NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
समाज
भारत
राजनीति
लता के अंतिम संस्कार में शाहरुख़, शिवकुमार की अंत्येष्टि में ज़ाकिर की तस्वीरें, कुछ लोगों को क्यों चुभती हैं?
“बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख़, मशहूर गायिका लता मंगेशकर के अंत्येष्टि कार्यक्रम में श्रद्धांजलि देने गए हुए थे। ऐसे माहौल में जबकि सारी व्याख्याएँ व्यक्ति के धर्म के नज़रिए से की जा रही हैं, वैसे में चरमपंथियों को ये चीज़ नहीं पच सकती थी कि एक मुसलमान कैसे एक हिंदू को श्रद्धांजलि दे सकता है।”
श्याम मीरा सिंह
14 May 2022
asianet

हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें रंगों, भाषाओं, इमारतों से लेकर कपड़ों का धर्म तय किया जा रहा है। वैसे में हर ऐसी तस्वीर- जिसमें दो धर्म सद्भाव और सहजीवी भाव से रहते हुए मिलते हैं, वे सब अपनी तरफ ध्यान खींचते है। आजकल देश में ताजमहल पर विवाद छिड़ा हुआ है। ताजमहल जैसी ऐतिहासिक इमारतों के अस्तित्व को धार्मिक एंगल के ज़रिए तय किया जा रहा है। अपनी सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध होने के बावजूद ताजमहल की उम्र अब इस बात पर टिकी है कि धर्म विशेष के चरमपंथी कब तक उस पर हथौड़ा नहीं चलाते हैं। ताजमहल की वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व अब मायने नहीं रखता, ये तथ्य भी अब मायने नहीं रखता कि वह यूनेस्को की “विश्व धरोहरों” में शामिल है। सिर्फ़ एक बात कुछ लोगों को खल रही है कि उसका निर्माण एक धर्म विशेष के शासक ने करवाया था। ताजमहल ऐसी एक अकेली इमारत नहीं है, अब काशी की ज्ञानवापी मस्जिद, दिल्ली का लाल-क़िला और क़ुतुबमीनार भी कुछ आँखों में खटक रही है। इनके पीछे भी वही कारण है कि शासक हिंदुस्तान के बहुसंख्यक समाज से नहीं थे जिन्होंने इनका निर्माण करवाया था।

इससे कुछ ही पहले पूरा देश हिजाब की बहसों में उलझा हुआ था, दुपट्टे से लेकर साड़ी का आग्रह करने वाले भारत में “हिजाब” पर आँखें लाल-पीली की जाने लगीं। हिजाब मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा हुआ एक पहनावा है। स्कूलों में उस पहनावे पर प्रतिबंध लगाए गए। टीवी चैनलों पर बहसें हुईं,लड़कियों को स्कूलों के बाहर ही रोका जाने लगा। कर्नाटक के एक स्कूल से शुरू हुआ मामला पूरे देश का मामला बन गया। क्योंकि उसके लिए हिंदू-मुस्लिम परिस्थितियाँ पहले से मौजूद थीं। इसलिए जिस किसी भी तस्वीर या इवेंट में हिंदू-मुस्लिम आते हैं, सत्ता-धारी BJP-RSS की मशीनरी से धार्मिक एंगल देकर राजनीतिक स्टोव पर गर्म करती है, जिसके उत्पाद के रूप में हिंदू तुष्टिकरण का जन्म होता है, जिसका असली प्रोडक्ट वोट के रूप में चुनावों में सामने आता है, जिससे भाजपा के लिए संसद और विधानसभाओं की पगडंडियाँ सरल हो जाती हैं।

बीते दिनों एक तस्वीर की खूब चर्चा हुई थी, वह थी शाहरुख़ की। बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख़, मशहूर गायिका लता मंगेशकर के अंत्येष्टि कार्यक्रम में श्रद्धांजलि देने गए। ऐसे माहौल में जबकि सारी व्याख्याएँ व्यक्ति के धर्म के नज़रिए से की जा रही हैं, वैसे में चरमपंथियों को ये चीज़ नहीं पच सकती थी कि एक मुसलमान कैसे एक हिंदू को श्रद्धांजलि दे सकता है। फिर उन्हें एक ऐसी भ्रामक तस्वीर मिल गई जिसे प्रचारित किया गया कि कैसे शाहरुख़ ने लता जी का अपमान किया।



