NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
ईरान पर 'दुबारा' प्रतिबंध इतना आसान नहीं
ट्रम्प को रूस और चीन से कुछ हद तक इस बात को लेकर आत्म-संयम बरतने की उम्मीद है कि कम से कम नवंबर में अमेरिकी चुनाव ख़त्म होने तक, वे ईरान को सैन्य तकनीक मुहैया नहीं करायेंगे।
एम. के. भद्रकुमार
18 Aug 2020
ईरान पर 'दुबारा' प्रतिबंध इतना आसान नहीं
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के सशस्त्र प्रतिबंध को अनिश्चित काल तक बढ़ाने वाले अमेरिकी प्रस्ताव को 14 अगस्त, 2020 को ज़ोरदार तरीक़े से ख़ारिज कर दिया,सिर्फ़ डोमिनिकन रिपब्लिक ने इस अमेरिकी क़दम का समर्थन किया।

शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टिप्पणी के साथ ही ईरान का परमाणु मुद्दा एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के केंद्र में आ गया है। ईरान के ख़िलाफ़ 2015 से पहले के सभी संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों की बहाली को लेकर वाशिंगटन ने अपने इरादे की घोषणा करते हुए कहा कि वाशिंगटन "ईरान के ख़िलाफ़" उन प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के पक्ष में है। ट्रम्प ने कहा, "आप इसे अगले हफ़्ते देखेंगे।"

इसके साथ ही ट्रम्प ने शुक्रवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया कि 2015 के ईरान परमाणु सौदा और फ़ारस की खाड़ी के सुरक्षा मुद्दे पर चर्चा करने के लिए जर्मनी और ईरान(जेसीपीओए के मूल हस्ताक्षरकर्ता थे) सहित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो अधिकार प्राप्त स्थायी सदस्यों का एक वीडियो शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाय। उन्हें इसकी कोई तत्काल ज़रूरत नहीं दिखी। ट्रम्प ने अस्पष्ट रूप से संकेत दिया कि वह "नवंबर के बाद" इस मुद्दे पर फिर से विचार कर पायेंगे।

ज़ाहिर है,इन "दुबारा" लगाये जाने वाले प्रतिबंधों के पीछे की असली वजह तो यही है कि वाशिंगटन मुश्किल में फंसा हुआ है और उसका "अधिकतम दबाव" वाला यह नज़रिया आगे भी सख़्त होने जा रहा है।

लेकिन,ऐसा कहते हुए ट्रम्प आख़िरकार ख़ुद को इस सौदे को अंजाम तक पहुंचाने वाला एक घाघ नेता मानते हैं और आगे सीमित अस्थिरता के एक दृष्टिकोण वाली रणनीतिक पर विचार कर रहे हैं।   

इसकी शुरुआत वह रूस और चीन से कुछ हद तक संयम बरतने की उम्मीद के साथ कर रहे हैं  कि कम से कम जब तक अमेरिकी चुनाव नवंबर में ख़त्म नहीं हो जाते, वे ईरान को सैन्य तकनीक मुहैया नहीं करायें। दूसरी ओर, ट्रंप जेसीपीओएए के मूल हस्ताक्षरकर्ताओं के "6 + 1" प्रारूप वाली विवाद समाधान व्यवस्था को प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित करने के पुतिन के प्रस्ताव को फिलहाल दरकिनार करते हुए अमेरिका की घरेलू राजनीति में किसी भी तरह के विवाद को नवंबर में होने वाले चुनाव के समय तक टालना चाहते हैं,क्योंकि उनके "अधिकतम दबाव" वाला नज़रिया उनकी मज़बूत छवि को और मज़बूती देता है। 

कोई शक नहीं कि मॉस्को का अतीत में अमेरिकी उम्मीदों पर खरा उतरने का इतिहास संदिग्ध रहा है-जब मॉस्को ने अमेरिका और इज़रायल के दबाव के चलते कई वर्षों तक ईरान को S-300 मिसाइलों की डिलीवरी में देरी की थी, तो तेहरान को मुआवज़े के लिए मॉस्को पर मुकदमा चलाने के लिए मजबूर कर दिया गया था। लेकिन,हालात अब बदल चुके हैं। अमेरिका-रूस सम्बन्ध तनावपूर्ण हैं, जबकि रूस और ईरान क्षेत्रीय सुरक्षा में भागीदार हैं।

