NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
भारत
क्या मोदी सरकार ने तेल निकालने के लिए असम में पर्यावरण संबंधी मंजूरी देकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन किया है?
इस बीच गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने पर्यावरणीय मंजूरी पर तब तक के लिए रोक लगा दी है, जब तक कि ओआईएल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दिए गए शपथ पत्र के अनुसार जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन का संचालन नहीं कराया जाता है।
अयस्कांत दास
17 Dec 2020
असम
फाइल फोटो

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा असम के वर्षावनों वाले क्षेत्रों में जैव-विविधता प्रभाव आकलन से पूर्व ही हाइड्रोकार्बन की खोज के काम को हरी झंडी दिए जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं, जैसा कि सर्वोच्च नयायालय के आदेशानुसार ऐसा करना अनिवार्य है। अब गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने असम में सात नए तेल के कुओं के अन्वेषण के काम के लिए ड्रिलिंग के काम को लेकर आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) को केंद्र सरकार द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक लगा दी है। 

सार्वजनिक क्षेत्र के इस हाइड्रोकार्बन प्रमुख को जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन न होने के बावजूद 11 मई, 2020 को इस परियोजना की मंजूरी दे दी गई थी, जिसे पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य बना दिया था। पारिस्थितिकी तौर पर संवेदनशील डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय पार्क में इस परियोजना के तहत हाइड्रोकार्बन की उपस्थिति का पता लगाया जाना है, जिसमें एक्सटेंडेड रीच ड्रिलिंग (ईआरडी) तकनीक के माध्यम से तिनसुकिया जिले के संरक्षित क्षेत्र की परिधि के बाहर सात स्थानों पर इसे संचालित किया जाना है।

गुवाहाटी उच्च न्यायालय की एक खण्डपीठ जिसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एन कोटीश्वर सिंह और न्यायमूर्ति मनीष चौधरी शामिल थे, ने हाइड्रोकार्बन कम्पनी के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए इस आदेश को जारी किया है।

7 दिसंबर के उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है “उक्त आदेश में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष रुपे से स्पष्ट कर दिया था कि आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) अपने 25.07.2017 को दिए गए शपथ पत्र से बंधा हुआ है, जिसके तहत ओआईएल को असम राज्य जैव-विविधता परिषद के जरिये जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन के काम को करना होगा। किसी भी ड्रिलिंग गतिविधि को शुरू करने से पहले बजटीय प्रस्ताव पहले से ही 12.05.2017 को हासिल कर लिया गया था..। जब तक कि असम राज्य जैवविविधता परिषद द्वारा इस गतिविधि को पूरा नहीं कर लिया जाता, तब तक 11.05.2020 को जारी की गई पर्यावरणीय मंजूरी को ओआईएल द्वारा एक्सटेंशन ड्रिलिंग एंड टेस्टिंग ऑफ़ हाइड्रोकार्बन वाले काम को तिनसुकिया के डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय पार्क के 7 (सात) स्थानों पर शुरू नहीं किया जा सकता है।”

याचिकाकर्ताओं द्वारा आरोप लगाया गया है कि इस परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा दी गई थी जो कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करती है।

यह परियोजना 2016 से पाइपलाइन में चल रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख कंपनी ने 25 जुलाई, 2017 को एक शपथ पत्र दिया था, कि वह असम राज्य जैव-विविधता परिषद के माध्यम से जैव विविधता प्रभाव के अध्ययन के काम को करेगा। राष्ट्रीय उद्यान में हाइड्रोकार्बन के अन्वेषण के काम को करीब 4,000 फीट गहरे तक करने से पूर्व इस अध्ययन के काम को किया जाना है। इस वचनबद्धता एवं अन्य प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए वन्य जीव राष्ट्रीय परिषद (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थायी समिति ने अन्वेषण की गतिविधियों को एक संरक्षित क्षेत्र में शुरू करने के प्रस्ताव को 29 जुलाई, 2017 में अपनी मंजूरी दे दी थी। 7 सितम्बर, 2017 के दिन सर्वोच्च न्यायालय ने एक वार्ताकार के आवेदन एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत ओआईएल उसी स्थिति में अन्वेषण गतिविधियों को चलाने की अनुमति दी गई थी, यदि वह अपने स्वंय के शपथपत्र पर कायम रहता है।

हालाँकि केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईऍफ़&सीसी) जिसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता प्रकाश जावेडकर की अगुआई प्राप्त है, ने इस वर्ष 11 मई को, कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लागू राष्ट्रव्यापी संपूर्ण लॉकडाउन के बीच में ही ओआईएल को पर्यावरणीय मंजूरी दे डाली थी। यह मंजूरी 27 मई को हुए बाघजन गैस रिसाव की घटना के कुछ दिन पहले ही प्रभाव आकलन अध्ययन किये बिना ही प्रदान कर दी गई थी। 

याचिकाकर्ताओं के लिए सलाहकार के तौर पर नियुक्त वकील देबजीत दास का इस बारे में कहना था “यह घोड़े के आगे गाड़ी को लगाने जैसा क्लासिक मामला है। पर्यावरणीय मंजूरी पहले ही प्रदान कर दी गई। जबकि जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन के काम को बाद में किया जाएगा।”

हालाँकि ओआईएल ने उच्च न्यायालय को यह भी सूचित किया है कि प्रभाव आकलन अध्ययन की प्रक्रिया पहले से ही शुरू हो चुकी थी।

