NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
नज़रिया
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट...! लेकिन हमें इतनी 'भलाई' नहीं चाहिए
डेढ़ महीने से ज़्यादा समय से दिल्ली की सीमाओं पर जाड़े और बरसात में बैठे किसानों को लेकर कोर्ट अचानक इस क़दर चिंतित हुआ है कि उन्हें बिना मांगें चार सदस्यीय एक कमेटी थमा दी है। जैसे केंद्र सरकार ने बिना मांगें तीन क़ानून पकड़ा दिए थे।
मुकुल सरल
13 Jan 2021
cartoon

इस कलियुग में भी हमारे देश में आजकल बड़े ज़ोर से भलाई का दौर चल रहा है। इस क़दर कि पहले किसानों की चिंता में केंद्र सरकार दुबली हुई जा रही थी और अब सुप्रीम कोर्ट!  

दिल्ली की सीमाओं पर जाड़े और बरसात में बैठे किसानों को लेकर कोर्ट डेढ़ महीने बाद अचानक इस क़दर चिंतित हुआ है कि उन्हें बिना मांगें चार सदस्यीय एक कमेटी थमा दी है। जैसे केंद्र सरकार ने बिना मांगें तीन क़ानून पकड़ा दिए थे।

केंद्र ने भी यही कहा था कि ये क़ानून किसानों की भलाई के लिए हैं। हालांकि कोर्ट ने एक क़दम आगे जाकर इन ‘भलाई के क़ानूनों’ के अमल पर फ़िलहाल के लिए रोक लगाते हुए (शायद सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर रोक की तरह...) कहा कि हम आपकी ज़्यादा भलाई के लिए एक कमेटी बना देते हैं। जिसमें आप से बिना पूछे हम चार ऐसे लोगों को नियुक्त करते हैं जो आपसे ज़्यादा आपकी भलाई समझते हैं।

एक ऐसी कमेटी जिसका एक-एक सदस्य कृषि क़ानूनों का ज़बर पक्षधर है। अख़बारों में उनके पक्ष में बड़े बड़े लेख लिखता है, बड़ी बड़ी दलीलें पेश करता है।

शीर्ष अदालत की किसानों के प्रति ऐसी चिंता देखकर आंखों में पानी आ जाता है।

मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने विरोध कर रहे किसानों से भी सहयोग करने का अनुरोध किया और स्पष्ट किया कि कोई भी ताकत उसे गतिरोध दूर करने के लिये इस तरह की समिति गठित करने से नहीं रोक सकती है।

उसने किसानों के प्रदर्शन पर कहा, हम जनता के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।

न्यायालय ने कहा ‘‘ जो लोग सही में समाधान चाहते हैं, वे समिति के पास जाएंगे।’’

कोर्ट ने किसान संगठनों से कहा, ‘‘यह राजनीति नहीं है। राजनीति और न्यायतंत्र में फर्क है और आपको सहयोग करना ही होगा।’’

इससे पहले सोमवार को शीर्ष अदालत ने ब-आवाज़-ए-बुलंद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों से कहा था- ‘‘ आपको भरोसा हो या नहीं, हम भारत की शीर्ष अदालत हैं, हम अपना काम करेंगे।’’

कोर्ट ने ये भी कहा था कि उसे समझ नहीं आ रहा कि इस आंदोलन में बुजुर्ग और महिलाएं क्यों हैं!, लेकिन इस पर फिर कभी।

सुप्रीम कोर्ट की अपने प्रति इतनी चिंता देखते हुए किसान नेताओं को भी कहना पड़ा- शुक्रिया सुप्रीम कोर्ट...।

किसान नेताओं ने कहा- “क़ानूनों को होल्ड करने और हमारे प्रदर्शन के अधिकार को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया, लेकिन हमें कमेटी मंज़ूर नहीं।”

किसान नेताओं ने साफ़ किया कि यह कमेटी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वीकार नहीं है। किसान नेताओं ने कहा कि कमेटी में शामिल चारों सदस्यों पहले से इन क़ानूनों के पक्ष में रहे हैं। और अगर न भी रहे होते तो भी कमेटी उन्हें उसूलन स्वीकार नहीं है।

आपको पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों क़ानूनों के अमल पर रोक लगाते हुए जो कमेटी बनाई है उसमें कौन-कौन है?

