NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लोग हिंदुत्व के झांसे में फंसे हैं और बैंक में रखी उनकी मेहनत की कमाई ल़ूटी जा रही है!
बैंकों में जमा हमारी मेहनत की कमाई पर आखिरकार ब्याज बहुत कम क्यों मिलता है?
अजय कुमार
07 Jan 2022
modi

अर्थव्यवस्था में पैसे का परिसंचरण तंत्र किसी हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर निर्भर नहीं करता है बल्कि बैंकिंग तंत्र पर निर्भर करता है। अगर बैंकों में लगा हुआ पैसा सही जगह पर निवेश नहीं किया जा रहा है तो इसका मतलब है कि ना उद्योग धंधों का विकास होगा और ना रोजगार मिलेगा। रोजगार न मिलेगा तो जेब में पैसा नहीं होगा और जेब में पैसा नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी।

मार्च 2021 में खत्म हुए वित्त वर्ष साल 2020-21 की बैंकिंग तंत्र के कामकाज का हाल यह है कि बैंकों ने तकरीबन दो लाख करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ कर दिया है। यानी वैसा कर्ज बना दिया है, जिसके वापस आने की कोई संभावना नहीं है। अगर किसानों को एमएसपी की लीगल गारंटी दी जाती तो खर्च ज्यादा से ज्यादा 2 लाख करोड़ से अधिक का नहीं होता। लेकिन सरकार की नीतियों ने चुना है कि भले बैंकों का पैसा पूंजीपति लेकर डकार जाएं लेकिन वह पैसा किसानों के हाथ में नहीं जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दाखिल आरटीआई के जवाब में यह आंकड़ा सामने आया है कि पिछले 10 सालों में भारत के बैंकिंग तंत्र से तकरीबन 11 लाख 68 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया गया है। जिसमें से 10 लाख 72 हजार करोड़ रुपए की कर्ज माफी साल 2014 -15 के बाद उस सरकार के कार्यकाल में हुई है, जो हर तरह से खुद को हिंदू धर्म और हिंदुत्व का रहनुमा प्रस्तुत करने का काम करती है। इस कर्जमाफी में तकरीबन 75% कर्जमाफी पब्लिक सेक्टर बैंक ने की है। जहां पर आम लोगों की मेहनत की बचत जमा होती है। इसी वजह से जिस दौर में शेयर मार्केट में पैसा लगाकर अमीर पैसे पर पैसे कमाते हैं, वहां पर बैंकों ने बचत खाते पर आम लोगों को रत्ती बराबर ब्याज दिया है। यह ब्याज की राशि इतनी कम होती है जो बढ़ती हुई महंगाई को भी पूरा नहीं कर पाती है।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बता रही है कि पिछले 5 सालों में बैंकों की तरफ से दिए गए कर्ज का जितना राइट ऑफ किया गया है उसका केवल आधा वसूला गया है। कमर्शियल बैंक की तरफ से पिछले 5 साल में 9.54 लाख करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया गया जिसमें से वसूली के तमाम तरह के उपायों को अपनाने के बाद केवल 4.14 लाख करोड़ रुपए वसूले गए हैं।

इस बात को कायदे से समझने के लिए बैंक के नन-परफॉर्मिंग एसेट्स और बैड लोन की अवधारणा को भी समझ लीजिए। बैंक जो कर्ज देता है, वही बैंक की संपत्ति होती है। कर्ज पर जो ब्याज वसूलते है वही बैंक का मुनाफा होता है। जब बैंक के द्वारा दिया गया कर्ज नियत अवधि के बाद लौटकर बैंक में नहीं आता तो इसे नन-परफॉमिग ऐसेट्स घोषित कर दिया जाता है या बैड लोन कह दिया जाता है। समय के साथ जब धीरे-धीरे कर्ज ना मिलने की उम्मीद और धूमिल होने लगती है तो बैंक अपने खाते को साफ सुथरा करने के लिए लोन को राईट ऑफ कर देती है।

यह एक तरह की ऐसी कार्यवाही होती है जहां पर बैंक का खाता साफ सुथरा हो जाता है। लोन राइट ऑफ हो जाता है। एनपीए बढ़ने की बजाय कम दिखता है। बैंक की शाखा अच्छी रहती है। और बैंक वाले सार्वजनिक तौर पर कहते हैं कि राइट ऑफ होने का मतलब यह नहीं है कि पैसा लौटकर नहीं आएगा। पैसा आएगा लेकिन कुछ वक्त लगेगा।

