NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
कोविड-19 : मोदी जी, आख़िर ग़लती कहाँ हुई?
कोविड के केस 3 लाख की संख्या पार कर गए हैं, लगभग 9,000 मौतें हो चुकी हैं, बड़े शहर घेराबंदी के साये में हैं, अस्पतालों में भीड़ बढ़ रही है - और महामारी के ख़त्म होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।
सुबोध वर्मा
15 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
COVID-19
Image Courtesy: The Weather Channel

हर रोज़, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और उसके शीर्ष चिकित्सा अनुसंधान के निकाय संख्याओं की झड़ी लगाए जा रहे हैं, इन सभी का मक़सद ये दिखाना है कि सब नियंत्रण में हैं। इसके लिए सकारात्मकता केसों का अनुपात, कुल आबादी में संक्रमित लोगों का अनुपात, ठीक हुए लोगों की संख्या, मामलों के दोहरीकरण की दर और क्या नहीं है जिसे दिखाया जा रहा है।

अध्यातमिक उपदेश दिए जा रहे है कि कोरोनोवायरस अब हमारे साथ रहेगा और इसलिए लोगों को इसके साथ रहने की आदत डालनी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कोविड के खिलाफ लाड़ाई में भारत के बेहतर प्रदर्शन के लिए अन्य देशों के साथ तुलना की जा रही है। मुख्यधारा का मीडिया विधिवत इस सब का बखान कर रहा है, जो अंतहीन है।

लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भारत के लोग इस उपदेश से पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं। होगा क्या, इस बात को लेकर सब अनिश्चितता में है, और स्वाभाविक रूप से सबके भीतर एक भय बैठ गया है। सोशल मीडिया पर घरेलू उपचार की अजीब सी कहानी बघारी जा रही है, जबकि मानव समाज के भीतर इस घातक वायरस और इसकी तूफानी जद्दोजहज के इस या उस पहलू की तरफ इशारा करने वाले विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों को धता बताया जा रहा है। लोग डर रहे हैं, और वे अनकहे सवाल उठा रहे हैं: क्या वायरस से मुकाबला करने की भारत की रणनीति विफल हो रही है? क्या हमें खुद के भरोसे छोड़ दिया गया हैं?

नीचे दिए गए चार्ट पर एक नज़र डालें, जो सक्रिय मामलों की संख्या को दर्शाता है, अर्थात, संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या और वे उपचार के किन्ही प्रकारों से गुजर रहे हैं। [स्वास्थ्य मन्त्र्लाय की वेबसाइट (MoHFW) लिया गया डेटा]

graph 1_7.png

इस पर नज़र डालना आवश्यक है क्योंकि हर दिन, कुछ लोग ठीक हो रहे हैं और उन्हे अस्पतालों से छुट्टी दी जा रही है, जबकि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण लोग बीमारी से त्रस्त होकर मर भी रहे हैं हैं।

यह चार्ट संक्रमण से जूझ रहे अस्पतालों में दाखिल रोगियों की संख्या को दर्शाता है। 13 जून को, सक्रिय मामलों की संख्या को 1.45 लाख से कुछ अधिक दर्ज की गई थी। इन मामलों में अधिकतर मामले मुख्यत चार राज्यों से हैं जिसमें महाराष्ट्र (मुख्यतः मुंबई), दिल्ली, तमिलनाडु और गुजरात हैं। लेकिन बावजूद इसके संख्या बढ़ रही है - और चोंकाने की हद तक बढ़ रही है।

यह ऐसे अस्पताल हैं जो इनमें से अधिकांश मामलों को झेल रहे हैं। समुदायों के भीतर लोगों के अधिक संक्रमित होने की उम्मीद है, चूंकि उनकी जांच और पुष्टि नहीं हुई है, इसलिए वे किसी भी गिनती में नहीं आते हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गहन चिकित्सा इकाइयों में अनुमानित तौर पर 94,961 बेड हैं। उन्होंने यह भी अनुमान लगाया कि इन सब में कुल मिलाकर 47,481 वेंटिलेटर हैं।

स्पष्ट रूप से, इन दिनों कोविड-19 संबंधित बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और रोगियों की बाढ़ में व्यापक अंतर है। याद रखें: मुंबई और दिल्ली जैसे कुछ स्थानों पर उपलब्ध सुविधाओं की तुलना में केस कई अधिक हैं, क्योंकि ये देश के लिए कुल संख्याएं हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में अनुमानित 39,455 आईसीयू बेड और 1,973 वेंटिलेटर हैं, लेकिन यहाँ सक्रिय केसों/मामलों की संख्या अधिक है। कोई भी इस तथ्य पर ध्यान नहीं दे रहा है कि लगभग 60 प्रतिशत सुविधाएं निजी अस्पतालों में हैं जो भयंकर रूप से महंगा इलाज़ करते हैं या फिर वे आम लोगों का इलाज़ करने से ही इंकार कर देते है, खासकर गरीब लोगों के साथ ऐसा व्यवहार तो आम बात है।

इसलिए, यह स्थिति हमें अगले गंभीर मोड़ पर ले जाती है, जो कोविड-19 से रोजाना होने वाली वाली मौतों की संख्या है। 13 जून को, कुल 386 मौतें दर्ज की गईं थी, जोकि पिछले दिन की संख्या 396 से कम थी। अब तक की कुल मौतों की संख्या 8,884 है।

graph 2_7.png

जैसा कि चार्ट से पता चलता है, दैनिक मौतें लगातार बढ़ रही हैं। यह दो पहलुओं की तरफ इशारा करता है: एक, लोगों में संक्रमण बड़ी संख्या में फैल रहा है, और दो, यह इसके लिए चिकित्सा का इंतजाम अपर्याप्त है, और लगातार स्थिति खराब होती जा रही है। 

