NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
आत्मनिर्भर भारत से "रिलायंस इंडिया" तक
रिलायंस ने हाल में टेलीकॉम क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित किया है। अब वैश्विक कंपनियों के साथ मिलकर रिलायंस इस एकाधिकार का इस्तेमाल कर भारतीय अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों में विस्तार करने की कोशिश कर रही है। इन वैश्विक कंपनियों में गूगल, फ़ेसबुक और माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियां शामिल हैं। रिलायंस ने 5G को लेकर जो दावे किए हैं, उससे साफ़ है कि अब कंपनी अमेरिका के नेतृत्व वाले उस वैश्विक गठबंधन का हिस्सा है, जो चीन की तकनीकी कंपनियों के खिलाफ़ बनाया गया है।
प्रबीर पुरकायस्थ
28 Jul 2020
Mukesh Ambani and Narendra Modi
Image Courtesy: YoutTube

चार साल तक रिलायंस इंडस्ट्री ने अपने तेल और गैस के पैसे का इस्तेमाल करते हुए टेलीकॉम बिज़नेस में खूब निवेश किया। अब रिलायंस जियो इस क्षेत्र में देश की अग्रणी कंपनी बन चुकी है। कंपनी ने शुरुआत में अपनी सेवाओं के लिए बेहद कम कीमतें रखकर दूसरी कंपनियों को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया। आख़िरकार जियो टेलीकॉम सेक्टर की निर्विवाद अग्रणी कंपनी बन गई। 

जियो ने अपने नेटवर्क में किसी भी तरह के चाइनीज़ उपकरणों के इस्तेमाल ना होने का दावा किया है, कंपनी का कहना है कि यह स्वदेशी 5G तकनीक है। इस तरह जियो ने खुद को अमेरिका और चीन के 5G व्यापारिक युद्ध में बेहतर स्थिति में स्थापित कर लिया है।  

तेल से कमाए गए बेइंतहां पैसे के बावजूद रिलायंस का साम्राज्य बहुत बड़े कर्ज़ों के तले दबा हुआ था। इनसे निजात पाने के लिए कंपनी ने जियो टेलीकॉम नेटवर्क के पर जियो प्लेटफॉर्म का एक नया आधार बनाया। कुछ ही महीनों में जियो प्लेटफॉर्म का 30 से 32 फ़ीसदी हिस्से बेचकर रिलायंस ने क़रीब 22 बिलियन डॉलर इकट्ठे कर लिए, इस तरह कंपनी ने अपने कर्ज़ का एक बड़ा हिस्सा चुकाने की व्यवस्था कर ली। जिन कंपनियों ने जियो को वित्त दिया, उनके अलावा फ़ेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे बड़े तकनीकी खिलाड़ियों ने भी जियो में रणनीतिक निवेश किए हैं। फ़ेसबुक ने 5.7 बिलियन डॉलर, गूगल ने 4.5 बिलियन डॉलर और माइक्रोसॉफ्ट ने 2 बिलियन डॉलर का निवेश किया है। दूसरे 10 बिलियन डॉलर का निवेश वेंचर फंड्स के समूह ने किया है, इनमें अबू धाबी और सउदी अरब के संप्रभु निवेश भी शामिल हैं। 

लेकिन जियो अब भी अपने दावे के उलट कर्ज़ से मुक्त नहीं हो पाई है। लेकिन यह लेख रिलायंस साम्राज्य की वित्त जटिलताओं के बारे में नहीं है। यह उन कंपनियों के बारे में है, जिन्होंने जियो में निवेश किया और यह जियो की हम भारतीयों के बारे क्या योजनाएं हैं, इस बारे में है।

