NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
कम नहीं है घर लौटे प्रवासियों का संकट, मनरेगा पूर्ण समाधान नहीं, तत्काल पैकेज की ज़रूरत
मनरेगा का काम केवल स्थानीय निवासियों को दिया जा रहा है, जो पंजीकृत हैं, जिनका नाम रोल्स में दर्ज है। ज्यादातर प्रवासियों ने गांव में अपना नाम पंजीकृत नहीं कराया था और उनके पास जॉब कार्ड भी नहीं है। इन्हें काम देने के लिए नियम बदले जाने चाहिये। वर्तमान संकट के दौर में, जो भी काम की मांग करे, उसे काम मिलना चाहिये।
बी सिवरामन
09 Jun 2020
प्रवासियों का संकट
Image courtesy: The Financial Express

सरकार ऐसा दिखा रही है जैसे प्रवासी समस्या खत्म हो गई। पर यह सच नहीं है। घर लौटे प्रवासियों की समस्या फंसे हुए प्रवासियों से कम नहीं है। ज्यादातर ऐसे प्रवासी मज़दूर अपना रोज़गार गवांकर ही आए हैं, वह भी गरीबी व बदहाली की अवस्था में। उनका एकमात्र सहारा बने हैं उनके परिवार, संबंधी और गांव का समाज। एक ऐसे ‘चमत्कारिक करतब’ में, जहां भारत सरकार पूर्णतया नाकाम रही, तकरीबन 6-8 करोड़ प्रवासियों को भारत के गांवों ने बचा लिया। पर ग्रामीण समाज इनको कब तक सम्भाल सकेगा, पोषण दे सकेगा? अब ये लौटे प्रवासी व्याकुल हैं कि वे गांव से बाहर नया काम तलाश सकें या उन्हें मालिक बुला ले। हमनें कुछ राज्यों में इन प्रवासियों से उनके संकट पर बात की।

हैदराबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि घर लौटने वाले प्रवासियों के लिए मुख्य मार्गों पर चलने वाले श्रमिक स्पेशल गाड़ियों को छोड़ गांव से शहर आने के लिए कोई साधन नहीं हैं। अंतर्राज्यीय बस सेवा अब प्रारंभ करने की बात हुई है, और प्राइवेट गाड़ियों में भाड़ा बहुत अधिक है।

उत्तर प्रदेश को छोड़कर केंद्र और राज्य सरकारों ने कोई राहत-पैकेज की घोषणा नहीं की और उत्तर प्रदेश में भी ज़मीनी हक़ीक़त घोषणाओं से दूर है। संभवतः सरकार इस मुगालते में है कि मनरेगा में बेहतर विनियोजन से प्रवासी समस्या हल हो जाएगी। इसलिए वित्तमंत्री ने मनरेगा में 40,000 करोड़ रु अतिरिक्त आवंटन की बात की है। उधर, निर्मलाजी की घोषणा से पहले योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि मनरेगा के तहत प्रतिदिन 50 लाख रोज़गार का प्रबंध करें। यह वर्तमान संख्या का दूना होगा। पर प्रतापगढ़ और देवरिया के ग्रामीणों ने बताया कि जमीन पर कुछ नहीं दिख रहा, बस बातें हवा में उड़ रही हैं।

यूपी के प्रयागराज ज़िले के गांवों में भी अब तक मनरेगा (MNREGA) के तहत काम का आवंटन नहीं हो रहा। ऐसी ही स्थिति तमिलनाडु में है। राज्य के सीपीएम नेता इलंगोवन रामलिंगम ने कहा, ‘‘मनरेगा का काम केवल स्थानीय निवासियों को दिया जा रहा है, जो पंजीकृत हैं, जिनका नाम रोल्स में दर्ज है। ज्यादातर प्रवासियों ने गांव में अपना नाम पंजीकृत नहीं कराया था और उनके पास जॉब कार्ड (job card) भी नहीं है। इन्हें काम देने के लिए नियम बदले जाने चाहिये। वर्तमान संकट के दौर में, जो भी काम की मांग करे, उसे काम मिलना चाहिये।’’

प्रवासियों के लौट आने के बाद उनका काम पर वापस लौटना ‘पुश फैक्टर’ (push-factor) द्वारा निर्धारित होता है- मतलब एक मजबूरी की स्थिति, जो मज़दूर को जिंदा रहने हेतु गांव छोड़ने को बाध्य करता है। प्रयागराज के हथिगांवां ग्राम के राजकुमार मौर्य बताते हैं कि उनके गांव में करीब 100 प्रवासी मज़दूर दिल्ली, मुम्बई, सूरत और पुणे से वापस आए हैं। ये या तो स्वयं सब्ज़ी की खेती कर रहे हैं या स्थानीय किसानों के खेतों पर काम कर रहे हैं। उन्हें शहर की मज़दूरी का 2/3 हिस्सा ही मिल रहा है। अगर मानसून अच्छा रहा तो वे गांव में रुक भी सकते हैं। पर जीविका के नए विकल्प प्रारंभ करने के लिए पूंजी चाहिये, और बैंकों ने इन लौटे प्रवासियों के लिए कोई नई क्रडिट लाइन (credit line) खोली नहीं।

