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विज्ञान
2020 के नोबेल पुरस्कार के पीछे की वैज्ञानिक तकनीक
आज अंतरिक्ष से जुड़ी जो खोजें हो रही हैं, उन्हें संभव बनाने वाला विज्ञान, 1950 के दशक से अब तक कई तरह की बाधाएं पार कर यहां तक पहुंचा है।
सब्यसाची चटर्जी
26 Nov 2020
नोबेल पुरस्कार

साल 2020 का नोबेल पुरस्कार पिछले महीने रोजर पेनरोज़, एंड्रिया घेज़ और रीनहार्ड गेनजेल को दिया गया। रोजर पेनरोज़ को पुरस्कार यह स्थापित करने के लिए दिया गया कि ब्लैक होल का बनना "सापेक्षता के सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी)" का तेजतर्रार अनुमान है। वही एंड्रिया घेज़ और रीनहार्ड गेनजेल को "हमारी आकाशगंगा के मध्य में एक बेहद विशाल सघन वस्तु की खोज" के लिए पुरस्कृत दिया गया। नोबेल पुरस्कारों के पीछे के सैद्धांतिक मुद्दों पर प्रेस में चर्चा होती रहती है, लेकिन इन खोजों को संभव बनाने वाली प्रायोगिक और तकनीकी विकास पर बहुत कम ध्यान दिया गया है।

18वीं और 19वीं सदी के अंत में जॉन मिचेल और पिएरे सिमोन लेपलैस अनुमान लगा चुके थे कि, चूंकि गुरुत्वाकर्षण बल हमेशा एक आकर्षित करने वाली ताकत होती है, इसिलए बहुत बड़ी वस्तुएं अपने खुद के गुरुत्वाकर्षण के चलते गिर सकती हैं। अगर कोई वस्तु बहुत बड़ी होगी, इतनी बड़ी कि उसका पूरा वजन सघन होकर एक छोटी वस्तु में बदल जाए, उसका सतह-गुरुत्वाकर्षण इतना ज़्यादा होगा कि उसमें से ना तो प्रकाश निकल पाएगा और ना ही किसी तरह के भौतिक कण। इसी वस्तु को आजकल हम "ब्लैक होल" कहते हैं।

लेकिन बीसवीं सदी की फिजिक्स ने बताया था कि यह न्यूटनवादी मैकेनिक्स, उच्च गुरुत्वाकर्षण बल वाले क्षेत्रों में टूट जाएगी और इसके बाद फिजिक्स को "सापेक्षता के सिद्धांत या GTR (जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी)" को ध्यान में रखकर बयां करना होगा। मतलब फिजिक्स को उच्च गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की मौजूदगी में "स्पेस-टाइम वक्र" में होने वाले परिवर्तन के हिसाब से  बताना होगा।

आइंस्टीन के प्रतिनिधि पेपर प्रकाशित होने के बाद, बहुत जल्द कार्ल श्वार्ज्सचाइल्ड ने 1916 में बताया कि M भार वाली वस्तु से "r0 = (2GM/c2)" दूरी पर ब्लैक होल की स्थिति निर्मित होगी। इस सीमकरण को श्वार्ज्सचाइल्ड त्रिज्या कहते हैं। तो इस तरह सूर्य और पृथ्वी के लिए श्वार्ज्सचाइल्ड त्रिज्या क्रमश: 3 किलोमीटर और 9 मिलीमीटर होगी। यह दूरी इन दोनों वस्तुओं के आकार की तुलना में बहुत कम है। क्या बड़ी वस्तुओं की त्रिज्या श्वार्ज्सचाइल्ड की त्रिज्या के बराबर हो सकती है? क्या वाकई में ऐसी वस्तुएं अस्तित्व में रह सकती हैं? या फिर कोई दूसरी चीज उन्हें ब्लैक होल की स्थिति में जाने से रोक देगी?

