुसलमानों, दलितों व पिछड़ों के खिलाफ़ पुलिस की ज़्यादतियों और हिंसा के विरोध में आवाज़ उठाता रहा है और आंदोलन करता रहा है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ़ मंच ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखि़ल की है।

लेकिन एक बहुत ख़ास वजह है, जिसके चलते सरकार रिहाई मंच से बहुत ज़्यादा चिढ़ती है। वह है : जेलों में बंद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को अदालती कार्रवाई (उनके मुक़दमों की पैरवी) के जरिए रिहा कराना। 2007 से लेकर अब तक रिहाई मंच और मोहम्मद शोएब ने 13 बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को जेलों से रिहा कराया है, जिन्हें पुलिस ने आतंकवाद के झूठे मामलों में फंसा कर गिरफ़्तार कर लिया था। ये नौजवान कई सालों से जेलों में बंद थे। इनमें आफ़ताब आलम अंसारी और शाहबाज़ अहमद शामिल हैं, जिन्हें पिछले दिनों अदालतों ने बरी कर दिया। इससे सरकार व पुलिस की बड़ी किरकिरी हुई।

जो वंचित और ग़रीब हैं, जो हाशिए पर फेंक दिये गये लोग हैं, जो अल्पसंख्यक हैं, जो आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर हैं-ऐसे लोग अक्सर सरकार व उसकी एजेंसियों के हमले और हिंसा के शिकार होते हैं। ऐसे लोगों को आंदोलन व अदालत के माध्यम से न्याय दिलाने का काम रिहाई मंच करता रहा है। अपनी इन न्यायसंगत और वैधानिक कामों के चलते रिहाई मंच अगर सरकार की निगाहों में ‘देशद्रोही’ और ‘राष्ट्र-विरोधी’ है, तो क्या ताज्जुब! उत्तर प्रदेश पुलिस ने तमाम तरह की अनर्गल व झूठी ख़बरें प्रचारित कर रिहाई मंच को ‘संदिग्ध’ संगठन बताने की कोशिश की है।

देश में इन दिनों जो माहौल है, उसमें सवाल पूछना, विरोध करना ही ‘गुनाह’ है। रिहाई मंच इसी की ‘सज़ा’ झेल रहा है।

(लेखक वरिष्ठ कवि और पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Lucknow
Mohammad Shoaib
Robin Verma
CAA
NRC
UttarPradesh
Sadaf Jafar
SR Darapuri
Religion Politics
minorities
रिहाई मंच

Related Stories

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?

CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा

लखनऊ: देशभर में मुस्लिमों पर बढ़ती हिंसा के ख़िलाफ़ नागरिक समाज का प्रदर्शन

महानगरों में बढ़ती ईंधन की क़ीमतों के ख़िलाफ़ ऑटो और कैब चालक दूसरे दिन भी हड़ताल पर

बलिया: पत्रकारों की रिहाई के लिए आंदोलन तेज़, कलेक्ट्रेट घेरने आज़मगढ़-बनारस तक से पहुंचे पत्रकार व समाजसेवी

पत्रकारों के समर्थन में बलिया में ऐतिहासिक बंद, पूरे ज़िले में जुलूस-प्रदर्शन

यूपी: खुलेआम बलात्कार की धमकी देने वाला महंत, आख़िर अब तक गिरफ़्तार क्यों नहीं

पेपर लीक प्रकरणः ख़बर लिखने पर जेल भेजे गए पत्रकारों की रिहाई के लिए बलिया में जुलूस-प्रदर्शन, कलेक्ट्रेट का घेराव

लखनऊ में नागरिक प्रदर्शन: रूस युद्ध रोके और नेटो-अमेरिका अपनी दख़लअंदाज़ी बंद करें


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License