NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र: कोरोना-काल में बढ़ा कुपोषण, घट गया आदिवासी बच्चों का वज़न
कोरोना-काल में तालाबंदी के दौरान आजीविका के संकट, आंगनबाड़ियां बंद रहने तथा स्वास्थ्य की स्थितियां गड़बड़ाने से महाराष्ट्र में पोषण आहार तंत्र पर बुरा असर पड़ा है। यही वजह है कि कोरोना को रोकने के लिए लगाए गए सख्त लॉकडाउन के महीनों में यहां कुपोषण ने सिर उठा लिया है।
शिरीष खरे
01 Dec 2020
महाराष्ट्र: कोरोना-काल में बढ़ा कुपोषण, घट गया आदिवासी बच्चों का वज़न
 महाराष्ट्र जैसे विकसित कहे जाने वाले राज्य में भी लॉकडाउन के दौरान कुपोषण बढ़ा है। प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : सोशल मीडिया।

लक्ष्मण (परिवर्तित नाम) की उम्र तीन साल है। लेकिन, उसका वजन महज आठ किलो है। जबकि, इतना वजन अमूमन एक साल के बच्चे का होता है। लक्ष्मण का वजन कम-से-कम बारह किलो तो होना ही था। लेकिन, यह स्थिति अकेले एक परिवार की नहीं है। मुंबई से कोई सवा सौ किलोमीटर दूर आदिवासी बहुल पालघर के तरालपाडा में कई परिवारों को कोरोना लॉकडाउन में ऐसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। यदि पिछले चार महीने की बात करें तो तब से राज्य में ज्यादातर आदिवासी परिवारों को काम के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। बेकारी के चलते कई जगहों पर तो उनकी माली हालत इस हद तक तंग है कि वे खाने के लिए सब्जियों का खर्च भी वहन नहीं कर पा रहे हैं।

कोरोना-काल में तालाबंदी के दौरान आजीविका के संकट, आंगनबाड़ियां बंद रहने तथा स्वास्थ्य की स्थितियां गड़बड़ाने से महाराष्ट्र में पोषण आहार तंत्र पर बुरा असर पड़ा है। यही वजह है कि कोरोना को रोकने के लिए लगाए गए सख्त लॉकडाउन के महीनों में यहां कुपोषण ने सिर उठा लिया है।

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से लेकर दूरदराज के गांवों तक छोटे बच्चों के लिए पोषण-आहार की कमी एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर आई है। सरकारी रिपोर्ट के आंकड़ों से पुष्ट होता है कि खासकर राज्य के आदिवासी इलाकों में स्थिति विकट हो गई है। विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र के ज्यादातर आदिवासी इलाकों में पिछले साल के मुकाबले इस साल कम वजन वाले बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है।

बता दें कि इस साल मार्च से जून के बीच सरकार द्वारा घर-घर जाकर राज्य के 58 लाख बच्चों का सर्वेक्षण किया गया था। इसमें सबसे बुरी स्थिति नाशिक, नंदुरबार और अमरावती जैसे आदिवासी इलाकों में रही है। एक अहम तथ्य यह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल गैर-आदिवासी इलाकों में भी कुपोषण की दर करीब 2 प्रतिशत से अधिक हो गई है। हालांकि, यह आदिवासी इलाकों की तुलना में 2 प्रतिशत से कम है। वहीं, इस साल आदिवासी अंचलों में कुपोषण की दर में 2 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी देखी गई है।

राज्य में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा मार्च से जून के बीच शून्य से पांच साल तक के 58 लाख बच्चों का सर्वेक्षण किया गया था। इस दौरान मार्च से जून के बीच देखा गया कि राज्य के लगभग सभी जिलों में कम वजन वाले बच्चों की संख्या तेजी से बड़ी है। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही एकात्म विकास सेवा योजना की जो रिपोर्ट उजागर हुई है, उसमें इन आंकड़ों का ब्यौरा संख्या की बजाय प्रतिशतवार तरीके से दर्शाया गया है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक मार्च से जून आते-आते राज्य के आदिवासी भागों में शून्य से पांच साल तक की आयु के साढ़े पांच प्रतिशत से ज्यादा बच्चों का वजन कम पाया गया है। यह पिछले साल के मुताबिक दो प्रतिशत अधिक है। इसी तरह, कोरोना लॉकडाउन के दौरान आदिवासी भागों में इसी आयु वर्ग तक मझौले वजन वाले बच्चों की बात करें तो यह दर भी 15 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत पर आ गई है। इस तरह, जाहिर है कि इस साल इन इलाकों में वजनदार बच्चों की कुल संख्या में खासी गिरावट आई है।

