NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महाराष्ट्र का संकट तो टल गया मगर बाक़ी राज्यों में चुनाव क्यों नहीं?
यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘अभूतपूर्व हस्तक्षेप’ से संभव हो सका। मगर इससे एक नया सवाल यह खड़ा हो गया है कि महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार में विधान परिषद और कई राज्यों में राज्यसभा के लिए लंबित उन चुनावों का क्या होगा, जो कोरोना संक्रमण के संकट की वजह से लॉकडाउन के चलते बीते मार्च महीने में टाल दिए गए थे?
अनिल जैन
19 May 2020
महाराष्ट्र का संकट तो टल गया
फाइल फोटो

महाराष्ट्र में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच करीब एक महीने तक चला टकराव राज्य विधान परिषद के द्विवार्षिक चुनाव संपन्न होने के साथ खत्म गया। आठ अन्य उम्मीदवारों के साथ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी निर्विरोध निर्वाचित हो गए। अपने निर्वाचन की घोषणा और विधान परिषद की सदस्यता की शपथ लेने के साथ ही ठाकरे ने अपने पद ग्रहण के छह महीने पूरे होने से पहले विधान मंडल का सदस्य होने की संवैधानिक अनिवार्यता पूरी कर ली। इस तरह उनकी कुर्सी पर मंडरा रहा संकट टल गया।

यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘अभूतपूर्व हस्तक्षेप’ से संभव हो सका। मगर इससे एक नया सवाल यह खड़ा हो गया है कि महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार में विधान परिषद और कई राज्यों में राज्यसभा के लिए लंबित उन चुनावों का क्या होगा, जो कोरोना संक्रमण के संकट की वजह से लॉकडाउन के चलते बीते मार्च महीने में टाल दिए गए थे?

इस सवाल की चर्चा करने से पहले यह भी संक्षिप्त में जान लेना उचित होगा कि आखिर महाराष्ट्र के मामले में प्रधानमंत्री को दख़ल क्यों देना पड़ा? दरअसल महाराष्ट्र का पूरा मामला यह है कि वहां मुख्यमंत्री का पद संभाले उद्धव ठाकरे को छह महीने पूरे होने वाले हैं, लेकिन वे अभी तक राज्य विधानमंडल के सदस्य नहीं बन पाए थे।

उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक उन्हें अपने शपथ ग्रहण के छह महीने के अंदर यानी 28 मई से पहले अनिवार्य रूप से राज्य के किसी भी सदन का सदस्य निर्वाचित होना था। इस सिलसिले में वे 24 अप्रैल को रिक्त हुई विधान परिषद की नौ सीटों के लिए होने वाले द्विवार्षिक चुनाव का इंतजार कर रहे थे। लेकिन कोरोना महामारी के चलते लागू लॉकडाउन का हवाला देकर चुनाव आयोग ने इन चुनावों को टाल दिया था। ऐसी स्थिति मे ठाकरे के सामने एकमात्र विकल्प यही था कि वे 28 मई से पहले राज्यपाल के मनोनयन कोटे से विधान परिषद का सदस्य बन जाए।

विधान परिषद में मनोनयन कोटे की दो सीटें रिक्त थीं। राज्य मंत्रिमंडल ने पिछले महीने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से इन दो में से एक सीट पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मनोनीत किए जाने की सिफारिश की थी। चूंकि दोनों सीटें कलाकार कोटे से भरी जाना थी, लिहाजा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मंत्रिमंडल ने अपनी सिफारिश में उद्धव ठाकरे के वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर होने का उल्लेख भी किया था। लेकिन राज्यपाल ने मंत्रिमंडल की सिफारिश पर पहले तो कई दिनों तक कोई फैसला नहीं किया। बाद में जब उनके इस रवैये की आलोचना होने लगी और सत्तारुढ शिवसेना की ओर से उन पर राजभवन को राजनीतिक साजिशों का केंद्र बना देने का आरोप लगाया गया तो उन्होंने सफाई दी कि वे इस संबंध में विधि विशेषज्ञों से परामर्श कर रहे हैं। उन्होंने यह भी सवाल किया कि इतनी जल्दी क्या है? यह सब करने के बाद अंतत: उन्होंने मंत्रिमंडल को सिफारिश लौटा दी।

राज्य मंत्रिमंडल ने संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक अपनी सिफारिश दोबारा राज्यपाल को भेजी। लेकिन राज्यपाल ने कोई फैसला न लेते हुए मामले को लटकाए रखा। राज्यपाल के इस रवैये से यही जाहिर हुआ कि वे एक बार फिर राज्य में राजनीतिक अस्थिरता को न्योता दे रहे हैं, बगैर इस बात की चिंता करे कि महाराष्ट्र इस समय देश मे कोरोना वायरस के संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है और यह संकट राजनीतिक अस्थिरता के चलते ज्यादा गहरा सकता है। ऐसे में मुख्यमंत्री ठाकरे ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी से बात की। हालांकि यह मामला किसी भी दृष्टि से प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप करने जैसा नही था, लेकिन प्रधानमंत्री ने ठाकरे से कहा कि वे देखेंगे कि इस मामले में क्या हो सकता है।

