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झारखंड: ‘स्वामित्व योजना’ लागू होने से आशंकित आदिवासी, गांव-गांव किए जा रहे ड्रोन सर्वे का विरोध
आदिवासी समाज बनाम प्रशासन के इस तनाव का मूल कारण बन रहा है, प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘स्वामित्व योजना’ लागू किये जाने के लिए पूरे इलाके के लोगों के गांव-घरों का ड्रोन से सर्वे कराया जाना। प्रशासन के अनुसार इसी सर्वे के आधार पर ग्रामीणों को ‘प्रॉपर्टी कार्ड’ देने की बात कही जा रही है।
अनिल अंशुमन
13 Dec 2021
property card

झारखंड की राजधानी रांची से सटा आदिवासी बाहुल्य खूंटी ज़िले का इलाका एक बार फिर अशांत सा होने लगा है। वजह है प्रशासन द्वारा आदिवासी गांवों का जबरन ड्रोन सर्वे कराया जाना। जिसे लेकर पूरे इलाके के आदिवासियों में काफी भ्रम और आशंकाएं बढ़ रहीं हैं।

गौरतलब है कि इसी खूंटी जिला और इसके आसपास के इलाकों में एक समय माओवादी हिंसा रोकने के नाम पर उनकी धर-पकड़ व उनका लोकेशन जानने के लिए ‘ड्रोन’ का इस्तेमाल किये जाने की बातें उड़ती थीं तो सभी लोगों में भय समा जाता था। आज भी हर क्षेत्र में कानून व्यवस्था बहाल रखने के नाम पर हर पांच किलोमीटर पर स्थापित सीआरपीएफ कैम्पों का खामियाजा उन्हें आये दिन भुगतना पड़ रहा है। ऐसे में इलाके में फिर से ड्रोन उड़ाए जाने की घटना ने उन्हें बेचैन कर रखा है।

जो एक प्रकार से स्वाभाविक भी है, क्योंकि जिस अंदाज़ में बिना किसी पूर्व सूचना और जानकारी दिए प्रशासन की टीम पहुँच कर आदिवासियोंके गांव-घरों का ड्रोन सर्वे करा रही है। वो किसी को समझ में नहीं आ रहा है।

जिससे माहौल इस क़दर तनावपूर्ण होता जा रहा है कि जगह जगह आदिवासी समुदाय के लोग इस मुद्दे पर जुटकर चर्चा- मीटिंग करने लगे हैं। कई ग्राम सभाओं से तो बजाप्ता इस बात का ऐलान भी किया जा रहा है कि किसी भी हाल में उनके गांवों में ‘ड्रोन सर्वे’ नहीं करने दिया जाएगा।

मामला एक बार फिर प्रशासन और आदिवासियों के आमने सामने होने जैसा बनने लगा है। जो ड्रोन सर्वे कराने पहुँच रहे प्रशासन के स्थानीय अफसर-कर्मचारियों द्वारा ग्रामीणों द्वारा पूछे जा रहे सवालों का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिये जाने की बजाय अनाप शनाप बोले जाने से और भी पेंचीदा बनता जा रहा है.

जिसकी बानगी (ग्रामीणों के अनुसार) बानो-कर्रा के गांवों में ड्रोन सर्वे करने पहुंचे एक प्रखंड सीओ महोदय के अफसराना बयान में देखी जा सकती है। जहां आदिवासियों को धमकाते हुए वे कहते हैं- यहाँ के सारे जंगल-झाड़ और ज़मीनें हमारी (प्रशासन की) हैं और यहाँ हम जब जो चाहेंगे कर देंगे।

आदिवासी बनाम प्रशासन के इस तनाव का मूल कारण बन रहा है, प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ‘स्वामित्व योजना’ लागू किये जाने के लिए पूरे इलाके के लोगों के गांव-घरों का ड्रोन से सर्वे कराया जाना। प्रशासन के अनुसार इसी सर्वे के आधार पर ग्रामीणों को ‘प्रॉपर्टी कार्ड’ देने की बात कही जा रही है।

