NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राजस्थान का सत्ता संघर्ष जितना लंबा खिंचेगा, लोकतंत्र उतना ही कमज़ोर होगा!
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और बग़ावती तेवर अख़्तियार करने वाले सचिन पायलट के बीच जारी सत्ता संघर्ष के ख़त्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। अब अशोक गहलोत बहुमत परीक्षण के जरिये अपनी ताक़त का इज़हार करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने राजभवन का दरवाजा खटखटाया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
25 Jul 2020
राजस्थान

राजस्थान में सियासत पल पल अपना रंग बदल रही है। करीब एक पखवाड़े पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच शुरू हुआ सत्ता का संघर्ष अब राजभवन तक पहुंच चुका है। इस दौरान इस संघर्ष ने कांग्रेस मुख्यालय से लेकर होटल, पुलिस, एसीबी, एटीएस-एसओजी, ईडी-इनकम टैक्स, सीबीआई, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय किया है।

ताजा अपडेट यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत अब राज्यपाल पर जानबूझकर विधानसभा सत्र नहीं बुलाने का आरोप लगा रहे हैं। शुक्रवार को वे अपने सभी विधायकों को राजभवन ले गए और वहां डेरा डाल लिया। मुख्यमंत्री के नेतृत्व में लगभग दिनभर चला प्रदर्शन शाम 7.40 बजे खत्म हुआ।

इस दौरान राजभवन में अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला जहां मुख्यमंत्री और लगभग 100 कांग्रेस विधायक धरने पर बैठे थे। गहलोत ने राज्यपाल को 102 विधायकों की सूची सौंपी है, जिन्होंने विधानसभा सत्र के लिए राज्यपाल से अनुरोध किया है, इसके बाद शुक्रवार रात अशोक गहलोत कैबिनेट की बैठक हुई।

फिलहाल कांग्रेस पार्टी आज यानी शनिवार को राज्य के सभी जिला मुख्यालयों पर भारतीय जनता पार्टी के ‘लोकतंत्र की हत्या की साजिश’ के खिलाफ प्रदर्शन करने जा रही है।

राज्यपाल का पक्ष

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस सरकार की ओर से निशाने पर लिए जाने के बाद राजभवन ने भी सख्त रुख अपना लिया। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं होता। जब सरकार के पास बहुमत है तो सत्र बुलाने की क्या जरूरत है? राजभवन ने भी निम्न छह बिंदुओं पर सरकार से जवाब मांगा है।

- सत्र किस तारीख से बुलाना है, इसका न कैबिनेट नोट में जिक्र था, न ही कैबिनेट ने अनुमोदन किया।

- अल्प सूचना पर सत्र बुलाने का न तो कोई औचित्य बताया, न ही एजेंडा। सामान्य प्रक्रिया में सत्र बुलाने के लिए 21 दिन का नोटिस देना जरूरी होता है।

- सरकार को यह भी तय करने के निर्देश दिए हैं कि सभी विधायकों की स्वतंत्रता और उनकी स्वतंत्र आवाजाही भी तय की जाए।

- कुछ विधायकों की सदस्यता का मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में है। इस बारे में भी सरकार को नोटिस लेने के निर्देश दिए हैं। कोरोना को देखते हुए सत्र कैसे बुलाना है, इसकी भी डिटेल देने को कहा है।

- हर काम के लिए संवैधानिक मर्यादा और नियम-प्रावधानों के मुताबिक ही कार्यवाही हो।

- सरकार के पास बहुमत है तो विश्वास मत के लिए सत्र बुलाने का क्या मतलब है?

