NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
विकास की वास्तविकता दर्शाते बहुआयामी गरीबी सर्वेक्षण के आँकड़े
इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष सारे विकास को उन करोड़ों की जनसंख्या के लिए बेमानी साबित कर देते हैं, जिनके जीवन स्तर पर विकास के लिए व्यय किए गए खरबों रूपए से प्रकाश की किरण नही पहुंची।
डॉ. अमिताभ शुक्ल
10 Dec 2021
poverty
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

देश में विकास की गति तीव्र होती जा रही है, ऐसा सूचनाओं, समाचारों और आंकड़ों से ज्ञात होता है। हाईवे, विशाल काय मूर्तियों के निर्माण, सुविधायुक्त ट्रेनों के चलाए जाने, व्यापारिक घरानों की बड़ती आय और कंपनियों के लाभ में कोरोना काल के बावजूद होने वाली वृद्धि से ज्ञात होता है। और तो और सरकारों के तिलिस्मी बजट की राशियों से भी चमत्कृत होना पड़ता है कि विकास पर इतना आवंटन? लेकिन इन सबसे देश के आम आदमी के जीवन और आर्थिक स्तर में क्या बदलाव आते हैं? यह भी समय-समय पर किए गए सर्वेक्षण बताते हैं।

देश में हाल के समग्र गरीबी सर्वेक्षण के निष्कर्ष

इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष सारे विकास को उन करोड़ों की जनसंख्या के लिए बेमानी साबित कर देते हैं, जिनके जीवन स्तर पर विकास के लिए व्यय किए गए खरबों रूपए से प्रकाश की किरण नही पहुंची। यह आंकड़े देश के अधिकांश प्रदेशों में गरीबी की स्थिति को दर्शाते हैं।

समग्र गरीबी सर्वेक्षण के मानक

इस सर्वेक्षण में स्वास्थ, शिक्षा एवं जीवन स्तर के तीन आयामों के 12 संकेतक जिनमें पोषण, स्कूल में नामांकन, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता, स्वच्छता, खाना पकाने के ईंधन की उपलब्धि मातृ स्वास्थ्य, बैंक खाते इत्यादि सम्मिलित किए गए थे। नीति आयोग द्वारा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा मान्यता प्राप्त "ऑक्सफोर्ड पावर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिसिएटिव "द्वारा तैयार निर्धनता के आकलन की प्रविधि के आधार पर प्रथम सर्वेक्षण के निष्कर्ष एक सप्ताह पूर्व जारी हुए हैं। यह निष्कर्ष राज्यों एवं सम्पूर्ण देश में विकास की वास्तविकता को दर्शाते हैं।

निर्धनता के उच्चतम प्रतिशत वाले राज्य: जिन राज्यों में यह निर्धनता अधिक पाई गई वह निम्नानुसार है:

यह राज्यवार आंकड़े चिंताजनक हैं। कुल जनसंख्या में बहुआयामी गरीबी से बिहार की आधी आबादी ग्रसित है, अर्थात पांच करोड़ से अधिक। मध्य प्रदेश में यह आबादी तीन करोड़ है तो राजस्थान में दो करोड़ से भी अधिक। मध्य प्रदेश के छह आदिवासी जिलों में पचास प्रतिशत आबादी इस दायरे में आती है। जिनमें अलीराजपुर में 71 प्रतिशत, झाबुआ में 69 प्रतिशत, डिंडोरी में 56 प्रतिशत, सीधी में 53 प्रतिशत और सिंगरौली में 52 प्रतिशत, तो प्रदेश के बुंदेलखंड  क्षेत्र के सभी जिलों में चालीस प्रतिशत से अधिक आबादी बहु आयामी निर्धनता से पीड़ित है। हाल ही में मध्य प्रदेश में आदिवासियों के विकास पर एक वृहद कार्यक्रम भी आयोजित किया जा चुका है।

संपूर्ण देश में बहु आयामी निर्धनता के प्रमुख संकेतकों की स्थिति: विभिन्न संकेतकों की दृष्टि से ग्रसित जनसंख्या की स्थिति इस प्रकार है: 

अर्थात देश की इतनी प्रतिशत आबादी उन बुनियादी आवश्यकताओं की प्राप्ति से वंचित है, जिन्हें प्राप्त होने पर वह बहु आयामी निर्धनता के दायरे में नहीं आए।