इसी के बारे में आरबीआई की रिपोर्ट आई है जिससे यह निकल के आ रहा है कि पिछले 5 सालों में बैंक में जितना राइट ऑफ किया था, उसका आधा पैसा बैंक में लौट कर नहीं आया है। यह कोई छोटी मोटी राशि नहीं है बल्कि 4.14 लाख करोड रुपए की राशि है। पिछले साल बैंक वालों ने तकरीबन दो लाख करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ कर दिया। वसूला केवल 64 हजार करोड रुपए। पिछले 4 सालों में बैंक की सबसे कम रिकवरी है। इंसॉल्वेंसी एंड बंकृप्सी कोड जब से लागू हुआ है तब से वित्त वर्ष 2021-22 में इसके जरिए महज 20% की रिकवरी हुई, जो इसके जरिए हुई अब तक की रिकवरी में सबसे कम है। लोगों को सरकार से पूछना चाहिए कि आखिर कर क्या वजह है कि बैंकों के जरिए दिया गया बहुत बड़ा कर्ज फिर से बैंकों में लौटकर नहीं आता? यह पैसा जाता कहां है? किन को दिया जाता है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि बैंकों में रखे गए पैसे से ही बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां हो रही है?

यह सारी जरूरी खबरें टीवी पर बहस का हिस्सा नहीं बनती है। इन्हीं खबरों में यह बात छुपी होती है कि क्यों भारत के कुछ लोग अमीर हो रहे हैं और ढेर सारे लोग पहले से भी ज्यादा गरीब हो रहे हैं? आखिर क्या वजह है कि लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा? आखिर क्या वजह है कि आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है? लोगों को उनकी बदहाली का कारण नहीं बताया जाता है। बल्कि ऐसी खबरें चलाई जाती हैं जिसमें थ्रिल हो। लोगों के बीच नफरत का भाव भरकर राजनीति की रोटियां सेकी जा सकें। पिछले 2 दिनों से जिस तरह से प्रधानमंत्री के जाम में फंस जाने को टीवी पर दिखाया जा रहा है उसका केवल 20% भी बैंकों की बदहाली से जुड़ी खबरों को दिखाया जाता है तो देश का ज्यादा भला होता। देश के लिए यह ज्यादा बड़ी राष्ट्रभक्ति होती।

कुल मिला कर पूरा तंत्र ऐसा है जहां पर बेरोजगारी है, महंगाई है और बैंकों की लूट है और चंद लोगों की कमाई है। हाल इतना बुरा है लेकिन फिर भी सारा जोर हिंदू धर्म और हिंदुत्व के उत्थान पर लगाया गया है। इन बेवजह बहसों में कुछ नहीं रखा है। संस्कृतियों की मोहक माया तभी किसी के जीवन का आकर्षण बनती है जब उसके जेब में पैसा होता है। अफसोस कि बात यह है कि भारत के बहुतेरे लोगों के पास आर्थिक तौर पर ढेर सारा बोझ लादा गया है, उस बोझ को हटाने की बजाय सारा जोर हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर लगाया जा रहा है।

Bank
Bank crises
banking sector
Bank Deposits
Bank Interest
Hindutva
Hindutva Agenda
Narendra modi
BJP
RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट


बाकी खबरें

  • आज का कार्टून
    आम आदमी जाए तो कहाँ जाए!
    05 May 2022
    महंगाई की मार भी गज़ब होती है। अगर महंगाई को नियंत्रित न किया जाए तो मार आम आदमी पर पड़ती है और अगर महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश की जाए तब भी मार आम आदमी पर पड़ती है।
  • एस एन साहू 
    श्रम मुद्दों पर भारतीय इतिहास और संविधान सभा के परिप्रेक्ष्य
    05 May 2022
    प्रगतिशील तरीके से श्रम मुद्दों को उठाने का भारत का रिकॉर्ड मई दिवस 1 मई,1891 को अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरूआत से पहले का है।
  • विजय विनीत
    मिड-डे मील में व्यवस्था के बाद कैंसर से जंग लड़ने वाले पूर्वांचल के जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल के साथ 'उम्मीदों की मौत'
    05 May 2022
    जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल की प्राण रक्षा के लिए न मोदी-योगी सरकार आगे आई और न ही नौकरशाही। नतीजा, पत्रकार पवन जायसवाल के मौत की चीख़ बनारस के एक निजी अस्पताल में गूंजी और आंसू बहकर सामने आई।
  • सुकुमार मुरलीधरन
    भारतीय मीडिया : बेड़ियों में जकड़ा और जासूसी का शिकार
    05 May 2022
    विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय मीडिया पर लागू किए जा रहे नागवार नये नियमों और ख़ासकर डिजिटल डोमेन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों की एक जांच-पड़ताल।
  • ज़ाहिद ख़ान
    नौशाद : जिनके संगीत में मिट्टी की सुगंध और ज़िंदगी की शक्ल थी
    05 May 2022
    नौशाद, हिंदी सिनेमा के ऐसे जगमगाते सितारे हैं, जो अपने संगीत से आज भी दिलों को मुनव्वर करते हैं। नौशाद की पुण्यतिथि पर पेश है उनके जीवन और काम से जुड़ी बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License