NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
आह ग़ालिब, वाह ग़ालिब: हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें, खावेंगे क्या?
ग़ालिब के ख़ुतूत को देखें तो 1857 के ग़दर के बाद 1859 से जो भी लिखा गया, उसके इख्तिताम पर लिखा होता, 'नजात का तालिब, ग़ालिब…’
सत्यम् तिवारी
27 Dec 2021
Mirza Ghalib

27 दिसंबर 1797 में आगरा में पैदा हुए शख़्स को शायद इल्म भी नहीं रहा होगा कि जिस दिल्ली को उसने इतनी मुहब्बत की, जहां 13 साल की उम्र में वो आगरा छोड़ कर गया, जिस दिल्ली को उसने बारहा दुत्कारे जाने के बाद भी नहीं छोड़ा, वही दिल्ली उसकी आँखों के सामने उजाड़ दी जाएगी। ये शख़्स था शायरों का शायर मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ान 'ग़ालिब', जिसने शायरी को वो आयाम दिये जिस पर उर्दू शायरी आज भी मौजूद है, और दिन ब दिन फल फूल रही है।

मिर्ज़ा ग़ालिब की मौत 1869 में दिल्ली में हुई, मगर जिस दिल्ली में ग़ालिब मरे, ये वो दिल्ली नहीं थी जिसमें वे जवान हुए थे, और बुढ़ापे तक का सफ़र तय किया था। इस दिल्ली में अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा, न क़िला था, न बहादुर शाह ज़फ़र का दरबार था, न मोमिन थे न ज़ौक़, और तो और ग़ालिब की ज़िंदगी में 7 बच्चे भी इसी दिल्ली में पैदा हुए मगर कोई 15 महीने से ज़्यादा न जी सका।

हम जब ग़ालिब की शायरी की बात करते हैं, तो वो सिर्फ़ एक पहलू है, ग़ालिब सिर्फ़ उर्दू के शायर नहीं हैं, ग़ालिब फ़ारसी के उस्ताद भी हैं, ग़ालिब ख़त भी लिखते हैं तो ऐसे लिखते हैं कि ख़त लिखना सीखने के लिए उन्हें आज भी पढ़ा जाता है। यही वजह है कि एक विदेशी शख़्स ने एक दफ़ा कहा था, कि 'अगर ग़ालिब अंग्रेज़ी में लिखते तो वो दुनिया के सबसे बड़े अदीब होते!' कहते हैं कि ग़ालिब बड़ा शायर है, मगर कितना बड़ा? इसका अंदाज़ा मैं नहीं मानता कि किसी को भी है। बहर ए हाल, बात हो रही थी 1857 के ग़दर की तो तसव्वुर कीजिये उस शाहजहानाबाद का, जहां के बल्लीमारों के महल्ले में एक हवेली है, जो इतनी जर्जर हालत में है कि बरसात में मेह 2 घंटे बरसे, तो छत 4 घंटे बरसती है। गली कासिम जान की उसी हवेली के बाहर अंग्रेज़ी फ़ौजी तैनात हैं, न कहीं शायर का शोर है, न वाह-वाह की आवाज़ें, बस एक बूढ़ा शायर है जो हवेली के ऊपर वाले कमरे में बैठा अपने दीगर दोस्तों को ख़त लिखा करता है। ख़त में ही बयान करता है दिल्ली का हाल, बताता है कि दिल्ली छावनी में तब्दील हो गई है, कहता है कि दिल्ली न रही और दिल्ली वाले आज भी उसे अपना शहर मानते हैं, मायूस हो कर लिखता है,

'आय दिल्ली, वाय दिल्ली,

भाड़ में
जाए दिल्ली!'

यही तो वो दिल्ली थी कि जिसे गुर्बत के दिनों में भी ग़ालिब ने नहीं छोड़ा था, जिसके बारे में कहा था, 

 

'है अब इस मामूरे में क़हत ए ग़म ए उलफ़त 'असद',

हम ने ये
माना कि दिल्ली में रहें, खावेंगे
क्या?'

अपने ख़ुतूत में ग़ालिब कहते हैं, 'मेरे बच्चे मरे जाते हैं, मेरे हमउम्र मरे जाते हैं ऐसा लगता है कि जब मैं मरूँगा तो कोई कांधा देने वाला भी नहीं होगा...'

