NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
यादें हमारा पीछा नहीं छोड़तीं... छोड़ना भी नहीं चाहिए
जन-विरोधी सत्ताएं हमेशा भूल जाओ-भूल जाओ का राग अलापती रहती हैं।
अजय सिंह
18 Jul 2021
यादें हमारा पीछा नहीं छोड़तीं... छोड़ना भी नहीं चाहिए

यादें हमारा पीछा नहीं छोड़तीं। छोड़ना भी नहीं चाहिए। यादों के साथ—स्मृतियों के साथ—इंसाफ़ की चाहत जुड़ी रहती है, नये भविष्य का सपना जुड़ा रहता है, और जाने-अनजाने भुला दिये गये अतीत को नये संदर्भ में देखने-परखने की ज़रूरत जुड़ी रहती है। जन-विरोधी सत्ताएं हमेशा भूल जाओ-भूल जाओ का राग अलापती रहती हैं। जब नागार्जुन ने कविता लिखी, ‘भूल जाओ पुराने सपने’ (1979), तो उसमें जो व्यंग्य और वेदना है, उसकी अंतर्ध्वनि यही है कि उस सपने को फिर ज़िंदा किया जाये। यह कविता शासक वर्ग पर हमला करती है।

हिंदुत्ववादी एजेंडे के तहत, सरकार की सरपरस्ती में बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी, और किसी को सज़ा नहीं हुई—सभी अभियुक्त बरी कर दिये गये। इस आपराधिक कृत्य को कैसे भुलाया जा सकता है? 1992-93 में मुंबई में मुसलमानों पर जो बर्बर हिंसा हुई, उसे कैसे भुलाया जा सकता है? गुजरात मुस्लिम जनसंहार-2002 को हम कैसे भुला दें, जो सरकारी देखरेख में हुआ?

2013 में मुज़फ़्फ़रनगर (उत्तर प्रदेश) में मुसलमानों के ख़िलाफ़ चलाये गये अत्यंत हिंसक अभियान को याद रखने की ज़रूरत है, ताकि इसके अपराधियों को माकूल सज़ा मिल सके। शाहीनबाग़ आंदोलन को याद रखा जाना चाहिए, जो भारतीय  लोकतंत्र का सुनहरा अध्याय है। यह पूरी तरह औरतों के नेतृत्व में चलाया गया पहला बड़ा आंदोलन था। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर की जनता 5 अगस्त 2019 से लगातार भारतीय फ़ौज के बूटों और राइफ़लों के आतंककारी साये में रह रही है (हालांकि कश्मीरी जनता की यातना का दौर काफ़ी पहले से चला आ रहा है।) हमें लक्षद्वीप की जनता को सलाम करना चाहिए, जो हिंदुत्ववादी हमले से अपने जीवन, समाज, संस्कृति को बचाने के लिए लड़ रही है।

हम हाथरस (उ.प्र.) की उस दलित बेटी को कैसे भूल जायें, जिसके साथ पिछले साल बलात्कार हुआ, उसकी हत्या कर दी गयी, और उसकी लाश को भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की पुलिस की देखरेख में आधी रात को जला दिया गया? लड़की के मां-बाप को उनके घर में पुलिस ने बंद कर दिया था। इस घटना की खोज-ख़बर लेने हाथरस जा रहे पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन और उनके साथियों को पुलिस ने बीच रास्ते में ही गिरफ़्तार कर लिया और उन पर राजद्रोह क़ानून और अन्य संगीन आपराधिक धाराएं लगाकर उन्हें जेल भेज दिया।

हम भीमा कोरेगांव-यलगार परिषद ‘षडयंत्र’ मामले से जुड़े उन 15 साथियों को याद रखें, जो पिछले तीन सालों से जेल में बंद हैं, उन पर अभी तक मुक़दमा नहीं शुरू हुआ, और एक को छोड़कर बाक़ी किसी को ज़मानत नहीं मिली। इस मामले में सोलहवें बंदी फ़ादर स्टेन स्वामी की सांस्थानिक हत्या हो चुकी है—कुछ दिन पहले जेल में उन्होंने दम तोड़ दिया। इस मौत को हम न भूलें। उम्र कैद की सज़ा काट रहे प्रोफेसर जीएन साईबाबा और उनके साथियों को हम न भूलें, जो नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं।

