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"ना ओला ना ऊबर, सरकार अपने हाथ में ले नियंत्रण- तमिलनाडु के ऑटो चालकों की मांग
महामारी के दौरान यात्रियों की संख्या में कमी, ईंधन की क़ीमतों में इज़ाफ़े और 2013 से मीटर की दरों में बदलाव ना होने से ऑटो चालक बहुत कठिन स्थिति में फंस गए हैं।
श्रुति एमडी
30 Jul 2021
चेन्नई में 7 जुलाई को ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन। तस्वीर साभार: CITU, तमिलनाडु
चेन्नई में 7 जुलाई को ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन। तस्वीर साभार: CITU, तमिलनाडु

तमिलनाडु में नए मामलों में लगातार कमी आ रही है, इस बीच सरकार ने भी कोविड लॉकडाउन के तहत लगाए गए प्रतिबंधों में बहुत छूट दे दी है। इसके बावजूद राज्य में ऑटो रिक्शा वालों को यात्री नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि स्कूल, कॉलेज और कई सारे उद्योग-धंधों का अब भी खुलना बाकी रह गया है।

यात्रियों की संख्या में आई कमी की वज़ह हाल में महिलाओं के लिए मुफ़्त बस यात्रा की घोषणा भी है। हाल में चुनी गई डीएमके सरकार द्वारा सबसे पहले लाई गई योजनाओं में महिलाओं के लिए मुफ़्त बस यात्रा शामिल है। इस कदम की बड़े पैमाने पर सराहना हो रही है। लेकिन सरकार ने इस फ़ैसले का ऑटो चालकों पर प्रभाव का ध्यान नहीं रखा। 

महिलाएं ऑटो यात्रियों का एक बड़ा हिस्सा होती है। लेकिन अब मुफ़्त में बस यात्रा की व्यवस्था होने से इस वर्ग का एक बड़ा हिस्सा ऑटो रिक्शा के बजाए सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करेगा। 

बढ़ी हुई ईंधन की कीमतों और महामारी में यात्रियों की कमी के बाद, ऑटो चालकों के लिए राज्य सरकार का ताजा फ़ैसला उनके ताबूत में आखिरी कील साबित हुई है। कई ऑटो रिक्शा चालक अब इस पेशे को छोड़ रहे हैं और दूसरे काम को खोज रहे हैं।

हालांकि ऑटो रिक्शा यूनियन के पास इस स्थिति से निपटने के लिए एक प्रस्ताव है। उनकी मांग है कि ओला या ऊबर जैसे निजी खिलाड़ियों के बजाए सरकार को ड्राइवरों को यात्रियों से संपर्क करवाने की व्यवस्था का प्रभार ले लेना चाहिए। इस तरह सरकार लंबे वक़्त से काम से दूर रह रहे ऑटो चालकों को मुआवज़ा उपलब्ध करवा सकती है। 

2013 से नहीं हुआ किराये में फेरबदल

पिछली बार तमिलनाडु में 2013 में ऑटो रिक्शा मीटर रेट बदला गया था। तब न्यूनतम किराया शुरुआती 1।8 किलोमीटर के लिए 25 रुपये तय किया गया था। इसके बाद हर किलोमीटर के लिए 12 रुपये लगना था। 2013 में पेट्रोल 70-75 रुपये लीटर हुआ करता था, अब यह 100 के पार जा चुका है। लेकिन सरकार ने इन आठ सालों में मीटर किराये में इज़ाफा नहीं किया। 

तमिलनाडु ऑटो रिक्शा वर्कर्स फेडरेशन 45 संघों का एक साझा मंच है। मंच की मांग है कि शुरुआती 1.5 किलोमीटर के लिए किराया 40 रुपये और उसके बाद हर किलोमीटर के लिए 20 रुपये तय किया जाए। 

फेडरेशन के अध्यक्ष बालासुब्रमण्यम ने न्यूज़क्लिक से कहा, "2016 में मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को मीटर किराये को फिर से तय करने का निर्देश दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने इस निर्देश से उदासीनता रखी और कोई कार्रवाई नहीं की।"

उन्होंने आगे कहा, "ऑटो यात्रियों के लिए लगने वाले भाड़े को महंगाई, पेट्रोल की बढ़ती कीमतों, आबादी, शहर की क्षमता आदि के हिसाब से बदलना चाहिए, लेकिन राज्य सरकार के पास किराये में बदलाव के लिए ऐसे कोई सूचकांक ही नहीं हैं।"

मंच ने सुझाव दिया है कि ऑटो के लिए GPS समर्थित भाड़ा दर तय की जानी चाहिए, ताकि पेट्रोल की कीमतों और किराये में होने वाले बदलाव शामिल किया जा सके। 

हम ओला और ऊबर नहीं चाहते

चेन्नई के ऑटो रिक्शा चालकों के खिलाफ़ सामान्यत: यह शिकायत की जाती है कि वे मीटर के हिसाब से तय किए गए दर पर काम नहीं करते। ऑटो चालक अपने जवाब में कहते हैं कि मीटर की दर ईंधन के खर्च के हिसाब से नहीं है, ऐसे में यह उनकी रोजाना की मांग को पूरा नहीं कर पाता। 

