NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पूछता है युवा- कहां गई हमारी नौकरी?
अगर काम चाहने वाले शख़्स को काम नहीं मिल रहा है तो सरकार होने या सरकार में रहने का कोई अर्थ नहीं बनता।
अजय कुमार
17 Sep 2021
पूछता है युवा- कहां गई हमारी नौकरी?

केवल पैसे और पूंजी की नजर से देश को समझने वाले लोग अक्सर यह कहते हुए पाए जाते हैं कि बिजनेस करना सरकार का काम नहीं है। इन लोगों की कठपुतली बनकर चलने वाली सरकारें भी यही नीति बनाकर चलने लगती हैं कि बिजनेस करना सरकार का काम नहीं है। इसका सबसे बड़ा असर तो यह हुआ है कि भारत में बेरोजगारी की अंधेरी गली में भारत की बहुत बड़ी आबादी तबाह हो रही है।

जिस देश की नौजवानी काम करने की बजाय बेकार रहे, वह प्रधानमंत्री के जन्मदिन का हिस्सा बने तब यह शर्मिंदगी की बात होती लेकिन अपने जीवन के साथ हो रहे इस नाइंसाफी के खिलाफ भारत के बेरोजगारों ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन के अवसर को बेरोजगारी दिवस के तौर पर बदल दिया है।

सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए ये लोग सरकार से पूछ रहे हैं कि हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा कहां गया? नौकरी देने की बजाय पिछले 7 सालों में सरकार ने नौकरियों के तकरीबन 15 करोड़ अवसर खत्म कर दिए। ऐसी सरकारी नीतियों का क्या फायदा?

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक पढ़ लिखकर जिन्होंने ग्रेजुएट की डिग्री हासिल कर ली है, जिनकी उम्र 20 से 24 साल की है, वहां भारत में बेरोजगारी दर सबसे अधिक है। साल 2017 में इस कैटेगरी में तकरीबन 42 फ़ीसदी बेरोजगार थे। साल 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर तकरीबन 55 फ़ीसदी हो गया। साल 2019 में तो इसमें और अधिक इजाफा हुआ है तकरीबन 63 फ़ीसदी बेरोजगार हैं।

अगर बेरोजगारी दर के हिसाब से देखें तो भी सबसे अधिक बेरोजगारी दर ग्रेजुएट डिग्री हासिल कर लिए लोगों के बीच है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के जून 2019 से लेकर जून 2020 तक के बीच में कराए गए पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक भारत में ग्रेजुएट डिग्री हासिल करने के बाद वाले लोगों के बीच 17.2 फ़ीसदी की दर से सबसे अधिक बेरोजगारी दर है।

यानी अगर ठीक-ठाक नौकरी पाने की शर्त पढ़ना लिखना है तो पढ़ लिख कर भी सरकारी नीतियों की वजह से नौजवानों की बहुत बड़ी आबादी सड़कों पर भटक रही है। इन्हें नौकरी नहीं मिल रही।

ऐसी बातें सुनने पर आप में से बहुत लोग कहते हैं कि यह लोग काबिल नहीं होते हैं। परीक्षा नहीं पास कर पाते होंगे। इसलिए इन्हें नौकरी नहीं मिलती होगी। लेकिन उनकी समझ गलत है। ऐसा कहते हुए वे गलत जगह उंगली उठा रहे होते हैं। दरअसल हुआ यह है कि सरकार ने नौकरियों का दरवाजा ही बंद कर दिया है। भारत में केंद्र और राज्यों दोनों से मिलने वाली सरकारी नौकरियों को मिला दिया जाए तो कुल नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी मुश्किल से 3% को भी पार नहीं करती है। अगर इनके सबके साथ उन प्राइवेट क्षेत्रों को जोड़ दिया जाए जहां पर महीने में सैलरी मिलती है तो कुल नौकरियों में इन सब की हिस्सेदारी महज 6 फ़ीसदी बैठती है। जुलाई में डीए बढ़ने के वक्त बताया गया था कि 40 लाख पदों की तुलना में केंद्रीय कर्मचारियों की तादाद 31.42 लाख है। 2016 के के सरकारी आंकड़े के अनुसार, केवल 11.30 लाख लोग केंद्रीय सरकारी कंपनियों में हैं।