मोदी सरकार ने संक्रमणों और मौतों में वृद्धि को कम करने के लिए अचानक (25 मार्च से) देशव्यापी तालाबंदी लागू कर दी थी - और बढ़ते संकट से निपटने के लिए इस लोकडाउन का उपयोग स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को तैयार करने के लिए किया जाना था।

इस दौरान, आईसीयू के कितने नए बेड तैयार किए गए और कितने वेंटिलेटर वास्तव में चालू किए गए इस पर केंद्रीकृत डेटा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है, या यदि ऐसा है, तो वह इसे प्रसारित नहीं कर रहे हैं। लेकिन सक्रिय मामलों से पता चलता है कि इनकी सख्त जरूरत है और मौतें बताती हैं कि सुविधाओं की वर्तमान स्थिति बहुत ही अपर्याप्त है। जाहिर है, लॉकडाउन से हासिल किए गए समय को बर्बाद कर दिया गया।

साथ ही, राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर नवीनतम मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि जांच बढ़ने के बजाय नीचे की तरफ जा रही है। इसलिए, इस बात की संभावना बढ़ रही है कि संक्रमण वाले लोग अब खुले घूम रहे हैं क्योंकि उनकी जांच नहीं हुई है। सरकारी क्वारंटाईन सुविधाएं काफी जर्जर स्थिति में हैं और देश के अधिकांश हिस्सों में कोविड संपर्कों का पीछा नहीं किया जा रहा है।

संक्षेप में कहा जाए तो ऐसा लगता है जैसे कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को अब छोड़ दिया गया है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रधानमंत्री ने अब देशव्यापी प्रेरणादायक’ भाषणों के प्रसारण के सिलसिले को बंद कर दिया हैं, और वे संकल्प और संयम का आग्रह भी नहीं कर रहे है।

समय से पहले लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था को हुए भयंकर नुकसान को कम करने के लिए, देश को खोलने के लिए एक अव्यवस्थित और घबराई सेना को हारी हुई लड़ाई की वजह से पीछे हटने को कहा जा रहा है। यह कोरोनोवायरस ट्रांसमिशन को बढ़ा देगा, और इसलिए जून में मामलों में उछाल आएगा। 

यह अपेक्षित है - जैसा कि कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं - कि ऐसे 10 सप्ताह ओर हो सकते हैं जो कोरोनोवायरस को तबाही मचाने का आधार देगा। इस बीच, पहले से ही फिसली अर्थव्यवस्था और उग्र महामारी से पहले से ही परेशान लोगों को ओर अधिक झेलना पड़ेगा।

(न्यूज़क्लिक की डाटा एनालिटिक्स टीम के पीयूष शर्मा ने डाटा कलेक्ट किया है।)

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

COVID-19: What Went Wrong, Mr. Modi?

COVID-19
Covid Testing
Premature Lockdown
Healthcare Facilities
health infrastructure
COVID Deaths
Health Ministry Data

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • mamta banerjee
    भाषा
    तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में चारों नगर निगमों में भारी जीत हासिल की
    15 Feb 2022
    तृणमूल कांग्रेस ने बिधाननगर, चंदरनगर और आसनसोल नगरनिगमों पर अपना कब्जा बरकरार रखा है तथा सिलीगुड़ी में माकपा से सत्ता छीन ली।
  • hijab
    अरुण कुमार त्रिपाठी
    हिजाब विवादः समाज सुधार बनाम सांप्रदायिकता
    15 Feb 2022
    ब्रिटेन में सिखों को पगड़ी पहनने की आज़ादी दी गई है और अब औरतें भी उसी तरह हिजाब पहनने की आज़ादी मांग रही हैं। फ्रांस में बुरके पर जो पाबंदी लगाई गई उसके बाद वहां महिलाएं (मुस्लिम) मुख्यधारा से गायब…
  • water shortage
    शिरीष खरे
    जलसंकट की ओर बढ़ते पंजाब में, पानी क्यों नहीं है चुनावी मुद्दा?
    15 Feb 2022
    इन दिनों पंजाब में विधानसभा चुनाव प्रचार चल रहा है, वहीं, तीन करोड़ आबादी वाला पंजाब जल संकट में है, जिसे सुरक्षित और पीने योग्य पेयजल पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। इसके बावजूद, पंजाब चुनाव में…
  • education budget
    डॉ. राजू पाण्डेय
    शिक्षा बजट पर खर्च की ज़मीनी हक़ीक़त क्या है? 
    15 Feb 2022
    एक ही सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे बजट एक श्रृंखला का हिस्सा होते हैं इनके माध्यम से उस सरकार के विजन और विकास की प्राथमिकताओं का ज्ञान होता है। किसी बजट को आइसोलेशन में देखना उचित नहीं है। 
  • milk
    न्यूज़क्लिक टीम
    राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ खिलवाड़ क्यों ?
    14 Feb 2022
    इस ख़ास पेशकश में परंजॉय गुहा ठाकुरता बात कर रहे हैं मनु कौशिक से राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड से सम्बंधित कानूनों में होने वाले बदलावों के बारे में
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License