NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
विज्ञान
भारत
राजनीति
बर्ड फ्लू और कोरोना के बीच जैव-विविधता के खतरे से आगाह करता है पॉलीनेटर पार्क
धरती के दक्षिणी गोलार्ध से फूलों वाले पौधों की 45 फीसदी आबादी खत्म होने की कगार पर आ पहुंची है। चिड़ियों की 14 प्रतिशत प्रजातियां धरती पर बने रहने के लिए अंतिम संघर्ष कर रही हैं। डॉल्फ़िन कहीं किताबों का हिस्सा बनकर ही न रह जाए। कोरोना के खतरे से जूझता ये समय यह भी समझाता है कि हमें प्रकृति को हर हाल में बचाना होगा। क्योंकि अंत में प्रकृति ही हमें बचाएगी।
वर्षा सिंह
07 Jan 2021
pollinator park

कोविड-19 के संकट से जूझते हुए पूरी दुनिया इस समय कोरोना वैक्सीन का इंतज़ार कर रही है। देश में पंछियों की तकरीबन 25 हज़ार आबादी बर्ड फ्लू की एक अलग किस्म के आगे कुछ ही समय में ढेर हो चुकी है। वर्ष 2020 के आखिरी महीने मे जारी की गई आईयूसीएन की रिपोर्ट कहती है कि 2020 में हमने 31 प्रजातियों को खो दिया है। एक तिहाई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। हमारी आधुनिक दुनिया इस समय जैव-विविधता के भीषण खतरे से जूझ रही है।

हम या हमारे आसपास के लोग जैव-विविधता को हो रहे नुकसान के खतरे से कितना परीचित हैं। क्या हम जानते हैं कि हमारे बीच से कभी कोई ख़ास प्रजाति का पौधा बिना किसी फ़ुसफ़ुसाहट किए चुपचाप धरती से विदाई ले लेता है। धरती के दक्षिणी गोलार्ध से फूलों वाले पौधों की 45 फीसदी आबादी खत्म होने की कगार पर आ पहुंची है। चिड़ियों की 14 प्रतिशत प्रजातियां धरती पर बने रहने के लिए अंतिम संघर्ष कर रही हैं। डॉल्फ़िन कहीं किताबों का हिस्सा बनकर ही न रह जाए। कोरोना के खतरे से जूझता ये समय यह भी समझाता है कि हमें प्रकृति को हर हाल में बचाना होगा। क्योंकि अंत में प्रकृति ही हमें बचाएगी।

पॉलीनेटर पार्क में सहेजी गईं 40 से अधिक प्रजातियां

हमें पॉलीनेटर पार्क क्यों चाहिए

हल्द्वानी में पॉलीनेटर पार्क तैयार करने का ख्याल भी कोरोना के समय में ही आया। उत्तराखंड वन अनुसंधान वृत्त में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं “कोरोना के समय जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई, हमारे आसपास चिड़ियों की चहचहाहट गूंजने लगी। लोगों का निकलना थमा, शोर थमा, गाड़ियां थमीं तो तितलियां-मधुमक्खियां दिखाई देने लगी। तभी हमने परागण करने वाली प्रजातियों के बारे में अध्ययन किया। बटरफ्लाई पार्क तो देश में बहुत से बने हैं लेकिन हमारा विचार पॉलीनेटर पार्क बनाने का था। इस पार्क को तैयार करने का मकसद ये था कि लोग अपने आसपास प्रकृति को नज़रअंदाज़ न करें और इसकी अहमियत समझें। हमारा भोजन चक्र बहुत कुछ परागण करने वाली प्रजातियों यानी पॉलीनेटर्स पर निर्भर करता है”।