बता दें पिछले दो सालों में दिल्ली और मुंबई में ऑटो किराये में संशोधन हो चुका है। 

ओला या ऊबर से ऑटो रिक्शा लेने में चालक को सिर्फ मीटर का किराया मिलता है, जो तय की गई दूरी के हिसाब से निश्चित रहता है। बाकी का पैसा निजी कंपनियों के हाथ में जाता है। बताया जाता है कि यह कुल किराये का करीब़ 30 फ़ीसदी होता है। इसलिए ऑटो चालकों की शिकायत रहती है कि इन कंपनियों के साथ काम करने में, सीधे यात्रियों के साथ मोलभाव कर हासिल होने वाले किराये से बहुत कम पैसा मिल पाता है। 

निजी खिलाड़ियों के स्वामित्व वाले इन फोन एप्लीकेशन में मांग के हिसाब से भी किराया बढ़ जाता है, खासकर 'सबसे ज़्यादा मांग वाले घंटो (पीक अवर्स)', त्योहार के दिनों और शहर से बाहर जाने की स्थिति में ऐसा होता है। लेकिन चालकों को इस बढ़ी हुई कीमत का सिर्फ़ 10 से 20 फ़ीसदी ही मिल पाता है। 

बालासुब्रमण्यम कहते हैं, "शुरुआत में ओला और ऊबर ने अच्छा प्रोत्साहन दिया। उन्होंने हमें एंड्रॉयड फोन तक दिए। लेकिन अब उन्होंने पूरे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है और अपने हिसाब से नियम तय कर रहे हैं। इसलिए हम सरकार से यात्रियों को चालकों के साथ जोड़ने की प्रक्रिया का प्रभार लेने की अपील कर रहे हैं। अगर राज्य कुल भुगतान का 2 फ़ीसदी हिस्सा भी ले लेता है, तो भी यह राज्य और ऑटो चालकों के लिए मुनाफ़े की स्थिति होगी।"

उन्होंने आगे कहा, "अगर यह वाकई जनता की मित्रवत् सरकार है, तो यह सरकार मोटर कामग़ारों को गंभीरता से लेगी। हम कृषि कामग़ारों के बाद राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं।"

"पूरी तरह हुए बर्बाद"

हालांकि तमिलनाडु सरकार ने बीमा कंपनियों को महामारी के दौरान कर्ज़ पर उठाए गए ऑटो के ऊपर 6 महीने तक EMI ना लेने का निर्देश दिया था। लेकिन बैंक इसकी अनुमति नहीं दे रहे हैं। CITU औरे दूसरे मज़दूर संघों ने तो इस अवधि को दिसंबर, 2020 तक बढ़ाने की मांग की थी। 

लेकिन ऑटो चालकों को किस्त जमा करने के लिए मजबूर किया गया। अगर वे किस्त जमा नहीं कर पाए तो बैंकों ने उनके ऊपर जुर्माना लगाया। 

तिेरुनेलवेली में 7 जुलाई को ईंधन की बढ़ी हुई कीमतों के खिलाफ़ प्रदर्शन। तस्वीर साभार: CITU, तमिलनाडु

पिछले कुछ महीनों में पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ़ राज्य में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। ऑटो चालकों ने बड़ी संख्या में इन प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है और अपने दुख को व्यक्त किया है। 

दक्षिण चेन्नई में ऐसे ही एक प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले एक ऑटो चालक ने बताया, "कई महीनों तक बिना काम के रहने के चलते हम पहले ही अपने घर की सभी चीजों को गिरवी रख चुके हैं और कर्ज़ में फंसे हुए हैं। हमारी कोई आय नहीं है, लेकिन हमें रोड टैक्स देना पड़ रहा है, ड्राइविंग लाइसेंस का नवीकरण करवाना पड़ रहा है, फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए पैसा देना पड़ रहा है, हरित कर चुकाना पड़ रहा है और बीमा का भुगतान भी करना पड़ रहा है। ऊपर से हमारे ऑटो की EMI भी हैं। यह असंभव है।"

बालासुब्रमण्यम कहते हैं, "ऑटो रिक्शा अच्छा पेशा है, हमारे पास अपने रोज़गार का साधन होता है, हम किसी के सामने नहीं झुक रहे होते हैं। लेकिन अब हमें पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया है। कोई चालक मूंगफली बेच रहा है, तो कोई किसानी करने की कोशिश कर रहा है।"

रोड ट्रांसपोर्ट ऑफिस (RTO) के डेटा के मुताबिक़, तमिलनाडु में 2.60 लाख ऑटो चालक हैं। कई ऑटो को एक से ज़्यादा चालक चलाते हैं, मतलब ऑटो चालकों की संख्या इससे भी ज़्यादा है। अनुमान है कि यह संख्या करीब़ 3.20 लाख है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

‘No Ola or Uber, Govt Must Take Over’: Say Tamil Nadu Autorickshaw Drivers

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