प्रधानमंत्री ने अपने आश्वासन के मुताबिक मामले को देखा भी। यह तो स्पष्ट नहीं नहीं हुआ कि उनकी ओर से राज्यपाल को क्या संदेश या निर्देश दिया गया, मगर अगले ही दिन राज्यपाल ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर विधान परिषद की रिक्त सीटों के चुनाव कराने का अनुरोध किया। उनके इस अनुरोध पर चुनाव आयोग फौरन हरकत में आया। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोडा, जो कि इस समय अमेरिका में हैं, ने आनन-फानन में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चुनाव आयोग की बैठक करने की औपचारिकता पूरी की और महाराष्ट्र विधान परिषद की सभी नौ रिक्त सीटों के लिए 21 मई को चुनाव कराने का एलान कर दिया। जाहिर है कि प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से हुई यह पूरी कवायद राज्यपाल द्बारा की गई मनमानी को जायज ठहराने के लिए की गई।

दरअसल राज्यपाल अगर मंत्रिमंडल की सिफारिश के आधार पर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर भी देते तो कोई नई मिसाल कायम नहीं होती। पहले भी ऐसा हुआ है। उत्तर प्रदेश में 1960 में चंद्रभानु गुप्त जब मुख्यमंत्री बने थे तो वे राज्य विधान मंडल के सदस्य नहीं थे। उन्हें भी मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राज्यपाल ने विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया था। बहरहाल, उद्धव ठाकरे की गुहार पर प्रधानमंत्री के ‘अभूतपूर्व हस्तक्षेप’ के बाद महाराष्ट्र का यह राजनीतिक संकट तो टल गया, मगर इससे एक नया सवाल खड़ा हो गया है। सवाल यह है कि महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार में विधान परिषद और कई राज्यों में राज्यसभा के लंबित उन चुनावों का क्या होगा, जो कोरोना संक्रमण के संकट के चलते बीते मार्च महीने में टाल दिए गए थे?

गौरतलब है कि इस वर्ष राज्यसभा की 73 सीटों और तीन राज्यों की विधान परिषद की करीब 50 रिक्त सीटों के द्विवार्षिक चुनाव प्रस्तावित थे। इनमें से 18 राज्यों से राज्यसभा की 55 और तीन राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में विधान परिषद की करीब 28 सीटों के लिए बीती 26 मार्च को चुनाव होना थे, लेकिन मतदान से ठीक दो दिन पहले चुनाव आयोग ने कोरोना वायरस संक्रमण का हवाला देते हुए इन चुनावों को टाल दिया था। हालांकि राज्यसभा की 55 में से 37 सीटों का चुनाव निर्विरोध हो चुका है और राष्ट्रपति के मनोनयन कोटे की खाली हुई एक सीट भी सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के मनोनयन से भरी जा चुकी है। लेकिन अभी भी 7 राज्यों में राज्यसभा की 18 सीटों के चुनाव होना बाकी है।

सवाल उठता है कि चुनाव आयोग अपने फैसले से पीछे हटते हुए 21 मई को सिर्फ महाराष्ट्र में ही विधान परिषद के चुनाव किस आधार पर करवा रहा है? यह सवाल इसलिए कि कोरोना महामारी के जिस संकट को आधार बनाकर चुनाव टाले गए थे, वह आधार तो अब भी कायम है और वह अभी आगे भी काफी समय तक कायम रहेगा।

चुनाव आयोग ने राज्यसभा की 18 सीटों और तीन राज्यों की विधान परिषद के चुनाव कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से अगले आदेश तक टाले जाने का फैसला 24 मार्च को जिस समय किया था, उससे चंद घंटे पहले ही मध्य प्रदेश विधानसभा की कार्यवाही चल रही थी और लगभग 114 विधायकों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्वास मत हासिल किया था। जाहिर है जब सत्र चला तब विधानसभा के तमाम अफसर, क्लर्क, सुरक्षा गार्ड और मीडियाकर्मी भी वहां मौजूद रहे होंगे।

मध्य प्रदेश विधानसभा के इस सत्र से एक दिन पहले तक संसद का बजट सत्र भी जारी था। 23 मार्च को दोनों सदनों में सदनों में वित्त विधेयक पारित कराया गया था। इसके बावजूद चुनाव आयोग ने चुनाव टालने का फैसला कोरोना वायरस संक्रमण को वजह बताते हुए किया। हालांकि राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव ऐसे नहीं है कि जिनमें बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हों। कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन होने के बावजूद सरकार के स्तर पर जिस तरह कई ज़रुरी और गैरज़रुरी काम भी हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं, उसी तरह राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव भी हो सकते थे और अभी भी हो सकते हैं।

