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विज्ञान: समुद्री मूंगे में वैज्ञानिकों की 'एंटी-कैंसर' कम्पाउंड की तलाश पूरी हुई
आख़िरकार चौथाई सदी की मेहनत रंग लायी और वैज्ञानिक उस अणु (molecule) को तलाशने में कामयाब हुए जिससे कैंसर पर जीत हासिल करने में मदद मिल सकेगी।
समीना खान
31 May 2022
soft coral
समुद्र में मौजूद नर्म मूंगे

पहली बार इस नर्म मूंगे को समुद्री चट्टानों में खोजा गया था लेकिन उस समय इसके बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं मिल सकी थी। अब जब ये एक बार फिर से शोधकर्ताओं की पहुंच में है तो इसकी एक और खूबी का पता चल चुका है। इस मॉलिक्यूल की खासियत ये है कि इसे संश्लेषण प्रक्रिया के तहत प्रयोगशाला में भी तैयार किया जा सकता है।

समुद्र बेशुमार औषधियों का खज़ाना अपने अंदर समेटे है। शोधकर्ताओं का मानना है कि समुद्र और विशेषकर इन कोरल में हजारों औषधीय गुण मौजूद हैं। इसमें मौजूद रंग बिरंगे मूंगे यानी कोरल कई किस्म के नायाब केमिकल का निर्माण करते हैं।

ऑस्ट्रेलया के क्वींसलैंड में 1990 के दशक में वैज्ञानिकों ने एलुथेरोबिन की खोज की। इस खोज पर समुद्री वैज्ञानिकों का कहना था कि ऑस्ट्रेलिया के पास एक दुर्लभ कोरल में कैंसर रोधी गुणों वाला एक रसायन मिला है, जिसे एलुथेरोबिन कहते हैं। ये रसायन साइटोस्केलेटन को बाधित करता है और नरम मूंगा इसे अपने शिकारियों के खिलाफ बचाव के लिए उपयोग करते हैं। बाद में प्रयोगशाला में किये गए अध्ययनों से पता चला है कि ये यौगिक कैंसर कोशिका वृद्धि में एक प्रबल अवरोधक भी था। यह कम्पाउंड कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के साथ उन्हें रोकने में तो कामयाब था मगर उस समय वैज्ञानिक ये नहीं पता लगा सके थे कि इसका निर्माण कैसे होता है या ये कैसे उत्पन्न हुआ है।

वैज्ञानिक लंबे समय से इस पर खोज कर रहे थे कि एलियोथेरोबिन की आनुवंशिक संरचना का पता लगा सकें। साथ ही इस तहक़ीक़ में वह ये भी जानना चाहते थे कि इस विशेष कोरल का निर्माण स्वयं होता है या फिर या उनसे जुड़े छोटे पौधे, डाइनोफ्लैगलेट्स इन रसायनों का उत्पादन करते हैं? क्योंकि अभी भी इन कोरल भित्तियों से एलुथेरोबेन की इतनी मात्रा नहीं मिल सकी है जिससे दवाई बनाई जा सके या फिर रिसर्च में प्रयोग किया जा सके।

समुद्र तल की पड़ताल करने वाले वैज्ञानिकों ने हाल ही में जिस नायाब रसायन के मिलने का खुलासा किया है उसकी खातिर ड्रग हंटर्स तकरीबन तीन दशकों से तलाश में जुटे थे। इस प्राकृतिक रसायन के स्रोत की खोज के ज़रिये  वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज की उम्मीद की थी। मगर इनकी उपलब्धता के बावजूद पर्याप्त मात्रा में न होना इस शोध पर काम करने की सबसे बड़ी रुकावट था। न ही वैज्ञानिक इसे बनाने का तरीका तलाश कर पा रहे थे।

अब यूनिवर्सिटी ऑफ़ यूटा हेल्थ के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट कहती है कि पानी के नीचे आसानी से मुहैया नर्म और लचीले मूंगे के पौधों इस मायावी यौगिक का निर्माण करते हैं।

रसायन की पहचान ने इस रिसर्च को एक क़दम आगे बढ़ाया है।  इसके डीएनए की संरचना की बदौलत इसे तैयार करने का तरीका तलाशने का काम आसान हुआ। इस तरह से अब ये केमिकल लेबोरेट्री में पर्याप्त मात्रा में तैयार किया जा सकता है। 1990 में होने वाली इस खोज के बावजूद शोध का काम महज़ इस लिए आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि दवा बनाने के लिए आवश्यक मात्रा में रसायन नहीं मिला। उस समय वैज्ञानिक इस सवाल को हल नहीं कर पा रहे थे कि ये रसायन कैसे बना।

