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पंजाब में किसान आंदोलनः राज्य की आर्थिक व राजनीतिक घेराबंदी करती केंद्र सरकार
राज्य के लोगों में यह प्रभाव जा रहा है कि केंद्र सरकार पंजाब की आर्थिक व राजनीतिक नाकेबंदी करने पर उतारू है। मोदी सरकार राज्य को सबक़ सिखाने के लिए ऐसा कर रही है।
शिव इंदर सिंह
17 Nov 2020
पंजाब में किसान आंदोलन
पंजाब के आंदोलनरत किसान। फोटो : शिव इंदर सिंह

पंजाब के किसान आंदोलन को गरमाये हुए डेढ़ महीने से भी अधिक का समय गुजर गया है, यह आंदोलन एक जन आंदोलन की शक्ल अख्तियार कर चुका है। पंजाब के हर तबके की हिमायत के साथ ही भाजपा को छोड़कर राज्य की तमाम पार्टियां इस आंदोलन की पक्षधर होने का दावा करती हैं। पंजाब के अनेक बुद्धिजीवी इस संघर्ष को सिर्फ किसानी मुद्दों तक सीमित न रखकर इसे राज्यों के अधिक अधिकारों की लड़ाई व संविधान के संघात्मक ढांचे को बचाने की जद्दोजहद के तौर पर भी देख रहे हैं। पंजाब के विद्वानों का मानना है कि यह संघर्ष अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने इस संघर्ष के प्रति नकारात्मक नज़रिया अपनाया हुआ है जिससे पंजाबियों का बड़ा हिस्सा नाराज़ है। राज्य के लोगों में यह प्रभाव जा रहा है कि केंद्र सरकार पंजाब की आर्थिक व राजनीतिक नाकेबंदी करने पर उतारू है। मोदी सरकार राज्य को सबक सिखाने के लिए ऐसा कर रही है।

किसान नेताओं की गत 12 नवम्बर को केंद्र के साथ मीटिंग हुई पर वह सिरे न चढ़ सकी। आने वाले दिनों में एक और मीटिंग होने की संभावना है। किसान नेताओं का मानना है कि केंद्र की नीयत में खोट है। किसान नेता जगमोहन सिंह कहते है, “मोदी सरकार किसानों की मांगों को लेकर गंभीर नहीं है। किसानों द्वारा मालगाड़ियों का रास्ता छोड़ने का ऐलान किया जा चुका है पर केंद्र सरकार इस ज़िद पर अड़ी हुई है कि मालगाड़ियों के साथ ही यात्री रेलगाड़ियों को भी रास्ता दिया जाए।” आने वाले समय में यह टकराव और भी तीखा होने की संभावना है। मालगाड़ियों की आवाजाही बंद होने के कारण फसलों की बिजाई पर बड़ा असर होने की संभावना है। आने वाले समय में राज्य को गेहूं व सब्जियों के लिए बड़ी मात्रा में यूरिया खाद की जरूरत है पर इसकी उपलब्धता घटती जा रही है। यह खाद बाहरी राज्यों से आती है।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह मालगाड़ियों के न चलने के कारण पंजाब को पेश आ रही दिक्कतों के बारे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा को पत्र लिख चुके हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र सरकार को भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि मालगाड़ियां बंद होने के कारण सिर्फ पंजाब ही प्रभावित नहीं होगा बल्कि इसका प्रभाव जम्मू-कश्मीर पर भी पड़ेगा। 4 नवम्बर को कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में पंजाब के विधायक व सांसद जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के रवैये के खिलाफ धरना दे चुके हैं। देश का राष्ट्रीय मीडिया इस धरने को सिर्फ कांग्रेस के विधायकों और सांसदों का धरना बताता रहा है जबकि इसमें विपक्षी नेता सुखपाल खहरा, परमिंदर सिंह ढींडसा भी शामिल थे और लोक इंसाफ पार्टी का भी इसे समर्थन प्राप्त था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानी मुद्दों को लेकर राष्ट्रपति से मिलना चाहा लेकिन उन्हें इज़ाजत नहीं मिली।

पंजाब के लुधियाना से कांग्रेसी सांसद रवनीत बिट्टू तो यहां तक आरोप लगा चुके हैं कि जब पंजाब के सांसदों ने केन्द्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल को मालगाड़ियों को चलाने की विनती की तो रेल मंत्री ने स्पष्ट कहा कि पहले केन्द्रीय कानून लागू करवाओ फिर मालगाड़ियां चलेंगी।