हालांकि ऐसा नहीं है कि इन चुनावों के बगैर कोई काम रुक रहा है, फिर भी अगर चुनाव आयोग चाहता तो ये चुनाव 26 मार्च को हो सकते थे। इनके लिए बहुत ज्यादा तैयारी करने की भी जरुरत नहीं थी। मिसाल के तौर पर झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव के लिए कुल 81 मतदाता हैं। आयोग चाहता तो तीन से पांच मिनट के अंतराल पर हर विधायक के वोट डालने की व्यवस्था की जा सकती थी। विधानसभा भवन में, जहां मतदान की प्रक्रिया संपन्न होती है, वहां दो-दो मीटर की दूरी पर विधायकों के खड़े होने का बंदोबस्त हो सकता था। मास्क और सैनेटाइजर का भी इंतजाम किया जा सकता था।

इसी तरह गुजरात में राज्यसभा की 4 सीटों के लिए 177, मध्य प्रदेश में 3 सीटों के लिए 206, राजस्थान में 3 सीटों के लिए 200, आंध्र प्रदेश में 3 सीटों के लिए 175 और मणिपुर तथा मेघालय में एक-एक सीट के लिए 60-60 विधायक मतदाता हैं। इसी तरह महाराष्ट्र विधान परिषद की जिन नौ सीटों के लिए चुनाव होना हैं वे सभी विधानसभा कोटे की हैं, जिनके लिए 288 विधायकों को मतदान करना है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में विधान परिषद के लिए शिक्षक और स्नातक वर्ग की 11 सीटों के लिए और बिहार में इन्हीं वर्गों की आठ सीटों के लिए अलग-अलग जिला मुख्यालय पर वोट डलने हैं, जिसके लिए इंतजाम करना कोई मुश्किल काम नहीं है। मगर चुनाव आयोग ने चुनाव कराने के बजाय चुनाव टालने का आसान रास्ता चुना।

सवाल यही है कि जब चुनाव आयोग महाराष्ट्र विधान परिषद की नौ सीटों के लिए 21 मई को चुनाव कराने का एलान कर चुका है तो बाकी राज्यों में विधान परिषद और राज्यसभा के चुनाव टाले रखने का क्या औचित्य है? कोरोना संक्रमण का संकट तो अभी लंबे समय तक जारी रहना है।

इसी साल अक्टूबर में उत्तर प्रदेश की 10, कर्नाटक चार, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर की एक-एक राज्यसभा सीट के लिए चुनाव होना है। इसी साल जुलाई में ही बिहार में राज्यपाल के मनोनयन और विधायकों के वोटों से चुनी जाने वाली विधान परिषद की 18 सीटें खाली होने वाली हैं। फिर नवंबर-दिसंबर में बिहार विधानसभा के चुनाव भी होना है। मध्य प्रदेश में भी विधानसभा की 24 सीटों पर उपचुनाव सितंबर महीने से पहले कराए जाने की संवैधानिक बाध्यता है। आंध्र प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में स्थानीय निकाय चुनावों पर भी अभी रोक लगी हुई है। आखिर कोरोना संक्रमण के संकट को आधार बताकर इन सभी चुनावों को कब तक टाला जाता रहेगा?

यह सही है कि विधानसभा या लोकसभा के उपचुनाव और स्थानीय निकाय चुनावों में सीधे आम मतदाता की भागीदारी रहती है, लिहाजा कोरोना संकट के चलते अभी उनका चुनाव नहीं कराया जा सकता। लेकिन सीमित मतदाताओं के जरिए होने वाले राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों को टालकर और प्रधानमंत्री के परोक्ष दखल से सिर्फ एक राज्य में चुनाव कराने का फैसला लेना बताता है कि चुनाव आयोग को भले ही संविधान ने एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय की हैसियत बख्शी हो, मगर चुनाव आयोग का मौजूदा नेतृत्व को यह हैसियत स्वीकार नहीं है। वह साफ तौर पर सरकार के आदेशपाल की भूमिका निभा रहा है।

चुनाव प्रक्रिया लोकतंत्र की आधारशिला होती है, भले ही वह चुनाव पंचायत का हो या संसद का। किसी भी कारण से चुनावों का टाला जाना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। चुनाव आयोग के रवैये से कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर चलाए गए उस खतरनाक अभियान को भी बल मिलता है, जिसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी के संकट के मद्देनजर देश में अगले दस वर्ष तक सभी तरह के चुनाव स्थगित कर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही दस वर्ष तक देश का नेतृत्व करने दिया जाए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Maharastra
maharastra politics
Uddhav Thackeray
Shiv sena
Narendra modi
UttarPradesh
UP elections
bihar election
BJP

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License