NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
फिल्में
रंगमंच
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
स्मृति शेष : शौक़त उठीं और मुस्लिम मिडिल क्लास की सारी वर्जनाओं को तोड़कर कैफ़ी की हो गईं
“कैफ़ी पार्टी (सीपीआई) के लिए वक़्फ़ थे और शौक़त, कैफ़ी के लिए। एक बा हिम्मत औरत के अज़्म, हिम्मत, प्यार और संघर्ष को समझना है तो उनकी आत्मकथा ‘याद की रहगुज़र’ जिन्होंने नहीं पढ़ी उन्हें पढ़नी मुफ़ीद होगी। यह मोती और कैफ़ी की प्रेम और संघर्ष की कहानी है जो हैदराबाद से शुरू होकर बंबई के कम्यून तक पहुँचती है।”
फ़रहत रिज़वी  
24 Nov 2019
Shaukat Kaifi Azmi

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे! 70 बरस पहले लिखी गई और फ़रवरी 1947 में हैदराबाद के मुशायरे में पढ़ी गई ये नज़्म “औरत” वाक़ई शौक़त आपा के लिए एक व्यक्तिगत चैलेंज बन गई।

प्रगतिशील लेखक संघ के जलसे में नौजवान शायर कैफ़ी आज़मी मुंबई से आए थे। उस समय मैट्रिक में पढ़ रही मोती (शौक़त आपा को घर में प्यार से मोती ही पुकारते थे) अपने बड़े भाई के साथ मुशायरा सुनने गई थीं। “औरत” शीर्षक की कैफ़ी की इस कविता की हर मुशायरे में फ़रमायश होती थी। 

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे 

 

ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं 

 

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

 

क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं

तुझ में शो'ले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

 

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे 

वो उठीं और मुस्लिम मिडिल क्लास की सारी वर्जनाओं को तोड़कर कैफ़ी की हो गईं। उर्दू के जाने माने प्रगतिशील लेखक आलोचक क़मर रईस के अनुसार “कैफ़ी पार्टी (सीपीआई) के लिए वक़्फ़ थे और शौक़त, कैफ़ी के लिए। एक बा हिम्मत औरत के अज़्म, हिम्मत, प्यार और संघर्ष को समझना है तो उनकी आत्मकथा ‘याद की रहगुज़र’ जिन्होंने नहीं पढ़ी उन्हें पढ़नी मुफ़ीद होगी।"

IMG-20191124-WA0026_0.jpg

"यह मोती और कैफ़ी की प्रेम और संघर्ष की कहानी है जो हैदराबाद से शुरू होकर बंबई के कम्यून तक पहुँचती है। इसमें वाम विचारधारा से प्रभावित प्रगतिशील लेखक कलाकार जैसे रंगकर्मी हबीब तनवीर, दीना पाठक, ज़ोहरा सेहगल, अली सरदार जाफ़री व सुल्तानी जाफ़री आदि जो मुंबई के कम्यून में रहे थे उनके संघर्ष की गाथा भी है।

एक बेबाक ख़ालिस शहरी लडकी जो ख़्वाबों की सुनहरी-रुपहली दुनिया से निकलकर इंकलाबियों के टोले में आ जाती है। वहाँ प्रेम के साथ जीवन के अभाव और कम्यून के सख़्त नियम क़ानून भी थे। हैदराबाद की इस नाज़ुक सी युवती मोती के व्यक्तित्व का ट्रांफोरमेशन एक पत्नी, माँ, रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में होता है। पृथ्वी थियेटर से जुड़कर शौक़त कैफ़ी ने अपनी गृहस्थी का बोझ बहुत कुछ अपने हाथ में ले लिया था लेकिन उस चैलेंज से कभी पीछे नहीं हटीं जो कैफ़ी का हाथ थामते हुए अपने वालिद से किया था कि मैं कैफ़ी से शादी करने के फ़ैसले पर अटल हूँ। 

IMG-20191124-WA0027.jpg

आज शबाना आज़मी जो कुछ हैं उसमें उनकी माँ की क़ुर्बानियाँ और बाप का संघर्ष शामिल है। आर्थिक अभावों के बावजूद शबाना की ज़िद की ख़ातिर उनका एडमिशन महँगे इंग्लिश मीडियम स्कूल में कराया गया जिसके लिए शौक़त कैफ़ी को और ज्यादा काम करना पड़ा।

शबाना आज़मी को अभिनय कला अपनी माँ से विरासत में मिली है। पृथ्वी थियेटर और इप्टा की कलाकार ने फ़िल्मों में भी अभिनय प्रदर्शन किया। यूँ तो 1964 में फ़िल्म हक़ीक़त से शुरूआत करके 2002 में फ़िल्म साथिया तक एक दर्जन फ़िल्मों में अभिनय किया लेकिन सागर सरहदी की बाज़ार, एमएस सथ्यु की गर्म हवा, मुज़फ़्फ़र अली की उमराव जान और मीरा नायर की सलाम बॉम्बे क़ाबिले ज़िक्र फ़िल्में हैं।

