NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
भारत
सार्थक चित्रण : सार्थक कला अभिव्यक्ति 
आसान नहीं है मानव और समाज की सचाई को कला में निपुणता से उतार देना। कलाकार सृजित भी कर दे भद्र जनों को ग्राह्य नहीं है।
डॉ. मंजु प्रसाद
31 Oct 2021
art

सुन्दर दृश्य चित्र, चित्ताकर्षक महिला पुरूष का अंकन ये आम आदमी की पसंद है। भारत में सुन्दर समाज, स्वस्थ खुशहाल परिवार का दैव समाज के संदर्भ में ही कला मे निरूपण हुआ है। ये विशेषण दैव और राज परिवार के लोगों के लिए ही प्रयुक्त होता आ रहा है। यह प्राचीन कला से हमें देखने को मिलने लगते हैं। अजंता के भित्तिचित्रों को छोड़ दें तो लघु चित्रण शैली में भी हम समृद्धि सम्पन्न समाज का वैभव प्रदर्शन पायेंगे। प्रसन्नचित परिवार के रूप में कृष्ण लीलाओं का चित्रण पायेंगे। शिव के सुखद परिवार का अंकन हमें पहाड़ी शैली में मिलता है। ये बात अलग है कि इनमें  भी भारतीय कलाकारों ने बहुत सुन्दर सधा हुआ       हस्त कौशल और भावांकन किया था।

चित्रकार: रामगोपाल विजयवर्गीय, गीत गोविन्द' का दृश्य, वर्ष 1982, कागज पर वाश, 50×35 सेंमी., साभार : समकालीन कला, अंक 9-10

ई. पू. आठवीं से ही भारत में कला के लिए शिल्प शब्द प्रयोग में आता था और कलाकारों के लिए शिल्पी शब्द का प्रचलन था ( विशेषकर संस्कृत साहित्य और बौद्ध साहित्य में) । जीवन से संबंधित कोई व्यापार ऐसा नहीं था जिसकी शिल्प में गणना न हो।

अतः समाज के निर्माण में शिल्पियों का महत्वपूर्ण योगदान था।--(साभार :भारतीय चित्रकला का विकास)

औद्योगिक क्रांति और तकनीकी क्रांति के पहले धर्म, शासक वर्ग और कुलीन वर्ग द्वारा कला और कलाकार पोषित , संरक्षित और निर्देशित थे। कला और शिल्प का निर्माण दैनिक उपयोग की सामग्रियों और भवन आदि में होता था अथवा  सौंदर्यांकन  आध्यात्मिक क्रियाकलापों के लिए। कला पर चिंतन करने के लिए दार्शनिक और सिद्धांतकार थे। कलाकार श्रमिक न रह कर भी कठोर श्रम करने वाला था। इसलिए उनकी कला में भी जकड़न थी। कल कारखाने निर्मित हुए लोगों को रोजगार मिले, भरण पोषण होने लगा। लेकिन समाज में जो उसका महत्व था वह गौण हो गया, वह मशीन समान कठोर श्रम करने को बाध्य था। कलाकारों को आत्मिक-मानसिक संतुष्टि नहीं मिल रही थी। अतः कला चेतना और अभिव्यक्ति के प्रति कलाकार जागरूक होते जा रहे थे।

19वीं शताब्दी के शुरुआत में यूरोप में कला संबंधी महत्वपूर्ण आंदोलनों की शुरूआत होने लगी। इस दिशा में इंगलैंड में शुरू होने वाला आंदोलन महत्वपूर्ण है।

विलियम मौरिस जो कि कवि होने के साथ-साथ पुस्तकों पर सुसज्जित अलंकरण (डिजाइन) आदि बनाने वाले  कुशल चित्रकार थे। उन्होंने प्राचीन कला और शिल्प को  पुनर्स्थापित  करने का प्रयत्न किया। जिसमें उनका उद्देश्य था कलाकार की कल्पना अभिव्यक्ति आदि के महत्त्व को स्थापित करना। मौरिस आंदोलन का समर्थन करने वाले कलाकारों ने सामग्री के समान बहु उत्पाद करने वाले मशीनों को भी अस्वीकृत किया।