यदि हम इसी दौरान पिछले वर्ष की तुलना में आंकलन करें तो गए साल जून तक आदिवासी भागों में 3.59 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले पाए गए थे। जबकि, इस साल इस अवधि में यह बढ़कर 5.64 प्रतिशत पर पहुंच गई है।

दूसरी तरफ, यदि राज्य के गैर-आदिवासी इलाकों की बात करें तो मार्च से जून आते-आते शून्य से पांच प्रतिशत की आयु तक के ढाई प्रतिशत से अधिक बच्चों का वजन कम पाया गया है। पिछले साल के मुकाबले यह 2 प्रतिशत से अधिक है। पिछले साल जून तक इन इलाकों में कम वजन वाले बच्चों की दर 1.38 प्रतिशत थी, जो इस साल बढ़कर 3.58 प्रतिशत हो गई है।

इस बारे में एकात्म विकास सेवा योजना की आयुक्त इंद्रा मालो कहती हैं, "कोरोना के समय राज्य के कुछ इलाकों में कुपोषण का प्रसार थोड़ा बढ़ा हुआ दिख रहा है। इस साल जुलाई से हमने फिर बच्चों के वजन को मापने का काम शुरू किया है। निश्चित तौर पर स्थिति में सुधार होता दिखेगा। हमने कुपोषण के मामले में अति गंभीर क्षेत्रों पर बहुत अधिक ध्यान दिया है। इसी तरह, अति-कुपोषित बच्चों की जांच और देखभाल के लिए शासन स्तर पर बार-बार निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

दूसरी तरफ, यह आशंका भी जताई जा रही है कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान प्रशासनिक स्तर पर छोटे बच्चों के वजन तौलने का काम भी प्रभावित हुआ और अपेक्षा से कहीं कम संख्या में बच्चों का वजन दर्ज किया जा सका। ऐसे में कहा जा रहा है कि राज्य में कुपोषण की स्थिति बताई जा रही दशा से कहीं अधिक खराब हो सकती है। इसी तरह, जब मार्च से आंगनबाड़ियों को बंद कर दिया गया तो सूखा राशन छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं तक पहुंचाने की जरूरत थी। एक तरफ, कोरोना-काल में यह पूरा कार्य सही तरह से संचालित नहीं हो सकता। दूसरी तरफ, जिन घरों तक यह राशन पहुंचा भी तो उनमें से कई परिजनों के पास उसे पकाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली सामग्री तक नहीं थी। वहीं, कई परिवारों के पास भोजन नहीं था इसलिए छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए दिए गए राशन का उपयोग पूरे परिवार ने किया और इस पूरे दौर में लाभान्वितों को भोजन की कम मात्रा ही हासिल हो सकी।

इस बारे में सांगली जिले में बंजारा बहुल गांव बंजारवाडी की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कार्यकर्ता बताती हैं कि आंगनबाड़ी में बच्चा हर दिन दो बार गर्म पौष्टिक आहार खाता है। लेकिन, कोरोना के समय ज्यादातर जगहों की आंगनबाड़ियां अच्छी तरह से काम करने की हालत में नहीं थी। इसलिए, सूखा सामान ही उनके घर तक पहुंचाने की कोशिश की गई। ऐसे में कई गरीब बच्चों को सरकार की तरफ से मिलने वाले ताजा और पर्याप्त भोजन का फायदा नहीं मिल सका। इसलिए उनका वजन औसत से बहुत अधिक घट गया। आंगनबाड़ी में हर बच्चा कम से कम सबकी आंखों के सामने दिन में दो बार गर्म खाना खाता है।

वहीं, आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण की स्थिति के संबंध में नंदुरबार की एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बताती हैं कि आमतौर पर बड़ी संख्या में आदिवासी परिवार रोजी-रोटी के लिए अपने इलाकों को छोड़कर शहरों में काम करने जाते हैं। लेकिन, इस साल कोरोना महामारी के कारण ऐसा नहीं हो सका। मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद उनके लिए न तो गांवों में कोई काम था और न ही घर में भोजन ही रखा हुआ था। ऐसे में ज्यादातर छोटे बच्चों को अच्छा और भरपूर खाना नहीं मिल सका। इसलिए, वे शरीर और दिमाग से कमजोर हो गए हैं। लेकिन, आगे भी स्थिति नहीं सुधरती है तो दिनोंदिन कुपोषण का प्रसार बढ़ता जाएगा।

