NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
व्यंग्य
भारत
राजनीति
कटाक्ष: ये बुलडोजरिस्तान हमारा, हम को प्राणों से है प्यारा!
सच तो यह है कि बुलडोजर, मोदी जी के नये भारत की निशानी है। दिखाने में सेक्युलर और घर-दुकान गिराने में, छांट-छांटकर चलने वाला। बाबा का, मामा का या और किसी भी भगवाधारी का बुलडोजर जब चलता है, पुराना धर्मनिरपेक्ष भारत ही मलबे में ढलता है।
राजेंद्र शर्मा
16 Apr 2022
bulldozer

ये सरासर फेक न्यूज है। इस मामले में हम किसी सरकारी खंडन का या गैर-सरकारी फैक्ट चैक का इंतजार नहीं करने जा रहे हैं। हम तो कहेंगे कि फेक न्यूज भी क्यों यह तो दुष्प्रचार है, पक्का दुष्प्रचार। यह तो मोदी जी की सरकार को और उनके संघ परिवार को, दुनिया भर में बदनाम करने की साजिश है। वर्ना मोदी जी ने तो कभी नहीं कहा कि हिंदुस्तान का नाम बदलकर बुलडोजरिस्तान कर दिया जाएगा। लाल किले से या संसद के भाषणों को तो छोड़ो, मोदी जी ने तो कभी मन की बात या परीक्षा पर चर्चा तक में, देश का नाम बदलने की चर्चा नहीं की।

शहरों के नाम बदलने की चर्चा की होगी, संस्थाओं के, योजनाओं के नाम बदलने की चर्चा की होगी बल्कि बदले भी होंगे, सत्तर साल में जो-जो नहीं हुआ, वह सब करने की बात कही होगी, पुराने भारत को ढहाकर, नया इंडिया खड़ा करने की बात कही होगी, पर बुलडोजरिस्तान का जिक्र कभी नहीं किया।

अरे, मोदी जी ने तो कभी बुलडोजर का जिक्र तक नहीं किया। फिर ये बुलडोजरिस्तान का शोर क्यों हो रहा है! और हां! यह भी फेक न्यूज ही है कि अगर देश के नाम में नहीं तो कम से कम संघ के भगवा ध्वज में तो बुलडोजर टांका ही जाने वाला है। माना कि संघ ने पैंट हॉफ से बदलकर फुल कर दिया है और खाकी से बदलकर भूरा, लेकिन उसने दिल-दिमाग रत्तीभर नहीं बदला है। फिर उसका झंडा भी क्यों बदलेगा, भले ही उस पर उसका प्रिय बुलडोजर ही क्यों न टांका जा रहा हो।

पर अफवाह में से अफवाह निकलती है। अफवाह फैलाने वालों के पास, बुलडोजर के देश के नाम में या संघ के झंडे में नहीं टांके जाने के लिए भी, पहले ही एक और अफवाह तैयार है। कह रहे हैं कि बुलडोजर तो टांक ही दिया गया था, पर मंदिर ने अडंग़ी लगा दी। राम मंदिर वाले अड़ गए कि अगर अब कुछ भी बदलेगा, तो राम मंदिर को एकोमडेट करने के लिए बदलेगा। आडवाणी जी मार्गदर्शक की जगह मार्गदर्शन मंडल में चले गए तो क्या, उनकी यह बात कोई न भूले कि राम मंदिर ने ही भगवाइयों को सत्ता तक पहुंचाया है। देश के नाम में हो या झंडे के बीच में, आएगा तो राम मंदिर ही।

मोदी जी के शिलापूजन के बाद, इसमें किसी बहस की गुंजाइश ही कहां है? लेकिन, राम मंदिर के दावे में काशी-विश्वनाथ वालों ने टांग अड़ा दी। बोले काशी, हर-हर महादेव के बाद, अब घर-घर मोदी की नगरी है और काशी-विश्वनाथ कॉरीडोर, मोदी जी का प्रिय प्रोजैक्ट है, दिल्ली वाले सेंट्रल विस्टा की तरह। नाम हो या झंडा, काशी के दावे की उपेक्षा नहीं की जा सकती है।

उधर मथुरावाले अलग ऐंठ रहे थे। ना मस्जिद हटायी और न द्वारकाधीश की कॉरीडोर बनवाई और अब नाम रखने में भी उपेक्षा; अब आना चुनाव के टैम पर! गोरक्षा-गोरक्षा कर के मॉब लिंचिंग करने वालों को तो अपना दावा ठीक से पेश करने का मौका तक नहीं मिला। तब तक नागपुर से निर्देश आ गया--आरक्षण की तरह, नाम हो या झंडा, यथास्थिति ही भली!

लेकिन, ये बाद वाली अफवाह, पहले वाली से भी ज्यादा झूठी है। झूठी क्या खतरनाक है जी, खतरनाक। ये तो बुलडोजर को मंदिर से ही भिड़ाने की कोशिश है। केसरिया भाई कभी ऐसी फूट डालने की कोशिश को कामयाब नहीं होने देंगे। वैसे भी, बुलडोजर और मंदिर में कोई भेद ही कहां है? भेद होता तो क्या राम नवमी के जुलूस के बवाल के फौरन बाद, खरगौन में छांट-छांटकर राम-विरोधियों के घरों पर मामा जी का बुलडोजर चलता? सच बात तो यह है कि मामा जी का बुलडोजर जब भी चलता है, राम विरोधियों पर ही चलता है। एकाध साल पहले, राम मंदिर के लिए चंदा देने से कतराने वालों पर चला था और इस बार राम नवमी न मनाने वालों पर।