इसी तरह, रूस और चीन ने कूटनीतिक सतह और जेसीपीओए पर मिलकर काम किया है, बीजिंग ने एक ऐसा रुख़ अपना रखा है, जो कि ट्रम्प प्रशासन के फिर से पुराने प्रतिबंधों को लागू किये जाने के आह्वान को खुलकर नामंज़ूर करता है। इसके अलावा, चीन-ईरान सम्बन्ध परिपक्व हो चुके हैं और आने वाले समय में दोनों देशों के बीच 25 साल के लिए 400 अरब डॉलर के व्यापक रणनीतिक साझेदारी समझौते के संपन्न होने की संभावना है।

ग़ौरतलब है कि शुक्रवार को पुतिन के बयान ने मॉस्को का तेहरान के साथ होने को रेखांकित कर दिया है और मॉस्को की तरफ़ से ईरान के खिलाफ़ वाशिंगटन के "अधिकतम दबाव" वाले नज़रिये को भी खारिज कर दिया गया है। पुतिन के बयान के निम्नलिखित मूल-तत्व हैं:

• “ईरान पर लगने वाले आरोप बेबुनियाद हैं।”

• “सुरक्षा परिषद द्वारा सर्वसम्मति से मंज़ूर किये गये फ़ैसलों को खारिज करने के लिहाज से संकल्पों का मसौदा (वाशिंगटन द्वारा) तैयार किया जा रहा है।”

• “रूस की जेसीपीओए के प्रति अटूट प्रतिबद्धता क़ायम है।”

•  फ़ारस की खाड़ी क्षेत्र को लेकर रूस की सामूहिक सुरक्षा संकल्पना (जिसका ईरान ने स्वागत किया है और अमेरिका ने इसकी अनदेखी की है) "फ़ारस की खाड़ी क्षेत्र की चिंताओं की उलझन को दूर करने के लिए ठोस और प्रभावी मार्ग की रूपरेखा तैयार की है"।

•  “इस (खाड़ी) क्षेत्र में ब्लैकमेल करने या हुक़्म चलाने की कोई गुंजाइश नहीं है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ऐसी कोशिश कहां से हो रही है। एकपक्षीय दृष्टिकोण समाधानों को हासिल करने में मदद नहीं कर पायेगा।”

• फ़ारस की खाड़ी में एक समावेशी सुरक्षा संरचना के निर्माण की बेहद ज़रूरत है।

दरअसल, ट्रम्प अपनी चाल बेहद सतर्कता और सधे हुए तरीक़े से चल रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष पद के उस फ़ैसले की बारी आने से पहले इन प्रतिबंधों को "दुबारा" लगाये जाने को लेकर अमेरिका अपना क़दम आगे बढ़ायेगा, जिसके लिए अमेरिकी तर्क की स्वीकार्यता पर एक नज़र डालने के लिए कहा जायेगा, हालांकि ट्रम्प ने जेसीपीआरए को सार्वजनिक रूप से रद्द कर दिया था, चूंकि अमेरिका ने औपचारिक रूप से इसकी सूचना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को नहीं दी थी, इसलिए इसे अब भी सुरक्षा परिषद के संकल्प 2231 के तहत कार्य करने का विशेषाधिकार प्राप्त है,जो इन प्रतिबंधों को "दुबारा" लगाये जाने के खंड को एक अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनी आधार देता है।

उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया अगस्त से अध्यक्ष पद पर काबिज हो गया है और जकार्ता और तेहरान के बीच का सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण है। सितंबर माह के लिए इस जगह पर नाइजर होगा, जो अमेरिकी दबाव के प्रति अतिसंवेदनशील हो सकता है। इस पद के लिए अक्टूबर तक रूस की बारी आयेगी। अगस्त-सितंबर की अवधि के दौरान वाशिंगटन इस गुंजाइश को कितना आगे बढ़ा पायेगा, यह देखा जाना अभी बाक़ी है।