इसी तरह, नाशिक जिले में एक अन्य आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान भी राशन बांटने की कोशिश की गईं। लेकिन, इस दौरान निगरानी ठीक से नहीं हो सकी। इसलिए, कई जगहों पर बहुत खराब राशन भी पहुंचा। कहीं-कहीं तो खाने लायक राशन भी नहीं पहुंच सका था। फिर पेट भरने भर से बच्चा मोटाताजा नहीं होता है। बढ़ती उम्र में उसके लिए खूब सारा पोषक आहार चाहिए होता है, जो पिछले चार महीनों से मिलना ज्यादा ही मुश्किल हो गया। इसलिए, इस बार बहुत सारे बच्चे कमजोर और हल्के रहे।

 (शिरीष खरे स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Maharastra
Coronavirus
COVID-19
poverty
malnutrition in children
Aadiwasi Children
Lockdown
Hunger Crisis

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

कोरोना वायरस : टीके की झिझक से पार पाते भारत के स्वदेशी समुदाय

महामारी से कितनी प्रभावित हुई दलित-आदिवासी शिक्षा?

माओवादियों के गढ़ में कुपोषण, मलेरिया से मरते आदिवासी

जंगल में भ्रष्टाचार: ज़्यादा जोखिम, कम मज़दूरी और शोषण के शिकार तेंदू पत्ता तोड़ने वाले आदिवासी

यूपी में हाशिये पर मुसहर: न शौचालय है, न डॉक्टर हैं और न ही रोज़गार

कोरोना लॉकडाउन में घने वनों से घिरे बैगाचक में बांटा गया परंपरागत खाद्य पदार्थ, दिया पोषण-सुरक्षा का मॉडल

महामारी और अनदेखी से सफ़ाई कर्मचारियों पर दोहरी मार

कोरकू आदिवासी बहुल मेलघाट की पहाड़ियों पर कोरोना से ज्यादा कोरोना के टीके से दहशत!

Covid-19 में Secondary infection से बढ़ता ख़तरा, अहमदाबाद में जातीय हिंसा और अन्य ख़बरें


बाकी खबरें

  • NEP
    न्यूज़क्लिक टीम
    नई शिक्षा नीति भारत को मध्य युग में ले जाएगी : मनोज झा
    23 Apr 2022
    राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश को उस प्राचीन युग में वापस ले जाएगी जब केवल एक विशेष वर्ग वर्चस्व वाले समाज में एकलव्य को दूर में ही खड़ा होकर…
  • राज वाल्मीकि
    फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं
    23 Apr 2022
    अजय सिंह हमारे समय के एक बेबाक और बेख़ौफ़ कवि हैं। शायद यही वजह है कि उनकी कविताएं इतनी सीधे सीधे और साफ़ साफ़ बोलती हैं। इन्हीं कविताओं का नया संग्रह आया है—“यह स्मृति को बचाने का वक़्त है”, जिसका…
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    राजनीति की बर्बरता, मेवाणी 'अंदर', फ़ैज़ कविता बाहर
    23 Apr 2022
    देश के अलग-थलग हिस्सो मे अचानक बर्बरता का नंगा नाच क्यो होने लगा ? धर्म और राजनीति का ये कैसा चैहरा है ? इसके अलावा #HafteKiBaat मे मेवाणी की गिरफ्तारी और फ़ैज़ अहमद फैज की कविता को पाठ्यक्रम से…
  • जोए एलेक्जेंड्रा
    वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच एकता और उम्मीद की राह दिखाते ALBA मूवमेंट्स 
    23 Apr 2022
    सामाजिक आंदोलनों का यह महाद्वीपीय मंच मौजूदा स्थिति का विश्लेषण करने और अगले दौर को लेकर रणनीतियों को तय करने के लिए अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में अपनी तीसरी महाद्वीपीय सभा का आयोजन करने जा रहा है।
  • रूबी सरकार
    अमित शाह का शाही दौरा और आदिवासी मुद्दे
    23 Apr 2022
    भोपाल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को बुलाकर मेगा इवेंट किया गया। भोपाल एयरपोर्ट से लेकर भाजपा कार्यालय और जम्बूरी मैदान तक सुरक्षा, सजावट और स्वागत पर करीब 15 करोड़ खर्च किए गए। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License