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भारत
राजनीति
भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़
अटल से लेकर मोदी सरकार तक... सदन के भीतर मुसलमानों की संख्या बताती है कि भाजपा ने इस समुदाय का सिर्फ वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया है।   
रवि शंकर दुबे
31 May 2022
bjp
Image courtesy : ET

देश की सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी जब कहती है— सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास... तब ऐसा लगता है कि इसमें अंतिम पंक्ति का अंतिम शख्स भी शामिल है। यानी सभी धर्म, सभी जातियां, सभी वर्ग, सभी समुदाय। लेकिन हकीकत ठीक इससे उलट है, जिसे समझने के लिए देश का मौजूदा माहौल और राज्यसभा के लिए बांटे गए टिकटों को देखा जा सकता है।

कहने का मतलब है कि मुसलमानों के वोट के लिए तो पार्टी बड़ी लोकलुभावन बातें करती है, लेकिन जब एक मुसलमान को अपन समर्थन देकर संसद भेजने की बात हो, तब उसे हिंदुत्व याद आ जाता है। इन दिनों भी कुछ ऐसा ही हो रहा है... जब भाजपा ने लोकसभा के बाद राज्यसभा को भी मुस्लिम रोधी बनाने का मन बना लिया है। यानी भाजपा की ओर से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार राज्यसभा के लिए नहीं भेजा गया है।

मौजूदा वक्त की बात करें तो भाजपा के तीन मुस्लिम सांसद राज्यसभा में हैं, केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, पूर्व मंत्री एमजे अकबर और सय्यद ज़फर इस्लाम। इनमें अकबर का कार्यकाल 29 जून 2022 को, नकवी का कार्यकाल 7 जुलाई को और सय्यद ज़फर इस्लाम का कार्यकाल 4 जुलाई 2022 को समाप्त हो रहा है। आपको बता दें कि जफर इस्लाम दो साल पहले उत्तर प्रदेश से उपचुनाव में चुनकर राज्यसभा पहुंचे थे। एमजे अकबर मध्यप्रदेश और मुख्तार अब्बास नकवी झारखंड से राज्यसभा पहुंचे थे।

भाजपा के तीनों ही मुस्लिम राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल जुलाई के पहले हफ्ते में खत्म हो जाएगा, जिसके चलते उनकी सीटों पर चुनाव हो रहे हैं। भाजपा ने तीनों में से किसी भी मुस्लिम को राज्यसभा के लिए कैंडिडेट नहीं बनाया है। ऐसे में सबसे बड़ी दिक्कत मुख्तार अब्बास नकवी के साथ खड़ी हो गई है। यानी अगर नकवी दोबारा से संसद नहीं पहुंचे तो छह महीने के अंदर उनके मंत्री पद की कुर्सी चली जाएगी। ऐसे में सियासी कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा उन्हें रामपुर संसदीय सीट से उपचुनाव में उतार सकती है।

भाजपा के तीनों मुस्लिम राज्यसभा सदस्यों को अगर छोड़ दिया जाए तो उच्च सदन में एनडीए से कोई मुस्लिम सांसद नहीं है। हालांकि इस बार तो नकवी, अकबर, इस्लाम को भी राज्यसभा के लिए उम्मीदवार नहीं बनाया गया है। ऐसे में भाजपा की सियासत से मुस्लिम सांसद आउट होते नजर आ रहे हैं जबकि एक समय भाजपा की राजनीति में सात मुस्लिम चेहरे रहे थे, जो लोकसभा और राज्यसभा में रह चुके हैं।

हालांकि, राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत होने वाली सात सीटें खाली हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भाजपा क्या किसी प्रबुद्ध मुस्लिम को राष्ट्रपति के मनोनयन के रास्ते राज्यसभा लाएगी या फिर नंबवर में खाली होने वाली राज्यसभा सीटों से किसी मुस्लिम चेहरों को भेजेगी।

मौजूदा वक्त में तो राज्यसभा चुनाव हैं, लेकिन पिछले कुछ वक्त से अगर भाजपा की राजनीति पर प्रकाश डालें, तो पता चलता है कि भाजपा धीरे-धीरे कर मुसलमानों को अपनी राजनीतिक धुरी से किनारे कर रही है। इसका उदाहरण साल 2019 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिला था। जब भाजपा ने छह मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन किसी को भी जीत हासिल नहीं हुई थी, इस तरह मौजूदा वक्त में भाजपा के पास लोकसभा में एक भी मुस्लिम सदस्य नहीं है।

