NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
युवा
भारत
राजनीति
बढ़ती बेरोजगारी पूछ रही है कि देश का बढ़ा हुआ कर्ज इस्तेमाल कहां हो रहा है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा अपने लिए चुनावी चंदा इकट्ठा करने के लिए देश पर क़र्ज़ का बोझ डाल रही है?
अजय कुमार
22 Feb 2022
unemployment
Image courtesy : LiveToday

मशहूर अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक कहते हैं कि जब हम देश के कर्ज की बात करते हैं तो उसकी तुलना घर के कर्ज से करते हैं। यह बहुत खतरनाक तुलना है। इस तुलना के जरिए हम अर्थव्यवस्था को ढंग से समझ नहीं पाते। जिस तरह से घर का कर्ज होता है, ठीक वैसे ही देश का कर्ज नहीं होता। घर के पास यह क्षमता नहीं होती कि आरबीआई से पैसा छपवा ले। टैक्स लगाकर के पैसा वसूल ले। बॉन्ड जारी करके पैसा ब्याज पर ले ले। यह सारी क्षमताएं एक संप्रभु देश के पास होती हैं। इसलिए घर के कर्ज की तुलना देश के कर्ज से करना खतरनाक बात है।

अपने संसाधनों के उत्तम दोहन के लिए एक गरीब मुल्क का कर्ज बढ़ना जाना कोई गलत बात नहीं। गलत बात तब होती है जब कर्ज भी बढ़ता जाता है और संसाधनों का दोहन भी नहीं होता है। जब देश का कर्ज बढ़ता जाता है और ढेर सारे लोग बेरोजगार रह जाते हैं। ढेर सारे लोग गरीब होते चले जाते हैं। अर्थव्यवस्था में मांग की कमी लागातार बनी रहती है। अगर ऐसा होता है और देश का कर्ज बढ़ता चला जाता है तो वह खतरनाक बात होती है।

भारत की अर्थव्यवस्था में हाल-फिलहाल यही हो रहा है।2014 में मोदी जी की सरकार आने से पहले केंद्र सरकार पर कुल कर्ज़ा 53.1 लाख करोड़ रुपए था, जोकि 31 मार्च 2023 को बढ़कर 155.3 लाख करोड़ रुपए हो जायेगा।  मार्च 2020 से लेकर मार्च 2023 के बीच भारत सरकार का कर्ज में तकरीबन 50 लाख करोड रुपए का इजाफा हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना के वजह से सरकार का खर्च पहले की अपेक्षा थोड़ा अधिक बढ़ा है। इसलिए कर्ज बढ़ना भी तय है। लेकिन दिक्कत यहां पर है कि सरकार का कर्ज तो बढ़ गया लेकिन संसाधन का विकास नहीं हुआ। भारत का रोजगार दर अब भी 40% के आसपास है। जबकि पूरी दुनिया का औसत रोजगार दर 57% के आसपास है। सवाल यही है कि सरकार कर्ज ले रही है तो यह कर्ज का पैसा जा कहां पर रहा है? कहां लगाया जा रहा है?

केंद्र सरकार का कर्ज भारत की कुल जीडीपी का 61% है। अगर इसमें राज्य सरकार के कर्ज को भी जोड़ दिया जाए तो यह भारत के कुल जीडीपी का 91% बनता है। कर्ज से दिक्कत नहीं है दिक्कत कर्ज के इस्तेमाल ना होने से है। द इकोनॉमिस्ट ने तो बताया कि विकसित देशों में कर्ज का स्तर जीडीपी को पार करके 123 प्रतिशत तक पहुंच गया।

भारत में केवल कर्ज पर ब्याज देने के लिए कुल बजट का 48% खर्च किए जाने का प्रावधान है। जबकि यह साल 2017 -18 कुल बजट का 42% हुआ करता था। कहने का मतलब यह है कि   जब बजट के खर्च का एक बड़ा हिस्सा ब्याज के भुगतान पर खर्च किया जाएगा तो अपने आप लोक कल्याणकारी विषयों पर खर्च कम हो जाएगा। जब बड़ा हिस्सा ब्याज भुगतान के लिए सरकार रख देती है तो अपने आप शिक्षा स्वास्थ्य मनरेगा जैसे विषयों पर खर्च होने वाली राशि कम हो जाती है। यानी बढ़ा हुआ कर्ज बजट को भी प्रभावित करता है। खर्च को पूरा करने के लिए राजकोषीय घाटा बढ़ता है। यह बताने का मतलब केवल इतना है कि यह समझ में आए कि बढ़ा हुआ कर्ज बजट को कैसे प्रभावित करता है? इसका मतलब यह नहीं कि एक गरीब देश के लिए कर्ज को और राजकोषीय घाटे की बढ़ोतरी को गलत माना जाए।

सारा बखेड़ा केवल यही पर खड़ा हो रहा है कि सरकार का कर्ज बढ़ते जा रहा है। राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है। ब्याज के भुगतान की राशि हर वर्ष बढ़ते जा रही है। लेकिन इन सब का समुच्चय विकास के तौर पर नहीं दिख रहा। लोक कल्याण में नहीं दिख रहा। 84% लोगों की आय गिर गई। रोजगार स्तर वैश्विक रोजगार स्तर कम है। अर्थव्यवस्था में मांग 60% से कम है। उत्तर भारत के कई बड़े राज्य बीमारू राज्य की श्रेणी में आते हैं। नीति आयोग के मुताबिक केवल उत्तर प्रदेश में 37% लोग गरीबी से दबे हुए है। यह सब तब हो रहा है जब साल 2014 के बाद भारत के कर्ज में 123 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है।