इस बात में कोई शक नहीं कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का नतीजा ईरान के साथ किसी भी प्रकार के व्यापार के लिए गंभीर हो सकता था, क्योंकि यह प्रतिबंध सदस्य देशों से इस बात की मांग करता है कि ईरानी वित्तीय संस्थानों के साथ लेनदेन करते समय सावधानी बरता जाये, और राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्रों में ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध प्रावधानों के उल्लंघन की रौशनी में माल को ले जाने के संदेह में इन देशों को जहाज़ों या विमानों का निरीक्षण करने की अनुमति भी देता है। रूस और चीन अपने हथियारों के निर्यात के लिए नये इस ईरानी बाज़ार के फ़ायदे उठाने का फ़ैसला कर सकते हैं। इस मामले में चीन का रुख़ ग़ैर-मामूली तौर पर मज़बूत रहा है। संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध के फिर से लगाये जाने की स्थिति में ईरान अगर परमाणु अप्रसार से पीछे हटने की अपनी धमकी को अंजाम देता है, तो निश्चित रूप से सभी दांव नाकाम हो जायेंगे।  

संक्षेप में, इन प्रतिबंधों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, आने वाले हफ्तों में E3 (फ़्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी) और संभावित रूप से रूस और चीन की वह क्षमता सबसे अहम मुद्दा होगी कि वे अमेरिका के साथ भागीदार होने के बनिस्पत उपलब्ध समय का फ़ायदा उठा सकें।

मौजूदा विवाद को खोलने की कुंजी ख़ौस तौर पर वाशिंगटन के पास ही है, जो इस समय गतिरोध पर एक प्रस्ताव और ईरानी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने पर ज़ोर दे रहा है। इसके बदले वाशिंगटन की तरफ़ से ईरान को प्रोत्साहित करने वाले कुछ क़दम उठाने होंगे। और इनके लिए रचनात्मक बातचीत के ज़रिये काम करने की ज़रूरत है, क्योंकि ये ईरान पर मौजूदा एकतरफ़ा अमेरिकी प्रतिबंध प्रणाली पर आधारित हैं। अच्छी बात यही है कि जेसीपीओए के किसी भी पक्ष का रुख़ इन प्रतिबंधों के दुबाया लगाये जाने से फ़ायदा उठाने का नहीं है।

यक़ीनन, नवंबर में होने वाले चुनाव हो जाय,तो इसके बाद सभी मुद्दों पर "6 + 1" प्रारूप में चर्चा करने के पुतिन के प्रस्ताव पर खुले दिमाग़ से विचार करते हुए ट्रम्प इन प्रतिबंधों को दुबारा लगाये जाने की धमकी देकर अन्य जेसीपीओए देशों पर "अधिकतम दबाव" बना रहे हैं। यह एक ठीक धारणा है कि मॉस्को ने उपरोक्त विषयों पर ट्रम्प की प्रतिक्रिया का अनुमान पहले ही लगा लिया था।

आख़िरकार, एक पखवाड़े पहले ट्रम्प और पुतिन के बीच जुलाई के अंत में हुई अंतिम बातचीत में ईरान को लेकर चर्चा हुई थी और पुतिन के इस नवीनतम प्रस्ताव में उसी चर्चा का अनुसरण किया किया गया है। ईरान को क़रीब-क़रीब इसके बारे में पता था। (दिलचस्प बात यह है कि जुलाई के अंत में ईरान के वित्तमंत्री,जवाद ज़रीफ़ के मॉस्को दौरे के बाद, तेहरान टाइम्स समाचार पत्र ने टिप्पणी की थी कि पुतिन की मध्यस्थता के तहत "ईरान और अमेरिका के बीच राजनयिक पहल की एक संभावना" की उम्मीद की जा रही है।)

हालांकि, पुतिन के इस प्रस्ताव के सिलसिले में शनिवार को ट्रम्प के "संभवत: नहीं" वाली टिप्पणी पर मॉस्को की तरफ़ से प्रतिक्रिया आना अभी बाक़ी है। लेकिन,रूसी समाचार एजेंसी,तास की रिपोर्ट ने इस बात की ओर ध्यान दिसाया है कि "वाशिंगटन शायद देश के राष्ट्रपति चुनावों तक इंतज़ार करना चाहेगा।" अब तक बीजिंग और पेरिस ने पुतिन के इस प्रस्ताव को लेकर समर्थन जता दिया है, जबकि लंदन और बर्लिन इस पर नज़र बनाये हुए  हैं।

