NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
बंगाल में दलितों और आदिवासियों का संघर्ष
दलित शोषण मुक्ति मंच के महासचिव डॉ. रामचंद्र डोम का कहना है कि बीजेपी और टीएमसी वोट हासिल करने के लिए इन उत्पीड़ित तबक़ों का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं।
संदीप चक्रवर्ती
22 Feb 2021
Translated by महेश कुमार
बंगाल में दलितों और आदिवासियों का संघर्ष
Image Courtesy: Wikimedia Commons

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में वामपंथियों ने दलितों और आदिवासियों के अधिकारों के लिए दशकों तक संघर्ष किया है, जिसे मेहनतकश लोगों की आर्थिक और सामाजिक मुक्ति के संघर्ष का एक अभिन्न अंग माना जाता है, डॉ. रामचंद्र डोम, संसद के पूर्व सदस्य और दलित शोषण मुकयी मंच (DSMM) के महासचिव ने उक्त बातें न्यूज़क्लिक से चर्चा दौरान बताई। वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की उस हालिया चुनावी रणनीति पर टिप्पणी कर रहे थे जिसके जरिए आगामी राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान इन वर्गों से समर्थन हासिल किया जा सके।

“सामाजिक रूप से सबसे अधिक उत्पीड़ित तबके दलित और आदिवासी समुदाय आर्थिक रूप से भी सबसे अधिक वंचित और शोषित तबके हैं। डॉ. डोम ने पश्चिम बंगाल और भारत में उनकी दुर्दशा के बारे में बात करते हुए कहा कि देश में अधिकांश श्रमिक-उन्मुख कार्यबल दलित और आदिवासी समुदाय से आते हैं।

डॉ. डोम ने कहा कि भाजपा द्वारा विभिन्न जातियों और आदिवासी समूहों की एक अलग पहचान बनाने के प्रयास से वास्तव में श्रमिक वर्ग के बड़े आंदोलन से उनका नाता तोड़ने का प्रयास है, और इसका भी वही हश्र होगा जो अन्य जगहों पर हुआ है। 

उन्होंने कहा, "यह सत्तारूढ़ दलों की एक रणनीति है ताकि उत्पीड़ित और वंचित तबकों को कमज़ोर किया जा सके और उनका इस्तेमाल पक्षपातपूर्ण रूप से चुनावी लाभ के लिए किया जा सके।"

पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति (एससी) या दलित और अनुसूचित जनजाति (एसटी) या आदिवासी समुदायों की काफी आबादी है। जनगणना 2011 के अनुसार राज्य के एससी समुदायों की आबादी 23.5 प्रतिसत (1.8 करोड़ से अधिक) थी और एसटी समुदायों ली 5.8 प्रतिशत (लगभग 53 लाख) थी। 

हाल के वर्षों में, जघन्य जाति-आधारित उत्पीड़न के उदाहरण बढ़े हैं, डॉ. डोम ने बड़े उदास स्वर में कहा। उन्होंने इसके लिए दो उदाहरण दिए, जो सुर्खियों में भी आए थे क्योंकि ये प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा के संस्थानों में घटे थे। 2019 में, एसटी समुदाय की सरस्वती केरकेट्टा को कोलकाता के रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था- जो उनके समुदाय के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी गई थी। लेकिन उनके साथ एक चौंकाने वाली घटना घटी, जिसमें, उनके ही छात्रों ने उन्हे आर्थोपेडिक कि समस्या से ग्रस्त होने के बावजूद एक घंटे तक खड़ा रहने पर मजबूर किया था। एक अन्य घटना में, सितंबर 2020 में, जादवपुर विश्वविद्यालय में इतिहास की एक एसोसिएट प्रोफेसर मैरोना मुर्मू को सोशल मीडिया पर छात्रों द्वारा ऑनलाइन अपमानजनक यानि ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होने सोशल मीडिया पर कहा था कि महामारी के समय परीक्षा आयोजित करना महत्वपूर्ण नहीं है। वे भी, एक आदिवासी समुदाय से है, जिन्हे ऑनलाइन ट्रोल्स ने घृणा के लिए निशाना बनाया था।