कई दशकों तक इस पर शक की नज़र से देखा जाता रहा। 1955 में अमल कुमार रॉयचौधरी (बाद में लेखक कोमेर) द्वारा प्रकाशित प्रतिनिधि पेपर में यह सवाल फिर से सामने आया।  इस पेपर में उन्होंने वह स्थितियां बताईं, जिनमें इस तरह की विघटनकारी घटनाएं एक निश्चित समय में हो सकती हैं। 1965 में रोजर पेनरोज़ ने GTR में ज्योमेट्री का विचार प्रस्तुत किया। पेनरोज़ की क्रांतिकारी कार्यशैली ने बताया कि बड़ी वस्तुओं का ब्लैक होल में बदलना तय होता है और घूर्णन जैसी दूसरी भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा इसे रोका नहीं जा सकता। बहुत जोर देकर बताया गया कि यह घटनाक्रम "सापेक्षता के सिद्धांत" के विरोधाभास में नहीं, बल्कि इसका नतीज़ा है।

सवाल उठता है कि जब पेनरोज़ ने 50 साल पहले वास्तविक ब्लैक होल को खोजने के लिए जरूरी सैद्धांतिक काम पूरा कर दिया था, तो इसकी खोज में इतना वक़्त क्यों लग गया? दरअसल यहीं तकनीकी विकास अहम हो जाता है। हम अगर पीछे देखें तो पाएंगे कि 1950 के दशक में रेडियो एस्ट्रोनॉमी में बहुत उछाल आया। लेकिन इसके लिए जरूरी तकनीक कार्ल जेंस्की ने 1930 के दशक में ही खोज ली थी, पर यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद ही असल तस्वीर में आ पाई। युद्ध के दौरान रडार और रेडियो साइंस का विकास रेडियो एस्ट्रोनॉमी के ज्ञान को आगे लेकर आया और उस वक़्त कई जगहों पर रेडियो टेलिस्कोप लगाए गए। बहुत सारा आंकड़ा आया और इसके चलते GTR के कुछ सैद्धांतिक मुद्दों पर दोबारा नज़र डालने की जरूरत पड़ी। 

उदाहरण के लिए, कसार्स की खोज- पेनरोज़ का काम इस खोज के पीछे-पीछे ही हुआ। कसार्स बहुत अधिक प्रकाश वाले रेडियो स्त्रोत हैं, जो हमारे ब्रह्मांड से बहुत दूर स्थित हैं। जो कसार्स हमारे सबसे पास है, वह हमसे 2.5 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। बाद में यह पाया गया कि कसार्स हर तरह की तरंगदैध्र्य (वेव लेंथ) वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन फैलाती है और यह अंतरिक्ष के अलग-अलग हिस्सों में आकाशगंगाओं के केंद्र में स्थित होती है। कसार्स से उत्पादित होने वाली बड़ी ऊर्जा पर टिप्पणी करते हुए 1969 में डोनाल्ड लिंडेन बेल ने कहा कि इनके केंद्र में बहुत बड़े ब्लैक होल हैं, जिनके भीतर कई लाख गुना सौर भार है। यह बेहद विशाल ब्लैक होल अपने आसपास के क्षेत्र को अपने बेहद ताकतवर गुरुत्वाकर्षण बल से अपनी तरफ खींचता है। ब्लैक होल में गिरने वाली इन चीजों के चलते कुछ प्रक्रियाएं होती हैं, जिनसे रेडियेशन का उत्सर्जन होता है। इनकी खोज करने में रेडियो टेलिस्कोप कामयाब रहे। लिंडेन-बेल ने कहा, "अगर हम कहें कि स्पेस-टाइम में मौजूद वस्तुओं का परीक्षण करने में हम सफल नहीं होंगे, तो हम गलत कह रहे होंगे।"

चूंकि कसार्स अलग-अलग ब्रह्मांडों के केंद्र में स्थित हैं, तो स्वाभाविक तौर पर सवाल उठता है कि क्या हमें भी अपने ब्रह्मांड- मंदाकिनी (मिल्की वे) के केंद्र में बेहद विशाल ब्लैक होल की खोज नहीं करनी चाहिए?

प्रोफ़ेसर रीनहार्ड गेनज़ेल और एंड्रिया घेज़ पिछले 30 साल से इस समस्या पर काम कर रहे हैं। 1988 में मौजूदा लेखक कार्गीज़ की एक वर्कशॉप में घेज़ से मिला। उस वक़्त वे एक ताजातरीन पीएचडी शोधार्थी थीं। उन्होंने कुछ दोहरी-चीजों के परिक्रमा पथ का माप बताया था। उदाहरण के लिए ऐसे तारे जो एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं। बेहद विशाल ब्लैक होल की खोज में यह तथ्य ध्यान में रखा गया होगा- अगर आकाशगंगा के केंद्र में बहुत बड़ा ब्लैक होल होगा, तो इसके आसपास के तारे उसका चक्कर लगा रहे होंगे। अगर हम उनके परिक्रमा पथ की त्रिज्या और समयावधि पता लगाने में कामयाब हो जाते हैं, तो हमें ब्लैक होल के हस्ताक्षर मिल सकते हैं। हम उसकी दूरी का अनुमान लगा सकते हैं।