जानिए हल्द्वानी के पॉलिनेटर पार्क के बारे में

हल्द्वानी में रामपुर रोड पर तकरीबन 4 एकड़ क्षेत्र में परागण करने वाली करीब 40 प्रजातियों को संरक्षित किया गया है। इनमें मधुमक्खियां, ततैया, चिड़िया, तितलियां, कीट-पतंगे, झींगुर, चमगादड़ समेत छोटे स्तनधारी जीव शामिल हैं। यहां उनका प्राकृतिक आवास तैयार किया गया है। उनकी पसंद के फूल, पेड़-पौधे लगाए गए हैं। देश में ये अपने किस्म का ये पहला पार्क है।

कीटनाशकों, रासायनिक खाद का इस्तेमाल, बढ़ता प्रदूषण, प्राकृतिक आवास सीमित होने, जंगल के बिखरने, हमारे आसपास फूल-पौधों के कम होने की वजह से मधुमक्खियों, तितलियों जैसे पॉलीनेटर्स की आबादी तेज़ी से कम हो रही है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक खासतौर पर मधुमक्खियों और तितलियों की 40 प्रतिशत प्रजातियां पूरी दुनिया में विलुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं।

परागण करने वाले प्रजातियों के बारे में जानना है जरूरी

जो चिड़ियों-तितलियों की है पसंद

पॉलीनेटर पार्क में ऐसे पेड़-पौधों को संरक्षित किया गया है जो चिड़ियों, मधुमक्खियों और तितलियों का प्राकृतिक आवास हैं। इन्हें पसंद रसदार फूलों वाले पौधे लगाए गए हैं। ऐसे पौधे लगाए गए हैं जिनमें ये अंडे देते हैं और लार्वा बनते हैं। जैसे मीठी नीम, जामुन, सेमल, साइट्रस प्रजाति के पौधे, गेंदे, गुलाब, जैसमीन। तितलियों को लैंटाना जैसी जंगली घास बहुत पसंद है। कीचड़ के आसपास रहने वाली तितलियों के लिए मड-पैडलिंग स्पॉट बनाए गए हैं। चिड़ियों के घोसले बनाए गए हैं। प्यास बुझाने के लिए छोटे तालाब बनाए गए हैं।

पेड़ से झरने वाली सूखी पत्तियां बहुत सारे परागण करने वाले कीटों, गिलहरियों, चिड़ियों के लिए जरूरी होती हैं। इसलिए प्रृकति को यहां उसकी ही तरह रहने दिया गया है। पार्क और उसके आसपास किसी भी तरह का रसायन या कीटनाशक इस्तेमाल नहीं किया गया है।

संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि पॉलीनेटर्स के बारे में अध्ययन के दौरान पता चला कि अलग-अलग फूल-पौधों के अलग-अलग पॉलीनेटर होते हैं। रात में खिलने वाले फूलों का परागण अलग प्रजाती करती है। गहराई वाले फूलों के पॉलीनेटर की नोक निकली हुई होती है। धरती पर मौजूद तकरीबन 75-95 प्रतिशत तक फूलों वाले पौधे को परागण की जरूरत होती है। इसके साथ ही पॉलीनेटर विश्व की तकरीबन 35 प्रतिशत कृषि को प्रभावित करते हैं और 87 अग्रणी फसल उत्पादन में सहायता करते हैं। यहां आने वाले लोगों को वॉल पेन्टिंग्स के ज़रिये ऐसी रोचक जानकारियां मिलेंगी। रविंद्रनाथ टैगोर और विलियम वर्ड्सवर्थ जैसे प्रकृति प्रेमी कवियों की कविताएं पढ़ने को मिलेंगी।

बमुश्किल मिलीं स्थानीय मधुमक्खियां

जब हुई स्थानीय मधुमक्खियों की तलाश

हैरानी की बात सामने आई जब इस पॉलीनेटर पार्क के लिए उत्तराखंड में पायी जाने वाली मधुमक्खियों की तलाश की गई। ताकि उन्हें यहां लाकर बसाया जाए। उनके बी-हाइव बनाए जाएं। संजीव बताते हैं कि हमें स्थानीय मधुमक्खियां कहीं मिली ही नहीं। राज्य में ज्यादातर मधुमक्खी पालन यूरोपियन मधुमक्खियों का हो रहा है। शहर के मधुमक्खी पालकों से स्थानीय मधुमक्खियां मांग की गईं तो किसी के पास इनका पता नहीं था।