बात अगर एनडीए की करें तो महज़ एक मुस्लिम सासंद है, बिहार के खगड़िया से महबूब अली कैसर, जो एलजेपी के टिकट पर जीतकर संसद बने थे। पर जेडीयू के टिकट पर लड़ने वाला कोई मुस्लिम प्रत्याशी सांसद नहीं बन सका था।

इसी तरह अभी हाल में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भी यही देखने को मिला के बीजेपी की ओर से एक भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया गया। हालांकि बाद में एक मंत्री के तौर पर ज़रूर मुस्लिम को शामिल किया गया।

अपनी राजनीतिक धुरी से मुसलमानों को दूर रखना महज़ अभी की बात या इत्तेफाक नहीं है। क्योंकि जनसंघ से लेकर भाजपा तक अगर ग़ौर करें तो सिर्फ सात मुसलमान चेहरे मुख्य रूप से सामने आ सके हैं। जिसमें सिकंदर बख्त से लेकर आरिफ बेग, मुख्तार अब्बास नकवी, और सय्यद ज़फर इस्लाम तक शामिल हैं।

इन सभी मुस्लिम नेताओं के प्रतिनिधित्व की बात करें अटल सरकार से लेकर मोदी सरकार तक मंत्री रहे लेकिन अपनी कोई खास छाप नहीं छोड़ सके।

* मुख्तार अब्बास नकवी एक बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद रहे हैं। नकवी पहली बार 1998 में लोकसभा जीतकर सूचना प्रसारण मंत्री बने, लेकिन बाद वे सिर्फ अल्पसंख्यक मंत्री तक ही सीमित रह गए।

* बात अगर शाहनवाज़ हुसैन की करेंगे तो वह अब राष्ट्रीय राजनीति से बिहार की ओर पलायन कर चुके हैं। इस समय वो बिहार में जेडीयू-बिहार की साझा सरकार में उद्योग मंत्री हैं।

* एमजे अकबर को राज्यसभा सदस्य बनाकर विदेश राज्यमंत्री का कार्यभार दिया गया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अकबर का सियासी प्रभाव था, लेकिन मी-टू में नाम आने के बाद उनके मंत्री पद की कुर्सी भी गई और सियासी तौर पर साइडलाइन भी कर दिए गए।

* नजमा हेपतुल्ला को 2014 में अल्पसंख्यक मामलों का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें राज्यपाल बना दिया गया।

* सिंकदर बख्त दो बार लोकसभा और तीन बार भाजपा से राज्यसभा सदस्य रहे। 1996 में अटल सरकार में सिकन्दर बख्त को शहरी विकास मंत्री का दायित्व दिया तो उससे वह सन्तुष्ट नहीं हुए। ऐसे में उन्हें विदेश मंत्री का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया, लेकिन सरकार 13 दिन ही चल सकी थी। सिकन्दर बख्त ने राज्यसभा में विपक्षी दल के नेता की कमान दोबार संभाली और 1998 में वाजपेयी सरकार में उद्योग मंत्री रहे।

* ऐसे ही आरिफ बेग का जनसंघ के साथ काफी गहरा जुड़ाव रहा। वो 1977 से 1980 के बीच चली जनसंघ की सरकार में मंत्री रहे थे। 5 सितंबर 2016 को आरिफ बेग का निधन हो गया था।

* सय्यद ज़फर इस्लाम भाजपा के लिए एक प्रमुख मुसलमान चेहरा हैं, साल 2020 के उपचुनाव में वे उत्तर प्रदेश से खाली हुई राज्यसभा सीट के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। सय्यद के लिए कहा जाता है कि उन्होंने मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार गिराकर सिंधिया को भाजपा में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई थी।

इन मंत्रियों के दायित्व और कार्यकाल को देखकर इतना तो समझना आसान है कि 2004 से पहले भारतीय जनता पार्टी या जनसंघ में मुसलमान नेताओं को एक तवज्जो थी, जो 2014 के बाद वाली भाजपा सरकार में हाशिये पर चली गई। चाहे ज़फर इस्लाम हों, मुख्तार अब्बास नकवी हों, या फिर शाहनवाज हुसैन।

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जिस देश में 20 फीसदी मुसलमान हों, यानी जिनके बग़ैर न तो सरकार बन सकती है। न ही देश की संस्कृति अपने अस्तित्व को बचाकर रख सकती है उन्हें लोगों को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है। इतना ही नहीं एक के बाद एक जिस तरह से इन्हे टारगेट कर इनके घर, दुकानें और ज़रूरत को चीज़ों को बुलडोज़ कर इनकी ज़िंदगी को प्रभावित किया जा रहा है, इससे भी पता चलता है कि उनके प्रति क्या रवैया या सोच है।

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