NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
बात बोलेगी: देश ने किसानों के पक्ष में की ज़ोरदार बैटिंग
संघर्षरत किसानों के पक्ष में भारत बंद की सफलता की ख़बरें इस बात का संकेत दे रही हैं कि देश की नब्ज़ किसानों और मेहनतकश आवाम के हाथ में है।
भाषा सिंह
08 Dec 2020
किसान आंदोलन

कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र पाल सिंह ने आज किसानों के पक्ष में आवाज उठाते हुए केंद्र सरकार के रसायन व उर्वरक मंत्री से पुरस्कार लेने से मना कर दिया। उन्होंने मंच पर जाकर कहा कि जो वह काम कर रहे हैं, वह किसानों और देश के ही लिए हैं और आज जब किसान अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं, तब उनकी अंतरआत्मा यह पुरस्कार लेने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने ज़ोर देकर मंच से कहा, यह संकट का समय है और मैं यह अपील करना चाहूंगा कि सरकार किसानों की मांगों को सुने। यह समय किसानो के साथ खड़े होने का है। वीरेंद्र पाल सिंह को स्वर्ण पुरस्कार प्लांट न्यूट्रीशन के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए दिया गया था।

और जब आज #PunjabAgricultureUniversity में कृषि वैज्ञानिक #DrVarinderPalSingh ने किसानों के समर्थन में केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री से अपना अवॉर्ड लेने से इंकार कर दिया। सौम्यता, आत्मसम्मान और अंतरात्मा का तेज देखिए इस वैज्ञानिक के चेहरे पर। pic.twitter.com/e2lqKyqeJH

— Vinod Kapri (@vinodkapri) December 8, 2020

‘अड़ानी अंबानी कृषि कानून वापस लो’ के नारे के साथ आज संघर्षरत किसानों के पक्ष में भारत बंद की सफलता की ख़बरें इस बात का संकेत दे रही हैं कि देश की नब्ज़ किसानों और मेहनतकश आवाम के हाथ में है। चाहे वह कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद् पाल का पुरस्कार लेने से मना मना हो, या फिर पुरस्कार वापसी की घोषणा करने वाले हों, सब एक स्वर में एक ही बात को दोहरा रहे हैं कि मोदी सरकार अपने अहंकार और कोरपोरेट दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों और खेती की रीढ़ तोड़ रही है—जो सरासर गलत है।

जिस बड़े पैमाने पर तमाम पार्टियों-संगठनों और समूहों के साथ-साथ कई राज्य सरकारों ने आज के भारत बंद का समर्थन किया, उससे लगता है कि भारतीय राजनीति के केंद्र में वर्षों बाद किसान और खेती आ गई है। इसके लिए जिस तरह से पंजाब और हरियाणा के किसानों ने खुद को संगठित और लामबंद किया है, वह भी खेती की ताकत की धमक को भारतीय राजनीति में स्थापित करता है। इसकी अनदेखी भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार को दिनो-दिन महंगी पड़ती जा रही है। ऐसा भारत बंद को मिले व्यापक जनसमर्थन से भी स्पष्ट है।

हालांकि यह मानना बेवकूफी होगी की नरेंद्र मोदी और अमित शाह का नेतृत्व इस सशक्त किसान आंदोलन की काट नहीं ढूंढ रहा होगा। अभी तक केंद्र सरकार दो तरफा रणनीति पर काम कर रही है—पहली किसानों को थका देने वाली। किसान 26-27 नवंबर से सड़कों पर डेरा डाले हुए हैं और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रवैया उनके प्रति 100 फीसदी अनदेखी का है। प्रधानमंत्री के क्रियाकलापों से लगता ही नहीं कि ये लाखों किसान कड़कड़ाती ठंड को झेलते हुए उनकी सरकार से कुछ मांग करने के लिए आए हुए हैं। मोदी बेहद तसल्ली से कभी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में नौकायन करते हैं, तेज़ संगीत का आनंद लेते हैं, तो कभी कोरोना वैक्सीन की तैयारी का मुआयना करने जाते हैं, कोरोना पर विपक्ष से बातचीत करते हैं और अब वह संसद की नई बिल्डिंग के लिए भूमि-पूजन करने की तैयारी में हैं। मानो ये किसान और उनका संघर्ष प्रधानमंत्री के लिए पूरी तरह से बेमानी हो। बिल्कुल जब रोम जल रहा था तब नीरो बंसी बजा रहा थी कि तर्ज पर। इस हृदयहीन उपेक्षा की स्पष्ट वजह इन तीन कृषि कानूनों से कॉरपोरेट लॉबी खासतौर से अंबानी औऱ अडानी समूह को मिलने वाले असंख्य फायदों में छुपी है। दोनों ही समूहों से मोदी की करीबी एक जग जाहिर तथ्य है। इसलिए मीडिया के बड़े खेमे को मध्यम वर्ग को किसानों के खिलाफ तैयार करने के लिए छोड़ दिया गया है। यह मीडिया अपने चिरपरिचित अंदाज में खबरें चला रहा है—खेती के सवाल पर राजनीति क्यों, किसान आंदोलन के पीछे कौन, भारत बंद के पीछे कौन और न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कैसे देश के खिलाफ मांग है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था ही बैठ जाएगी---और भी न जाने क्या-क्या अनर्गल प्रलाप देश के ट़ॉप टीवी न्यूज एंकर कर रहे हैं।

