NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र: लॉकडाउन, छंटनी और मांग घटने से सैकड़ों कपड़ा कारखानों का कामकाज बंद
महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे और पुणे जैसे महानगरों में सैकड़ों फैक्ट्री मालिक और ड्राइवर पिछले छह महीनों के दौरान छंटनी का शिकार हुए हैं। छोटे कारखाना मालिकों को किराया और बिजली के बिलों का भुगतान करने के लिए सिलाई मशीनें तक बेचने पड़ी हैं।
शिरीष खरे
02 Sep 2020
लॉकडाउन, छंटनी और मांग घटने से सैकड़ों कपड़ा कारखानों का कामकाज बंद

पुणे: विदेशी निर्यात से लेकर बड़े मॉल और स्थानीय दुकानों से लेकर सड़क के बाजारों तक हर जगह बिक्री के लिए तैयार माल की आपूर्ति करने वाले कपड़ा उद्योग को खोलने के लिए लॉकडाउन में ढील दी गई है। लेकिन, महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे और पुणे जैसे महानगरों में सैकड़ों फैक्ट्री मालिक और ड्राइवर पिछले छह महीनों के दौरान छंटनी का शिकार हुए हैं। वहीं, इस व्यवसाय से जुड़े अनेक व्यापारी भी मांग में कमी के कारण नुकसान उठा चुके हैं। इसी तरह, कई छोटे कारखाना मालिकों को किराया और बिजली के बिलों का भुगतान करने के लिए सिलाई मशीनें तक बेचने पड़ी हैं। दूसरी ओर, कई कारखानों में प्रबंधक काम करने वाले प्रवासी मजदूर और कारीगरों को वापस बुलाए जाने को लेकर उत्साहित नहीं हैं। इस बारे में कारखाना प्रबंधकों का कहना है कि उनके पास मजदूर और कारीगरों के लिए फिलहाल कोई काम नहीं है।

मुंबई और महानगरीय क्षेत्र में तीन सौ सिलाई मशीनों के साथ संचालित कारखानों की संख्या लगभग दस हजार है। राज्य में इस तरह के अठारह हजार से अधिक कारखाने हैं। हालांकि, इनमें कई छोटे और मध्यम श्रेणी के कारखाना प्रबंधक ऋण प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन, कपड़ा व्यापारियों की तरफ से अपेक्षा के अनुरूप नई मांग नहीं आ रही है। साथ ही, यह भी स्पष्ट नहीं है कि स्थिति में सुधार कब होगा।

 मुंबई के अंधेरी स्थित नवभारत नगर में आकाश बुड्ढा की छोटी सी फैक्ट्री अब पूरी तरह से बंद है। लेकिन, उन्हें हर महीने पंद्रह हजार रुपये किराया और बिजली के बिल का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। आकाश कहते हैं, "कई कारखाना प्रबंधकों ने किराया और बिजली के बिल का भुगतान, साथ ही लागत को कवर करने के लिए दूसरे कारखानों को सिलाई मशीनें बेच दी हैं। इस क्षेत्र में कई ऐसे कारखाने हैं। बड़े कारखाना वालों के लिए कपड़ा उद्योग चलाने में जबर्दस्त वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। जबकि, छोटे कारखाना वालों का काम पूरी तरह से बंद हो गया है।"

मुंबई के ही जोगेश्वरी में राजेश मंसद के कपड़ा कारखाने में तीन सौ अधिक सिलाई मशीनें हैं। हालांकि, इन दिनों यहां केवल अस्सी कारीगर काम कर रहे हैं। राजेश मंसद बताते हैं कि इस कारखाने में सामान्य दिनों की अपेक्षा केवल पांच प्रतिशत मांग है। इसलिए, उन्हें अब ढाई महीने बाद आने वाली दिवाली से बड़ी उम्मीदें हैं। हालांकि, उन्हें यह डर भी है कि जब तक स्थिति नहीं बदली या व्यापारियों से मांग नहीं हुई तो यह एक ऐसा झटका होगा जिससे उभारना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

कापड उद्योग  001.jpg

तारापुर में एक कपड़ा कारखाना मालिक अंकुर गादिया ने कहा कि फिलहाल कपड़ा बाजार में घरेलू मांग कम है। हालांकि, अफ्रीका और खाड़ी देशों से कपड़े की मांग आने के कारण तीस प्रतिशत तक कारखाने आधी-अधूरी क्षमता में चालू हुए हैं।

शाहनवाज खान कपड़े का काम करने वाले एक कारीगर हैं। वे मुंबई के अंधेरी स्थित नवभारत नगर में सपरिवार रहते हैं। वे कहते हैं, "मुझे पिछले पांच महीनों से कोई नौकरी नहीं मिल रही है। पहले मैं जिस कारखाने में काम करता था वहां कम-से-कम पचास कारीगर काम करते थे। पर, अब सब कुछ बंद हो गया है, तो उन्हें अपने लिए नौकरी ढूंढनी होगी और वे तीन सौ रुपए दिन में भी काम कर सकते हैं।" उन्होंने कहा कि वे कुछ बड़े कपड़े के शोरूमों में भी काम ढूंढ़ रहे हैं. लेकिन, फिलहाल उन्हें काम नहीं मिल रहा है।