अधिकारों का मुखौटा

डॉ. डोम ने कहा कि शासक वर्ग की पार्टियां अक्सर अलग-अलग दलित या आदिवासी समुदायों की पहचान और अधिकारों की एक मिसाल बनने के लिए भिन्न भिन्न किस्म के मुखौटे पहनती हैं और वे अक्सर उनकी ओर आकर्षित होते हैं। उन्हें लगता है कि एक अलग पहचान के बनाने से शायद उनके समुदाय को आर्थिक और उच्च जाति उत्पीड़न दोनों से मुक्त मिलने में मदद मिलेगी।

“पहचान आधारित अधिकारों के इस मुखौटे के पीछे लोकतांत्रिक पहलू और प्रतिक्रियावादी पहलू दोनों ही मौजूद हैं। भारत में, इसका एक लंबा इतिहास है, लेकिन इसका उपयोग शोषक व्यवस्थाओं को तैयार करने के लिए भी किया जाता है। बंगाल में, यह पहलू इतना सटीक नहीं था क्योंकि यहाँ मजदूर वर्ग का बड़ा आंदोलन विकसित था और अब इस मोड़ पर इसे शुरू करना- विशेष रूप से मनुवादी भाजपा के द्वारा- सही दिशा में उठाया गया कदम नहीं है, ”उन्होंने कहा।

डॉ. डोम ने बताया कि एकतबद्ध श्रमिक वर्ग ही आंदोलनकारी मेहनतकश लोगों को आर्थिक और सामाजिक अधिकार सुनिश्चित करने की बहुत बेहतर गारंटी देगा। उन्होंने कहा यही वह आंदोलन है जो पीने के पानी का अधिकार, भूमि का अधिकार, संसाधनों का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, विभिन्न सांस्कृतिक अधिकार और समग्र विकास जैसे कई और अधिकार सुनिश्चित कराएगा।

ठहराव का एक दशक 

दिलचस्प बात जिसे डॉ. डोम ने बताया कि बांकुरा, पुरुलिया, झाड़ग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर में, दलितों और आदिवासियों के आंदोलन खड़े हुए लेकिन उन आंदोलनों को तब शांत कर दिया गया था जब माओवादी और वर्तमान सत्ताधारी टीएमसी ने आदिवासी और दलित विरोधी ताकतों को क्षेत्र में संरक्षण देना शुरू कर दिया था। "इस इंद्रधनुष गठबंधन का निर्माण वामपंथियों के खिलाफ किया गया था, जिसमें भाजपा भी भागीदार थी," उन्होंने कहा।

“हम देख सकते हैं कि सत्ता में 10 साल रहने के बाद भी वर्तमान सत्ताधारी पार्टी आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि का खिताब यानि पट्टा नहीं दे पाई है; न ही वह वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के पानी, जंगल और जमीन के अधिकार से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करती हैं। वामफ्रंट सरकार के बाद वर्तमान सरकार ने आदिवासियों को एक बीघा भी जमीन भी नहीं दी है।

वास्तव में, दलित और आदिवासी समुदायों की तुलना में समाज के ऊपरी तबकों को अधिक लाभान्वित किया गया है, और बढ़ती असमानता उन्हें आंदोलनों में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रही है, डॉ डोम ने कहा।

अब का बंगाल 

डॉ. डोम के अनुसार, क्षेत्र में खाद्य संकट के चलते दलितों और आदिवासियों की हालत गंभीर रूप से बिगड़ गई है।

“2018 में, लोधा और शाबर समुदाय के 10 लोगों की भूख के कारण मौत हो गई थी। यह खाद्य संकट राज्य के कामकाजी वर्ग के लोगों को भी प्रभावित कर रहा है और यहां तक कि एनएसएसओ के आंकड़े भी पश्चिम बंगाल के बारे में इन आंकड़ों को दर्शा रहे हैं। इस संदर्भ में, लोग फिर से लाल झंडे और समाजिक न्याय मंच जैसे संगठनों के नीचे आ रहे हैं। अभी कई कठिनाइयों को दूर किया जाना है, लेकिन एक बदलाव आ रहा है, ”उन्होंने समझाया।