हल्द्वानी के मधुमक्खी पालक तारादत्त जोशी को स्थानीय मधुमक्खियों की तलाश का ज़िम्मा मिला। वह बताते हैं कि काफी खोजबीन के बाद अल्मोड़ा में सोमेश्वर के नजदीक गरुड़ में एक व्यक्ति के पास हमें स्थानीय मधुमक्खियां मिलीं। जिन्हें पॉलीनेटर पार्क में लाया गया।

मधुमक्खी पालक तारादत्त जोशी बताते हैं स्थानीय मधुमक्खी एपिस सिराना इंडिका के मिज़ाज़ का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है। वो बहुत डंक मारती है और उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है। जबकि यूरोपियन मधुमक्खी एपिस मेलिफेरा का मिज़ाज़ शांत होता है। वो कम काटती है। उत्पादन अच्छा मिलता है। इसलिए अब पश्चिमी देशों की मधुमक्खियां ही ज्यादा पाली जाती हैं।

65 वर्ष के तारादत्त बताते हैं “कक्षा चार में पढ़ने के दौरान से मैं मधुमक्खियां पकड़ता हूं। इनकी आबादी अब बहुत कम हुई है। क्योंकि फ्लोरा (फूलों की आबादी) की दिक्कत आई है। खाद, दवाइयां, कीटनाशक का इस्तेमाल बहुत कम हो गया है। पेड़-बगीचे कम होते जा रहे हैं। ये मधुमक्खियां फूलों की तलाश में पलायन करती हैं। मधुमक्खी पालक भी अपने बक्सों के साथ फूलों वाले मौसम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह की यात्रा कम करते हैं। हमारा ये पुश्तैनी काम है। हमने अपने सामने इनकी आबादी को गिरते देखा है”।

पॉलीनेटर प्रजातियों पर है बहुत सीमित अध्ययन-डाटा

पॉलीनेटर के बारे में बहुत कम जानते हैं हम

तितली प्रेमी और तितली विशेषज्ञ नैनीताल के भीमताल में रहने वाले पीटर स्मेटाचेक ने पॉलीनेटर पार्क तैयार करने में वन विभाग की मदद की है। वह कहते हैं कि जहां-जहां निर्माण कार्य हो रहे हैं, शहरी क्षेत्र हैं, खेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, वहां पॉलीनेटर्स की आबादी कम है। जंगलों में इनकी स्थिति ठीक है।

पीटर बताते हैं कि जब हम मच्छर भगाने के लिए छिड़काव करते हैं तो मच्छर के साथ अन्य कीट-पतंगों को भी खत्म कर देते हैं। अगर पौधों में कुछ कीड़े लग रहे हैं तो लगने दो। कोई कीड़ा पत्तियों को खा रहा है तो खाने दो।

तितली विशेषज्ञ के मुताबिक पॉलीनेटर्स के बारे में हमारी जानकारी बेहद सीमित है। हमारे पास बहुत ही सामान्य ज्ञान है। हम मानते हैं कि मधुमक्खियां गुलाब का परागण करती हैं लेकिन हमारे पास अध्ययन नहीं है। डाटा नहीं है कि कौन सी प्रजाति के कीट, किस प्रजाति के पौधे को पॉलीनेट करते हैं।

तितलियां, मधुमक्खियां, चिडियां धरती के नन्हे जीव हैं, जो बहुत कम जगह लेते हैं, बहुत कम समय में रहते हैं। हम, उनसे उनका घर, उनका समय छीन रहे हैं। पॉलीनेटर पार्क में रविंद्रनाथ टैगोर की एक कविता कहती है  “तितलियां महीनों में नहीं, कुछ पलों में जीती हैं, यह समय उनके लिए बहुत होता है”।

(वर्षा सिंह देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार हैं)

Pollinator park
Biodiversity
COVID-19
Bird flu
Uttrakhand
Birds
Nature

Related Stories

उत्तराखंड: क्षमता से अधिक पर्यटक, हिमालयी पारिस्थितकीय के लिए ख़तरा!

