NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राजद्रोह, असहमति और अभियुक्त के अधिकार 
भारत में राजद्रोह का  क़ानून अंग्रेज़ों द्वारा लागू किया गया था।
आईसीएफ़
22 Feb 2021
राजद्रोह, असहमति और अभियुक्त के अधिकार 

दिल्ली पुलिस द्वारा जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी ने राजद्रोह कानून को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है। यह सिर्फ औपनिवेशिक काल के कानून के तहत उसकी गिरफ्तारी नहीं है जिस पर सवाल उठाये जा रहे हैं, बल्कि यह दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तारी करते वक्त उचित प्रक्रिया का पालन करने में विफलता का भी प्रश्न है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं, राजनीतिज्ञों और सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने भी मनमाने पूर्ण ढंग से की गई  गिरफ्तारी को उजागर करते हुए अपनी आवाज उठाई है।

दिल्ली पुलिस ने दिशा को एक “टूलकिट” को साझा करने के मामले में अपना निशाना बनाया है। एक ऐसा दस्तावेज, जो राष्ट्रीय राजधानी में जारी किसानों के विरोध प्रदर्शन के लिए समर्थन के विभिन्न तरीके सुझाता है। निकिता जैकब और शांतनु मुकुल दो अन्य कार्यकर्त्ता हैं, जिन्हें “टूलकिट केस” के सिलसिले में गिरफ्तारी की आशंका है।

राजद्रोह में विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ घृणा, अवमानना या वैर भाव पैदा करने की कोशिश के लिए सजा का प्रावधान है। इसमें जेल की सजा हो सकती है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इस अपराध को गैर-जमानती एवं संज्ञेय की श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि अभियुक्त को जमानत हासिल करने के लिए लंबी एवं जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है।

इस बीच इंडियन एक्सप्रेस  ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दिल्ली की एक अदालत ने जेएनयू देशद्रोह मामले में सभी आरोपियों को 15 मार्च को तलब किया है, क्योंकि अब इसकी सुनवाई शुरू होनी है। जेएनयू राजद्रोह वाला मामला धारा 124 ए (राजद्रोह) और छात्रों को इसका निशाना बनाने के बीच में एक कड़ी मात्र के तौर पर नहीं है। फरवरी 2016 से जबसे जेएनयू में छात्रों द्वारा अफज़ल गुरु को फांसी दिए जाने की याद में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, तबसे राजद्रोह के मामलों में लगातार वृद्धि का क्रम बना हुआ है। इसके बाद से ही सरकार के हाथ में किसी भी विरोध की आवाज को निशाना बनाने के लिए राजद्रोह सबसे महत्वपूर्ण औजार बन गया है। किसी भी सरकारी कानूनों एवं नीतियों की खिलाफत कर रहे छात्रों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, कलाकारों और अन्य लोगों को अक्सर इसका निशाना बनाया जाता रहा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि 2016 से लेकर 2019 के बीच में भारत में राजद्रोह के मामलों में 165% की बढ़ोत्तरी देखी गई है। अकेले 2016 में ही राजद्रोह के अंतर्गत 35 मामले दर्ज किये गए थे, और 2019 में यह संख्या बढ़कर 93 हो चुकी थी। एनसीआरबी ने हालाँकि 2014 के बाद से ही राजद्रोह संबंधी आंकड़े इकट्ठे करने शुरू कर दिए  हैं। आर्टिकल 14 द्वारा प्रबंधित एक डेटाबेस के अनुसार 1 जनवरी 2010 से लेकर 31 दिसंबर 2020 के बीच में राजद्रोह मामलों के तहत फंसे 11,000 व्यक्तियों में से 65% लोगों को 2014 के बाद फंसाया गया था, जब मोदी सरकार सत्ता में आई थी। इसका यह भी कहना है कि 2010 से लेकर 2014 के बीच में वार्षिक औसत की तुलना में 2014 से लेकर 2020 के वर्षो में दर्ज किये जाने वाले राजद्रोह के मामलों में प्रति वर्ष 28% की दर से वृद्धि देखी गई है। 

इस डेटाबेस से यह भी निष्कर्ष निकलता है कि सीएए या हालिया हाथरस की घटना जैसे मामलों में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद राजद्रोह के मामलों में भारी उछाल दर्ज की गई है।

प्रक्रिया ही अपनेआप में एक सजा के तौर पर है 

सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा के स्कोप को सीमित कर दिया है। मात्र सरकार की नीतियों की आलोचना करना, राजनेताओं की आलोचना, नारे लगाने और इस प्रकार के कृत्य को राजद्रोह की श्रेणी में नहीं रखा गया है। राजद्रोह के अपराध के लिए हिंसा के लिए उकसाना या हिंसा को भड़काने का प्रयास जरुरी है। इस श्रेणी के अंतर्गत बेहद कम मामले आते हैं और सजा की दर बेहद धीमी है। हालाँकि इस धारा के तहत आने वाले आरोपियों को, जो कि गैर-जमानती है को जमानत हासिल करने के लिए बेहद लंबी प्रक्रिया के बीच से गुजरना पड़ता है, और यह प्रक्रिया ही खुद में एक सजा है। दिशा रवि का केस इसका एक उत्कृष्ट नमूना है।