जहां तक तेहरान का  सवाल है,तो यह अब भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका के उस प्रस्ताव के खारिज किये जाने के मीठा स्वाद का मज़ा ले रहा है,जो शुक्रवार को ईरान पर काबिज हथियार प्रतिबंध के विस्तार को लेकर था और जो अक्टूबर में समाप्त होने वाला है। हालांकि आख़िरी विश्लेषण के तौर पर यही कहा जा सकता है कि तेहरान की पसंद वाशिंगटन के साथ सीधे बातचीत की होगी।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

‘Snapback’ Sanctions on Iran Not an Open-and-Shut Case

US sanctions on Iran
Donald Trump
US Elections 2020
'Snapback' sanctions on Iran
UN Security Council
JCPOA

Related Stories

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

यमन में ईरान समर्थित हूती विजेता

बाइडेन ने फैलाए यूक्रेन की सीमा की ओर अपने पंख

ईरान नाभिकीय सौदे में दोबारा प्राण फूंकना मुमकिन तो है पर यह आसान नहीं होगा

एक साल पहले हुए कैपिटॉल दंगे ने अमेरिका को किस तरह बदला या बदलने में नाकाम रहा

2021: अफ़ग़ानिस्तान का अमेरिका को सबक़, ईरान और युद्ध की आशंका

2021 : चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका की युद्ध की धमकियों का साल

दुनिया क्यूबा के साथ खड़ी है

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इथियोपिया में संघर्ष तत्काल रोकने की अपील की

ताइवान पर दिया बाइडेन का बयान, एक चूक या कूटनीतिक चाल? 


बाकी खबरें

  • Western media
    नतालिया मार्क्वेस
    यूक्रेन को लेकर पश्चिमी मीडिया के कवरेज में दिखते नस्लवाद, पाखंड और झूठ के रंग
    05 Mar 2022
    क्या दो परमाणु शक्तियों के बीच युद्ध का ढोल पीटकर अंग्रेज़ी भाषा के समाचार घराने बड़े पैमाने पर युद्ध-विरोधी जनमत को बदल सकते हैं ?
  •  Mirzapur
    अब्दुल अलीम जाफ़री
    यूपी: चुनावी एजेंडे से क्यों गायब हैं मिर्ज़ापुर के पारंपरिक बांस उत्पाद निर्माता
    05 Mar 2022
    बेनवंशी धाकर समुदाय सभी विकास सूचकांकों में सबसे नीचे आते हैं, यहाँ तक कि अनुसूचित जातियों के बीच में भी वे सबसे पिछड़े और उपेक्षित हैं।
  • Ukraine return
    राजेंद्र शर्मा
    बैठे ठाले:  मौत के मुंह से निकल तो गए लेकिन 'मोदी भगवान' की जय ना बोलकर एंटिनेशनल काम कर गए
    05 Mar 2022
    खैर! मोदी जी ने अपनी जय नहीं बोलने वालों को भी माफ कर दिया, यह मोदी जी का बड़प्पन है। पर मोदी जी का दिल बड़ा होने का मतलब यह थोड़े ही है कि इन बच्चों का छोटा दिल दिखाना ठीक हो जाएगा। वैसे भी बच्चे-…
  • Banaras
    विजय विनीत
    बनारस का रण: मोदी का ग्रैंड मेगा शो बनाम अखिलेश की विजय यात्रा, भीड़ के मामले में किसने मारी बाज़ी?
    05 Mar 2022
    काशी की आबो-हवा में दंगल की रंगत है, जो बनारसियों को खूब भाता है। यहां जब कभी मेला-ठेला और रेला लगता है तो यह शहर डौल बांधने लगाता है। चार मार्च को कुछ ऐसा ही मिज़ाज दिखा बनारस का। यह समझ पाना…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में क़रीब 6 हज़ार नए मामले, 289 मरीज़ों की मौत
    05 Mar 2022
    देश में 24 घंटों में कोरोना के 5,921 नए मामले सामने आए हैं। देश में कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर 4 करोड़ 29 लाख 57 हज़ार 477 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License