दिल्ली मुस्लिम-विरोधी हिंसा-2020 को हमें अपनी याद्दाश्त का हिस्सा बनाये रखना चाहिए। इस प्रायोजित हिंसा के सिलसिले में कई निर्दोष नौजवान स्त्री-पुरुष कार्यकर्ताओं (ऐक्टिविस्ट) पर गंभीर आपराधिक धाराएं लगाकर उन्हें गिरफ़्तार किया गया है। इनमें ज़्यादा तादाद मुसलमानों की है। इन नौजवानों पर झूठे, फ़र्जी मुक़दमे लादे गये हैं, जबकि इस हिंसा के असली गुनहगार छुट्टा घूम रहे हैं।

दिल्ली की सरहदों पर नवंबर 2020 से चल रहा किसान आंदोलन हमारी आंखों और स्मृति से ओझल नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा लाये गये तीन दमनकारी कृषि क़ानूनों को पूरी तरह रद्द करने की मांग को लेकर शुरू हुआ यह लोकतांत्रिक आंदोलन देश में किसानों का अब तक का सबसे बड़ा मोर्चा और जमावड़ा बन चुका है। इसने हिंदुत्व फ़ासीवाद-विरोधी लड़ाई को तेज़ करने में सक्रिय सहायक की भूमिका निभायी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की निरंकुशता को इस किसान आंदोलन ने संगठित चुनौती दी है।

हम याद न रखें, अपनी स्मृति हम गंवा दें—इसके ख़िलाफ़ बराबर वैचारिक लड़ाई चलाने की ज़रूरत है। कई बार स्मृति हमारे होने को प्रमाणित करती है। जन-विरोधी सत्ताएं इस चीज़ से ख़ौफ़ खाती हैं।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

CAA Protest
Shaheen Bagh
Farm Bills
farmers protest
Modi government
Mass movement

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

शाहीन बाग से खरगोन : मुस्लिम महिलाओं का शांतिपूर्ण संघर्ष !

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ट्रेड यूनियनों की 28-29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल, पंजाब, यूपी, बिहार-झारखंड में प्रचार-प्रसार 

आंगनवाड़ी की महिलाएं बार-बार सड़कों पर उतरने को क्यों हैं मजबूर?

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

केंद्र सरकार को अपना वायदा याद दिलाने के लिए देशभर में सड़कों पर उतरे किसान

देश बड़े छात्र-युवा उभार और राष्ट्रीय आंदोलन की ओर बढ़ रहा है


बाकी खबरें

  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन
    22 May 2022
    गुजरात के दक्षिणी हिस्से वलसाड, नवसारी, डांग जिलों में बहुत से लोग विस्थापन के भय में जी रहे हैं। विवादास्पद पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। लेकिन इसे पूरी तरह से…
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: 2047 की बात है
    22 May 2022
    अब सुनते हैं कि जीएसटी काउंसिल ने सरकार जी के बढ़ते हुए खर्चों को देखते हुए सांस लेने पर भी जीएसटी लगाने का सुझाव दिया है।
  • विजय विनीत
    बनारस में ये हैं इंसानियत की भाषा सिखाने वाले मज़हबी मरकज़
    22 May 2022
    बनारस का संकटमोचन मंदिर ऐसा धार्मिक स्थल है जो गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए हमेशा नई गाथा लिखता रहा है। सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में हर साल गीत-संगीत की…
  • संजय रॉय
    महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 
    22 May 2022
    पेट्रोलियम उत्पादों पर हर प्रकार के केंद्रीय उपकरों को हटा देने और सरकार के इस कथन को खारिज करने यही सबसे उचित समय है कि अमीरों की तुलना में गरीबों को उच्चतर कीमतों से कम नुकसान होता है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 
    21 May 2022
    अठारह घंटे से बढ़ाकर अब से दिन में बीस-बीस घंटा लगाएंगेे, तब कहीं जाकर 2025 में मोदी जी नये इंडिया का उद्ïघाटन कर पाएंगे। तब तक महंगाई, बेकारी वगैरह का शोर मचाकर, जो इस साधना में बाधा डालते पाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License