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भारत
राजनीति
शिवसेना+एनसीपी+कांग्रेस: महाराष्ट्र और देश की राजनीति में एक चौंकाने वाला प्रयोग
अपने उग्र हिंदुत्ववादी तेवर के लिए जानी जाने वाली शिवसेना ने बीजेपी से अपनी लगभग तीन दशक पुरानी यारी को तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। महाराष्ट्र में इन तीनों दलों के सम्मिलित सरकार की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
22 Nov 2019
maharastra elections
Image courtesy: Maharashtra Today

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के करीब महीने भर बाद अब शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की साझा सरकार बनना लगभग तय हो गया है। अब नई सरकार के गठन एवं इसकी रूपरेखा के बारे में जल्द ही घोषणा की जा सकती है।

शुक्रवार को कांग्रेस नेता माणिकराव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने सरकार गठन पर राज्यस्तरीय बैठकों में इस पद की मांग नहीं की है। सूत्रों ने बताया है कि मुख्यमंत्री पद पांच साल के लिए शिवसेना को दिया जा सकता है।

माणिकराव ने कहा कि शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा के नेता कुछ लंबित मामलों को स्पष्ट करने के लिए शुक्रवार को बाद में साथ में बैठेंगे और सरकार गठन का दावा करने के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलने के समय को लेकर फैसला लेंगे।

इस बीच, माणिकराव ने कहा कि शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस अपनी आंतरिक बैठकें कर रही हैं और वे इस बारे में बाद में फैसला करेंगी कि उन्हें संयुक्त बैठक कब करनी है।

आपको बता दें कि भाजपा और शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। महाराष्ट्र की 288 सदस्य वाली विधानसभा में भाजपा को 105 सीटें और शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं लेकिन बाद में मुख्यमंत्री पद पर साझेदारी के मुद्दे पर दोनों दल अलग हो गए थे। अब सरकार गठन को लेकर शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के बीच बातचीत चल रही है। महाराष्ट्र में 12 नवंबर से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है।

इससे पहले शिवसेना के सांसद संजय राउत ने शुक्रवार को कहा कि शिवसेना को भगवान इंद्र के सिंहासन का प्रस्ताव मिले तब भी वह भाजपा के साथ नहीं आएगी। अटकलें थी कि भाजपा मुख्यमंत्री पद शिवसेना के साथ साझा करने को तैयार है। इस बारे में सवाल पर राउत ने कहा, ‘प्रस्तावों के लिए वक्त अब खत्म हो चुका है। महाराष्ट्र की जनता शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहती है।’

हालांकि इस नए बने गठबंधन की सफलता को लेकर भी तमाम जानकार सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह गठबंधन वैचारिक आधार पर नहीं, बल्कि भाजपा के विरोध के आधार पर हो रहा है। भाजपा के विरोध में जो पार्टियां साथ आ रही हैं उन्हें लगता है कि यह आज के समय की जरूरत है, लेकिन यह प्रयोग कितने समय तक चलेगा, उस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके लिए कर्नाटक का उदाहरण दिया जा रहा है। जहां पर दो पार्टियों का गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल पाया। महाराष्ट्र में फिलहाल तीन दल गठबंधन कर रहे हैं।

कांग्रेस नेता संजय निरूपम लगातार इस गठबंधन पर सवाल उठा रहे हैं। शुक्रवार को संजय ने ट्वीट करके कहा है कि इससे बीजेपी को फायदा होगा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने लिखा है, "तीन तिगाड़े काम बिगाड़े वाली सरकार चलेगी कब तक?"

संजय निरूपम की तरह ही बहुत सारे लोग इस गठबंधन को एक अलग ही नजरिये से देख रहे हैं। उनका कहना है कि इस गठबंधन से शिवसेना को तो नुकसान हो ही रहा है क्योंकि कई लोगों को लगता है कि भाजपा के मुकाबले सीटों की संख्या बहुत कम होने पर उसकी मुख्यमंत्री पद की मांग जायज नहीं थी। कांग्रेस को विचाराधारा की दृष्टि से बड़ा नुकसान होगा क्योंकि उसके मतदाताओं को यह लगेगा कि इस पार्टी में वैचारिक दृष्टि बची ही नहीं है। धारणा की दृष्टि से भाजपा और राकांपा यानी एनसीपी फिलहाल फायदे की स्थिति में नजर आ रहे हैं।

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या कट्टर हिंदुत्व की राह पर चलने वाली शिवसेना अब एनसीपी और कांग्रेस के साथ धर्मनिरपेक्ष हो जाएगी? हालांकि इसका जवाब में अलग अलग तर्क हैं। भारतीय राजनीति में कई बार ऐसे मौके आए हैं जब शिवसेना ने अपने सहयोगी बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस का साथ दिया है। 2012 और 2007 के राष्ट्रपति चुनाव इसका सीधा उदाहरण है। इन दोनों चुनावों में शिवसेना का समर्थन लेने से कांग्रेस ने कोई परहेज नहीं किया था।

इतना ही नहीं यह सर्वविदित तथ्य है कि शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने 1975 में इंदिरा गांधी सरकार के लगाए आपातकाल का और फिर 1977 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का समर्थन किया था।

इस गठबंधन को लेकर वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को याद करते हुए अपने एक लेख में कहा है कि विचारधारा के लिहाज से दो ध्रुवों पर खड़ी भाजपा और वाम दलों को अगर साझा शत्रु के खिलाफ एकजुट होने में कोई हिचक नहीं हुई तो अब कांग्रेस को क्यों हो? कांग्रेस ने राजनीति को एकध्रुवीय बनाया था, अब भाजपा यही कर रही है। तो अब उसी तरह का लचीला रुख क्यों न अपनाया जाए?

वो लिखते हैं, 'लोकसभा में 52 सीटों और महाराष्ट्र विधानसभा में 44 सीटों (चार बड़ी पार्टियों में चौथे नंबर) पर सिमट आई कांग्रेस को अब खोने के लिए बचा क्या है?... जब आप ऐसी हताशा की स्थिति में हों तब डूबते को तिनके का सहारा भी काफी होता है, भले ही उस तिनके का रंग गहरा भगवा ही क्यों न हो।'

फिलहाल जब कांग्रेस और शिव सेना एक दूसरे के लिए राजनीतिक तौर पर अछूत नहीं रहे हैं तो अब भी उनके साथ आने से कांग्रेस और शिवसेना की छवि पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। हां इस गठबंधन का सर्वाधिक फायदा एनसीपी को मिलने की उम्मीद है। एनसीपी नेता शरद पवार इस बार किंगमेकर बन चुके हैं। साथ ही उनके पास मौका है कि वो अपने कई विरोधियों से हिसाब चुका सकें और अपनी पार्टी एनसीपी को एक नया जीवन दें।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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