NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
कटाक्ष: किसानो, कुछ तो रहम करो...लिहाज करो!
मनाएं, किसान अपनी जीत का जश्न। बस, सरकार को हराने का शोर नहीं मचाएं। इस शोर से दुनिया भर में छप्पन इंच की छाती वालों की बदनामी होगी सो होगी, देश में मजदूरों-वजदूरों और न जाने किस-किस को कैसा गलत संदेश जाएगा...
राजेंद्र शर्मा
11 Dec 2021
kisan andolan
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

भक्त लोग गलत नहीं कहते थे। ये किसान हो ही नहीं सकते। भला किसान ऐसे भी होते हैं क्या? बताइए, जाते-जाते मोदी जी के भक्तों तो भक्तों, भक्तों के भगवान तक को, जीभ चिढ़ाकर जा रहे हैं। विजय जुलूस निकाल रहे हैं, विजय जुलूस! नारे लगा रहे हैं। मिठाइयां बांट रहे हैं। बताइए, इसमें जीत-हार की क्या बात है? आखिर, जीत-जीत का शोर मचाकर, ये क्या साबित करना चाहते हैं? इनसे, सरकार हार गयी। छप्पन इंच की छाती वाली सरकार हार गयी। मोदी जी की सरकार हार गयी? खैर! कौन हारा है और कौन जीता है, इस पर तो बहस आगे भी चलती रहेगी। पर इससे क्या एक बार फिर साबित नहीं हो गया कि ये किसान नहीं हैं। कोई और हैं? किसानों के भेष में मोदी जी के विरोधी। मोदी जी के राज में देश को आगे बढ़ते देखना हजम नहीं कर पा रहे एंटी-नेशनल। टुकड़े-टुकड़े गैंग।

किसान होते, तो ऐसे हार-जीत की नहीं सोचते। सरकार को हराकर जीतने की बात तो हर्गिज नहीं। मोदी जी की उस सरकार को हराने की बात तो किसी भी तरह से नहीं, जो किसानों को अन्नदाता कहकर उनकी पूजा करती है--बस किसान असली हों, प्रेमचंद वाले नंगे सिर किसान; लाल, नीली, हरी, सफेद, रंग-रंग की पगड़ियों और टोपियों से पहचाने जाने वाले, स्यूडो या नकली किसान नहीं!

नहीं, नहीं हम यह नहीं कह रहे हैं कि किसानों को यह मानना ही नहीं चाहिए कि उनकी जीत हुई है। मानते रहें किसान कि उनकी जीत हुई है, कौन रोकता है? उल्टे किसानों के तो यह मानने में ही सब का फायदा है कि उनकी जीत हुई है। वैसे भी मोदी जी ने तीनों कृषि कानून रद्द करा दिए हैं। एमएसपी पर कमेटी बना दी है। मुकद्दमे वापस लेने का वादा कर दिया है और मरने वालों के लिए मुआवजा देने का भी। मोदी जी ने सारी मांगें मान तो लीं! किसान मानें अपनी जीत। किसी को क्या प्राब्लम है। बल्कि साल भर बाद किसान, राजधानी के बार्डरों से घर लौट रहे हैं। जीत मानेंगे तभी तो खुशी-खुशी अपने घर जाएंगे। वर्ना बार्डरों से हटते ही नहीं तो? कोई भरोसा है, बैठे रह जाते एक साल और! या उससे भी आगे! साल भर बैठे रहेंगे, यही साल भर पहले किस ने सोचा था? और अगर वे जीत की जगह हार मानकर वापस लौटते तो? बेचारे भगवाइयों का गांवों में घुसना तो परमानेंटली बंद ही रहता! सो खुशी-खुशी घर-गांव लौटें इसी में सब का फायदा है। मनाएं, किसान अपनी जीत का जश्न। बस, सरकार को हराने का शोर नहीं मचाएं। इस शोर से दुनिया भर में छप्पन इंच की छाती वालों की बदनामी होगी सो होगी, देश में मजदूरों-वजदूरों और न जाने किस-किस को कैसा गलत संदेश जाएगा और कल को न जाने कौन नया शाहीनबाग बनाने बैठ जाएगा!