क्या है कानूनी पहलू

संविधान के आर्टिकल-174 में प्रावधान है कि राज्य कैबिनेट की सिफारिश पर राज्यपाल सत्र बुलाते हैं। इसके लिए वे संवैधानिक तौर पर इनकार नहीं कर सकते। कानून विशेषज्ञों के मुताबिक, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के पास मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कैबिनेट की विधानसभा सत्र आयोजित करने की अनुशंसा स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। राज्यपाल की शक्तियां और कर्तव्य पर संविधान में वर्णित तथ्यों का हवाला देते हुए उनका विचार था कि राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य है।

राज्य में जारी राजनीतिक ‘नौटंकी’ के बीच गहलोत ने मिश्रा पर शुक्रवार को आरोप लगाया कि विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर वह दबाव में हैं। गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार ने राज्यपाल से सत्र बुलाने का आग्रह किया लेकिन उन्होंने अभी तक आदेश जारी नहीं किया है। गहलोत कांग्रेस के 19 बागी विधायकों की चुनौती का सामना कर रहे हैं जिसमें बर्खास्त उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी शामिल हैं।

नबर रेबिया (अरूणाचल प्रदेश) मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी और विकास सिंह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं और उन्हें विधानसभा सत्र बुलाना पड़ेगा।

द्विवेदी ने कहा कि राज्यपाल के पास कोई अधिकार नहीं होता और वह सत्र आयोजित करने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा बताई गई तारीख को केवल टालने का आग्रह कर सकते हैं। एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा कि कैबिनेट अनुशंसा भेजती है तो राज्यपाल शक्ति परीक्षण के लिए विधानसभा की बैठक बुलाने को बाध्य है। सिंह ने कहा, ‘नबम रेबिया मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य है। वह मना नहीं कर सकता है और मुख्यमंत्री जब भी कहें उन्हें विधानसभा की बैठक आयोजित करनी होगी।’

वरिष्ठ वकील ने कहा कि यह मुख्यमंत्री को देखना है कि कोरोना वायरस का खतरा होगा या नहीं। सिंह ने कहा, ‘यह राज्यपाल को नहीं देखना है। वह लोगों को नियमों का पालन करने और सामाजिक दूरी बनाए रखने का निर्देश दे सकते हैं। लेकिन वह मुख्यमंत्री को मना नहीं कर सकते हैं।’

संविधान के अनुच्छेद 163 (1) का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य है। शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘राज्यपाल महज संवैधानिक प्रमुख होता है। उसकी कार्यकारी शक्तियां मंत्रिपरिषद् की सलाह और सहयोग पर निर्भर करती हैं। चूंकि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि राज्यपाल ‘अपने निजी फैसले’ के मुताबिक कार्य करे, इसलिए उसे मंत्रिपरिषद् की सलाह मानना बाध्यकारी है।’

गौरतलब है कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने शुक्रवार की सुबह में आदेश दिया कि सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 बागी विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से जारी अयोग्यता नोटिस पर यथास्थिति बनाए रखी जाए।

जमकर हो रही है बयानबाजी

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा पर राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि राज्यपाल कलराज मिश्र को विधानसभा का सत्र बुलाना चाहिए ताकि सच्चाई देश के सामने आ सके।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘देश में संविधान और क़ानून का शासन है। सरकारें जनता के बहुमत से बनती व चलती हैं। राजस्थान सरकार गिराने का भाजपाई षड्यंत्र साफ़ है। ये राजस्थान के आठ करोड़ लोगों का अपमान है।’ कांग्रेस नेता कहा, ‘राज्यपाल महोदय को विधानसभा सत्र बुलाना चाहिए ताकि सच्चाई देश के सामने आए।’

उधर राज्य में प्रतिपक्ष के नेता बीजेपी के गुलाब चंद कटारिया ने कहा है कि मुख्यमंत्री जिस तरह कह रहे हैं कि जनता राज भवन का घेराव करेगी तो उनकी ज़िम्मेदारी नहीं होगी, उसे देखते हुए केंद्रीय बल तैनात किये जाने चाहिए।

क्या कहना है एक्सपर्ट का?