1919 में जर्मनी में 'द बाहौस ' कर के एक अति महत्वपूर्ण कला आंदोलन हुआ। जिसके प्रणेता थे, वाल्टर ग्रोपियस और उनके कई गुणवान कलाकार साथी। इन लोगों ने मशीनों का विरोध न कर के कला-शिल्प और अलंकरण के दिशा में नयी शैली की स्थापना करना चाहा था। आखिरकार मशीन से बनने वाले अलंकरणात्मक सामग्रियों की पूर्व कल्पना तो एक कलाकार ही करता है। अतः बाहौस आंदोलन के कलाकार सौंदर्य शास्त्र में एक समान नियम , संहिता आदि  की खोज करना चाहते थे जो सभी दृश्य कलाओं  जैसे भवन, मूर्तिशिल्प, चित्र, धातुशिल्प , या उपयोगी काष्ठ कला आदि पर लागू हो सके। कलाकार स्वतंत्र सृजन कर्ता के रूप में स्थापित हो इसके लिए पूरे यूरोप में  कला आंदोलन और कला समूहों की स्थापना होने लगी। भारत के कलाकार संचार साधनों की कमी के कारण बहुत बाद में इससे परिचित हुए।

आधुनिक कला में कलाकारों में यथार्थवादी चित्रण करने की निर्भिकता आई है । प्रतीकात्मक ( सिम्बॉलिक)  ढंग से ही सही अपने और अपने इर्द-गिर्द की सामाजिक स्थितियों को अपनी कलाकृतियों में अभिव्यक्ति कर रहे हैं ।

भविष्य , मूर्तिकार : मंजु प्रसाद, माध्यम - मिट्टी , वर्ष 1988

आसान नहीं है मानव और समाज की सचाई को कला में निपुणता से उतार देना। कलाकार सृजित भी कर दे भद्र जनों को ग्राह्य नहीं है देखना। मुझे याद आ रहा  है एक युवा कलाकार की एक कृति जिसे उसने अपने एकल प्रदर्शनी में प्रदर्शित कर रखा था। उस चित्र की मुख्य केंद्र बिंदु में एक लड़की थी जिसकी आंखे  विस्फारित सी बड़ी सी थीं। बहुत मार्मिक भाव था। प्रदर्शनी में आमंत्रित एक वरिष्ठ कलाकार इसे बर्दाश्त नहीं कर पाये और तत्काल सभी के सामने बोल पड़े 'कितनी खराब पेंटिंग है'। इसका मतलब एक चेहरे के सजीव भावांकन की गहराई में वे जा नहीं पाये या जानबूझ कर न समझने का ढोंग किया उन्होंने ।

भारत में गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने के बाद , बहुत कठिन दौर था सामान्य भारतीय जनों के लिए और सामान्य कलाकारों के लिए। लेकिन फिर भी अभिव्यक्ति हो रही थी बे रोकटोक। तभी तो अकाल, भुखमरी , देश बंटवारे के त्रासदी  और दर्द आदि को कलाकार चित्रित कर रहे थे। उनमें डर, भय नहीं था , ईमानदारी थी। अब कोई बनाये तो उनकी दशा दुर्भाग्यपूर्ण ही रहेगी। आज भी मन आह्लादित हो उठता है जब कोई वरिष्ठ चित्रकार प्राचीन भारतीय चित्रण शैली में मानव के दुर्लभ सुन्दर दृश्यों का चित्रण करता है या मूर्तिशिल्प में सुन्दर मानव आकृतियों को गढ़ता है।

लेकिन हम हमेशा भ्रम में क्यों रहें सचाई तो सचाई है। मैंने अपना इंटालेशन 2019 --20 में  मिट्टी के चूल्हे में जंगली फूलों आदि सजाया है। चूल्हा बुझा हुआ है। ये त्रासदी है, 'जेब खाली समाज की' ।  खाली ईंधन रहित चूल्हे पर तो किसी का ध्यान नहीं जायेगा। अलबत्ता पीले बैंगनी फूल कला रसिकों को जरूर भायेगा।

इंस्टालेशन 1919 (2), कलाकार: मंजु प्रसाद

आज कलाकार अपने कलाकृतियों को ज्यादा सशक्त और प्रभावकारी बनाने के लिए नये आयामों की तलाश में रहता है। पुराने सौंदर्य शास्त्रीय नियमों में निरंतर बदलाव हो रहा है । कठिन श्रम की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। सीखने की इच्छा शक्ति कमतर होती जा रही है। हर नया दौर बदलाव की मांग करता है। लेकिन सवाल ये है कि कला में आप किस तरह का नयापन चाहते हैं। केवल विधा में नयापन, तकनीकी में नयापन?  टटकापन विचारों में भी होनी चाहिए। भौतिक उपलब्धियां, नवीन संसाधनों का एकत्रीकरण, जुटान से कुछ हासिल नहीं हो सकता। भाव अभिव्यक्ति में तरलता न हो, रागात्मकता न हो तो कुछ नहीं हासिल। नई पीढ़ी क्या पुरानी पीढ़ी। हाथ से खींची गई एक रेखा चाहे वो बालू के भीत पर ही क्यों न हो। सार्थक सृजन है। उसकी बराबरी डिजिटल क्रांति नहीं कर सकती । लोग बड़े गर्व से सुनाते हैं वह एक साफसुथरी रेखा भी नहीं खींच सकते। मानो रेखाचित्र भी बनाना न आना एक बहादुरी है।

