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भारत
राजनीति
पेगासस जासूसी कांड पर सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी: 46 पन्नों के आदेश का निचोड़
केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का जिक्र कर सरकार को निजता के अधिकार के उल्लंघन से जुड़े सवालों के जवाब देने से छूट नहीं मिल सकती है।
अजय कुमार
29 Oct 2021
Supreme Court on Pegasus
Image courtesy : NewsBytes

पेगासस जासूसी कांड की तहकीकात करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दे दिया है। साल 2018 में कनाडा की सिटीजन लैब ने एक डिटेल रिपोर्ट सौंपी कि इजराइल की टेक्नोलॉजी फार्म एनएसओ समूह के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए दुनियाभर के 45 देशों के कई नागरिकों के डिजिटल डिवाइस की जासूसी की जा रही है। इसमें भारत के तरफ से भी कई दिग्गजों पर जासूसी करने का आरोप शामिल है। यह मामला भारत में द वायर वेबसाइट पर छपने के बाद तूल पकड़ने लगा। सरकार से सवाल जवाब किया जाने लगा।लेकिन सरकार की तरफ से कोई भी ठोस जवाब नहीं मिला। इसके बाद पेगासस के जरिए निजता के अधिकार में छेड़छाड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इसी याचिका की सुनवाई करते 46 पन्ने का आदेश दिया है। बिना अर्थ में बदलाव किए सरल शब्दों में 46 पन्ने का निचोड़ प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि मामले को ढंग से समझा जा सके:

* सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सूचना क्रांति की दुनिया में रह रहे हैं। जहां पर किसी व्यक्ति की पूरी जिंदगी डिजिटल क्लाउड में संग्रहित की जा सकती है। हमें यह मानना चाहिए कि जिस समय टेक्नोलॉजी के सहारे जब हमारी जिंदगी को आसान बन रही होती है, ठीक उसी समय कोई टेक्नोलॉजी की मदद से ही हमारी निजी जीवन में सेंधमारी भी कर सकता है।

* प्राइवेसी की चिंता केवल पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से नहीं जुड़ी हुई है बल्कि इसकी चिंता देश के हर एक नागरिक से जुड़ी हुई है। साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने केएस पुट्टस्वामी के मामले में निजता के अधिकार को मानवीय अस्तित्व का सबसे अपरिहार्य हिस्सा माना था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि व्यक्ति की गरिमा और स्वायत्तता को सुरक्षित करने के लिए व्यक्ति की निजता को सुरक्षित करना बहुत जरूरी है। इसीलिए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले गरिमा पूर्ण जीवन के अधिकार में निजता के अधिकार को भी मूल अधिकार के तौर पर शामिल किया गया है।जिस तरह से सभी मूल अधिकार पूरी तरह निरपेक्ष अधिकार नहीं होते हैं ठीक वैसे ही निजता का अधिकार भी पूरी तरह से निरपेक्ष अधिकार नहीं है। राज्य निजता के अधिकार पर भी युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह डिबेट ही अर्थहीन है कि निजता का अधिकार जरूरी है या राष्ट्रीय सुरक्षा। मूल अधिकार के तौर पर निजता के अधिकार में यह अपने आप  शामिल है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर राज्य निजता के अधिकार में हस्तक्षेप कर सकता है। जरूरी संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए राज्य चाहे तो निजता के अधिकार में हस्तक्षेप कर सकता है। जरूरी संवैधानिक प्रक्रियाएं राज्य की निजता के अधिकार में हस्तक्षेप करने के लिए तीन शर्तें निर्धारित करती हैं। पहला, निजता के अधिकार में हस्तक्षेप करने के लिए राज्य के पास तर्कसंगत मकसद होना चाहिए। दूसरा, राज्य को यथोचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए निजता के अधिकार में हस्तक्षेप करना चाहिए। तीसरा,राज्य को निजता के अधिकार में उतना ही हस्तक्षेप करना चाहिए जितना कि राज्य के तर्कसंगत मकसद के लिए जरूरी है ना कि इससे अधिक।