मालगाड़ियों के बंद होने के कारण पावरकॉम संकट से गुज़र रहा है। राज्य में अनिश्चित बिजली कट शुरु हो गए हैं, ताप बिजली घरों के कोयला भंडार खत्म होने के कारण यह संकट आया है। पंजाब का आखिरी पॉवर प्लांट जीवीके थर्मल के बंद होने के कारण बिजली की कमी हो चुकी है। पंजाब का पॉवरकॉम पहले ही वित्तीय संकट से जूझ रहा है। कोयले के संकट से इस पर और मार पड़ी है। पॉवरकॉम का पंजाब सरकार की ओर खेती सब्सिडी का 4000 करोड़ रुपये बकाया खड़ा है।

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पंजाब सरकार ने 31 अक्तूबर तक पॉवरकॉम को खेती सब्सिडी की 3724.54 करोड़ रुपये की अदायगी करनी थी जो अभी तक नहीं हो सकी है। इस हालात में सब्सिडी का बकाया बढ़कर 4000 करोड़ रुपये हो चुका है अब पॉवरकॉम ने रोपड़ थर्मल में चल रहे एकमात्र उत्पादन यूनिट को बंद कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि यह सब कोयले के संकट कारण हो रहा है।

किसान केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगाते हैं कि एक तरफ सरकार हमें बातचीत के लिए बुला रही है दूसरी तरफ भाजपा के तरूण चुघ जैसे नेता हमें ‘अर्बन नक्सल’ बता रहे हैं। काबिल-ए-गौर है कि भाजपा के कई बड़े-छोटे नेता संघर्ष कर रहे किसानों को ‘नक्सली’ व ‘अलगावादी’ कह कर उनकी आलोचना कर रहे हैं। लुधियाना जिला के धरने पर बैठे किसान संतोख सिंह का कहना है, “हम नक्सली नहीं हैं, हम हकों के लिए लड़ने वाले मेहनतकश किसान हैं। जब-जब लोग जालिम हुकूमतों के जनविरोधी कानूनों के विरुद्ध लामबंद होते हैं सरकारें उन्हें ‘माओवादी’, ‘आतंकवादी’ या ‘खालिस्तानी’ कहती हैं। पंजाब में इस समय अलगाववादी नारे लगाने वाला गायक पिछले साल लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा के सांसद सन्नी दयोल के लिए प्रचार करता रहा है। उसकी कई तस्वीरें प्रधानमंत्री व गृहमंत्री के साथ हैं। जबकि किसान आंदोलन हम इस तरह के तत्वों को अपनी स्टेजों पर जगह भी नहीं देते। सरकार किसान आंदोलन को फेल करने के लिए कभी खालिस्तान का हौवा खड़ा कर रही है कभी माओवाद का नाम ले रही है।”

इस समय किसान आंदोलन अपने चरम पर हैं। इस आंदोलन में महिलाओं व नौजवानों की हिस्सेदारी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। किसान आगामी 26-27 नवम्बर को दिल्ली में होने वाले प्रदर्शन की तैयारी में लगे हुए हैं। दिल्ली पुलिस ने किसानों को प्रदर्शन की आज्ञा नहीं दी है लेकिन किसानों के जोश में कमी नहीं आ रही है। पंजाब में भाजपा के नेताओं के बॉयकॉट का सिलसिला बदस्तूर चल रहा है। अब भाजपा के कई नेताओं ने किसान आंदोलन के आगे झुककर पार्टी से इस्तीफे देने शुरू कर दिए है। पंजाब भाजपा के नेता सुरजीत कुमार जयानी ने बड़ी बेबाकी से किसानों के पक्ष में आवाज़ बुलंद की है। जयानी बड़ी बेबाकी से बोल रहे हैं कि भाजपा के स्थानीय नेताओं ने केंद्र सरकार के सामने पंजाब के किसानों का पक्ष सही ढंग से नहीं रखा। गत 13 नवंबर को किसानों के साथ हुई केंद्र सरकार की मीटिंग में भी सुरजीत कुमार जयानी का विशेष योगदान रहा। अब देखना यह है कि भाजपा के स्थानीय नेताओं के बदले सुर केंद्र सरकार के किसानों के प्रति नजरिए को बदल पाते है या नहीं।

इस तमाम माहौल के बारे में पंजाबी स्तंभकार प्यारा लाल गर्ग कहते हैं, “केंद्र सरकार बिल्कुल कश्मीर की तरह पंजाब की घेराबंदी करने में लगी हुई है। मोदी  सरकार का देश के संघीय ढांचे में बिल्कुल भी यकीन नहीं है। किसानों के जायज़ संघर्ष को बदमान करने के लिए केंद्र सरकार नई-नई कहानियां गढ़ रही है। इस हालत में अपने संघर्ष को सही दिशा में ले जाना, अपनी एकता को बनाए रखना और संघीय ढांचे की भावना को प्रबल करना किसान नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस समय पूरा देश पंजाब के किसानों के संघर्ष की ओर देख रहा है, निश्चय ही यह संघर्ष पूरे देश को एक नई राह दिखाएगा।”

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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