विकास बनाम निर्धनता

देश में विकास के दावों, योजनाओं और इन पर बजट राशियों के चमत्कारी आंकड़ों, निर्धन आबादी के लिए अनेकों अत्यधिक प्रचारित योजनाओं यथा उज्ज्वला योजना, स्वच्छता कार्यक्रम, मातृ स्वास्थ्य कल्याण योजनाओं, आवास योजना इत्यादि के बावजूद राज्यों एवं राष्ट्रीय स्तर पर निर्धनता की यह भीषणता क्या दर्शाती हैं?  यही कि विकास के यह दावे वास्तविकता के धरातल पर वास्तव में क्या हैं। क्योंकि, हितग्राहियों के आंकड़े भी आंकड़ों के खेल भर होते हैं। वास्तव में लाभ आम जन तक नही पहुंच पाते और नहीं पहुंच पा रहे हैं।

विकास के अन्य मापदंडों एवं सर्वेक्षण के नतीजे भी निराशाजनक

यह देश की सर्वोच्च नीति नियामक संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण के निष्कर्ष हैं। यही हश्र अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा पोषण, रोजगार एवं प्रसन्नता के सर्वेक्षणों का है, जिनमें भारत फिसड्डी अर्थात बहुत पीछे है। 

विकास का नकारात्मक एवं गरीब विरोधी दृष्टिकोण 

वर्तमान में देश में विकास अर्थात देश अथवा जनता के विकास की कोई अवधारणा नहीं दिखाई देती। मूर्तियों, हाईवेज, आधुनिकीकरण, हवाई अड्डों के निर्माण, वृहद कंपनियों के व्यापार और उन्हें बड़े शासकीय अनुबंध प्रदान किए जाने पर जोर प्रतीत होता है। ऐसे में गरीबी की व्यापकता सुशासन के नारे और प्रचार के बावजूद बिहार में व्यापक है तो स्थिर सरकारों वाले राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी गहन है।

इन स्थितियों में दुर्भाग्यजनक पहलू इन सर्वेक्षणों के निष्कर्षों पर चर्चा एवं इनसे आम जनता को निजात दिलाने की मंशा और प्राथमिकताओं का अभाव है, जिनके अभाव में एक बड़ी आबादी पीड़ित और प्रताड़ित है।

poverty
Poverty in India
Hunger Crisis
development
Rich poor
Income inequality in world
wealth inequality in world
Wealth inequality in India
Female income in India

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट

कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...

ज्ञानवापी, ताज, क़ुतुब पर बहस? महंगाई-बेरोज़गारी से क्यों भटकाया जा रहा ?

‘जनता की भलाई’ के लिए पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के अंतर्गत क्यों नहीं लाते मोदीजी!

अनुदेशकों के साथ दोहरा व्यवहार क्यों? 17 हज़ार तनख़्वाह, मिलते हैं सिर्फ़ 7000...

मनरेगा: ग्रामीण विकास मंत्रालय की उदासीनता का दंश झेलते मज़दूर, रुकी 4060 करोड़ की मज़दूरी


बाकी खबरें

  • Hijab
    अजय कुमार
    आधुनिकता का मतलब यह नहीं कि हिजाब पहनने या ना पहनने को लेकर नियम बनाया जाए!
    14 Feb 2022
    हिजाब पहनना ग़लत है, ऐसे कहने वालों को आधुनिकता का पाठ फिर से पढ़ना चाहिए। 
  • textile industry
    एम.ओबैद
    यूपी चुनावः "कानपुर की टेक्स्टाइल इंडस्ट्री पर सरकार की ग़लत नीतियों की काफ़ी ज़्यादा मार पड़ी"
    14 Feb 2022
    "यहां की टेक्स्टाइल इंडस्ट्री पर सरकार की ग़लत नीतियों की काफ़ी ज़्यादा मार पड़ी है। जमीनी हकीकत ये है कि पिछले दो साल में कोरोना लॉकडाउन ने लोगों को काफ़ी परेशान किया है।"
  • election
    ओंकार पुजारी
    2022 में महिला मतदाताओं के पास है सत्ता की चाबी
    14 Feb 2022
    जहां महिला मतदाता और उनके मुद्दे इन चुनावों में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं, वहीं नतीजे घोषित होने के बाद यह देखना अभी बाक़ी है कि राजनीतिक दलों की ओर से किये जा रहे इन वादों को सही मायने में ज़मीन पर…
  • election
    सत्यम श्रीवास्तव
    क्या हैं उत्तराखंड के असली मुद्दे? क्या इस बार बदलेगी उत्तराखंड की राजनीति?
    14 Feb 2022
    आम मतदाता अब अपने लिए विधायक या सांसद चुनने की बजाय राज्य के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के लिए मतदान करने लगा है। यही वजह है कि राज्य विशेष के अपने स्थानीय मुद्दे, मुख्य धारा और सरोकारों से दूर होते…
  • covid
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 34,113 नए मामले, 346 मरीज़ों की मौत
    14 Feb 2022
    देश में एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 1.12 फ़ीसदी यानी 4 लाख 78 हज़ार 882 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License