क्लोथिंग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुख्य मार्गदर्शक राहुल मेहता बताते हैं कि इस वर्ष लॉकडाउन से पहले कपड़ा कारोबारियों ने शादियों को ध्यान में रखते हुए कपड़ों का स्टॉक रख लिया था। जब तक पुराना माल पूरी तरह नहीं बिकता है तब तक नए माल की मांग की संभावना नहीं बनेगी। उन्हें लगता है कि बाजार की मौजूदा प्रवृत्ति को देखते हुए दिसंबर की शुरुआत में स्थिति में सुधार हो सकता है।

कपड़ा उद्योग से जुड़े कारोबारी बताते हैं कि कोरोना काल में उन्हें श्रम और पूंजी दोनों ही तरह के संकट का सामना करना पड़ रहा है। पुणे के कपड़ा कारोबारी गिरीश गाताडे का मानना है कि चार-पांच महीने के अंतर के बाद फिर से काम शुरू करने के लिए कारखाना प्रबंधकों को पूंजी की आवश्यकता है। कारण यह है कि कई जगहों पर पहले बेचे जा चुके माल का पूरी तरह से भुगतान हासिल नहीं हो सका है। लॉकडाउन के दौरान जो नकदी शेष थी उसका बड़ा हिस्सा कारखानों के रख-रखाव, श्रमिकों की मजदूरी, किराए और अन्य कार्यों पर खर्च हो चुका है।

इसी तरह, अन्य कपड़ा कारोबारी बताते हैं कि कोरोना लॉकडाउन से पहले जो आर्डर किए गए थे उनमें से कई बाद में रद्द कर दिए गए। इसी तरह, पहले के स्टॉक को निकलने की संभावनाएं भी कम हैं। कारण यह है कि सभी दुकानों से पहले की तरह कपड़ों की मांग नहीं आ रही है। कपड़ा कारोबारियों की आर्थिक स्थिति खराब होने की एक वजह कारोबार के लिए बैंक से लिए कर्ज को चुकाने में आ रही कठिनाई भी है। क्योंकि, बैंक के कर्ज पर ब्याज लग रहा है और दूसरी ओर आमदनी हो नहीं रही है।

कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के पूर्व चेयरमैन संजय जैन बताते हैं कि भारत में कपड़ा उद्योग कृषि के बाद सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देता है। इसमें सीधे या परोक्ष रुप से दस करोड़ श्रमिक रोजगार पाते हैं। वे बताते हैं कि कपड़ा व परिधान की घरेलू मांग नहीं है और कोरोना एक वैश्विक महामारी होने के चलते विदेशी बाजार भी प्रभावित हुआ है। इससे जहां हर दिन पांच हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है वहीं करोड़ों की संख्या में श्रमिकों की आजीविका पर संकट पैदा हो गया है।

इधर, यूनिफार्म बनाने के मामले देश भर में प्रसिद्ध सोलापुर का कपड़ा उद्योग भी कोरोना संक्रमण की भेंट चढ़ गया है। सोलापुर शहर में हर साल जनवरी से अगस्त तक ढाई से तीन हजार छोटे और बड़े कारखानों में तरह-तरह की यूनिफार्म तैयार की जाती हैं। लेकिन, कोरोना लॉकडाउन के कारण इस उद्योग में साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए का कारोबार प्रभावित हुआ है और अगले वर्ष के लिए दिए जाने वाले आर्डर नहीं आने से बाजार में ठहराव की स्थिति बन गई है। इससे यूनिफार्म उत्पादकों के लिए मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं। इससे 25 से 30 कारखाने बंद हो गए हैं। सोलापुर शहर में करीब पांच से छह हजार छोटे और बड़े उत्पादक काम कर रहे हैं। ये सभी उत्पादक अब वैकल्पिक उद्योग की तलाश में हैं। ऐसे में सोलापुर गारमेंट एसोसिएशन के सचिव राजेंद्र कोचर कहते हैं कि सरकार को ऐसी योजना लेकर आना चाहिए जो यूनिफार्म बनाने के कारोबार से जुड़े परिवारों को आर्थिक सुरक्षा दे सके।

Maharashtra
Lockdown
Layoffs
textile factories
COVID-19

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी
    26 May 2022
    अब्दुल सुब्हान वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेशक़ीमती आठ साल आतंकवाद के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए हैं। 10 मई 2022 को वे आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर अपने गांव पहुंचे हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा
    26 May 2022
    "इंडो-पैसिफ़िक इकनॉमिक फ़्रेमवर्क" बाइडेन प्रशासन द्वारा व्याकुल होकर उठाया गया कदम दिखाई देता है, जिसकी मंशा एशिया में चीन को संतुलित करने वाले विश्वसनीय साझेदार के तौर पर अमेरिका की आर्थिक स्थिति को…
  • अनिल जैन
    मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?
    26 May 2022
    इन आठ सालों के दौरान मोदी सरकार के एक हाथ में विकास का झंडा, दूसरे हाथ में नफ़रत का एजेंडा और होठों पर हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मंत्र रहा है।
  • सोनिया यादव
    क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?
    26 May 2022
    एक बार फिर यूपी पुलिस की दबिश सवालों के घेरे में है। बागपत में जिले के छपरौली क्षेत्र में पुलिस की दबिश के दौरान आरोपी की मां और दो बहनों द्वारा कथित तौर पर जहर खाने से मौत मामला सामने आया है।
  • सी. सरतचंद
    विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
    26 May 2022
    युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License