अगर हम रिलायंस जियो की बाज़ार योजनाओं को समझना चाहते हैं, तो हमें उसके तकनीकी साझेदारों का परीक्षण करना होगा, यही साझेदार जियो में रणनीतिक निवेश कर रहे हैं। उन सबने मान लिया है कि रिलायंस जियो ही भारतीय टेलीकॉम बिज़नेस में मुख्य खिलाड़ी है और अगर किसी बाहरी कंपनी को भारतीय उपभोक्ता या व्यापार तक पहुंचना है, तो उन्हें जियो के साथ खुद को जोड़ना होगा। इन कंपनियों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं में माल बेचना, वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस या 'उद्यमों को डिजिटल सेवाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और पेमेंट गेटवेज़ की सेवा', कुछ भी हो सकती हैं। कोरोना महामारी के आने के बाद लोगों के लिए इंटरनेट और भी ज़्यादा जरूरी हो गया है। यह चीज महामारी के बाद भी जारी रहने वाली है। हम सभी लोगों को अब जो पाइपलाइन जोड़ती है, उसे जियो नियंत्रित करता है। इसलिए सभी वैश्विक कंपनियां जियो में हिस्सेदारी बनाने के लिए लाइन में लगी हैं। 

साधारण शब्दों में कहा जाए तो जियो प्राथमिक संचार तंत्र का मालिक है, यही तंत्र सारे व्यापार और उपभोक्ताओं को जोड़ता है। जिस तरह रिलायंस ने तेल पर अपने एकाधिकार का इस्तेमाल कर चार सालों में खुद को सबसे बड़ा भारतीय टेलीकॉम खिलाड़ी बना लिया, उसी तरह कंपनी अब टेलीकॉम पर अपनी पकड़ का इस्तेमाल कर नए क्षेत्रों में एकाधिकार बनाने की कोशिश कर रही है, जो इस नेटवर्क के ऊपर अपनी सेवाएं देंगे। रिलायंस, 5G तकनीक युद्ध में अमेरिका के साथ खड़ी हो रही है, उसकी नज़र दूसरे देशों में 5G नेटवर्क बनाने पर भी है। बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक की सरकारों ने रिलायंस को अपने एकाधिकार की ताकत इस्तेमाल करने की छूट दी है। अब हम रिलायंस के खेल में फंस चुके हैं, जो पूरे भारतीय बाज़ार पर अपना नियंत्रण बनाने की कोशिश कर रही है। 

मोदी सरकार ने तो भारत के सबसे बड़े बैंक- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में भी जियो को पिछले दरवाजे से घुसने का रास्ता दे दिया है। यह एंट्री जियो पेमेंट बैंक के ज़रिए दी गई है, जिसने बैंक के साथ मिलकर 30:70 में ज्वाइंट वेंचर शुरू किया है। नतीज़तन रिलायंस को स्टेट बैंक के बहुत बड़े संसाधन इस्तेमाल करने का ज़रिया मिल गया है।

जो डिजिटल कंपनियां रिलायंस के साथ आई हैं, वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में भी हैं। लेकिन कई जगह एक दूसरे की मददगार भी हैं। गूगल, सर्च इंजन और जीमेल के ज़रिए व्यक्तिगत बाज़ारों में क्लाउड सर्विस होस्टिंग की मुख्य खिलाड़ी है। इसी स्पेस के ज़रिए कंपनी डिजिटल विज्ञापन राजस्व का एक बड़ा हिस्सा पाती है। फ़ेसबुक विज्ञापन राजस्व के मामले में गूगल से प्रतिस्पर्धा करती है, सोशल मीडिया स्पेस में बड़ी संख्या में विज्ञापन फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम से हासिल होते हैं। हालांकि फ़ेसबुक के पास व्हॉट्सऐप प्लेटफॉर्म जैसा बिज़नेस है, लेकिन अभी इसे किसी बड़े स्तर के बिज़नेस प्लेटफॉर्म में विकसित होना बाकी है। वहीं माइक्रोसॉफ्ट पर्सनल कंप्यूटर वाले स्पेस के सॉफ्टवेयर बाज़ार में बड़ा दखल रखती है। कंपनी ने बिज़नेस के लिए बड़े पैमाने पर क्लाउड सर्विस प्लेटफॉर्म भी विकसित किए हैं, जहां यह अमेजॉन से प्रतिस्पर्धा में है, जो इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनी है। गूगल, कंपनियों को क्लॉउड सर्विस देती है, लेकिन यह अमेजॉन और माइक्रोसॉफ्ट से कहीं पीछे है।  