ओआईएल अधिकारियों के अनुसार केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इस परियोजना के लिए मंजूरी दिए जाने की निर्धारित शर्तों में जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन की शर्त भी शामिल की गई थी।

न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बात में ओआईएल के प्रवक्ता त्रिदिव हज़ारिका ने कहा “पर्यावरण मंजूरी की शर्तों में जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन को संचालित करना भी एक शर्त है, और हम इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए हम पहले से ही राज्य जैव-विविधता परिषद से बातचीत कर रहे हैं। ओआईएल द्वारा फिलहाल सिर्फ सात स्थानों को अन्वेषी कुओं की ड्रिलिंग के लिए अस्थाई तौर पर चुना गया है। इस परियोजना पर काम की शुरुआत तभी हो सकती है जब हम जमीन अधिग्रहण और इसके लिए निविदा जारी कर किसी एजेंसी को, जिसका ईआरडी टेक्नोलॉजी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का अनुभव हो, का चयन करेंगे। परियोजना को शुरू करने से पहले हम अध्ययन को संचालित किये जाने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।”

अन्य बातों के साथ इस सन्दर्भ में एक प्रश्नावली एमओईऍफ़&सीसी एक प्रश्न के साथ ई-मेल की गई है। इसमें इस सवाल को उठाया गया है कि ओआईएल के सामने पर्यावरण मंजूरी हासिल करने से पहले जैव-विवधता प्रभाव आकलन अध्ययन की पूर्व शर्त क्यों नहीं लगाईं गई। इस ई-मेल पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई है। जब मंत्रालय द्वारा ईमेल का जवाब दिया जाएगा, तो इस लेख को अपडेट कर दिया जायेगा।

जब इस संबंध में उड़ीसा के पर्यावरणीय एवं वन्य-जीव कार्यकर्त्ता बिस्वजीत मोहंती से पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने और उसके बाद जैव-विविधता प्रभाव आकलन अध्ययन को संचालित किये जाने के क्रम के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था “जैविक प्रभाव आकलन अध्ययन के निष्कर्षों को ध्यान में रखे बगैर पर्यावरणीय मंजूरी देने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। अध्ययन के निष्कर्षों पर बिना कोई विचार किये आप कैसे पर्यावरणीय मंजूरी को दे सकते हैं?”

ओआईएल संचालित बाघजन तेल कुएं में लगी आग जो लगातार कई महीनों तक जारी रही, जिसके कारण कई जिंदगियों से हाथ धोना पड़ा, बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना पड़ा और डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास के वर्षावनों की नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुँचा था। भारतीय वन्य-जीव संस्थान द्वारा संचालित अध्ययन ने आग से होने वाले नुकसान की मात्रा का आकलन करने के लिए किए गए एक अध्ययन में सिफारिश की है कि यदि इस क्षेत्र में नए कुओं और अन्वेषण के काम को संभावित प्रभाव की गहन जाँच के बाद शुरू किया जाता है “यह न सिर्फ विवेकपूर्ण होगा बल्कि सभी प्रकार के जीवन के रूपों के हित में आवश्यक होगा।” इसके साथ ही आपदा से निपटने की क्षमता के मूल्यांकन एवं यथोचित तकनीक और कुशल श्रम-शक्ति की उपलब्धता के अनुसार इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए।

अगस्त में बाघजन तेल कुएं में लगी आग आपदा की पृष्ठभूमि में एक्सटेंशन ड्रिलिंग प्रोजेक्ट के खिलाफ गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई थी। पीआईएल में यह आरोप लगाया गया था कि भले ही यह विशेष परियोजना 2016 से ही पाइपलाइन में चल रही थी, लेकिन इस हाइड्रोकार्बन कंपनी ने एक संशोधन के आधार पर महत्वपूर्ण ‘सार्वजनिक विचार-विमर्श’ की प्रक्रिया को, जिसे जनवरी 2020 में कहीं जाकर पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 में संशोधन किया गया था, के चलते दरकिनार कर दिया है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। 

Modi Govt Flouted SC Order in Granting Environmental Clearance to OIL India in Assam?

Dibru-Saikhowa National Park
Assam Oil Drilling
Oil India Limited
Environmental Clearance
Narendra modi
Prakash Javadekar
Gauhati High Court

Related Stories

कॉर्पोरेट के फ़ायदे के लिए पर्यावरण को बर्बाद कर रही है सरकार

ग्राउंड रिपोर्ट: बनारस में जिन गंगा घाटों पर गिरते हैं शहर भर के नाले, वहीं से होगी मोदी की इंट्री और एक्जिट

हर नागरिक को स्वच्छ हवा का अधिकार सुनिश्चित करे सरकार

स्पेशल रिपोर्टः ज़हरीली हवा में सांस ले रहे पीएम के संसदीय क्षेत्र बनारस के लोग

एक तरफ़ PM ने किया गांधी का आह्वान, दूसरी तरफ़ वन अधिनियम को कमजोर करने का प्रस्ताव

छत्तीसगढ़: जशपुर के स्पंज आयरन प्लांट के ख़िलाफ़ आदिवासी समुदायों का प्रदर्शन जारी 

बाघजान: तेल के कुंए में आग के साल भर बाद भी मुआवज़ा न मिलने से तनाव गहराया 

स्पेशल रिपोर्ट: बनारस की गंगा में 'रेत की नहर' और 'बालू का टीला'

असम के बाघजान में गैस रिसाव के कारण हुआ 25 हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान: रिपोर्ट

दिल्ली में कोरोना संकट के बीच बढ़ा वायु प्रदूषण, आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License