वोट हासिल करने के लिए संघ परिवार और भाजपा पश्चिम बंगाल में भी मनु स्मृति का प्रचार कर रहे हैं। डॉ. डोम के अनुसार, धार्मिक समुदायों के बीच और जातियों और जनजातियों के बीच विरोधाभासों को हवा दी जा रही है, और इससे बढ़ता सामाजिक संघर्ष सामाजिक रूप से उत्पीड़ित वर्गों को असुरक्षा की तरफ ले जा रहा है। यहां तक कि आरक्षण जैसे संवैधानिक अधिकारों पर भी सवर्णों द्वारा खुलेआम सवाल उठाए जा रहे हैं, जो प्रतिगामी मनु स्मृति को बरकरार रखने के पैरोकार हैं।

“आरएसएस द्वारा संचालित भाजपा और टीएमसी की इन मुद्दों पर एक दूसरे के साथ निकटता  हैं और ये दोनों ऐसे मामलों में एक दूसरे से बहुत अलग नहीं हैं। समुदायों के भीतर सामाजिक अस्थिरता को रोकने के लिए, संवैधानिक रूप से गारंटीकृत प्रावधानों को फिर से लागू करने और उन्हें मजबूत बनाने की जरूरत है, जबकि वास्तविकता में सबकुछ इसके विपरीत हो रहा है। डॉ. डोम ने कहा कि वामपंथी ताकतों को इस प्रतिगमन को रोकने में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

डॉ. डोम ने कहा कि मटुआ समुदाय के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है, जिसे अब दो सत्ताधारी दलों के पैसे और बाहुबल के जरिए खड़ा किया जा रहा है। मटुआ, के बारे में यह याद किया जा सकता है कि वे बांग्लादेश से विस्थापित दलित समुदाय है जिसका वोट काफी है। 

डॉ. डोम ने यह भी जोर देकर कहा कि पश्चिम बंगाल में महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार और हत्या और आदिवासी और दलित युवकों की गिरफ्तारी के झूठे मामले हमेशा से सामने आते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में दलित और आदिवासी युवकों की हिंसक भीड़ द्वारा हत्या के मामले सामने आए हैं। उत्तर बंगाल और जंगलमहल में कुपोषण काफा बाद में आया खासतौर पर वामपंथी सरकार के जाने के बाद से ऐसा हुआ है।

डॉ. डोम ने कहा, "मुझे यकीन है कि अतीत में दलितों और आदिवासियों के साथ गर्व से खड़े होने के लिए जाने जाने वाले वामपंथी आंदोलन को आने वाले दिनों में और इन चुनावों में भी इन सबसे अधिक पीड़ित समुदायों का व्यापक समर्थन मिलेगा।"  

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Struggle of Dalits and Adivasis in Bengal

West Bengal
Bengal Elections
Dalit and Adivasi Rights
Dalit shoshan mukti manch
Ramchandra Dom
TMC
BJP

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

सवर्णों के साथ मिलकर मलाई खाने की चाहत बहुजनों की राजनीति को खत्म कर देगी

जहांगीरपुरी— बुलडोज़र ने तो ज़िंदगी की पटरी ही ध्वस्त कर दी

अमित शाह का शाही दौरा और आदिवासी मुद्दे

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

केवल आर्थिक अधिकारों की लड़ाई से दलित समुदाय का उत्थान नहीं होगा : रामचंद्र डोम

यूपी चुनाव परिणाम: क्षेत्रीय OBC नेताओं पर भारी पड़ता केंद्रीय ओबीसी नेता? 

अनुसूचित जाति के छात्रों की छात्रवृत्ति और मकान किराए के 525 करोड़ रुपए दबाए बैठी है शिवराज सरकार: माकपा

यूपी चुनाव में दलित-पिछड़ों की ‘घर वापसी’, क्या भाजपा को देगी झटका?

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License