NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
फिल्में
समाज
भारत
राजनीति
थप्पड़ फ़िल्म रिव्यू : यह फ़िल्म पितृसत्तात्मक सोच पर एक करारा थप्पड़ है!
'अगर एक थप्पड़ पर अलग होने की बात हो जाए तो 50 परसेंट से ज़्यादा औरतें मायके में हों।'
सोनिया यादव
27 Feb 2020
thappad movie

'हां, एक थप्पड़! लेकिन नहीं मार सकता ना...’

डायरेक्टर अनुभव सुशीला सिन्हा की फ़िल्म 'थप्पड़' का ये डायलॉग वास्तव में पितृसत्तात्मक समाज पर एक करारा थप्पड़ है। उस दकियानूसी सोच पर कड़ा प्रहार है जो शादी के बाद महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा को एक समझौते के तौर पर औरत की किस्मत मान लेती है। ये फ़िल्म महज़ सिनेमा के लिए एक कहानी नहींं है, ये हर उस औरत की आपबीती है जो परिवार के लिए करती तो सब कुछ है लेकिन बावजूद इसके वो उसी परिवार में किसी लायक नहीं समझी जाती।

फ़िल्म की शुरुआत तापसी पन्नू के किरदार अमृता से होती है। अमृता की ज़िंदगी एक आम हाउस वाइफ़ की तरह सुबह से शाम अपने घर और पति विक्रम (पावेल गुलाटी) के इर्द-गिर्द घूमती है। पति के लिए वो अपने सपनों को छोड़ देती है, पति को सुबह उठाने से लेकर रात में उसके सोने तक अमृता उसकी हर छोटी-बड़ी ख्वाइशें पूरी करने में लगी रहती है।

Thappad-movie-review-1200.jpg

इस सामान्य सी कहानी में ट्विस्ट एक थप्पड़ से आता है। एक दिन अचानक एक पार्टी में अमृता का पति उसे सबके सामने 'थप्पड़' जड़ देता है। पार्टी के शोर में थप्पड़ की गूँज कहीं खो जाती है, उस रात के बाद सब मूव ऑन कर जाते हैं पर अमृता की ज़िंदगी ठहर जाती है। उसे लगता है बस अब और नहीं.... 'एक थप्पड़ ही सही लेकिन वो नहीं मार सकता’ ये एक थप्पड़ उसके कई ज़ख़्मों को कुरेद देता है।

फिर फ़िल्म में नज़र आता है हमारे समाज की सोच का वो पहलू जो अक्सर शादी चलाने के नाम पर पत्नियों के साथ हो रही ज़्यादतियों को सहने की सलाह देता है। 'एक थप्पड़ ही तो था ना, विक्रम का मूड कितना ऑफ़ था और शादी में फिर इतना कॉमप्रोमाइस तो चलता है ना.....’ फ़िल्म में भी लोग अमृता को ऐसा ही ज्ञान देते हैं। लेकिन अमृता नहीं मानती और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने निकल पड़ती है। यहीं से शुरुआत होती है एक औरत के संघर्ष की.. एक ऐसे पति के साथ, जिसका कहना है कि 'सब कुछ तो करता हूं तुम्हारे लिए, मियां बीवी में ये सब तो हो जाता है, इतना बड़ा तो कुछ नहीं हुआ ना... लोग क्या सोचेंगे मेरे बारे में कि बीवी क्यों भाग गई?’

Thappad.png

कहानी में औरतों के बीच अंतर्विरोध को भी बखूबी दर्शाया गया है। अमृता की सास (तन्वी आज़मी) उससे कहती है कि 'घर समेट कर रखने के लिए औरत को ही मन मारना पड़ता है।' उसकी मां (रत्ना पाठक) उसके तलाक लेने का फैसला सुनकर यह कहती है कि 'यही सुनना रह गया था कि बेटी तलाक लेगी? क्या ग़लती हो गई थी हमसे?’ यहां तक की अमृता की वकील नेत्रा जयसिंह (माया सराओ) भी उससे कहती है कि 'बस एक थप्पड़ पर केस कर दोगी'।

'अगर एक थप्पड़ पर अलग होने की बात हो जाए तो 50 परसेंट से ज़्यादा औरतें मायके में हों।'

थप्पड़ में अमृता के अलावा पांच और औरतों के जीवन की कश्मकश को दिखाया गया है। अनुभव सिन्हा ने अलग अलग तबके से जुड़ी इन औरतों के जीवन की कहानियों के जरिए आम महिलाओं की तकलीफों को परदे पर उतारा है। कहानी में पहली औरत अमृता की मेड है जो पति से मार खाने को ही अपना जीवन समझती है। दूसरी औरत अमृता की मां है, जिनकी ज़िंदगी आम है, वो खुद को प्रोग्रेसिव मानती हैं लेकिन बेटी को पति से अलग न होने की ही सलाह देती हैं। लेकिन फ़िल्म का अंत आते आते वह भी अपने साथ हुए अन्याय को महसूस करने लगती हैं जिसका जिक्र उन्होंने अपने पति से कभी करना जरूरी समझा ही नहीं।