दिशा को दिल्ली पुलिस ने बेंगलुरु में उसके घर से गिरफ्तार किया और दिल्ली में मजिस्ट्रेट कोर्ट में उसे अपने वकीलों से संपर्क करने की छूट दिए बिना पेश किया गया। दिल्ली पुलिस की यह कार्रवाई दिशा को अनुच्छेद 22 के तहत हासिल अधिकारों का उल्लंघन है, जिसमें उसे बेंगलुरु में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने की दरकार थी। 24 घंटे के भीतर आरोपी को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के पीछे की तार्किकता यह सुनिश्चित करना है कि गिरफ्तारी देश में मौजूद कानून के तहत की गई है।

न्यायिक जवाबदेही एवं न्यायिक सुधार अभियान (सीजेएआर) ने इस संबंध में एक बयान जारी किया है जिसमें मनमाने तरीके से गिरफ्तारी और मजिस्ट्रेट द्वारा अपने कर्तव्य से च्युत होने की निंदा की गई है।

इसमें कहा गया है कि “दिल्ली पुलिस की इस प्रकार की अवैध कार्रवाई, क़ानूनी ढोंग करने के तहत अपहरण का मामला बन जाता है।”

भले ही अदालत दिशा की सुनवाई में जो भी फैसला करे, लेकिन उसे अभी कई दिनों तक पुलिस की हिरासत में रेन होगा। न सिर्फ अनुच्छेद 22 के तहत एक आरोपी के तौर पर उसके अधिकारों का हनन हुआ है, बल्कि भारतीय संविधान के तहत आने वाले अन्य प्रावधानों के तहत भी उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।

राजद्रोह को निरस्त करना?

राजद्रोह के कानून को भारत में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया था। हालाँकि 2009 में इस कानून को ब्रिटेन में निरस्त कर दिया गया था। इसके विपरीत भारत में न सिर्फ इस कानून को व्यापक तौर पर इस्तेमाल में लाया जा रहा है, बल्कि चुनावी अभियानों में भी इसका उपयोग किया जाता है। 2019 में प्रधान मंत्री मोदी ने कांग्रेस द्वारा अपने चुनावी घोषणापत्र के एक हिस्से के रूप में इस कानून को निरस्त करने का वादा करने पर मखौल उड़ाया था, और भाजपा नेताओं द्वारा 2019 के चुनावों में इस कानून में संशोधन कर इसे और अधिक सख्त कानून बनाने का वादा दोहराया गया था। इसी प्रकार पिछले साल दिल्ली चुनावों के दौरान भाजपा ने यह वायदा भी किया था कि यदि वे दिल्ली में चुने जाते हैं तो जेएनयू राजद्रोह मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी देंगे।

यह कानून असहमति की आवाज को कुचलने और नागरिकों को प्रताड़ित करने के साथ-साथ वोट हासिल करने के लिए राजद्रोह पर भाजपा सरकार की निर्भरता को दर्शाता है।

साभार: इंडियन कल्चरल फोरम 

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Sedition, Dissent and The Rights of Accused

Sedition
UAPA
BJP
Modi government
Disha Ravi
farmers protest

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • CORONA
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 15 हज़ार से ज़्यादा नए मामले, 278 मरीज़ों की मौत
    23 Feb 2022
    देश में 24 घंटों में कोरोना के 15,102 नए मामले सामने आए हैं। देश में कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 4 करोड़ 28 लाख 67 हज़ार 31 हो गयी है।
  • cattle
    पीयूष शर्मा
    यूपी चुनाव: छुट्टा पशुओं की बड़ी समस्या, किसानों के साथ-साथ अब भाजपा भी हैरान-परेशान
    23 Feb 2022
    20वीं पशुगणना के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पूरे प्रदेश में 11.84 लाख छुट्टा गोवंश है, जो सड़कों पर खुला घूम रहा है और यह संख्या पिछली 19वीं पशुगणना से 17.3 प्रतिशत बढ़ी है ।
  • Awadh
    लाल बहादुर सिंह
    अवध: इस बार भाजपा के लिए अच्छे नहीं संकेत
    23 Feb 2022
    दरअसल चौथे-पांचवे चरण का कुरुक्षेत्र अवध अपने विशिष्ट इतिहास और सामाजिक-आर्थिक संरचना के कारण दक्षिणपंथी ताकतों के लिए सबसे उर्वर क्षेत्र रहा है। लेकिन इसकी सामाजिक-राजनीतिक संरचना और समीकरणों में…
  • रश्मि सहगल
    लखनऊ : कौन जीतेगा यूपी का दिल?
    23 Feb 2022
    यूपी चुनाव के चौथे चरण का मतदान जारी है। इस चरण पर सभी की निगाहें हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में हर पार्टी की गहरी हिस्सेदारी है।
  • Aasha workers
    वर्षा सिंह
    आशा कार्यकर्ताओं की मानसिक सेहत का सीधा असर देश की सेहत पर!
    23 Feb 2022
    “....क्या इस सबका असर हमारी दिमागी हालत पर नहीं पड़ेगा? हमसे हमारे घरवाले भी ख़ुश नहीं रहते। हमारे बच्चे तक पूछते हैं कि तुमको मिलता क्या है जो तुम इतनी मेहनत करती हो? सर्दी हो या गर्मी, हमें एक दिन…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License