जो गांवों के अधिकांश आदिवासी समाज को फिर से किसी अनहोनी के प्रति आशंकित बना रही है। क्योंकि दो बरस पहले ही तत्कालीन प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने ही गांवों में पत्थलगड़ी करने पर उन्हें देशद्रोही करार देकर फर्जी मुक़दमे लाद दिए थे तो यही प्रशासनिक अमला उनके लिए आतंक बना हुआ था।

यही वजह है कि आज जब ड्रोन सर्वे कराने पहुंचे उसी प्रशासन के लोग उन्हें समझा रहें हैं कि- प्रधानमंत्री जी की ‘स्वामित्व योजना’ उन्हीं की भलाई के लिए लायी गयी है। जिससे उन्हें अपने मकान के पक्के कागज़ बन जाएँगे तो उन्हें यकीन नहीं हो रहा है और उनके सवालों को फिर से जगा रहा है। 

जो उनकी ग्राम सभाओं में मुखरता से उठाये जा रहें हैं कि- प्रत्येक व्यक्ति को प्रोपर्टी कार्ड और स्वामित्व किसे? क्योंकि यह पूरा इलाका संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र के तहत आता है जहाँ सीएनटी/एसपीटी एक्ट और विल्किल्शन रूल के तहत यहाँ के जल जंगल ज़मीन और तमाम प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम सभा का सामुदायिक स्वामित्व संरक्षित किया गया है। ग्राम सभा की जानकारी दिए बगैर क्यों प्रशासन के लोग चोरी छिपे अंदाज़ में अचानक से सर्वे कराने पहुँच जा रहें हैं? प्रशासन के पास गांव वालों के ऐसे सवालों का कोई जवाब नहीं हैं।

सनद रहे कि पिछले लॉकडाउन बंदी का सहारा लेकर जिस तरीके से कृषि विरोधी तीन काले कानून लाये गए थे उसी तर्ज़ पर 24 अप्रैल, 2020 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रधान मंत्री ने ‘स्वामित्व योजना’ लागू करने की घोषणा की थी। जिसमें कहा गया कि इस योजना के तहत देश के सभी राज्यों के गावों की आबादी क्षेत्र का ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल कर “गावों का सर्वेक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ मानचित्र” तैयार किया जाएगा। यह सर्वेक्षण 2020 से 2024 तक की अवधी में चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा।

ड्रोन सर्वे को लेकर बताया गया कि-ड्रोन से गावों की सीमा के भीतर आने वाली हर संपत्ति (प्रोपर्टी) का एक डिजिटल नक्शा तैयार होगा। सर्वे पूरा होने के बाद ज़मीनों के मालिकों से उनकी सम्पत्ति के सबूत लिए जायेंगे। जिसके पास जो कागज़ात होंगे वो उसे जमा करेंगे। यदि किसी के पास कोई सबूत नहीं हुआ तो उस स्थिति में ज़मीन पर काबिज़ व्यक्तियों को घरौनी नाम का एक दस्तावेज़ बनाकर दे दिया जाएगा। सर्वे पूरा होने के बाद सारा डेटा पंचायती राज मंत्रालय के ई पोर्टल पर भी अपलोड किया जाएगा।

योजना के पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पिछले साल देश के 6 राज्यों में यह सर्वेक्षण कार्य शुरू किया गया। दूसरे चरण के तहत अब 20 राज्यों में इस योजना की शुरुआत होनी है जिनमें आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झारखंड और छत्तीसगढ़ प्रदेश भी शामिल हैं।