अमृता के पिता (कुमुद मिश्रा) को तब झटका लगता है जब उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने अपनी पत्नी के सपने को कभी जानना जरूरी समझा ही नहीं। फ़िल्म में तीसरा किरदार है अमृता की अपनी सास का, जो खुद की पहचान ढूंढने के लिए पति से अलग बेटे के साथ रहती तो हैं, लेकिन जब उनकी बहू को अपना बेटा थप्पड़ लगाता तो उस बात को वह यह कहकर अनदेखा करती हैं कि बेटा परेशान था, हो गया उससे। और अगले दिन भी बहू से उसका हाल पूछने के बजाय ये पूछती हैं कि विक्रम रात को ठीक से सोया ना?

epgvavruuaa8wio-20200227031941085.jpg

फ़िल्म में अगली कहानी अमृता की वकील नेत्रा की है। नेत्रा जयसिंह एक कामयाब वकील होने के साथ-साथ मशहूर न्यूज़ एंकर मानव कौल की पत्नी और बेहद कामयाब वकील की बहू भी हैं। दो पुरुषों की कामयाबी किस तरह उनके व्यक्तित्व और अचीवमेंट को दबा रही है, इसका अंदाज़ा नेत्रा को अमृता का केस लड़ने के दौरान होता है और फ़िल्म के अंत में वह बेहद शालीनता से साहसिक कदम उठाने से नहीं चूकतीं। पांचवा किरदार अमृता के भाई की गर्लफ्रेंड का है जो अमृता के साथ उस वक़्त खड़ी होती है जब अमृता का भाई तक उसके फ़ैसले से खुश नहीं है। अपने बॉयफ्रेंड से उसका रिलेशन कैसे मोड़ से गुज़रता है, यह भी अपने आप में बेहद प्रभावी तरीके से दिखाया गया है।

फ़िल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा है इसका अंत, क्योंकि फ़िल्म के शुरुआत में जिस सामाजिक ढांचे को लेकर मन में सवाल खड़े होते हैं कि आख़िर अमृता क्यों इतनी कठोर हो रही है? एक थप्पड़ के कारण घर क्यों तोड़ना चाहती है, एक मौका तो देना चाहिए। इन सब सवालों का जवाब आपको आख़िर में मिल जाते हैं। फ़िल्म का अंत सभी किरदारों के अच्छे और बुरे पहलू, मन में चलने वाली उलझनें, द्वंद्व और अंतरविरोधों को न सिर्फ सबके सामने रखती है बल्कि पूरे समाज को एक-एक ऑप्शन भी देकर जाती है, जिससे जीवन बेहतर बन सके।

कुल मिलाकर अनुभव सिन्हा और मृणमयी लागू ने पूरी फ़िल्म को ऐसे लिखा है जिसमें हमारे समाज की कड़वी हक़ीक़त को हम हर पल महसूस करते हैं, उसे अपनी ज़िंदगी से जोड़ने की कोशिश करते हैं। साथ ही समाज में औरतों की भूमिका और उनके हो रही हिंसा को लेकर फ़िल्म ख़त्म होने के बाद भी अनेक सवालों में उलझे रहते हैं। हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि आख़िर आज भी हम महिलाओं के साथ हो रही हिंसा को सामान्य क्यों मान लेते हैं। महज़ एक थप्पड़ भी किसी के आत्मसम्मान पर गहरी चोट कर सकता है, ये थप्पड़ सिर्फ़ एक थप्पड़ नहीं है।

Thappad Movie
Thappad Movie Review
bollywood
patriarchal society
Patriotism
male dominant society
gender discrimination
Taapsee Pannu
Pavail Gulati
Anubhav Sinha

Related Stories

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

फ़िल्म: एक भारतीयता की पहचान वाले तथाकथित पैमानों पर ज़रूरी सवाल उठाती 'अनेक' 

फ़िल्म निर्माताओं की ज़िम्मेदारी इतिहास के प्रति है—द कश्मीर फ़ाइल्स पर जाने-माने निर्देशक श्याम बेनेगल

कलाकार: ‘आप, उत्पल दत्त के बारे में कम जानते हैं’

भाजपा सरकार के प्रचार का जरिया बना बॉलीवुड

रश्मि रॉकेट : महिला खिलाड़ियों के साथ होने वाले अपमानजनक जेंडर टेस्ट का खुलासा

तमिल फिल्म उद्योग की राजनीतिक चेतना, बॉलीवुड से अलग क्यों है?

भारतीय सिनेमा के महानायक की स्मृति में विशेष: समाज और संसद में दिलीप कुमार

भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत : नहीं रहे हमारे शहज़ादे सलीम, नहीं रहे दिलीप कुमार


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License