ग़ालिब ख़ुतूत के हवाले से एक बात का ज़िक्र करना अहम हो गया है। 1857 में जब अंग्रेज़ों का कभी न डूबने वाला सूरज हिंदुस्तान में तुलू हुआ, जब आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र को क़ैद कर लिया गया और लाल क़िले पर अंग्रेज़ों ने कब्ज़ा कर लिया था, ग़ालिब अंदर तक टूट गए थे। उन्हें यक़ीन नहीं था कि अपनी उम्र के आख़िरी पड़ाव पर ये दिन उन्हें देखने को मिल रहे हैं। ग़ालिब ने 11 मई 1857 के बाद से क़रीब डेढ़ साल तक किसी को ख़त नहीं लिखा, लिखा भी तो भेजा नहीं। फिर जब 1859 के आसपास ख़त ओ किताबत शुरू हुई, तो हर ख़त के इख्तिताम पर लिखा जाता, 'नजात का तालिब, ग़ालिब...'

मायूसी का
आईना थी ग़ालिब की ज़िंदगी, ऐसी मायूसी
कि लोग फ़ैज़ बनना चाहते हैं, जौन बनना
चाहते हैं, मोमिन बनना
चाहते हैं, मगर कोई
ग़ालिब नहीं बनना चाहता…

1857 के ग़दर ही के बारे में ग़ालिब ने एक नज़्म भी लिखी थी, अंत में आपको उसी नज़्म के साथ छोड़े जा रहा हूँ…

बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज 

हर सिलह
शोर इंगलिस्ताँ का 

घर से
बाज़ार में निकलते हुए 

ज़ोहरा
होता है आब इंसाँ का 

चौक जिस को कहें वो मक़्तल है 

घर बना है
नमूना ज़िंदाँ का 

शहर-ए-देहली का ज़र्रा ज़र्रा ख़ाक 

तिश्ना-ए-ख़ूँ
है हर मुसलमाँ का 

कोई वाँ से न आ सके याँ तक 

आदमी वाँ न जा सके याँ का 

मैं ने
माना कि मिल गए फिर क्या 

वही रोना
तन ओ दिल ओ जाँ का 

गाह जल कर
किया किए शिकवा 

सोज़िश-ए-दाग़-हा-ए-पिन्हाँ
का 

गाह रो कर कहा किए बाहम 

माजरा
दीदा-हा-ए-गिर्यां का 

इस तरह के
विसाल से यारब 

क्या मिटे
दिल से दाग़ हिज्राँ का 

mirza ghalib
Mirza Ghalib Birth Anniversary

Related Stories

'तन्हा गए क्यों अब रहो तन्हा कोई दिन और' ग़ालिब 223वीं जयंती पर विशेष

...बना है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान
    24 May 2022
    वामदलों ने आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों और बेरज़गारी के विरोध में 25 मई यानी कल से 31 मई तक राष्ट्रव्यापी आंदोलन का आह्वान किया है।
  • सबरंग इंडिया
    UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध
    24 May 2022
    संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत ने दावा किया है कि देश में 10 करोड़ से ज्यादा आदिवासी और दूसरे समुदायों के मिलाकर कुल क़रीब 30 करोड़ लोग किसी ना किसी तरह से भोजन, जीविका और आय के लिए जंगलों पर आश्रित…
  • प्रबीर पुरकायस्थ
    कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक
    24 May 2022
    भारत की साख के लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देशों में अकेला ऐसा देश है, जिसने इस विश्व संगठन की रिपोर्ट को ठुकराया है।
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी मस्जिद की परछाई देश की राजनीति पर लगातार रहेगी?
    23 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ज्ञानवापी मस्जिद और उससे जुड़े मुगल साम्राज्य के छठे सम्राट औरंगज़ेब के इतिहास पर चर्चा कर रहे हैं|
  • सोनिया यादव
    तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?
    23 May 2022
    पुलिस पर एनकाउंटर के बहाने अक्सर मानवाधिकार-आरटीआई कार्यकर्ताओं को मारने के आरोप लगते रहे हैं। एनकाउंटर के विरोध करने वालों का तर्क है कि जो भी सत्ता या प्रशासन की विचारधारा से मेल नहीं खाता, उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License