इन सभी सवालों का पहली नजर में साफ तौर पर देखने वाला जवाब यह है कि सारी कमाई केवल अमीरों की हो रही है। देश का कर्ज बढ़ रहा है। महंगाई बढ़ रही है। महंगाई के हिसाब से मेहनत आना और वेतन नहीं बढ़ रहा। देश के कर्ज की भरपाई टैक्स लगाकर होती है। बांड जारी करके होती है। टैक्स लगाने का मतलब है कि आम इंसानों पर अधिक मार पड़ रही होगी। बांड जारी करने का मतलब है कि बैंक में रखे हुए बचत पर रत्ती बराबर ब्याज दर मिलता है।

अगर कर्ज का इस्तेमाल ठीक से होता। पूंजी पतियों की संपत्ति बढ़ाने के बजाय और इलेक्टोरल बांड में पैसा लगने के बजाय आम लोगों पर इन्वेस्ट किया जाता तो मांग बढ़ती। रोजगार बढ़ता। पटरी से उतर चुकी अर्थव्यवस्था पटरी पर आती। लोग तरक्की करते। देश तरक्की करता। यह सब नहीं हो रहा है। कर्ज़ का सारा पैसा अमीरों के बनाए नेटवर्क में फंसकर रह जा रहा है। नीचे तक नहीं पहुंच पा रहा।

इस पूरी बहस का मतलब यह था कि एक गरीब मुल्क के लोगों को बढ़ते हुए कर्ज की चिंता नहीं करनी चाहिए। देश के कर्ज की तुलना घर के कर्ज से नहीं करनी चाहिए। देश के केवल बढ़ते हुए कर्ज की चिंता करने पर एक गरीब मुल्क के लोग उसी चंगुल में फंसकर रह जाते हैं जिस चंगुल के सहारे पूंजीपति अपने फायदे के लिए देश को चला रहे होते हैं।  इसलिए असली सवाल यह बनता है कि सरकार कर्ज लें। कर्ज लेने का रोना ना रोए। बल्कि यह बताएं कि कर्ज लेने के बाद भी आम लोगों को रोजगार क्यों नहीं मिला? आम लोगों के मजदूरी में बढ़ोतरी क्यों नहीं हुई? ढेर सारे लोग गरीब क्यों हो रहे हैं? चंद लोग अमीर क्यों हो रहे हैं?

unemployment
Rising Unemployment
poverty
Narendra modi
Modi Govt
indian economy
youth issues

Related Stories

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

राष्ट्रीय युवा नीति या युवाओं से धोखा: मसौदे में एक भी जगह बेरोज़गारी का ज़िक्र नहीं

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

नोएडा : प्राइवेट कोचिंग सेंटर पर ठगी का आरोप, सीटू-डीवाईएफ़आई ने किया प्रदर्शन

भाजपा से क्यों नाराज़ हैं छात्र-नौजवान? क्या चाहते हैं उत्तर प्रदेश के युवा

झारखंड: राज्य के युवा मांग रहे स्थानीय नीति और रोज़गार, सियासी दलों को वोट बैंक की दरकार

क्या बजट में पूंजीगत खर्चा बढ़ने से बेरोज़गारी दूर हो जाएगी?

छात्रों-युवाओं का आक्रोश : पिछले तीन दशक के छलावे-भुलावे का उबाल


बाकी खबरें

  • Lakhimpur case
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    लखीमपुर कांड: मुख्य आरोपी और केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा को मिली ज़मानत
    10 Feb 2022
    केंद्रीय मंत्री के बेटे की ओर से पेश वकील ने अदालत से कहा था कि उनका मुवक्किल निर्दोष है और उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है कि उसने किसानों को कुचलने के लिए घटना में शामिल वाहन के चालक को उकसाया था।
  • uttarakhand
    मुकुंद झा
    उत्तराखंड चुनाव : टिहरी बांध से प्रभावित गांव आज भी कर रहे हैं न्याय की प्रतीक्षा!
    10 Feb 2022
    उत्तराखंड के टिहरी ज़िले में बने टिहरी बांध के लिए ज़मीन देने वाले ग्रामीण आज भी बदले में ज़मीन मिलने की आस लगाए बैठे हैं लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
  •  Bangladesh
    पीपल्स डिस्पैच
    बांग्लादेश: सड़कों पर उतरे विश्वविद्यालयों के छात्र, पुलिस कार्रवाई के ख़िलाफ़ उपजा रोष
    10 Feb 2022
    बांग्लादेश में शाहजलाल विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ हुई पुलिस कार्रवाई के बाद, देश के कई विश्वविद्यालयों में छात्र एकजुटता की लहर दौड़ गई है। इन प्रदर्शनकारी छात्रों ने…
  • Newsletter
    ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    वैश्विक निरक्षरता के स्थिर संकट के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएँ
    10 Feb 2022
    संयुक्त राष्ट्र ने नोट किया कि 'दुनिया भर में 150 करोड़ से अधिक छात्र और युवा कोविड-19 महामारी के कारण बंद स्कूल और विश्वविद्यालयों से प्रभावित हो रहे हैं या प्रभावित हुए हैं'; कम से कम 100 करोड़…
  • donkey
    शिरीष खरे
    हमारे लिए गधा आज भी 'गधा', जबकि विदेश में बढ़ रही कद्र!
    10 Feb 2022
    आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2012 की पशुधन गणना से वर्ष 2019 की नवीनतम पशुधन गणना तक, गधों की आबादी में सबसे तेज 61.23 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License