देखते ही देखते हर जगह उस तस्वीर को ये कहते हुए शेयर किया गया कि शाहरुख़ ने लता जी के शव पर थूका है। वैसे इस सामान्य सी शंका को इस बात से ही दूर किया जा सकता था कि कोई ऐसे नाज़ुक माहौल में श्रद्धांजलि देने गया है वह ऐसा काम, वो भी सार्वजनिक तौर पर क्यों ही करेगा। उसमें भी शाहरुख़ जिसके बालों से लेकर हाथों की क्रिया-प्रक्रियाओं को कैमरे में क़ैद करने के लिए दर्जनों कैमरे हों। शाहरुख़ के बहाने मुसलमानों के प्रति आम हिंदू जनता में भ्रम फैलाया गया कि मुसलमान तो ऐसे ही होते हैं। कुछ लोग इस डिबेट को कथित “थूक-जिहाद” तक ले गए। मैं ऐसे ही इस डिबेट को सुदर्शन टीवी पर लाइव देख रहा था। एंकर सुरेश चव्हाणके उस 10 सेकंड की वीडियो क्लिप को रोक-रोक कर चलाए। फिर प्रश्न करे कि “क्या शाहरुख़ ने लता जी पर थूका?”



अब एंकर “क्या, क्यों, कैसे, किंतु, परंतु, यदि, यद्यपि, तथापि” जैसे शब्दों का सहारा लेकर जबरन ये शक पैदा करने की कोशिश करे कि सच में ही ऐसा किया गया है क्या? सबसे पहले सवाल उठता है कि जब उस मामले की सत्यता ही इतनी भ्रामक है तो लाइव शो चलाने की क्या ज़रूरत है। इस शो में दर्शकों से लाइव फ़ोन पर ही उत्तर लिए गए। शो देखने वाले मुसलमानों से लेकर शाहरुख़ तक बुरा-भला बोलने लगे। जब कुछ मुसलमान दर्शकों ने फ़ोन पर कहा कि ये इस्लाम में “फूंकने” की रिवाज है ना कि थूकने की। इस रिवाज में मृतक के लिए दुआ पढ़ी जाती है और अंत में फूंका जाता है। तब एंकर अपने मूल प्रश्न से हटकर (जो एक्सपोज़ हो चुका था) दूसरे प्रश्न पर आ गया कि “क्या हिंदू अंतिम संस्कार क्रिया में इस्लामी तरीक़े से दुआ पढ़ना सही है?” “क्या ये हिंदू रिवाजों का इस्लामीकरण करने की साज़िश है?”

कुल-जमा कहानी ये है कि वे तस्वीरें जिनपर नाज़ किया जाना था, वे भी धार्मिक उन्माद और सांप्रदायिक हो चुकी हिंदुस्तानी फ़िज़ाओं में विवाद में आ गईं। वैसे में हर ऐसी तस्वीर और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। जब धर्म के आधार पर ग़लत और भ्रामक व्याख्याएँ की जा रही हों, तब धर्म की तह में जाए बिना उसे एक्सपोज़ करना मुश्किल है। ऐसी हर तस्वीर फिर संजोने और संरक्षित करने की हो जाती है।

हाल ही में यानी 10 मई के दिन मशहूर संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा का निधन हो गया। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत में संतूर के उपयोग को एक अलग जगह दिलाई। शिवकुमार शर्मा गुर्दे की समस्याओं से भी पीड़ित थे। जिसके चलते मुंबई स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम साँस ली। 84 साल के शिवकुमार शर्मा को साल 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। साल 1991 में पद्मश्री तथा साल 2001 में पद्म विभूषण से से नवाज़ा गया। अचानक आए कार्डीऐक अरेस्ट के चलते वे इस दुनिया से हमेशा के लिए विदाई ले गए।