नौकरी लेने के नाम पर इतना छोटा दरवाजा होने के चलते कोचिंग सेंटरों की बाढ़ आई है। बच्चे पैसा फूंकते है। लेकिन हाथ में कुछ भी नहीं आता है। सरकार चुनाव के नाम पर नौकरियों का जुमला फेंकती है लेकिन नौकरी के नाम पर देती कुछ भी नहीं है। साल 2019 के चुनाव के ठीक पहले रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड ने ग्रुप डी के पदों के लिए तकरीबन एक लाख से अधिक नौकरियों की भर्ती निकाली। तकरीबन ढाई करोड़ आवेदन रजिस्टर्ड हुए। लेकिन ढाई साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस पद के लिए परीक्षा नहीं लिया गया है।

इस जानकारी के बाद कोई चौंक कर यह पूछ सकता है कि जब महीने में सैलरी पाने वाली नौकरियां केवल 6 फ़ीसदी हैं तो बाकी नौकरियां कहां पर मिलती है? बाकी सारी नौकरियां असंगठित क्षेत्र की हैं। जहां का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में काम करता है।

मसलन, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर महेश व्यास रोजगार के मुद्दे पर कई अखबारों और मीडिया में लिखते बोलते रहते है। उनका कहना है कि भारत की कुल आबादी में हाल फिलहाल 40 करोड़ आबादी काम कर रही है। इसी 40 करोड़ आबादी की कमाई पर भारत की शेष आबादी का जीवन टिका हुआ है। इसमें से तकरीबन 15 करोड़ आबादी कृषि क्षेत्र में काम करती हैं। कृषि क्षेत्र में काम करने वाली आबादी ऐसी नहीं है कि सबके पास खेत हो। सभी खेत के मालिक हों। सभी किसान हों। इनमें से कुछ ही लोगों के पास खेत है। बाकी सब खेतिहर मजदूर हैं। जो दूसरे की जमीन पर काम करते हैं। जिन्हें हर रोज काम नहीं मिलता है। तभी काम मिलता है, जब खेत को मजदूरों की जरूरत होती है। कृषि क्षेत्र में कमाई की कहानी यह है कि साल 2019 में  प्रति व्यक्ति प्रतिदिन जी तोड़ मेहनत करने के बाद महज 27 रुपये कमाया। (NSSO के आंकड़े)

समय के साथ रोजगार की संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। लेकिन आंकड़े कहते हैं कि इसका उलटा हुआ है। आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि साल 1980 से लेकर 1990 तक सालाना रोजगार की वृद्धि दर 2% रही। साल 1990 से लेकर साल 2000 तक सलाना रोजगार की वृद्धि दर घटकर 1.7 फ़ीसदी रही। साल 2000 से लेकर साल 2010 तक रोजगार की वृद्धि दर घटकर 1.3 फ़ीसदी हो गई। साल 2010 से लेकर साल 2020 तक रोजगार की वृद्धि दर में और अधिक कमी आई और यह घटकर 0.2 फ़ीसदी तक पहुंच चुकी है। आजादी के बाद समय के साथ रोजगार की संख्या में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। लेकिन पिछले 40 साल का इतिहास बताता है कि रोजगार बढ़ने की दर बहुत अधिक कम हुई है।