इस तरह से उस पूरे डिबेट का खात्मा हो जाता है जिसमें कहा जाता है कि यह दुनिया कई तरह के खतरों से भरी हुई है, राज्य के पास अगर इस खतरे से सावधान करने के साधन है तो निजता के अधिकार को बाधा के तौर पर नहीं खड़ा होना चाहिए। राज्य आसानी से निजता के अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बना सकता है।

* इस मामले की सुनवाई करत हुए सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीडम ऑफ प्रेस को लेकर भी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा कि अगर किसी को यह पता हो कि उस पर निगरानी रखी जा रही  है या उस की जासूसी की जा रही है तब वह अपनी आजादी खो देता है। अपने ऊपर सेल्फ सेंसरशिप लगा लेता है। अगर प्रेस की आजादी पर इस तरह का हस्तक्षेप होगा तो वह अपनी स्वतंत्रता खो देगा। वह सही और विश्वसनीय सूचनाएं देने का काम नहीं कर पाएगा।

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ प्रेस को ढंग से काम करने के लिए फ्रीडम ऑफ प्रेस का होना बहुत जरूरी है। फ्रीडम ऑफ प्रेस के अधिकार से ही सूचनाओं को देने वाले स्त्रोत को सुरक्षित रखने का अधिकार भी निकलता है। अगर सूचनाओं के स्रोत सुरक्षित नहीं होंगे तो सूचनाओं के लेन-देन में डर का माहौल पनपेगा। इसलिए पत्रकारीय सोर्स की सुरक्षा फ्रीडम को प्रेस की बुनियाद होती है।

अगर पत्रकार सोर्स को सुरक्षा नहीं मिलेगी तो जनहित की जानकारी सामने नहीं आ पाएगी। जासूसी की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर इन पत्रकारीय सोर्स के साथ नागरिकों के निजी अधिकारों पर छेड़छाड़ के गंभीर आरोप लगाए जा रहे है। यह बहुत महत्वपूर्ण मामला है। इसलिए कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि आरोपों के तह तक जाकर सच का पता लगाएं।

* सुप्रीम कोर्ट यह भी साफ किया कि इस मामले की सुनवाई केवल कुछ अखबार के रिपोर्ट के आधार पर नहीं की जा रही है। अखबार के रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। वह जनता के सामने ऐसी बातें प्रस्तुत करते हैं जो बातें सार्वजनिक नहीं होती। लेकिन फिर भी केवल अखबार की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में किसी भी तरह की याचिका का आधार नहीं बन सकते हैं। इसलिए अखबार की रिपोर्टों के अलावा दूसरे आधारों की भी जरूरत होती है। कनाडा की प्रतिष्ठित सिटीजन लैब और प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की तरफ से जब यह एफिडेविट दाखिल किया गया कि पेगासस के जरिए नागरिकों के निजी अधिकारों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है तब कोर्ट लोकहित याचिका को खारिज न करने की स्थिति में आया। दुनिया की कुछ प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने इन आरोपों की छानबीन की और इसे सही पाया। भारत के अलावा कुछ दूसरे देशों की अदालतों ने भी इन आरोपों पर सुनवाई की। इन तरह से केवल अखबारों की रिपोर्ट पर नहीं बल्कि कई दूसरे मजबूत आधारों पर सुप्रीम कोर्ट ने इस लोकहित याचिका को स्वीकार किया और भारत सरकार से जवाब मांगा।

* सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पर्याप्त समय दिया कि वह निजता के अधिकार से होने वाले छेड़ छाड़ के इन आरोपों पर ठोस जवाब दे। लेकिन सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा की वजह बताकर हर बार जवाब देने से इनकार करती रही। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून की यह स्थापित मान्यता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर अदालत को जुडिशल रिव्यु का सीमित अधिकार है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा बता कर सरकार अपनी जवाबदेही से हर बार इनकार करती रहे। मामला मूल अधिकार के उल्लंघन से जुड़ा है, इस पर केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर जवाब देने की जिम्मेदारी से अलग नहीं हुआ जा सकता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट बाधित है कि वह याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों की छानबीन करने की इजाजत दें।