लाखपदर से पलंगपदर तक, बॉक्साइड के पहाड़ों पर 5 दिन

कांच की खिड़कियों से हर साल मरते हैं अरबों पक्षी, वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के लिए कर रहे हैं काम

जम्मू-कश्मीर में नियमों का धड़ल्ले से उल्लंघन करते खनन ठेकेदार

दिल्ली से देहरादून जल्दी पहुंचने के लिए सैकड़ों वर्ष पुराने साल समेत हज़ारों वृक्षों के काटने का विरोध

गुजरात में आख़िर लाभ-साझाकरण वाली धनराशि कहां जा रही है?

उत्तराखंड: गढ़वाल मंडल विकास निगम को राज्य सरकार से मदद की आस

उत्तरी हिमालय में कैमरे में क़ैद हुआ भारतीय भूरा भेड़िया

उत्तराखंड: क्या आप साइंस रिसर्च कॉलेज के लिए 25 हज़ार पेड़ों को कटने देना चाहेंगे ?

जब जम्मू-कश्मीर में आर्द्रभूमि भूमि बन गई बंजर


बाकी खबरें

  • श्याम मीरा सिंह
    यूक्रेन में फंसे बच्चों के नाम पर PM कर रहे चुनावी प्रचार, वरुण गांधी बोले- हर आपदा में ‘अवसर’ नहीं खोजना चाहिए
    28 Feb 2022
    एक तरफ़ प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में यूक्रेन में फंसे कुछ सौ बच्चों को रेस्क्यू करने के नाम पर वोट मांग रहे हैं। दूसरी तरफ़ यूक्रेन में अभी हज़ारों बच्चे फंसे हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे…
  • karnataka
    शुभम शर्मा
    हिजाब को गलत क्यों मानते हैं हिंदुत्व और पितृसत्ता? 
    28 Feb 2022
    यह विडम्बना ही है कि हिजाब का विरोध हिंदुत्ववादी ताकतों की ओर से होता है, जो खुद हर तरह की सामाजिक रूढ़ियों और संकीर्णता से चिपकी रहती हैं।
  • Chiraigaon
    विजय विनीत
    बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!
    28 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश के बनारस में चिरईगांव के बाग़बानों का जो रंज पांच दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम-अमरूद से लकदक बगीचों में फल खाने। आमदनी दोगुना…
  • pop and putin
    एम. के. भद्रकुमार
    पोप, पुतिन और संकटग्रस्त यूक्रेन
    28 Feb 2022
    भू-राजनीति को लेकर फ़्रांसिस की दिलचस्पी, रूसी विदेश नीति के प्रति उनकी सहानुभूति और पश्चिम की उनकी आलोचना को देखते हुए रूसी दूतावास का उनका यह दौरा एक ग़ैरमामूली प्रतीक बन जाता है।
  • MANIPUR
    शशि शेखर
    मुद्दा: महिला सशक्तिकरण मॉडल की पोल खोलता मणिपुर विधानसभा चुनाव
    28 Feb 2022
    मणिपुर की महिलाएं अपने परिवार के सामाजिक-आर्थिक शक्ति की धुरी रही हैं। खेती-किसानी से ले कर अन्य आर्थिक गतिविधियों तक में वे अपने परिवार के पुरुष सदस्य से कहीं आगे नज़र आती हैं, लेकिन राजनीति में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License