NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
प्रवासी मज़दूरों को आर्थिक एवं सामाजिक जोखिम से बाहर निकालना ज़रूरी
स्वैच्छिक संस्था समर्थन द्वारा आयोजित वेबिनार में देश भर से 40 शिक्षाविद्, शोधकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए और उन्होंने माना कि एक ऐसी समन्वित नीति व कार्यवाही की तत्काल आवश्यकता है, जो इन्हें घर लौटने में मदद और घर पहुंचने के उपरांत पुनर्वास की सुविधा प्रदान कर सके।
राजु कुमार
29 May 2020
प्रवासी मज़दूर
Image courtesy: Hindustan Times

कोविड-19 से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के दूसरे चरण के बाद प्रवासी मज़दूरों की समस्या लगातार बढ़ती गई है। देश भर के करोड़ों प्रवासी मज़दूर अपने परिवार सहित आर्थिक एवं सामाजिक जोखिम से घिर गए हैं। उनकी समस्याओं और मुद्दों को समझने में केन्द्र एवं राज्य सरकारें विफल रही हैं। यही वजह है कि उनकी राहत के लिए अभी तक कोई पुख्ता गाइडलाइंस नहीं आ पाई है।

उक्त बातें स्वैच्छिक संस्था समर्थन द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वेबिनार में शामिल वक्ताओं ने कही। देश भर में प्रवासी मज़दूरों के संकट के कारणों को समझने के लिए वेबिनार में देश भर से 40 शिक्षाविद्, शोधकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। समर्थन के डॉ. योगेश कुमार ने कहा कि इस विचार-विमर्श में यह स्पष्ट हो गया कि केन्द्र या राज्यों में किसी भी सरकारी प्राधिकरण को प्रवासी मज़दूरों के पैमाने और प्रकार की कोई व्यापक समझ नहीं है, विशेष रूप से उन मज़दूरों की जो असुरक्षित और अनौपचारिक रोजगार और व्यवसायों में कार्यरत हैं।

इस मौके पर जेएनयू के भूतपूर्व प्रोफेसर अमिताभ कुंडू, जेएनयू के भूतपूर्व प्रोफेसर व नेशनल कमीशन फॉर एन्टरप्राईज़ इन द अनआर्गनाइज्ड सेक्टर के सदस्य प्रो. रवि श्रीवास्तव, समर्थन के निदेशक डॉ. योगेश कुमार, प्रिया, नई दिल्ली के अध्यक्ष व यूनेस्को चेयर डॉ राजेश टंडन, एसपीएआरके की निदेशक व स्लम ड्वेलर्स इंटरनेशनल, मुंबई की अध्यक्षा सुश्री शीला पटेल, उन्नति, अहमदाबाद के निदेशक बिनोय आचार्य, सीवायएसडी, भुवनेश्वर के सह-संस्थापक व भूतपूर्व सूचना आयुक्त, ओडिसा जगदानंद और सहभागी शिक्षण केन्द्र, लखनऊ के निदेशक अशोक सिंह ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि प्रवासी मज़दूर हताश, क्रोधित, चिंतित और थके हुए हैं। उन्हें अगले 3-4 महीने की अल्पावधि के लिए त्वरित सहयोग की आवश्यकता है। आने वाले समय में इन्हें आजीविका, कौशल और भावनात्मक प्रोत्साहन देने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। एक ऐसी समन्वित नीति व कार्यवाही की तत्काल आवश्यकता है, जो इन्हें घर लौटने में मदद और घर पहुंचने के उपरांत पुनर्वास की सुविधा प्रदान कर सके। इस पर सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए।

चर्चा में यह बात सामने आई कि घर से अभी भी दूर फंसे लाखों प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों को सुरक्षा और सावधानी के साथ उन्हें घर पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा समन्वित और तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है। घर लौटने के इच्छुक सभी प्रवासियों की यात्रा व्यवस्था सीमित रेलगाड़ियों के कारण नहीं हो पा रही है। दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत, पुणे और मुंबई से आ रही सूचनाओं के अनुसार प्रवासियों की भीड़ पार्कों और सार्वजनिक मैदानों में एक साथ जमा है। वे भ्रमित व चिंतित हैं और अपनी टिकिट, यात्रा के समय और किस स्टेशन से गाड़ी में बैठना है जैसी जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अधिकांश प्रवासियों का मोबाइल रिचार्ज ख़त्म हो चुका है और डेटा, एसएमएस या कॉल का प्रयोग करने के लिए ये पैसे देने में भी असमर्थ हैं। विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग, विरोधाभासी और भ्रमित करने वाले नियम और आदेश, घर लौटने वाले प्रवासियों के लिए ज्यादा बाधा बन रहे हैं।

एनएसएस के नवीनतम अनुमान और 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 5-6 करोड़ प्रवासी मज़दूर लॉकडाउन की वजह से विभिन्न आर्थिक केंद्रों से घर की ओर भागने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उनकी आजीविका अचानक से रुक गई है। उनके पास रहने और किराये का भुगतान करने या खुद को और अपने परिवार को खिलाने के लिए कोई आय नहीं है। पिछले एक दशक के पैटर्न से पता चला है कि अधिकांश श्रमिक पूर्वी और उत्तरी भारत के आर्थिक रूप से गरीब जिलों से देश के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में आजीविका के अवसरों के लिए पलायन कर रहे हैं। उत्तर और पूर्व के राज्यों में निरंतर उच्च प्रजनन दर देश के पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में युवा श्रमिकों की आपूर्ति कर रही है, जो मुख्यतः अनौपचारिक, असुरक्षित और कम वेतन वाली नौकरियों और व्यवसायों में कार्यरत हैं।