शुरू में अभिनय उनकी ज़रूरत या मज़बूरी थी। इतनी पढ़ी लिखी नहीं थीं कि स्कूल टीचिंग करती या पति की तरह अख़बार में काम करती, फिर भी अपनी क्षमता को टटोला निखारा और घरेलू ज़रूरतें पूरी करने के लिए जो रास्ता सही लगा वो चुना और कामयाब भी रहीं। उनकी ये उप्लब्धि आज बहुत सी लड़कियों के लिए प्रेरणा है।

‘याद की रहगुज़र’ के हवाले से शौकत कैफ़ी की ज़िंदगी का तीसरा और अहम दौर शुरू होता है कैफ़ी आज़मी के आबाई गाँव मिजवां आज़मगढ़ बंबई के बीच। जहाँ बंबई की चकाचौंध और बेटी शबाना आज़मी की शोहरत भरी ज़िंदगी से कुछ अलग बीहड़ गाँव में बीमार पति को संभालती गाँव वालों से बतियाती बेगम कैफ़ी आज़मी से मुलाक़ात होती है।  हमारे जेएनयू के एक साथी पत्रकार असरार खान उनके काफ़ी नज़दीक रहे उनके लेख के कुछ अंश साभार:- 

“श्रीमती शौक़त कैफ़ी के इंतकाल से मुझे व्यक्तिगत तौर पर बहुत दुःख हुआ है। उनकी सादगी को देखकर कोई व्यक्ति सोच भी नहीं सकता था कि वे इतना बड़ी अभिनेत्री और इतना मशहूर परिवार की जननी हैं। 1998 में रेलवे के एक कार्यक्रम के बाद हम उनके साथ  आजमगढ़ से मिजवां जा रहे थे। फूलपुर के बाज़ार में कैफ़ी साहब ने ड्राइवर से कहा कि किनारे गाड़ी को रोक दो जहां मुर्गे की दुकान है। गाड़ी रुकी तो मैडम ने कहा मैं चिकन लेकर आती हूं। तब उनकी उम्र 70 से कुछ ऊपर रही होगी लेकिन पूरी तरह स्वस्थ और अपना हर घरेलू काम खुद ही करने की ललक साफ दिख रही थी।

कैफ़ी साहब व्हीलचेयर पर चलते थे लेकिन शौकत जी से खूब मज़ाक करते थे। जिससे प्रतीत होता था कि दोनों समान विचारवाली हस्तियों में अथाह मोहब्बत है। कैफ़ी साहब बिस्तर से बारामदे के छोटे से डायनिंग टेबल पर आए और मुझे सामने बैठने को कहा। शौक़त साहिबा खुद ही कबाब वगैरह सर्व कर रही थीं। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने कहा कि मैडम आप भी तो बैठिए  उन्होंने हंसते हुए कहा कि मैं अपना काम कर लूं फिर बैठूँगी।

उनके बैठने से पहले कैफ़ी साहब से उनकी ज़िंदगी के बारे में मैंने पूछना शुरू किया। फिर शेरो-शायरी की बात चली। उन्होंने कहा कि आप कुछ लिखते हैं तो सुनाइए मैं सुनना चाहता हूँ। मैंने छात्र आंदोलनों के दौरान लिखी  अपनी टूटी फूटी कुछ कविताएं सुनाईं... मेरी कविता के दरम्यान शौकत जी भी डायनिंग टेबल पर बैठ गईं।

उन्होंने कई ऐसी फिल्मी हस्तियों के बारे में बताया जिन्हें उन्होंने बतौर एक्टर परफॉर्मेंस का मौका दिया...

शाहगंज से आजमगढ़ को बड़ी रेल लाइन में तब्दील कराने के लिए कैफ़ी साहब ने बहुत कोशिश की। वे व्हीलचेयर पर रेलवे मिनिस्ट्री आते थे। मुझे उस प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग करने का अवसर मिला और मैं उनके परिवारिक सदस्य की तरह हो गया।

शौकत साहिबा अक्सर ही बाहर भी उनके साथ रहती थीं। उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत चिंतित रहती थीं। एक बार कैफ़ी साहब को इलाज के लिए हिमाचल में कहीं जाना था लेकिन इसी बीच कैफ़ी साहब बीमार पड़ गए। मेरे पास कैफ़ी साहब का फोन आया। उन्होंने कहा आप जल्दी से आ जाइए शबाना ने मुझे अपोलो हस्पताल में बंद करा रखा है ....उनके मज़ाक और सच में फर्क कर पाना मुश्किल होता था।

