NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
उत्तराखंड : ज़रूरी सुविधाओं के अभाव में बंद होते सरकारी स्कूल, RTE क़ानून की आड़ में निजी स्कूलों का बढ़ता कारोबार 
उत्तराखंड राज्य में विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है।
सत्यम कुमार
28 Apr 2022
Uttarakhand school
मौणा का राजकीय प्राथमिक विद्यालय जहाँ दीपा और विवेक पढ़ते हैं। (फोटो: दिया नेगी)

"हमारे गांव के प्राथमिक विद्यालय में मात्र छ: बच्चे और एक अध्यापिका है। समस्या यह है कि अध्यापिका को बच्चों को पढ़ाने के अलावा स्कूल के और कार्य जैसे मीटिंग, डाक ले जाना या फिर अन्य सरकारी कार्य भी करने होते हैं। इसके चलते नियमित रूप से बच्चों की क्लास नहीं हो पाती हैं और इसका खामियाज़ा हमारे बच्चों को भुगतना पडता है"

चमोली जिले के मौणा गांव में रहने वाले नरेंद्र रावत आगे कहते हैं कि मेरे दोनों बच्चे दीपा जो कक्षा पांच और दीपक जो पहली कक्षा में गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, मुझे इनके भविष्य की चिंता हमेशा सताती रहती है क्योंकि हमारे ही गांव के दूसरे सक्षम परिवारों के बच्चे घाट में प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं जहां पर सभी सुविधाएँ हैं लेकिन हमारी आय का मुख्य जरिया खेती किसानी ही है, इससे होने वाली आय से मुश्किल से ही घर के खर्च निकल पाते हैं। बेहतर भविष्य के लिए अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना तो मुश्किल ही है लेकिन यदि हमारे गांव के प्राथमिक विद्यालय में भी अच्छी सुविधाएँ हों तो हमारे बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिल पायेगी।

उत्तराखंड राज्य में विद्यालयों की स्थिति के आंकड़े दिखाते हैं कि सरकारी स्कूलों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया जा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों का नामांकन कम हो रहा है, और अंत में कम नामांकन के चलते स्कूल बंद कर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर राज्य में प्राइवेट स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार साल 2012-13 से लेकर साल 2019-20 तक प्रदेश में 846 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 197 राजकीय माध्यमिक विद्यालय बंद हो चुके हैं। लेकिन, इस दौरान निजी प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालयों में काफी वृद्धि हुई है। साल 2012-13 में इन स्कूलों की संख्या 776 थी लेकिन साल 2019-20 में यह लगभग 280% बढ़कर 2197 हो गयी।

वर्ष 2012-13 में उत्तराखंड में कुल 12,499 राजकीय प्राथमिक विद्यालय और 2,805 राजकीय माध्यमिक विद्यालय थे जिनकी संख्या वर्ष 2019-20 तक घटकर क्रमश 11,653 और 2,608 हो गयी।

यदि जिलेवार इनकी संख्या देखें तो अल्मोड़ा में 130, बागेश्वर में 39, चमोली में 49, चम्पावत में 28, देहरादून में 57, हरिद्वार में 10, नैनीताल में 17, पिथौरागगढ़ में 130, रूद्र प्रयाग में 41 और टिहरी गढ़वाल में 180 सरकारी प्राथमिक विद्यालय पिछले 10 वर्षों में बंद हो चुके हैं।

इसके अतिरिक्त उत्तरकाशी में कोई प्राथमिक विद्यालय बंद नहीं हुआ है और उद्यम सिंह नगर में 12 प्राथमिक विद्यालय बढ़े हैं। वहीं दूसरी ओर पिछले दस सालो में निजी स्कूलों के संख्या में केवल मैदानी जिलों में ही नहीं बल्कि पहाड़ी जिलों में भी वृद्धि देखने को मिली है।

आखिर सरकारी स्कूलों में नामांकन क्यों घट रहा है?

महिला समाख्या योजना उत्तराखंड की राज्य परियोजना निदेशक इस विषय पर कहती हैं कि बच्चों की संख्या कम होने पर स्कूलों को बंद या स्कूलों को आपस में विलय किया जा रहा है लेकिन यहां पर सरकार से सवाल है कि यदि सरकारी स्कूलों में बच्चे नहीं है तो क्यों निजी स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है? इसका कारण है निजी और सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिलने वाली सुविधाओ में अंतर, सरकारी स्कूलों में तमाम तरह की सुविधाओ का आभाव देखने को मिलता है। जबकि निजी स्कूलों में नहीं, जिसके चलते अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से कतराते हैं। यदि सरकार चाहती है कि सरकारी स्कूलों में भी नामांकन बढ़े तो सरकार को सबसे पहले सरकारी स्कूलों के प्रति जनता के नज़रिए को बदलना होगा जिसके लिए सरकारी स्कूलों में जो जरुरी सुविधाएँ नहीं हैं उनको पहले पूरा करना होगा।

सरकारी प्राथमिक विद्यालय में खेल का मैदान अजबपुर देहरादून (फोटो- सत्यम कुमार)

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के लिए कुछ मानक निश्चित किये गये हैं। इन मानकों के अनुसार प्रत्येक विद्यालय के भवन में शिक्षकों के लिए एक कक्ष, बाधा मुक्त पहुंच, लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय, विद्यार्थियों के लिए पर्याप्त और स्वच्छ पेयजल व्यवस्था, जिन विद्यालयों में मध्याह्न भोजन पकाया जाता है वहां रसोई; और एक खेल का मैदान का होना अनिवार्य है।