इन सभी कंपनियों को अपने उपभोक्ताओं या व्यापार तक पहुंचने के लिए टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है। जैसे-जैसे यह कंपनियां वित्त और पेमेंट सिस्टम जैसे नए क्षेत्रों में पहुंचने की कोशिश करेंगी, तब उन्हें न केवल टेक इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी, बल्कि उन्हें एक ऐसे तरीके की जरूरत होगी, जिससे देश के नियामक ढांचे के साथ मोलभाव किया जाए, यह नियामक ढांचा उपभोक्ताओं और देश की संप्रभुता की रक्षा करता है। यहीं रिलायंस दोहरा फ़ायदा करवाती है। उसके पास न केवल एक बड़ा टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर है, बल्कि देश के नियामक ढांचे को झुकाने की भी ताकत है। यहीं, गूगल पे के साथ गूगल और फ़ेसबुक अपने तथाकथित डिजिटल मनी के ज़रिए, रिलायंस के मौजूदा वित्तीय ढांचे का इस्तेमाल करते हुए भारतीय बाज़ार में घुसने के लिए एक पिछला दरवाजा पा सकती हैं।

खुदरा क्षेत्र में रिलायंस के साझेदार उसके प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। यहां उसका मुकाबला अमेजॉन और वॉलमार्ट-फ्लिपकॉर्ट से है। यह काफ़ी भीड़भाड़ वाला इलाका है, कई दूसरे खिलाड़ी भी ई-कॉमर्स में पहुंच बना रहे हैं। यहां भी रिलायंस की सोच बिलकुल सीधी नज़र आती है- बड़े पैमाने पर आर्थिक ढांचा बनाओ और उत्पादन करो, कम कीमत रखकर दूसरे प्रतिस्पर्धियों को घाटा करवाओ, भले ही कुछ वक़्त के लिए इसमें खुद का घाटा भी हो जाए। जैसे ही प्रतिस्पर्धी हार माने, तब कीमतों को बढ़ाया जा सकता है। बिलकुल वैसे ही, जैसे टेलीकॉम सेक्टर में किया गया। धीरूभाई अंबानी के ज़माने से ही यह रिलायंस समूह की सफल रणनीति रही है। इसके लिए भारी जेब, मददग़ार सरकार और नियंत्रणकर्ताओं की जरूरत होती है। यहां रिलायंस को बीजेपी और कांग्रेस दोनों से दोहरा फ़ायदा है।

रिलायंस के गेम प्लान में इस बार एक ऐसे 5G नेटवर्क के निर्माण की बात नयी है, जिसे पूरी तरह देश में ही बनाया गया है। लेकिन इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि रिलायंस के पास डिजिटल नेटवर्क के लिए जरूरी तकनीक को विकसित करने क क्षमता है। पूरे 5G नेटवर्क को बनाने की तो बात ही दूर है। यहां तक कि पेट्रोलियम सेक्टर में भी कंपनी ने तकनीक को खरीदा है, शायद ही कभी रिलायंस ने खुद की तकनीक का विकास किया हो। रिलायंस का पूरा 4G नेटवर्क सेमसंग ने बनाया था। सेमसंग एक साउथ कोरियाई कंपनी है, जो 5G नेटवर्क के लिए हुआवेई से प्रतिस्पर्धा में है। जियो में हुए हालिया निवेशों में क्वालकॉम भी शामिल है। क्वालकॉम वायरलैस चिप्स बनाने के धंधे में हुआवेई की प्रतिस्पर्धी कंपनी है। हालांकि इसका जियो में निवेश बहुत छोटा है, लेकिन रिलायंस की देशी तकनीक में सैमसंग और क्वालकॉम कैसे शामिल हैं। क्वालकॉम ने रिलायंस में 97 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। 