इस पूरे मसले पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वेद प्रताप वैदिक का कहना है, 'किस दल के पास बहुमत है, यह तय करने का सबसे अधिक प्रामाणिक तरीका तो सदन में होनेवाला मतदान ही है। अदालतों की राय कुछ भी हो, ऐसे मुद्दों पर अंतिम फैसला सदन का ही होता है। राजस्थान के मामले को अदालतों में घसीटने का काम दोनों पक्षों ने किया है। ऐसा करके दोनों पक्षों ने विधानपालिका को न्यायपालिका की चरण-वंदन के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसा करके उन्होंने अपनी और संसदीय लोकतंत्र की गरिमा तो गिराई ही है, राजस्थान की राजनीति को भी अधर में लटका दिया है। पिछले एक हफ्ते से क्या राजस्थान की सरकार कोई काम कर पा रही है? कारोना के विरुद्ध संग्राम में उसने जो नाम कमाया था, वह भी पृष्ठभूमि में खिसक गया है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों की कथनी और करनी, उनकी प्रतिष्ठा को रसातल में पहुंचा रही है।'

वो आगे कहते हैं, 'यदि राजस्थान विधानसभा का सत्र विधान भवन में नहीं बुलाया जा सकता हो तो जयपुर की महलनुमा होटलों में या किसी लंबे-चौड़े मैदान में भी बुलाया जा सकता है या दोनों पक्षों को बुलाकर राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष अपने सामने परेड करवाकर भी फैसला करवा सकते हैं। इस मामले को तय करने में जितनी देर लगेगी, भ्रष्टाचार उतना ही बढ़ेगा, नेताओं की इज्जत उतनी ही गिरेगी और लोकतंत्र उतना ही कमजोर होगा।'

समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ

Rajasthan
Rajasthan sarkar
ashok gehlot
sachin pilot
Supreme Court
Congress
BJP
democracy

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल


बाकी खबरें

  • Olaf Scholz
    एम. के. भद्रकुमार
    मास्को की नपी-तुली कूटनीति काम कर रही है
    21 Feb 2022
    यूक्रेन पर रूसी हमले की संभावना सही मायने में कभी थी ही नहीं। हालांकि, अगर यूक्रेनी सेना अलगाववादी ताक़तों पर हमला करती है, तो डोनबास क्षेत्र में मास्को के हस्तक्षेप का होना सौ फ़ीसदी तय है।
  • sultanpur
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी चुनावः सुल्तानपुर चीनी मिल राज्य सरकार की अनदेखी से हुई जर्जर
    21 Feb 2022
    "सुल्तानपुर चीनी मिल के सही ढ़ंग से न चलने की वजह से इस इलाके के गन्ने की उपज प्राइवेट क्रशर मशीन में किसान मजबूरन दे देते हैं जहां से उनको गन्ने की कीमत आधी या दो-तिहाई ही मिल पाती है।"
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    यूपी में पीएम मोदी ने पार की चुनावी मर्यादा, जागो चुनाव आयोग
    21 Feb 2022
    आज के एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अखिलेश यादव पर साधे गए निशाने पर बात की और उसको हास्यास्पद बताया। उसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी टिप्पणी की कैसे एक…
  • election
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव चौथा चरण: लखीमपुर हिंसा और गोवंश से फ़सलों की तबाही जैसे मुद्दे प्रमुख
    21 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश में तीन चरणों के चुनावों के बाद अब चौथे चरण के लिए जंग शुरू हो गई है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद अब अवध की चुनावी परिक्रमा लगातार जारी है। लेकिन चौथे चरण में अवध की वो सीटे भी हैं जहां…
  • Ballia
    विजय विनीत
    बलिया: ''सबके वोटे के चिंता बा, चुनाव बाद रसड़ा चीनी मिल के बात केहू ना करे ला''
    21 Feb 2022
    देसी चीनी और गुड़ के लिए मशहूर रसड़ा, कभी ''रसदा'' के नाम से जाना जाता था। रसड़ा इलाके में कई घंटे गुजारने के बाद हमें इस बात का एहसास हो चला था कि रसड़ा में हर आदमी की जुबां पर सिर्फ़ एक ही सवाल है…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License