दूसरी तरफ, देश के गृह मंत्री अमित शाह का महकमा सक्रिय है दूसरी रणनीति को अंजाम पर पहुंचाने के लिए। इसका मंत्र पुराना है—फूट डालो और राज करो। इसके लिए वह लगातार, कुछ किसान नेताओं से अलग से बातचीत कर रहे हैं। कुछ नेताओं को अलग से बातचीत का न्यौता देखकर आंदोलन को तोड़ने की कोशिश, एक धड़े द्वारा आंदोलन से वापस होने की संभावनाओं आदि पर तेजी से काम चल रहा है।

इस सारी कवायद में दिक्कत आ रही है किसानों की संगठित चेतना और किसानों के साथ खड़ा होता भारतीय जनमानस। किसानों के आंदोलन के साथ शाहीन बाग जैसी उपेक्षा और दुश्मनी वाला सलूक करना मुश्किल हो रहा है। सवाल यहां देश के अन्नदाता का है और उसकी नासमझी पर जितना भी मोदी सरकार खेल ले, लेकिन अभी तक वह यह अवधारणा नहीं बना पाई है कि किसान को खेती के बारे में पता नहीं है। साथ ही इस आंदोलन के पक्ष में देश भर में जिस तरह से अलग-अलग समूह और राजनीतिक दल साथ आए हैं, उसमें इस आंदोलन को क्रश करना, यानी कुचलना मोदी सरकार के लिए संभव नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से आवाजें उठ रही हैं, वह भक्तों के लिए तकलीफदेय साबित हो रही हैं।

भारत बंद अपने उद्देश्य में सफल रहा। इसने व्यापक गोलबंदी को एक मूर्त रूप दिया। आज जब दिन में दिल्ली में मैं जंतर-मंतर पर गई, वहां बैठे पुलिसवालों से बातचीत की, उनमें से दो ने बहुत मार्के की बात कही, हम उन्हें यहां नहीं आने देंगे, हमारा काम जंतर-जंतर की हिफाजत करना है। मैंने उनसे पूछा, किसानों से दिल्ली को इतना डर क्यों है—बुजुर्ग पुलिसवाले ने कहा, वे तो किसान हैं, हंगामा नहीं करते, मॉल नहीं जलाते, जहां रोका है, वहीं गांव बना लिया है—ये सब जो देखता है, उसे मिट्टी के पुतर (बेटे) के लिए दर्द तो होता ही है न। फिर इससे तो सरकार परेशान होगी ही न।

देश के एक बड़े हिस्से ने आज किसानों के पक्ष में बैटिंग की और इसका असर निश्चित तौर पर नज़र आएगा। 

farmers protest
Bharat Bandh
Farm bills 2020
Agriculture Laws
agrarian crises
AIUTUC
AITUC
Narendra modi
BJP

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग


बाकी खबरें

  • cartoon
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ख़बर भी-नज़र भी: दुनिया को खाद्य आपूर्ति का दावा और गेहूं निर्यात पर रोक
    14 May 2022
    एक तरफ़ अभी कुछ दिन पहले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं कि अगर विश्व व्यापार संगठन (WTO) भारत को अनुमति देता है, तो हमारा देश अपने खाद्य भंडार से दुनिया को खाद्य आपूर्ति कर सकता है,…
  • aadhar
    भाषा
    आधार को मतदाता सूची से जोड़ने पर नियम जल्द जारी हो सकते हैं : मुख्य निर्वाचन आयुक्त
    14 May 2022
    "यह स्वैच्छिक होगा। लेकिन मतदाताओं को अपना आधार नंबर न देने के लिए पर्याप्त वजह बतानी होगी।"
  • IPC
    सारा थानावाला
    LIC IPO: कैसे भारत का सबसे बड़ा निजीकरण घोटाला है!
    14 May 2022
    वी. श्रीधर, सार्वजनिक क्षेत्र और सार्वजनिक सेवाओं पर जन आयोग के सदस्य साक्षात्कार के माध्यम से बता रहे हैं कि एलआईसी आईपीओ कैसे सबसे बड़ा निजीकरण घोटाला है।
  • congress
    रवि शंकर दुबे
    इतिहास कहता है- ‘’चिंतन शिविर’’ भी नहीं बदल सका कांग्रेस की किस्मत
    14 May 2022
    देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस चुनावों में जीत के लिए पहले भी चिंतन शिविर करती रही है, लेकिन ये शिविर कांग्रेस के लिए इतने कारगर नहीं रहे हैं।
  • asianet
    श्याम मीरा सिंह
    लता के अंतिम संस्कार में शाहरुख़, शिवकुमार की अंत्येष्टि में ज़ाकिर की तस्वीरें, कुछ लोगों को क्यों चुभती हैं?
    14 May 2022
    “बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख़, मशहूर गायिका लता मंगेशकर के अंत्येष्टि कार्यक्रम में श्रद्धांजलि देने गए हुए थे। ऐसे माहौल में जबकि सारी व्याख्याएँ व्यक्ति के धर्म के नज़रिए से की जा रही हैं, वैसे में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License