इस चार सदस्यी कमेटी में हैं भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपिंदर सिंह मान, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, IFPRI के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद कुमार जोशी और शेतकारी संगठन के अनिल घनवत। ये चारों इन कृषि क़ानूनों के ज़बर्दस्त पैरोकार हैं।

चारों का मानना है कि इन क़ानूनों को किसी भी सूरत में वापस नहीं लिया जाना चाहिए, वरना कृषि सुधारों की गाड़ी रुक जाएगी। गुलाटी साहब तो किसानों के बारे में इतना सोचते हैं कि कहते हैं कि एमएसपी की लीगल गारंटी मांगना बिल्कुल बकवास है। इससे तो तबाही मच जाएगी।

आप इसे पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के चारों सदस्य कृषि कानूनों के समर्थक हैं

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद किसान नेताओं ने अपनी आपात बैठक की। जिसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए किसान नेताओं ने कहा कि उन्होंने सोमवार को ही एक प्रेस नोट जारी कर साफ़ कर दिया था कि उन्हें किसी तरह की कोई कमेटी मंजूर नहीं होगी। और वे ये मानते हैं कि सरकार अपने कांधे का बोझ हल्का करने के लिए कोर्ट का सहारा ले रही है।

किसानों को कमेटी से क्या दिक्कत है? और क्या ये सुप्रीम कोर्ट की अवमानना नहीं होगी? पत्रकारों की ओर से ये सवाल बार बार पूछे जाने पर किसान नेताओं ने साफ किया कि उन्होंने कोर्ट से कोई कमेटी नहीं मांगी थी। उनकी ओर से ऐसी कोई एप्लीकेशन अदालत में नहीं दी गई। इसके अलावा उनका मानना है कि ये सब सरकार का खेल है और वे इस खेल या ट्रेप में नहीं फंसना चाहते।

किसान नेताओं ने साफ़ किया कि ये क़ानून सरकार ने बनाए हैं और इसे सरकार ही वापस लेगी। उन्हें बाहर की कोई कमेटी स्वीकार नहीं।

जब सारे देश ने बिना शोर-शराबा किए इससे पहले भलाई के लिए किए गए सरकार के सारे फ़ैसलों को मान लिया तो फिर किसान ही क्या कोई स्पेशल हैं!

आपको मालूम ही है कि सबसे पहले पूरे देश की भलाई के लिए 2016 में नोटबंदी की गई। फिर व्यापारियों की भलाई में जीएसटी लाई गई। फिर मज़दूरों की भलाई में आकस्मिक लॉकडाउन लगाया गया। अब किसानों की भलाई के बारे में बड़े ज़ोर-शोर से सोचा जा रहा है। और इस क़दर सोचा जा रहा है कि सरकार के बाद सुप्रीम कोर्ट को आगे आने पड़ा है।

अब क्या किया जाए, किसान अपनी भलाई कराने को तैयार ही नहीं हैं। फिर तो इसे राजद्रोह, देशद्रोह और अवमानना ही माना जाएगा। क्यों साहेब....ठीक कहा!

 

kisan andolan
किसान आन्दोलन
farmers protest
agricultural crises
Anti Farm Laws
Anti Farm Laws Protest
Narendra modi
modi sarkar
Modi government
Supreme Court
Supreme Court Judgements
sc committee

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ

राज्यपाल प्रतीकात्मक है, राज्य सरकार वास्तविकता है: उच्चतम न्यायालय

राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट: घोर अंधकार में रौशनी की किरण

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश

क्या लिव-इन संबंधों पर न्यायिक स्पष्टता की कमी है?

उच्चतम न्यायालय में चार अप्रैल से प्रत्यक्ष रूप से होगी सुनवाई


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License