ख़ैर मैं हस्पताल में पहुंचा उसके बाद की कहानी बड़ी लंबी है लेकिन बताने लायक बात यह है कि शबाना आज़मी से मैं बातें कर रहा था तभी शौक़त साहिबा दिल्ली की किसी महिला मित्र के साथ अंदर आईं और बेड पर बैठ गईं... कैफ़ी साहब ने उनसे कहा कि असरार आए हुए हैं। वे तुरंत बेड से उठीं और मेरा हाल चाल पूछने लगीं। उस रोज मेरा इतना आदर करने का एक कारण यह भी था कि एक दिन पहले ही जब वे काफी उलझन में थीं तब मुझसे कह रही थीं कि कैफ़ी साहब के साथ जाने वाला कोई नहीं है। तब मैंने कहा था मैं चलूंगा उन्हें लेकर तब वे बहुत भावुक हो गई थीं।

इसके बाद मुंबई में कई बार उनके घर गया। नीम का पेड़ और आधा गांव सीरियल के निर्माता नौमान मलिक साहब को लेकर भी मैं उनके घर गया। दोनों पति पत्नी मुझे इतना प्यार और सम्मान देते थे कि एक बार उनके मुंह से निकल ही गया कि आप मेरे वह बेटे हैं जो मेरे पास बहुत कम दिन रहे।

शौक़त साहिबा महान व्यक्तित्व की धनी और सच्ची कामरेड थीं। दिखावा या किए गए कार्यों का तो कभी जिक्र भी नहीं...”  

ख़ुशक़िस्मती से पिछले दिनों सितंबर में उत्तर प्रदेश प्रलेस सम्मेलन में जोकहरा, आज़मगढ़ जाने का मौक़ा मिला। कैफ़ी आज़मी की जन्म शताब्दी का अवसर है तो अख़्तर हुसैन रिज़वी यानी कैफ़ी आज़मी के आबाई गांव मिजवां में भी एक कार्यक्रम का आयोजन था। जीवन भर मुंबई में संघर्ष करने, नाम शोहरत कमाने के बाद कैफ़ी अपनी जड़ों की तरफ़ लौट आए थे।

उनकी ये कहानी बड़ी मार्मिक है लेकिन मिजवां जैसे गाँव के विकास का कैफ़ी का सपना कभी भी पूरा नहीं होता अगर शौक़त आपा उनका साथ नहीं देतीं। कैफ़ी के पुराने सहकर्मी कामरेड हरमेंद्र पांडे का ज़िक्र यहाँ लाज़मी है। जिनके पास इन दोनों की ढेर सी कहानियाँ हैं। आज एसी ट्रेन कैफ़ियत जो शाहगंज तक जाती है फूलपुर रेलवे स्टेशन इन सभी मुश्किल तलब कामों में कामरेड हरमेंद्र पांडे कैफ़ी साहब के साथ साये की तरह रहते थे। 

IMG-20191124-WA0025.jpg

आज़मगढ से दिल्ली आते वक़्त हरमेंद्र जी मुझे छोड़ने स्टेशन आए तो बहुत सी बातें सुनाईं किस तरह एक दिन कैफ़ी के बुलाने पर वो सुबह सुबह ठंड में काँपते हुए फ़तेह मंजिल पहुँचे तो शौक़त आपा ने डाँट भी पिलाई और अपना लेडीज़ स्वैटर उन्हें पहना दिया। एक गर्म चादर भी दी। बता रहे थे कि सुबह को कैफ़ी से मिलने लोग आते और शौक़त आपा गर्म गर्म चाय बिस्कुट भेजती। कार्यक्रम के दौरान हम लोग दो ढाई घंटा ‘फ़तेह मंज़िल’ में ठहरे तकरीरें हुईं। चाय नाश्ता हुआ। कैफ़ी और शौक़त आपा वहाँ नहीं थे, लेकिन जो घरौंदा दोनों ने प्यार से बनाया था उसके ज़र्रे ज़र्रे में उनकी मौजूदगी महसूस हो रही थी।

देश, समाज में सांप्रदायिक सौहार्द क़ायम करने के लिए उनका जज़्बा, अपने गाँव वालों ख़ासतौर से बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए। अंतिम दिनों में कैफ़ी मिजवां में सुबह की चाय पीते हुए जब गाँव की लड़कियों को स्कूल जाता देखते थे तो मंद ही मंद ख़ुशी से मुस्कुराते थे और शौक़त आपा उन्हें निहार कर ख़ुश होती थीं। 55 साल दोनों का साथ रहा। 2002 में कैफ़ी के इंतेकाल के बाद 17 साल तक जानकी कुटीर में वो कुर्सी ख़ाली रही जहाँ दोनों साथ बैठकर चाय पीते थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Shaukat Kaifi Azmi
kaifi azmi
Shabana Azmi
Theater and Film Actress
Muslim Media
CPI
Left ideology
History of Shabana Azmi
hindu-muslim
Media

Related Stories

फ़िल्म निर्माताओं की ज़िम्मेदारी इतिहास के प्रति है—द कश्मीर फ़ाइल्स पर जाने-माने निर्देशक श्याम बेनेगल

रंगमंच जब हल्ला बोले: कला और सामाजिक बदलाव

'छपाक’: क्या हिन्दू-मुस्लिम का झूठ फैलाने वाले अब माफ़ी मांगेंगे!


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License