अभी हाल फिलहाल की स्थिति देखें तो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के आंकड़ों के मुताबिक जून 2021 में बेरोजगारी दर 9.7 फ़ीसदी थी। जुलाई में इसमें थोड़ा सा सुधार हुआ और यह 6.96 फीसदी पर पहुंच गई। लेकिन फिर से इसमें गिरावट आई। अब अगस्त की बेरोजगारी दर 8.32 फ़ीसदी है। केवल जुलाई से अगस्त महीने के दौरान केवल 1 महीने में तकरीबन 15 लाख से अधिक लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी है।

इस तरह से देखा जाए तो सरकारी नौकरियों का दरवाजा बंद कर दिया गया है। सरकारी नौकरियों से अलग प्राइवेट क्षेत्र में नौकरी कराने के नाम पर शोषण किया जाता है। कृषि और कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्र में मजदूरी करके काम करने वाले लोगों की जिंदगी नरक से भी बदतर है। ऐसे में अगर देश के नौजवान मिलकर प्रधानमंत्री के जन्मदिन को बेरोजगार दिवस में बदल दे रहे हैं तो कुछ गलत नहीं कर रहे। सरकार चाहे पूंजीवादी हो या समाजवादी। सरकारी कंपनियां रखकर देश चलाएं या सरकारी कंपनियां बेचकर। सरकार होने के नाते उसकी हर जिम्मेदारी बनती है कि उसके देश में रहने वाला हर एक नागरिक एक अच्छी जिंदगी की चाहत में अगर काम की तलाश करें तो उसे काम मिले। अगर उसे काम नहीं मिल रहा है तो सरकार होने या सरकार में रहने का कोई अर्थ नहीं बनता।

National Unemployment Day
Narendra Modi Birthday
unemployment
social media campaign
Modi government
Narendra modi
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • Hijab controversy
    भाषा
    हिजाब विवाद: बेंगलुरु के कॉलेज ने सिख लड़की को पगड़ी हटाने को कहा
    24 Feb 2022
    सूत्रों के अनुसार, लड़की के परिवार का कहना है कि उनकी बेटी पगड़ी नहीं हटायेगी और वे कानूनी राय ले रहे हैं, क्योंकि उच्च न्यायालय और सरकार के आदेश में सिख पगड़ी का उल्लेख नहीं है।
  • up elections
    असद रिज़वी
    लखनऊ में रोज़गार, महंगाई, सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन रहे मतदाताओं के लिए बड़े मुद्दे
    24 Feb 2022
    लखनऊ में मतदाओं ने अलग-अलग मुद्दों को लेकर वोट डाले। सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली बड़ा मुद्दा था। वहीं कोविड-19 प्रबंधन, कोविड-19 मुफ्त टीका,  मुफ्त अनाज वितरण पर लोगों की अलग-अलग…
  • M.G. Devasahayam
    सतीश भारतीय
    लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्याप्त खामियों को उजाकर करती एम.जी देवसहायम की किताब ‘‘चुनावी लोकतंत्र‘‘
    24 Feb 2022
    ‘‘चुनावी लोकतंत्र?‘‘ किताब बताती है कि कैसे चुनावी प्रक्रियाओं की सत्यता को नष्ट करने के व्यवस्थित प्रयासों में तेजी आयी है और कैसे इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
  • Salempur
    विजय विनीत
    यूपी इलेक्शनः सलेमपुर में इस बार नहीं है मोदी लहर, मुकाबला मंडल-कमंडल के बीच होगा 
    24 Feb 2022
    देवरिया जिले की सलेमपुर सीट पर शहर और गावों के वोटर बंटे हुए नजर आ रहे हैं। कोविड के दौर में योगी सरकार के दावे अपनी जगह है, लेकिन लोगों को याद है कि ऑक्सीजन की कमी और इलाज के अभाव में न जाने कितनों…
  • Inequality
    प्रभात पटनायक
    आर्थिक असमानता: पूंजीवाद बनाम समाजवाद
    24 Feb 2022
    पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के चलते पैदा हुई असमानता मानव इतिहास में अब तक पैदा हुई किसी भी असमानता के मुकाबले सबसे अधिक गहरी असमानता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License