उनकी अंतिम यात्रा में अमिताभ बच्चन-जया बच्चन से लेकर तमाम बड़े सेलिब्रिटीज श्रद्धांजलि देने पहुँचे। लेकिन एक तस्वीर जिसने सबका ध्यान खींचा वह थी मशहूर तबला वादक ज़ाकिर हुसैन की। अपने जीवन-काल में इधर पंडित शिवकुमार संतूर पर तान छेड़ते उधर ज़ाकिर हुसैन तबला बजाते, दोनों की जोड़ी में से एक हंस चला गया। शिवकुमार की अंतिम यात्रा में श्रद्धांजलि देने आए ज़ाकिर भावुक हो गए।

इसे लेकर UNDP (यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम) से जुड़े विक्रम सिंह चौहान ने अपने निजी Facebook एकाउंट पर लिखा- हिंदुस्तान क्या है, असली हिंदुस्तान के लोग कैसे होते हैं तो उसके लिए इस तस्वीर और इसके पीछे की कहानी देखिए। संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को कंधा देते और अंतिम संस्कार के दौरान भावुक ये मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन हैं। जाकिर हुसैन और पंडित शिव कुमार शर्मा का एक दूसरे के साथ काफी जुड़ाव रहा। जहां पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर से धुन छेड़ते थे, वहीं जाकिर हुसैन उनके साथ तबले पर संगत करते थे। हमें इसी हिंदुस्तान को और ऐसे महान प्रेम को ही बचाना है।“

वैसे ये बेहद सामान्य बातें हैं। दोस्त/साथी के जाने पर भावुक होना कोई खबर नहीं। हाल ही में जब भाजपा के MCD प्रशासन द्वारा दिल्ली के जहाँगीरपुरी में बुलडोज़र चलवाया गया, जिसमें कथित तौर पर मुसलमानों के घरों और दुकानों को टार्गेट करने के आरोप भी लगे, उसी समय दो दोस्तों की एक वीडियो भी वायरल हुई। दोनों दोस्त अलग मज़हबों के थे। लेकिन एक दोस्त अंशु कहता है- “मैं हिंदू हूँ, ये मुसलमान है। भाई की तरह रहते हैं हम दोनों। मेरे को दिक़्क़त होती है तो ये खड़ा होता है, इसको कोई दिक़्क़त होती है तो मैं खड़ा होता हूँ। पता नहीं आज RSS वालों ने कैसा कर रखा है। हमें बर्बाद ही करके रख दिया। मुझे पता होता मस्जिद तोड़ रहे हैं तो मैं तो वहाँ भी खड़ा होता। मस्जिद को तोड़ने नहीं देता मैं, अकेला ही निपट लेता मैं अकेला ही। मैं मस्जिद पर बुलडोज़र नहीं चलने देता, बहुत ग़लत हुआ है। हम भाई की तरह रहते हैं, आज तुम ऐसा कर रहे हो। हम कल भाई   बनके रह लेंगे?”

अंशु और उसके मुस्लिम दोस्त की इसी दोस्ती को सहजीविता कहते हैं, इसी बंधुत्व और भाईचारे को बढ़ाने की बात संविधान में कही गई है। लेकिन कुछ लोग इसी मेल-मिलाप की साझी संस्कृति को बढ़ने नहीं देना चाहते हैं। यही कारण है कि लता की अंतिम यात्रा में दुआ देते शाहरुख़ उन्हें खटक जाते हैं। इसलिए ज़ाकिर की तस्वीर सामान्य होते हुए भी अपनी ख़ुशबू बिखेर गई।

ये भी देखें: त्योहार से लेकर रोज़ाना के जनजीवन पर सांप्रदायिकता का कब्ज़ा

Zakir Hussain
Musician Zakir hussain
Santoor maestro Shivkumar Sharma
Shiv Kumar Sharma
communal harmony
Secularism
Hindu-muslim debate

Related Stories

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

…तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

विशेष : अराजकता की ओर अग्रसर समाज में मानवाधिकारों का विमर्श

चावड़ी बाज़ार : साम्प्रदायिक तत्वों पर गंगा-जमुनी तहज़ीब भारी


बाकी खबरें

  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License