यह सरकारी एजेंसियों द्वारा किसी भी समन्वित और साक्ष्य-आधारित प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति का ही नतीजा है कि हजारों लोग मुख्य राजमार्गों से बचते हुए, अभी भी पैदल चल रहे हैं, ताकि उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार या परेशान न किया जाए। पिछले 5-6 सप्ताह में उनके सामने आने वाली परेशानियों और उत्पीड़न ने उन्हें किसी भी सरकारी आदेश, कार्यवाही या सहयोग के वादे को लेकर संदेहास्पद कर दिया है। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार की रिपोर्ट्स को संज्ञान में लेते हुए केन्द्र सरकार को देश के लाखों प्रवासी कामगारों के संकट से निपटने के लिए कार्ययोजना बनाने के लिए कहा है।

अपने पैतृक गांवों और राज्यों में प्रवासी मज़दूरों के आगमन की रिपोर्ट और प्रारंभिक अध्ययन भी व्यथित कर रहे हैं। प्रवासी मज़दूरों की वापसी पर क्वारंटाइन की अनिवार्यता को कुछ राज्यों ने समाप्त कर दिया है, क्योंकि यहां की राज्य सरकारों ने अब उन्हें अपने घरों में ही क्वारंटाइन करने के लिए कहा है। पर्याप्त पानी और शौचालय सुविधाओं के अभाव के साथ-साथ क्वारंटाइन केन्द्रों में प्रवासियों की भीड़ देखी जा सकती है। ऐसी स्थिति में यहां प्रवासी परिवारों की महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष व्यवस्था न होने के कारण संकट और हिंसा का खतरा है।

समर्थन ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों की 143 ग्राम पंचायतों में लौटने वाले 2204 प्रवासी मज़दूरों के साथ एक सर्वेक्षण किया। इसमें पाया कि लगभग एक तिहाई लौटे हुए प्रवासी अपने घरों में पानी और शौचालय की सुविधा से वंचित हैं। लगभग 70 फीसदी अपने परिवार को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं है। अधिकांश प्रवासियों के पास निर्माण कार्य संबंधी अनुभव और कौशल है, जबकि केवल 15  प्रतिशत को कृषि संबंधी कार्यों की जानकारी है। इस परिस्थिति में वे अपना और अपने परिवार का पेट कैसे भर पाएंगे? सर्वे से ज्ञात हुआ है कि इनके पास घर लौटने के बाद कोई पैसा भी नहीं बचा है। मनरेगा योजना केवल कुछ प्रवासियों के लिए एक अस्थायी विकल्प हो सकती है, क्योंकि लगभग एक तिहाई के पास जॉब कार्ड नहीं हैं। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Lockdown
migrants
Migrant workers
Coronavirus
COVID-19
Hunger Crisis
poverty
State Government
Central Government
Narendra modi

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

मनरेगा: ग्रामीण विकास मंत्रालय की उदासीनता का दंश झेलते मज़दूर, रुकी 4060 करोड़ की मज़दूरी

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • cartoon
    आज का कार्टून
    किसान आंदोलन का एक साल: ...अब MSP का पहाड़ तोड़ना बाक़ी है
    26 Nov 2021
    रस्ता हो जाता है परबत सागर में भी, जब जज़्बा होता है, जब हिम्मत होती है।
  • Police Turkey fired tear gas to stop female protesters
    एपी
    तुर्की में पुलिस ने महिला प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए दागे आंसू गैस के गोले
    26 Nov 2021
    महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के उन्मूलन के लिए 25 नवंबर को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय दिवस के उपलक्ष्य में इस्तांबुल की मुख्य सड़क इस्तिकलाल पर मार्च निकाला गया।
  • Siberia
    एपी
    रूस के साइबेरिया में कोयला खदान में आग लगने से 52 लोगों की मौत : रूसी मीडिया
    26 Nov 2021
    दक्षिण-पश्चिमी साइबेरिया के केमेरोवो क्षेत्र में घटना के वक्त लिट्सव्याजहन्या खदान में कुल 285 लोग थे और ‘वेंटिलेशन सिस्टम’ के माध्यम से खदान में धुआं जल्दी ही भर गया। इससे पहले, बचाव दल ने 239…
  • constitution
    भाषा
    संवैधानिक संस्थाओं पर निरंतर आघात कर रही भाजपा सरकार: कांग्रेस
    26 Nov 2021
    कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों के सांसद आज संविधान दिवस के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए।
  • Akhilesh Yadav
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    उत्तर प्रदेश में सपा-आरएलडी के गठबंधन के बाद बीजेपी को नहीं मिलेगा स्पष्ट बहुमत - विशेषज्ञों का दावा
    26 Nov 2021
    अखिलेश और जयंत की साझेदारी से जाट और मुस्लिम क़रीब आ सकते हैं और इससे बीजेपी का संतुलन ख़राब हो सकता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License