जीत मानकर ही जाते हैं किसान तो जीत मानकर जाएं, पर जल्दी-जल्दी जाएं अपने घर। यह दूसरी बात है कि मोदी जी का मास्टरस्ट्रोक यही तो है। जी हां मास्टरस्ट्रोक। कई लोग इसे सर्जिकल स्ट्राइक से गड्डमड्ड कर देते हैं, पर वह गलत है। मास्टरस्ट्रोक और सर्जिकल स्ट्राइक, मोदी जी की दोनों में महारत जरूर है, पर दोनों में महत्वपूर्ण अंतर भी है। सर्जिकल स्ट्राइक दूसरों पर की जाती है, जिसमें अपनी जीत और दूसरे की हार होती है। लेकिन मास्ट्ररस्ट्रोक में स्ट्राइक तो होती है, पर कोई दूसरा नहीं होता है। इसलिए, मास्टरस्ट्रोक में किसी की हार भी नहीं होती है, बस सब की जीत ही जीत होती है। मोदी जी का मास्टरस्ट्रोक था, तभी तो संसद में वोटिंग-वोटिंग तो छोड़िए, बिना बहस के कानून पास हो गए। कानून किसानों के हित में जो थे। मास्टरस्ट्रोक था, सो साल भर बाद संसद में बिना बहस के ही कानून खारिज भी हो गए। कानून हटाना किसानों के हित में जो था। न बनाने में बहस और न हटाने में बहस; दोनों किसानों के फायदे के लिए जो थे। बिना बहस के बार्डर खाली और दूसरी 26 जनवरी से पहले किसान वापस; यह भी अगर मास्टरस्ट्रोक नहीं है तो, मास्टरस्ट्रोक क्या होगा!

किसानों की जीत को पिछले चुनावों में मोदी जी की हार से जोडऩे वाले, मोदी जी के मास्टरस्ट्रोक को अभी समझे ही नहीं हैं। मोदी जी का मास्टरस्ट्रोक तो साक्षात पॉजिटिविटी ही होता है। उसमें हार जैसी किसी नेगेटिविटी के लिए कोई जगह ही नहीं है। पिछले विधानसभाई चुनावों या उसके बाद के उपचुनावों के नतीजों का भी, मोदी जी के इस मास्टरस्ट्रोक से कोई संबंध नहीं है। इसका संबंध तो जीत की पॉजिटिविटी से है, खासतौर पर उप्र, उत्तराखंड, पंजाब में जीत की पॉजिटिविटी बढ़ाने से। किसान खुश होकर वापस घर जाएगा, तभी तो पॉजिटिव नतीजा मोदी जी के घर आएगा। इस चुनाव में न सही, 2024 के चुनाव में सही, मोदी जी का मास्टरस्ट्रोक, कभी न कभी तो अपना असर दिखाएगा। वैसे भी पब्लिक वोट किसी को भी डाले, फिर मोदी ही आएगा!

किसान यह भी नहीं भूलें कि मोदी जी के उन्हें जीतने देने के इस मास्टरस्ट्रोक में भी एक और मास्टरस्ट्रोक छुपा है। किसान जानते हैं कि उनकी बाकी सारी मांगें भले मान ली हों, पर मोदी जी ने एक मांग अब भी नहीं मानी है। किसान वापस जा रहे हैं, पर टेनी जी कहीं गए क्या? टेनी जी मंत्री हैं, थे और रहेंगे! फिर जीता कौन? किसान अगर हार-हार कर के मोदी जी को मुंह चिढ़ाएंगे, तो टेनी जी भी गृहमंत्रालय में बैठकर उन्हें अंगूठा दिखाएंगे। घर वापसी का मजा किरकिरा क्यों करना? किसानो, कम से कम इतना तो लिहाज करो, मोदी जी की हार को हार मत कहो!  

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

kisan andolan
farmres protest
sarcasm
MSP
Farm Laws
Narendra modi
Modi Govt

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

मनरेगा: ग्रामीण विकास मंत्रालय की उदासीनता का दंश झेलते मज़दूर, रुकी 4060 करोड़ की मज़दूरी

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License