उन्होंने हमारी आकाशगंगा (मंदाकिनी या मिल्की वे) के केंद्र में स्थित सैगिटेरिअस A* क्षेत्र में ऐसे तारों की खोज शुरू की। इस क्षेत्र में विशालकाय ब्लैक होल की मौजूदगी के चलते तारों का परिक्रमा पथ न्यूनतम 16 साल भी हो सकता है, यह इंसानी जीवन में आसानी से देखी जा सकती है, वहीं सूर्य को हमारे ब्रह्मांड की परिक्रमा करने में 20 करोड़ साल लगते हैं। 16 साल के परिक्रमा पथ वाले इन तारों के परिक्रमा पथ का व्यास 17 प्रकाश घंटे होता है। किसी को इन्हें जानने के लिए हमारी आकाशगंगा के केंद्र में देखना होगा, जो हमारे यहां से 26,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है! गेनजेल के शब्दों में चुनौती कुछ तरह थी: हमें पृथ्वी से बैठकर, चंद्रमा की सतहों पर कुछ सेंटीमीटर में दी गई व्याख्या का समाधान करना था।

वैज्ञानिकों को उच्च प्रकाश संवर्द्धन क्षमता वाले टेलिस्कोप का उपयोग करना था, मतलब ऐसे टेलिस्कोप जिनका "अपरचर डॉयमीटर" काफ़ी ज़्यादा हो। क्योंकि तारों के प्रकाश की प्रबलता, 26000 प्रकाश वर्ष की दूरी तय करते-करते, हम तक पहुंचते हुए काफ़ी कमजोर हो जाती है। ऊपर से इस दौरान यह कई सारी परतों से होकर गुजरती है, जिनमें आकाशगंगा में मौजूद धूल की परतें भी हैं। घेज़ की टीम ने 10 मीटर व्यास वाले, हवाई स्थित केक टेलिस्कोप का उपयोग किया। वहीं गेनजेल के समूह ने चिली की यूरोपियन सदर्न ऑब्ज़रवेटरी में स्थित 8 मीटर व्यास वाले अपरचर टेलिस्कोप का इस्तेमाल किया। इतने बड़े टेलिस्कोप को बनाना ही अपने-आप में तकनीकी चुनौती है। इनकी डिज़ाइन और निर्माण में मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, सिविल, सामग्री विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स की विशेषज्ञता की जरूरत होती है। गेनजेल दूसरी तकनीकी चुनौतियों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इन तीस सालों में उन लोगों को अपनी उपकरणों की संवेदनशीलता और उनके समाधान तक पहुंचने की सीमा के पैमाने को कुछ हजारों से दसों लाख तक सुधारना पड़ा।

एक तकनीकी बाधा संवेदनशील इंफ्रारेड डिटेक्टर्स, CCDs को हासिल करने की थी। क्योंकि परीक्षण इंफ्रारेड जोन में किए जाने थे। लेकिन इसके लिए कई नए विचार थे, जिन्हें लागू किया जाना था। एक अहम विचार, अकेले टेलिस्कोप के बजाए, कई सारे टेलिस्कोप से प्रकाश को मल्टी-टेलिस्कोप इंटरफेरोमीटर में एकत्रित करने का था। इससे टेलिस्कोप की शक्ति कई गुणा बढ़ जाती। 

वैज्ञानिकों को "सीइंग (Seeing)" की समस्या से भी उभरना था। "सीइंग" एक वैज्ञानिक शब्दावली है, जिसका उपयोग इमेजिंग पर वातावरण की उथल-पुथल से पड़ने वाले प्रभाव के लिए किया जाता है। जब तारे टिमटिमाते हैं, तब उनकी तस्वीर में अगर टेलिस्कोप का लंबा "एक्सपोज़र" होता है, तो तस्वीर में से वे सारे प्रभाव नष्ट हो सकते हैं, जिनके परीक्षण की जरूरत वैज्ञानिकों को होती है। इसलिए 1 से 10 मिली सेकंड के बहुत कम अवधि के एक्सपोज़र को लेने की कोशिश की जाती है, यह इतना कम वक़्त होता है, जिसमें पर्यावरण में कोई बदलाव नहीं आ पाता।

