NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
नए भारत के मर्दाना राम!
अब गर्भ गृह में भी पुरुषों का कब्ज़ा होगा। यह ‘साभ्यतिक और सांस्कृतिक शिफ्ट’ है। कौन कहता है कि सत्ता केवल जनमानस की भावनाओं से जुड़कर ही पायी जा सकती है। उनसे भरपूर खिलवाड़ करके भी आप सत्ता हथियाते रह सकते हैं।
सत्यम श्रीवास्तव
22 Jul 2020
ram mandir
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : आजतक

ख़बर है कि 5 अगस्त 2020 को संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में बहुप्रतीक्षित भव्य राम मंदिर के भूमि पूजन में शामिल होंगे। राम मंदिर ट्रस्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय को दो तारीखें दी हैं। न्यूज़ चैनलों पर देखा कि इस कार्यालय ने 5 अगस्त की तारीख को स्वीकार किया है। 5 अगस्त को ही जम्मू कश्मीर और भारत के बीच के ऐतिहासिक करार को तोड़ा गया था।

दिलचस्प है कि एक ऐसे भगवान को अपने मंदिर के भूमि पूजन के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से समय लेना पड़ रहा है जो इस धरा धाम का मालिक बताया जाता है। कानूनन यह साबित किया जा चुका है कि अयोध्या में राम बाल स्वरूप में हैं और उनके गार्जियन अब भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि आदि बड़े बड़े संगठन हैं।

राजा दशरथ और उनकी तीन रानियाँ कैकयी, कौशल्या और सुमित्रा अब इस धरती से कहीं कूच कर गए हैं। यह एक शोध का विषय है कि राम लला को उनके असली माता-पिता ने इन संगठनों को स्वत: सौंप दिया है या लला का बलात अपहरण किया गया है।

ख़बर है कि मंदिर की डिजायन में काफी तब्दीलियाँ की जा रही हैं। अब यह भव्य नहीं भव्यतम मंदिर होगा। तीन मंज़िला होगा। भारत के सर्वोच्च न्यायालय से अनुमोदित गर्भगृह में अब राम के साथ उनके तीन भाइयों को भी स्थान दिया जाएगा। हनुमान जी भी सेवक के रूप में इसी गर्भगृह में मौजूद होंगे।

यानी पाँच पुरुष देव अब हिन्दू धर्म के सबसे बड़े प्रतीक होंगे। यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा और ऐसे कई आनुषांगिक संगठनों की कल्पना का भी सबसे बड़ा प्रतीक होगा। आखिर इन संगठनों में राष्ट्र, धर्म, समाज, राजनीति सभी में महिलाओं की भूमिका है ही कहाँ?

यह भी अनायास नहीं है कि पंद्रह सदस्यीय राम मंदिर ट्रस्ट में एक भी महिला नहीं है। सरकार द्वारा नामित जिला कलेक्टर अगर हिन्दू नहीं हुआ तो अतिरिक्त कलेक्टर को यह पदेन सदस्यता नसीब होगी इसका खुला क़ायदा रखा गया है लेकिन इस वक़्त भी नहीं सोचा गया कि अगर किसी समय कोई कलेक्टर महिला होगी जो हिन्दू भी हो लेकिन शायद सार्वजनिक जीवन में अपनी निजी आस्था का प्रकटीकरण न करना चाहे तब ऐसी सूरत में क्या होगा? बहरहाल।

तो अब राम का बाल्य काल से ही मर्दाना प्रशिक्षण शुरू हो रहा है। कौन कहता है कि सत्ता केवल जनमानस की भावनाओं से जुड़कर ही पायी जा सकती है। उनसे भरपूर खिलवाड़ करके भी आप सत्ता हथियाते रह सकते हैं।

यह बात तमाम निस्तेज विपक्षी दलों को सोचना चाहिए कि कैसे एक पारिवारिक, मर्यादित चरित्र को मर्दाना अहंकार से पुन: गढ़ा जा रहा है। राम मंदिर आंदोलन में रत तमाम साध्वियों के मन में भी ये बात नहीं आ रही है कि राम लला के जीवन में कहीं तो एक स्त्री रहने दें। पहले उनकी पत्नी और सखा को छीना अब सगी माँ और दो अन्य समतुल्य माताओं को भी जबरन छीन लिया गया और इसका निर्णय पंद्रह सदस्यीय पुरुषों की एक समिति ने कर दिया। साध्वियाँ क्या केवल ‘रामज़ादे’ और ‘हरामज़ादे’ और ‘रामद्रोही’, ‘देशद्रोही’ कहलवाने के लिए नियुक्त की गईं हैं?

बेहतर होता कि जब गर्भगृह ही इस मंदिर का प्राण है तो माता कौशल्या की गोद में राम लला को बैठा दिया जाता। लेकिन जब पूरे देश को मर्दवादी चश्में से, मर्दाना भाषा से हाँका जा रहा हो वहाँ स्त्रियाँ किसी भी रूप में स्वीकार कैसे होंगी? अब गर्भ गृह में भी पुरुषों का कब्ज़ा होगा। यह ‘साभ्यतिक और सांस्कृतिक शिफ्ट’ है। इतिहास में इस परिघटना को इस रूप में भी दर्ज़ किया जाना चाहिए कि 5 अगस्त 2020 को भारतवर्ष में जच्चा-बच्चा के सबसे एकांतिक स्थान पर पुरुषों को कानूनी संरक्षण में, देश के प्रधानमंत्री द्वारा कब्जा दिलाया गया।