लेकिन यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) 2019-20 में उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तराखंड राज्य में कक्षा 1 से 12 तक के कुल 16,741 सरकारी स्कूल हैं। यदि इन स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की बात करें तो उत्तराखंड राज्य में मात्र 6.4% स्कूलों में सुचारू रूप से इंटरनेट कनेक्शन है, मात्र 22.26% स्कूलों में सुचारू रूप से कंप्यूटर की सुविधा है, और 20% से भी ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जहां सुचारू रूप से बिजली कनेक्शन नहीं है।

इन सुविधाओं के अतिरिक्त राज्य में अभी भी 10% से ज़्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां पीने के पानी की सुविधा नहीं है, 13% स्कूलों में लड़कों के लिये और 12% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है, इन सभी आंकड़ों के अतिरिक्त वर्ष 2018 में आयी एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) बताती है कि राज्य में 19.7% ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं जहां पर खेल का मैदान नहीं है। आपको बता दें कि कोरोना के चलते ASER की ताजा रिपोर्टो में स्कूल में मिलने वाली सुविधाओ को शामिल नहीं किया गया है।

सरकारी स्कूलों के प्रति सरकार का रुख

फेसबुक और समाचार पत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, 19 अप्रैल 2022 को शिक्षा निदेशालय देहरादून में राज्य के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने निजी स्कूल संचालकों के साथ बैठक की। जिसमें निजी विद्यालय संचालकों से शिक्षा व्यवस्था को बेहतर व सुगम बनाने के साथ ही सरकारी स्कूलों के साथ भी पारस्परिक सामंजस्य स्थापित करने की अपील की गई और राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में भी शिक्षण संस्थान खोलने के लिए आमंत्रित किया गया।

प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह चौहान का कहना है कि आज उत्तराखंड राज्य में लगभग 20 प्रतिशत से भी अधिक राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में केवल एक ही शिक्षक है, जिसको पढ़ाने के साथ साथ और सरकारी काम भी करने होते, सरकारी स्कूलों में तमाम जरुरी सुविधाओं का आभाव है जिसके कारण अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजना चाहते जिसके चलते आज सरकारी स्कूलों में नामांकन कम होता जा रहा है।

वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों में एडमिशन को प्राथमिकता दी जा रही है जिसका असर भी सरकारी स्कूलों में नामांकन पर पढ़ता है इसी कारण हम काफी समय से आरटीई के मानकों में बदलाव की मांग सरकार से कर रहे हैं। उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए निजी स्कूलों में सीट आरक्षित करने से ज़्यादा बेहतर है कि सरकार अपने सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाये। इस समय राज्य के निजी स्कूलों में करीब 90 हजार बच्चे आरटीई के तहत शिक्षा ले रहे हैं जिसका पिछले कुछ सालो में कुल खर्च 126 करोड़ रुपये तक आ चुका है। दिग्विजय सिंह चौहान आगे कहते हैं कि सरकार को आरटीई के तहत निजी स्कूलों में प्रवेश तभी देना चाहिए, जब इस क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में सीट फ़ुल हो जाएँ और जो रुपये सरकार के द्वारा आरटीई के तहत निजी स्कूलों को दिये जा रहे हैं उनको सरकारी स्कूलों में जरुरी सुविधाओ को बेहतर बनाने के लिए खर्च किया जाये।

आज अधिकांश अभिभावक ना चाहते हुए भी अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं। इन अभिभावकों से बात करने पर मालूम होता है कि यदि सरकारी स्कूलों में अच्छी सुविधाएँ मिलें तो ये लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ना चाहेंगे। क्योंकि आज मंहगाई के इस दौर में निजी स्कूलों में भारी भरकम फ़ीस देना बहुत मुश्किल होता है।

राज्य में सरकारी स्कूलों में मिलने वाली सुविधाओं, लगातार कम होते नामांकन का कारण, कम नामांकन के कारण स्कूलों को बंद करने नीति और इस विषय में सरकार क्या कदम उठा रही है- यह जानने के लिए माध्यमिक शिक्षा महानिदेशक आर मीनाक्षी सुंदरम और माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. आरके कुंवर से संपर्क करने की कोशिश की गयी लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। हमारे द्वारा सम्बंधित विभाग को मेल कर दिया गया है, कोई भी जानकारी मिलने पर आप को अवगत करा दिया जायेगा। 

(लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

ये भी पढ़ें: कोरोना लॉकडाउन के दो वर्ष, बिहार के प्रवासी मज़दूरों के बच्चे और उम्मीदों के स्कूल

UTTARAKHAND
Uttarakhand Govt School
Government schools
PRIVATE SCHOOL
Education Sector
Govt School Crisis
Pushkar Singh Dhami
BJP

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !

कर्नाटक: स्कूली किताबों में जोड़ा गया हेडगेवार का भाषण, भाजपा पर लगा शिक्षा के भगवाकरण का आरोप

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

नई शिक्षा नीति से सधेगा काॅरपोरेट हित

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात

उत्तराखंड: तेल की बढ़ती कीमतों से बढ़े किराये के कारण छात्र कॉलेज छोड़ने को मजबूर

ऑस्ट्रेलिया-इंडिया इंस्टीट्यूट (AII) के 13 अध्येताओं ने मोदी सरकार पर हस्तक्षेप का इल्ज़ाम लगाते हुए इस्तीफा दिया


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License