इसके लिए "एडॉप्टिव ऑप्टिक्स" नाम की एक नई तकनीक का सहारा लिया गया। इसमें दो चरण होते हैं। 1) वेव फ्रंट सेंसिंग 2) वेव फ्रंट करेक्शन। पहले चरण में "एटमॉस्फेरिक सीइंग" का एक कृत्रिम तारा बनाकर परीक्षण किया जाता है। टेलिस्कोप के ज़रिए वातावरण में 548.2 नैनोमीटर की तरंगदैघ्र्य वाला एक लेज़र लाइट छोड़ा जाता है। जिसे 90 किलोमीटर की ऊंचाई पर मध्यमंडल में सोडियम अणुओं द्वारा अपने भीतर सोख लिया जाता है। बाद में यह सोडियम अणु प्रकाश उत्सर्जन कर निष्क्रिय हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में यह कण मध्यमंडल में चमकते तारों की तरह व्यवहार करते हैं। तब इनकी धुंधली तस्वीरें टेलिस्कोप के ज़रिए कैद की जाती हैं। इसमें लेज़र के पथ में बदलाव देखा जा सकता है। इसे ही "वेव फ्रंट सेंसिग" कहा जाता है, जिससे सीइंग समस्या की निगरानी की जाती है। "वेव फ्रंट करेक्शन" वाले दूसरे चरण में पहले चरण से हासिल हुई जानकारी का इस्तेमाल कई हिस्सों वाले लचीले आईने का आकार बिगाड़ने में किया जाता है, यह आइना "मल्टी-एलीमेंट इमेजिंग सिस्टम" का हिस्सा होता है।

यह आईना कुछ पाइजोइलेक्ट्रिक एक्टिवेटर्स (यह छोटे-छोटे पिस्टन होते हैं) से संचालित होता है, यह संचालन कुछ इस तरीके से होता है कि मल्टी-एलीमेंट ऑप्टिक्स से जो अंतिम तस्वीर हासिल होती है, वह स्थिर होती है। मतलब वह "सीइंग" के भटकाव से मुक्त होता है। कई हिस्सों वाले आइने (मल्टी सेगमेंटेड मिरर) के निर्माण, नियंत्रण और वेव फ्रंट सेंसिंग-करेक्शन के लिए होने वाली गणना के लिए जिस तकनीक की जरूरत थी, उसे नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता।

इस तरह लेज़र संकेतों को दो "एडॉप्टिव ऑप्टिक्स" से साफ़ किया जाता है। इन साफ़ तस्वीरों का इस्तेमाल कर सैगिटेरियस A* क्षेत्र के तारों के परिक्रमा पथ के आकार का पता लगाया जा सकता है। जिससे अंतत: हमारे ब्रह्मांड के केंद्र में बेहद भारी ब्लैक होल की उपस्थिति की पुष्टि हो जाती है, जो सौर भार का चार लाख गुना भारी है। इस बेहद अहम काम से हमें ब्रह्मांड में देखने के लिए एक नई दृष्टि हासिल हुई है, इससे ब्लैक होल्स की उपस्थिति पर संशय भी खत्म हुआ है। यह पूरा काम एक टीमवर्क का अच्छा उदाहरण है।

अंतरिक्ष क्षेत्र का यह हासिल कई संभावी वैज्ञानिकों को प्रेरित करेगा और नागरिकों की विज्ञान में रुचि बढ़ाएगा। एंड्रिया घेज़ कहती हैं कि यह पुरस्कार उन्हें "अपनी पेशे के शिक्षा वाले पहलू की तरफ ज़्यादा जुनूनी बनाएगा..." और यह "लोगों की सवाल पूछने और सोचने की क्षमता बढ़ाएगा, जो दुनिया के भविष्य के लिए बेहद अहम है।" लेकिन इन शानदार विचारों के लिए बड़े सामाजिक निवेश की जरूरत होगी, जिसके लिए समाज को अब आगे आना होगा।

लेखिका इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरू से रिटायर्ड वैज्ञानिक हैं। वे ऑल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क की मौजूदा प्रेसिडेंट हैं। वे साइंस कम्यूनिकेटर हैं, जिनकी विज्ञान-तकनीकी-समाज के आपसी व्यवहार में गहरी रुचि है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

The Technology Behind the 2020 Nobel Prize in Physics

Nobel Prize 2020
Singularity
Roger Penrose
Andrea Ghez and Reinhard Genzel
Milky Way
Quasars
General Theory of Relativity

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गुरुत्वाकर्षण तरंगों के इस्तेमाल के द्वारा सबसे शक्तिशाली ब्लैक होल के टकराव का पता लगा लिया गया है 


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