मामा जब-जब बुलडोजर के ड्राइवर की सीट पर बैठे हैं, राम लला बगल में मार्गदर्शक सीट पर रहे हैं। और बुलडोजर वाले योगी जी का तो खैर कहना ही क्या? बुलडोजर पर सवार होकर फिर लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास तक पहुंच गए। और अब तो खैर, गुजरात में भी राम नवमी के जुलूस के बाद वाला बुलडोजर चल रहा है। कुछ महीनों में चुनाव भी तो है। आगे-आगे देखिए बुलडोजर चलाता है कौन-कौन? मंदिर और बुलडोजर वालों में कहां कोई भेद है! फिर यह झूठा प्रचार क्यों किया जा रहा है कि मंदिर वालों ने बुलडोजर का रास्ता रोक दिया? बुलडोजर तो बदस्तूर चल रहा है।

सच तो यह है कि बुलडोजर, मोदी जी के नये भारत की निशानी है। दिखाने में सेक्युलर और घर-दुकान गिराने में, छांट-छांटकर चलने वाला। बाबा का, मामा का या और किसी भी भगवाधारी का बुलडोजर जब चलता है, पुराना धर्मनिरपेक्ष भारत ही मलबे में ढलता है।

और बुलडोजर चलाने वाला, उतना ही बड़ा हिंदुत्वप्रेमी बनता है। इसीलिए, तो नागपुरियों को बुलडोजर पसंद है। और मोदी जी के बुलडोजर का जिक्र नहीं करने से कोई यह नहीं समझे कि उन्हें बुलडोजर पसंद नहीं है। मौनम स्वीकृत लक्षणम्ï। बुलडोजर उन्हें पसंद नहीं होता तो चलता क्या, वह भी यूपी-एमपी से लेकर गुजरात तक? सच पूछिए तो नगरपालिकाओं वगैरह के हाथ से निकलकर, पुलिस-प्रशासन के हाथ लगा बुलडोजर, भी मोदी जी वाले ऑरीजिनल गुजरात मॉडल का ही हिस्सा है। 2002 में अहमदाबाद में जब वली गुजराती उर्फ वली दकनी के मजार को ढहाकर, उस जगह पर सडक़ बनवायी गयी थी, वहीं से तो बुलडोजर की नये इंडिया वाली भूमिका की शुरूआत हुई थी। खुद बुलडोजर पर चढक़र दिल्ली के तख्त तक पहुंचे मोदी जी बुलडोजर को भला नापसंद क्यों करेंगे?

पर बुलडोजरिस्तान, अभी नहीं। अभी तो वैसे भी अमृत काल चल रहा है। फिर कौन कह सकता है कि जो बुलडोजर आज इतना विध्वंसक लग रहा है, कल को हिंदुत्ववादी राष्ट्र के लिए छोटा नहीं पड़ जाएगा। तोप-टैंक वगैरह की जरूरत पड़ नहीं पड़ जाएगी। फिर क्या रोज-रोज नाम बदलते रहेंगे, बुलडोजरिस्तान से तोपिस्तान, तोपिस्तान से टैंकिस्तान, वगैरह। इससे तो अच्छा यही है कि साइनबोर्ड हिंदुस्तान का ही रहे, भीतर-भीतर चाहे बुलडोजर चलता रहे या टैंक। और बदलना ही होगा, तो तिरंगे झंडे में चरखे वाली जगह भी तो है!

(यह एक व्यंग्य आलेख है। लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

sarcasm
Satire
Political satire
Bulldozer
Bulldozer Politics
Shivraj Singh Chauhan
Yogi Adityanath

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

तिरछी नज़र: 2047 की बात है

कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 

ताजमहल किसे चाहिए— ऐ नफ़रत तू ज़िंदाबाद!

तिरछी नज़र: ...ओह माई गॉड!

कटाक्ष: एक निशान, अलग-अलग विधान, फिर भी नया इंडिया महान!

तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 
    20 May 2022
    देश में दो दिनों तक गिरावट के बाद फिर से कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी होने लगी है। देश में पिछले 24 घंटो में कोरोना के 2,259 नए मामले सामने आए हैं। 
  • पारस नाथ सिंह
    राज्यपाल प्रतीकात्मक है, राज्य सरकार वास्तविकता है: उच्चतम न्यायालय
    20 May 2022
    सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड के एक दोषी एजी पेरारिवलन को रिहा कर दिया, क्योंकि तमिलनाडु के राज्यपाल ने राज्य मंत्रिमंडल की सज़ा को माफ़ करने की सलाह को बाध्यकारी नहीं माना।
  • विजय विनीत
    मुद्दा: ज्ञानवापी मस्जिद का शिवलिंग असली है तो विश्वनाथ मंदिर में 250 सालों से जिसकी पूजा हो रही वह क्या है?
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े सवालों का जवाब ढूंढने के लिए ‘न्यूज़क्लिक’ के लिए बनारस में ऐसे लोगों से सीधी बात की, जिन्होंने अपना बचपन इसी धार्मिक स्थल पर गुज़ारा।
  • पार्थ एस घोष
    पीएम मोदी को नेहरू से इतनी दिक़्क़त क्यों है?
    19 May 2022
    यह हो सकता है कि आरएसएस के प्रचारक के रूप में उनके प्रशिक्षण में ही नेहरू के लिए अपार नफ़रत को समाहित कर दी गई हो। फिर भी देश के प्रधानमंत्री के रूप में किए गए कार्यों की जवाबदेही तो मोदी की है। अगर…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी, ताज, क़ुतुब पर बहस? महंगाई-बेरोज़गारी से क्यों भटकाया जा रहा ?
    19 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि आखिर क्यों जनता को महंगाई, बेरोज़गारी आदि मुद्दों से भटकाया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License