* सुप्रीम कोर्ट आदेश दिया कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज के देखभाल में एक एक्सपर्ट कमिटी मौलिक अधिकार के छेड़छाड़ से जुड़े इन गंभीर आरोपों की छानबीन करे।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस नतीजे पर इसलिए पहुंची है क्योंकि इन आरोपों से निजता के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ रहा है। इसलिए इन आरोपों की छानबीन करना जरूरी है। इन आरोपों में पूरे नागरिक समाज को गंभीर तौर पर प्रभावित करने की संभावना है। इन आरोपों पर भारत सरकार ने किसी भी तरह का ठोस जवाब नहीं दिया है। भारत की केंद्र और राज्य सरकार के साथ दूसरे देश और दूसरे देश के पक्षकारों पर भी निजता के अधिकार पर छेड़छाड़ के आरोप हैं। इसलिए यह मामला बहुत गंभीर बन जाता है।

* एक दूसरे के हितों के संघर्षों से जुड़े इस दुनिया में वैसे विशेषज्ञों का चुनाव करना बहुत कठिन काम है जो स्वतंत्र हो, काबिल हो और किसी भी तरह कि पूर्वाग्रह से बहुत दूर हो। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने सबसे अच्छे इरादों के साथ इस पूरे मामले की छानबीन करने के लिए दो तरह की कमेटी बनाई है। पहली कमिटी में डिजिटल तकनीक, साइबर सिक्योरिटी, डिजिटल फोरेंसिक, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर जैसे तकनीकी क्षेत्रों से जुड़े तीन विशेषज्ञ शामिल है। दूसरी कमेटी में इन विशेषज्ञों के कामकाज पर देखभाल करने के लिए तीन लोगों की कमेटी बनाई गई है जिसकी अध्यक्षता की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज आरवी रविंद्रन को सौंपा गया है।

* सुप्रीम कोर्ट ने इस कमेटी को यह काम सौंपा है कि वह पता लगाए कि क्या भारतीय नागरिकों के डिजिटल डिवाइस के डेटा में पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया था? क्या उनकी डिजिटल डिवाइस की सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ किया गया था? इस तरह की जासूसी से भारत में कितने लोग प्रभावित हुए हैं? उन लोगों की पूरी डिटेल सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाए? साल 2019 में पेगासस के जरिए व्हाट्सएप हैक की खबरें आने पर भारत की सरकार ने इनकी छानबीन करने के लिए किस तरह के कदम उठाए? क्या भारत की केंद्र सरकार या राज्य सरकार या किसी भी सरकारी संस्था के जरिए पेगासस को खरीदा गया? क्या इसका इस्तेमाल इन सभी ने अपने ही नागरिकों के खिलाफ किया? अगर भारत की किसी भी सरकार या किसी भी सरकारी संस्था ने पेगासस का इस्तेमाल अपने नागरिकों पर किया तो किस तरह की कानूनी प्रक्रियाओं, नियम और प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उन्होंने ऐसा किया? अगर भारतीय सरकार के अलावा किसी व्यक्ति ने पेगासस का इस्तेमाल भारत के किसी नागरिक पर किया तो उसे किसने यह अधिकार दिया था? इसके अलावा वह सारे काम यह कमेटी करेगी जो निजता के अधिकार के उल्लंघन और पेगासस से जुड़े हो।

सुप्रीम कोर्ट ऑर्डर ऑन पेगासस
supreme court order on Pegasus
सुप्रीम कोर्ट जजमेंट ऑन पेगासस
Pegasus
Right to privacy
आर्टिकल 21
peasus and supreme court
crux of Pegasus jujdement
Pegasus spyware
पेगासस जासूसी कांड
shopping
सर्विलांस
State Surveillance

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