प्रधान मंत्री स्वामित्व और प्रॉपर्टी कार्ड योजना तथा ड्रोन सर्वे अभियान को झारखण्ड के आदिवासी इलाकों में जबरन लागू किये जाने का जानी मानी आन्दोलनकारी व आदिवासी मूलवासी अस्तित्व रक्षा मंच (सम्बद्धएआइपीएफ) की दयामनी बारला शुरू से ही मुखर विरोध कर रहीं हैं। जो पिछले कई महीनों से खूंटी जिला स्थित अपने निवास गांव से लेकर सैकड़ों आदिवासी गांवों में जा जाकर उन्हें जागरूक बना रहीं हैं। पांचवी अनुसूची के प्रावधानों में आदिवासियों के विशेष संरक्षण के अधिकारों को समझा रहीं हैं कि बरसों बरस से उनके पूर्वजों ने जान की बाजी लगाकर जिन जंगल झाड़ियों को साफ सुथरा कर उनके गांव बसाए। जल जंगल ज़मीन और तमाम प्राकृतिक संसाधनों की हिफाज़त की। जिसके संरक्षण हेतु देश की आज़ादी के बाद निर्मित संविधान अंतर्गत पांचवी अनुसूची के विशेष प्रावधान सुनिश्चित किये गए हैं। जिसके अनुसार आदिवासियों के गांव सीमा के अन्दर और बाहर जो मिटटी, बालू, झाड़ जंगल ज़मीन, नदीनाला झरना आदि जो कुछ भी प्राकृतिक संसाधन हैं, सब गांव की सम्पत्ति हैं. जिस पर हमारी ग्राम सभाओं का सामुदायिक अधिकार है।

जिसे मोदी सरकार की स्वामित्व-प्रॉपर्टी कार्ड योजना हमेशा के लिए निष्प्रभावी बना देगी।

यह अदिवासियों के सुरक्षा कवच सीएनटी/एसपीटी कानूनों व पैसा के अधिकारों इत्यादि को भी ख़त्म कर देने की एक सुनियोजित चाल है।

पिछले 26 अक्टूबर को खूंटी में विभिन्न आदिवासी सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित विशाल आदिवासी रैली का आयोजन कराने से लेकर खूंटी जिला के विभिन्न इलाकों में आयोजित की जा रही स्थानीय आदिवासी सभाओं को संबोधित करते हुए यह भी कह रहीं हैं कि- जब मेरे सच बोलने पर लोगों को बरगलाने का आरोप लगाया जा रहा है। इसलिए इसको जानना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है और यह हमारा अधिकार भी है।

उक्त सभाओं को संबोधित करते हुए सभी स्थानीय आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों का भी कहना है कि मौजूदा केंद्र की सरकार स्वामित्व योजना लागू करने के बहाने हमारे गावों का मालिकाना हक छीनना चाहती है। इसलिए किसी भी हाल में ड्रोन सर्वेक्षण नहीं करने दिया जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार ने उक्त योजना को लागू करने के पूर्व कुछ मुद्दों पर झारखंड सरकार से एक माह के अन्दर जवाब देने को कहा था। जिसके जवाब में झारखंड सरकार ने भी राज्य में कई जिलों में पांचवी अनुसूचित क्षेत्र लागू होने की जानकारी देते हुए आसन्न जटिलताओं की चर्चा की थी। जिसका अभी तक कोई उचित उत्तर तो नहीं ही आया उलटे पिछले दिनों ‘पत्थलगड़ी’ को लेकर सर्वाधिक चर्चित रहे खूंटी जिला में ही सबसे पहले स्वामित्व योजना को लागू किये जाने फरमान लागू करवाया जा रहा है।

फिलहाल खूंटी के आदिवासी गांवों में ‘स्वामित्व योजना’ और ड्रोन सर्वे को लेकर भ्रम और विरोध जारी है। देखना है कि झारखंड सरकार इस पर समय रहते क्या क़दम उठती है।

ये भी पढ़ें: झारखण्ड : शहीद स्मारक धरोहर स्थल पर स्कूल निर्माण के ख़िलाफ़ आदिवासी संगठनों का विरोध

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