वास्तव में हाथ से एक रेखा खींचना या या गीली  मिट्टी से एक आकृति गढ़ना आत्मविश्वास का ही संचार करता है।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Painter
sculptor
Art teacher
Indian painter
art
artist
Indian painting
Indian Folk Life
Art and Artists
Folk Art
Folk Artist
Indian art
Modern Art
Traditional Art

Related Stories

'द इम्मोर्टल': भगत सिंह के जीवन और रूढ़ियों से परे उनके विचारों को सामने लाती कला

राम कथा से ईद मुबारक तक : मिथिला कला ने फैलाए पंख

पर्यावरण, समाज और परिवार: रंग और आकार से रचती महिला कलाकार

आर्ट गैलरी: प्रगतिशील कला समूह (पैग) के अभूतपूर्व कलासृजक

आर्ट गैलरी : देश की प्रमुख महिला छापा चित्रकार अनुपम सूद

छापा चित्रों में मणिपुर की स्मृतियां: चित्रकार आरके सरोज कुमार सिंह

जया अप्पा स्वामी : अग्रणी भारतीय कला समीक्षक और संवेदनशील चित्रकार

कला गुरु उमानाथ झा : परंपरागत चित्र शैली के प्रणेता और आचार्य विज्ञ

चित्रकार सैयद हैदर रज़ा : चित्रों में रची-बसी जन्मभूमि

कला विशेष: भारतीय कला में ग्रामीण परिवेश का चित्रण


बाकी खबरें

  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,067 नए मामले, 40 मरीज़ों की मौत
    20 Apr 2022
    देश की राजधानी दिल्ली में आज फिर कोरोना के नए मामले में बढ़ोतरी हुई है | दिल्ली में 24 घंटों में कोरोना के 632 नए मामले सामने आए हैं। साथ ही देश के अन्य राज्यों में कोरोना के मामलों में धीरे-धीरे बढ़ने…
  • जेनिफ़र हॉलेस
    यूक्रेन युद्ध: क्या गेहूं का संकट मध्य पूर्व के देशों को अधिक खाद्य स्वतंत्र बनाएगा?
    20 Apr 2022
    मध्य पूर्वी देश आने वाले गेहूं की कमी का मुकाबला करने के लिए अपनी खाद्य क्षमता को बढ़ा रहे हैं। लेकिन कुछ उत्साहजनक पहलों के बावजूद, मौजूदा चुनौतियां खाद्य संप्रभुता को लगभग असंभव बना रही हैं – ख़ास…
  • शारिब अहमद खान
    तालिबान को सत्ता संभाले 200 से ज़्यादा दिन लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पा रही शिक्षा
    20 Apr 2022
    अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा हासिल करने पर तालिबानी सरकार द्वारा रोक लगाए हुए 200 दिनों से ज़्यादा बीत चुके हैं। यह रोक अभी भी बदस्तूर जारी है।
  • जितेन्द्र कुमार
    मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा पर अखिलेश व मायावती क्यों चुप हैं?
    20 Apr 2022
    समाजवादी पार्टी या बहुजन समाज पार्टी के नेताओं की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि वे संस्कृति के सवाल को ठीक से समझ ही नहीं पा रहे हैं। सामाजिक न्याय व हिन्दुत्व एक दूसरे का विरोधी है फिर भी मुसलमानों के…
  • jahangirpuri
    न्यूज़क्लिक टीम
    खोज ख़बर : VHP की दिल्ली पुलिस को धमकी, गृह मंत्री रहे चुप, प्रतिरोध में हुईं आवाज़ें तेज़
    19 Apr 2022
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने नफ़रती राजनीति के बेशर्म राजनीतिक कनेक्शन को कुछ तस्वीरों-घटनाओं के साथ सामने रखा। साथ ही इसके विरोध में उठे विपक्षी दलों के स्वरों को लोकतंत्र को जिंदा रखने…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License