हुआवेई, क्वालकॉम और सैमसंग की 5G बाज़ार में पेटेंट को लेकर स्थिति मजबूत है। अगर रिलायंस ने कुछ छोटे खिलाड़ियों को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के लिए अपने साथ ना मिलाया हो, तो रिलायंस के पास पेटेंट को लेकर कुछ भी नहीं है। रिलायंस की ताकत बड़े पैमाने पर उत्पादन है, ऐसा कर कंपनी उस स्तर पर अपने उत्पादन को पहुंचाती है, जहां प्रतिस्पर्धी मुकाबला ही नहीं कर पाते। लेकिन तकनीक का व्यापार पूरी तरह अलग है। यह नई तकनीकों के विकास और ऐसी जरूरतों को पैदा करने के बारे में है, जो अब तक मौजूद ही नहीं हैं। यह जरूरतें तकनीक के ज़रिए पैदा की जाती हैं। पर्सनल कंप्यूटर, मोबाइल और सर्च इंजन के बारे में सोचिए। इन सभी के मामले में बाज़ार ने तकनीक का पीछा किया और नए सिरे से खुद को बनाया। उत्पादन की मात्रा बाद में आती है। तकनीक का इस्तेमाल कर बड़ी मात्रा का उत्पादन करने की मुख्य रणनीति अपनाने वाली रिलायंस ने कभी नए सिरे से तकनीक को विकसित नहीं किया।

रिलायंस, मोबाइल नेटवर्किंग में अपने प्रभाव का इस्तेमाल 5G में अकेले खिलाड़ी के तौर पर उभरने के लिए कर रही है। BSNL कई साल पहले डूब गया है, अब वोडाफोन और आइडिया के भी यही हाल हैं। भारती टेलीकॉम पर अब कर्ज और लाइसेंस फीस का बहुत दबाव है, लाइसेंस शुल्क को पहले कंपनी ने नहीं चुकाया था। अब उसे चुकाने के बाद 5G के लिए लगने वाली लाइसेंस फीस दे पाना कंपनी के लिए बहुत मुश्किल होगा। चीन के बाद भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल बाज़ार है। 5G में एकाधिकार के ज़रिए रिलायंस अमेरिका, दक्षिण कोरिया और दूसरे देशों के साथ मिलकर ह्यूवेई और दूसरे चाइनीज़ उपकरण आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ़ वैश्विक चुनौती में खड़ा होना चाहती है। रिलायंस दुनिया को यही संदेश भेज रही है: हमारे साथ आइए, हम आपको जीत दिलाएंगे, लेकिन वह जीत हमारे झंडे तले होगी।

क्या यह सफल हो सकता है? भविष्य का अनुमान लगाना बेवकूफी है, लेकिन यह बदलाव रिलायंस की उम्मीद से कहीं ज़्यादा जटिल है। लेकिन अगर वे असफल हो भी जाते हैं, तो भी वे अपनी असफलता से पैसा बना लेंगे। आख़िर रिलायंस ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बाज़ार को अपने कब्ज़े में कर रखा है। यही चीज हमारी कई सरकारों ने अंबानी को तोहफे के तौर पर दी है। अगर कंपनी देशी 5G तकनीक विकसित नहीं भी कर पाती है, तो भी यह तोहफ़ा फ़ायदा देता रहेगा।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

From Atmanirbhar Bharat to Reliance India

5G
Reliance Industries
Reliance Jio
Jio Platforms
Facebook
google
Qualcomm
Huawei
Samsung
BSNL
Airtel
Vodafone Idea
Monopolies

Related Stories

विज्ञापन में फ़ायदा पहुंचाने का एल्गोरिदम : फ़ेसबुक ने विपक्षियों की तुलना में "बीजेपी से लिए कम पैसे"  

बीजेपी के चुनावी अभियान में नियमों को अनदेखा कर जमकर हुआ फेसबुक का इस्तेमाल

फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये

कानून का उल्लंघन कर फेसबुक ने चुनावी प्रचार में भाजपा की मदद की?

भारती एयटेल में एक अरब डॉलर का निवेश करेगी गूगल, 1.28 फीसदी हिस्सेदारी भी खरीदेगी

मोदी का मेक-इन-इंडिया बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा श्रमिकों के शोषण का दूसरा नाम

डेटा निजता विधेयक: हमारे डेटा के बाजारीकरण और निजता के अधिकार को कमज़ोर करने का खेल

फ़ेसबुक/मेटा के भीतर गहरी सड़न: क्या कुछ किया जा सकता है?

हेट स्पीच और भ्रामक सूचनाओं पर फेसबुक कार्रवाई क्यों नहीं करता?

एक व्हिसलब्लोअर की जुबानी: फेसबुक का एल्गोरिद्म कैसे नफ़रती और ज़हरीली सामग्री को बढ़ावा देता है


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License