समुद्री जीवन में इस रसायन की प्राप्ति सहजीवी जीवों द्वारा संश्लेषित माध्यम से जानवरों के अंदर ही होती है। इसके बावजूद वर्तमान में ये तथ्य निकल कर आया कि कुछ मूंगे की प्रजातियों में सहजीवी जीव नहीं होते हैं मगर फिर भी उनके शरीर में रसायनों का ये वर्ग होता है। और यही तथ्य उम्मीद की किरण बना।

प्रोफ़ेसर एरिक श्मिट

इस सम्बन्ध में यूटा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एरिक श्मिट कहते हैं- "यह पहली बार है जब हम पृथ्वी पर किसी भी ड्रग लीड के साथ ऐसा करने में सक्षम हुए हैं।" यूटा यूनिवर्सिटी से प्रकाशित पत्र में प्रोफेसर एरिक श्मिट ने इस हवाले से जानकारी दी है। उनके मुताबिक़ नर्म कोरल में न केवल एलुथेरोबिन का स्रोत  पाया गया है, बल्कि इसके आनुवंशिक गुणों को भी देखने का मौक़ा मिला।

समुद्र में मौजूद सॉफ्ट कोरल में औषधि वाले हज़ारों कम्पाउंड पाए जाते हैं। इनमे एंटी इंफ्लेमेंटरी एजेंट के साथ एंटीबायोटिक्स की भी ख़ूबियां पाई जाती हैं। मगर अभी तक सबसे बड़ा मसला इन यौगिकों का पर्याप्त मात्रा में न मिल पाना था। एरिक श्मिट के मुताबिक़ पर्याप्त मात्रा में इनकी उपलब्धता की बदौलत एक नए नज़रिए के साथ रोग निदान के क्षेत्र में कई नए रास्ते भी खुलेंगे।

समुद्र में पाए जाने वाले कोरल इस रसायन का उपयोग अपने बचाव के लिए करते हैं। इसकी मदद से कोरल अपने उन शिकारियों को भगाने में सफल होते हैं जो उन्हें खाने की कोशिश करते हैं। मैगज़ीन के हवाले से श्मिट बताते हैं- लेकिन प्रयोगशाला में बनाना सरल है और इसे दवा के रूप में लेना आसान होता है।"

हालांकि दशकों पहले ही नरम मूंगों में एलुथेरोबिन की उपस्थिति की जानकारी मिल गई थी मगर वैज्ञानिक इसका निर्माण करने वाले जीन की पहचान करने में असमर्थ थे। वैज्ञानिक लॉबी में इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या मूंगे खुद एलुथेरोबिन बना रहे हैं, या इसे सहजीवी डाइनोफ्लैगलेट्स से प्राप्त कर रहे हैं, जो कोरल को अपना रंग और शर्करा देते हैं। डॉक्टर एरिक और उनकी टीम के सदस्यों ने अब ये पता लगाया है कि कोरल की क़रीबी प्रजाति वाले पौधे सी पेंस में भी एलुथेरोबिन जैसी विशेषताओं वाले रासायनिक घटकों उपस्थिति है। शोधकर्ताओं ने जीन समूहों को बैक्टीरिया में स्थानांतरित करने में सफलता पाई है और इस तरह इनके निर्माण के रहस्य से भी पर्दा हटा है। जीन क्लस्टर को अब एक संशोधित ई कोलाई बैक्टीरिया में संश्लेषित करने में कामयाबी मिली है। स्वाभाविक रूप से 'एल्यूथेरोबिन' की मात्रा कम होने की दशा में वैज्ञानिकों के पास इसका हल है। एक्सपेरिमेंट या दवा बनाने के लिए वह इसे पर्याप्त मात्रा में प्रयोगशाला में तैयार कर सकते हैं।

एडवांस डीएनए टेक्नोलॉजी की प्रगति से अब किसी भी प्रजाति के कोड की जानकारी लेना और उससे सम्बंधित काम को करना काफी आसान हो चुका है।

सोर्स: https://healthcare.utah.edu/publicaffairs/news/2022/05/coral-anti-cancer-drug.php

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।) 

Soft corals
Anti-Cancer Compound
Science
HEALTH
Medicine

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