यह कौन से समाज के लोग हैं? जिन्हें अपने समाज की इतनी भी समझ नहीं है कि गर्भगृह में केवल महिलाएं जाती हैं। फिर ये तो राम के त्रेतायुग की कल्पना है जहां ज़ाहिर है कि राम की कोई इन्स्टीट्यूशनल डिलिवरी तो हुई नहीं थी जहां पुरुष डॉक्टर भी मौजूद रहा होगा। बहरहाल।

इस 5 अगस्त के दूसरे भी मायने हैं। ठीक एक साल पहले इसी दिन भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी बहुसंख्यक जनता से आज़ादी के बाद किए गए सबसे बड़े वादे को निभाया था। जम्मू-कश्मीर और भारत के संबंधों की सांवैधानिक कड़ी और करार यानी अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया गया। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता एक पूर्ण राज्य के जितना भी नहीं बचाई गयी। एक साल से देश की अपनी ही जनता, अपनी ही सेना की जकड़बंदी में है। लेह लद्दाख के रास्ते इस अहंकारी कदम का खामियाज़ा देश भुगत रहा है लेकिन वो कैसा मर्दवाद जिसमें सब कुछ लुटा देने का जुनून न हो। कोई पछतावा या अपनी गलतियों का एहसास एक आदर्श मर्द नहीं पैदा कर सकता।

भविष्यवक्ताओं पर भरोसा न भी करें लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है जो वह 5 अगस्त को अयोध्या में देंगे। उसमें जम्मू-कश्मीर का ज़िक्र होगा और संकल्प से सिद्धि कैसे होती है इसका सबूत पेश किया जाएगा।

संकल्प कितना भी नकारात्मक हो, कितना ही विभाजनकारी हो, देश के लिए कितना ही आत्मघाती हो लेकिन अगर आपके हाथ में देश का मीडिया आ जाये, एक नागरिक की पहचान को महज़ उसके धर्म में सीमित कर दिया जाये और विपक्ष को भगवान से पंगा लेने के जोखिमों के बारे में बता दिया जाये तो ऐसे कितने ही संकल्पों को सिद्धि में बदला जा सकता है।

इस रास्ते में कितनों का कत्लेआम हो, कितनों के घर उजड़ें, कितनी महिलाओं का अपमान हो, कितने बच्चे बेसहारा हो जाएँ और कितने स्तरों पर देश का सौहार्द्र हमेशा के लिए खत्म हो जाये। इतिहास में ये महज़ फुटनोट्स होंगे। वर्णन तो राम लला के भव्यतम मंदिर का ही होगा। और इस तरह एक संकीर्ण संकल्प विराट सिद्धि में बदल जाएगा। श्री नरेंद्र मोदी का नाम श्री राम से पहले ले लिया जाएगा।

हिंदुस्तान में मंदिरों को अक्सर उनके निर्माणकर्ताओं के नाम से जाना जाता है। कितने ही शहरों में बिरला मंदिर पाये जाते हैं। उन मंदिरों में किस भगवान की मूर्तियाँ हैं यह जानने के लिए आपको एक दफा मंदिर जाना होगा लेकिन ऑटो रिक्शा या महानगरों की बसों में बिरला मंदिर एक लैंडमार्क की तरह शाया होगा।

तो अब जब भी बात होगी अयोध्या के भव्यतम मंदिर की ज़िक्र मोदी जी का ही होगा। और ज़िक्र इस बात का भी होगा कि कैसे एक मस्जिद को नेस्तनाबूद करके बाज़ाब्ता न्यायालय के संरक्षण में कानून की बदौलत यह मंदिर हासिल हुआ है। और कैसे लठैतों की तैयार फ़ौज के बल पर देश की एक बड़ी आबादी को अपमानित किया गया। गोया आज़ादी का आंदोलन हो।

जिन्हें अपनी संख्या पर गुमान करना है वो इस परिघटना से कर सकते हैं जिन्हें न्याय और शांति की पहलकदमियाँ पसंद हैं वो इस घटना को दूसरी तरफ से देखेंगे। दूसरी तरफ खड़े होने के जोखिम उठाएंगे और गणनाओं से गालियां खाएँगे। लेकिन इतिहास में वो भी बने रहेंगे। बहरहाल।

नयी रामायण की पटकथा अब इस भव्यतम राम मंदिर के निर्माण से लिखी जाएगी जिसमें राम लला पैदा होते ही पुरुषों को देखेंगे। अपनी माँ तक को नहीं देखेंगे। और इस तरह एक नए भारत का निर्माण होगा जिसमें स्त्रियाँ कहीं नहीं होंगीं। ज़ाहिर है संवेदनाएं, सहानुभूतियाँ, सहिष्णुताएं और मोहब्बतें भी नहीं होंगीं।

हिंदुस्तान के दो बड़े दरवेश क़ैफ़ी आज़मी और कुँवर नारायण आज ज़िंदा होते तो ज़रूर इस घटना को एक और वनवास बताते। ऐसा वनवास जिसमें संवेदनाओं से भरे पूरे एक राम को बचपन से निष्ठुर और अहंकारी बनाने के लिए अपने ही घर में कैद कर दिया गया।

 

(लेखक सत्यम श्रीवास्तव पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर काम कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Ram Mandir
PMO
Narendra modi
BJP
RSS
VHP
ayodhya

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License