राजकुमार के अनुसार यद्यपि विकराल संकट नहीं है, पर मज़दूर किसी तरह पेट भरने लायक ही कमा पाता है। अभी ज़मीन-सम्पत्ति बेचने की नौबत नहीं आई है, पर माह के अंत में जब लगन (शादी-ब्याह) का समय होगा, तब दिक्कत आएगी। इसके अलावा कइयों को उधार लेना पड़ा है क्योंकि घर लौटने में मालिक का दिया सारा पैसा खर्च हो गया। खरीफ की फसल कटने के बाद संकट गहराएगा, क्योंकि कमाई खर्च हो जाएगी; यानी जुलाई के बाद से ‘पुश फैक्टर’ काम करेगा। मनरेगा के बारे में पूछने पर राजकुमार व्यंग के स्वर में बोले,‘‘स्थानीय पंजीकृत मज़दूर तक काम नहीं पाए तो लौटे प्रवासियों को कौन पूछेगा?’’

हथिगांवां में ग्रामीणों ने प्रवासियों को नहीं भगाया, क्योंकि उन्हें 14-दिवसीय सरकारी क्वारंटाइन (quarantine) में रहना पड़ा। पर प्रदेश के अन्य भागों में और बिहार में, कई लौटे प्रवासियों को गांव से बाहर कुटिया बनाकर या खेतों में, पुलिया के नीचे या पेड़ों तले रहना पड़ा, जहां खाना पहुंचाया जाता था। शहरों से आए मज़दूर इस स्थिति के लिए तैयार नहीं हैं और वापस शहर जाने को आतुर हैं। पर जब मुम्बई, सूरत और दिल्ली में कोरोना केस बढ़ने की ख़बरें आती हैं, तो वे घबराकर जाना नहीं चाहते।

तमिलनाडु के सीपीएम नेता इलंगोवन कहते हैं, ‘‘मनरेगा तो संपूर्ण समाधान नहीं है, पर हमारी पार्टी की राज्य इकाई ने मांग की है कि न केवल लौटे प्रवासियों को तत्काल पंजीकृत कर जॉब कार्ड दिया जाए, मनरेगा को कस्बों और शहरों तक बढ़ाया जाए। हम साल में 100 दिन काम की जगह 200 दिन काम मांग रहे हैं, क्योंकि यह असाधारण स्थिति है। परिवार के हर सदस्य को काम मिले और सप्ताह के अंत में मजदूरी का भुग्तान हो।

काफी समय पूर्व सरकार ने राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी (ration card portability) की घोषणा की थी, पर आज तक वह लागू नहीं हुआ। सरकार को इसे युद्ध स्तर पर लागू करना चाहिये ताकि प्रवासियों को मदद मिले।’’

 ‘पुल फैक्टर’ (pull-factor) यानी शहर में बेहतर जीवन व वेतन के आकर्षण के चलते गांव छोड़ना भी एकसमान नहीं है। अब कर्नाटक के कोलार जैसे छोटे शहर को ले लें। सामाजिक कार्यकर्ता वीएसएस शास्त्री कहते हैं कि लेबर माइग्रेशन और लॉकडाउन के अंत के बाद पुनः प्रवास या रीमाइग्रेशन (re-migration) बहुत ही संगठित प्रक्रिया है।

पर्यावरण कार्यकर्ता त्यागराजन बताते हैं, ‘‘28000 औद्योगिक मज़दूरों को वेमगल-नरसापुरा इंडिस्ट्रयल कॉरिडोर (industrial corridor) उद्योगों के लिए ठेकेदारों ने मज़दूर सप्लाई किये और इनका पंजीकरण हुआ था और लॉकडाउन में उद्योग बंद होने के चलते वे घर चले गए। अब लॉकडाउन खुला है फिर भी कॉरिडोर में सप्लाई में अवरोध अथवा मांग की अधिकता के कारण उद्योग चालू नहीं हुए। इसलिए ठेकेदार ओडिशा, उत्तर प्रदेश और बिहार से मज़दूरों को नहीं बुला रहे हैं। बिहार, मधुबनी के रमाकांत झा ने कोलार में निर्माण मज़दूरों के लिए 100 शेड बनाए थे। अब झा को किराये में घाटा लग रहा है क्योंकि ईंट भट्ठे अभी अपना पुराना स्टॉक बंगलुरु को भेज रहे हैं पर अन्यथा निर्माण कार्य के अभाव में भट्ठों को चालू नहीं किया जा रहा।

कोलार के पास श्रीनिवासपुरा है। यहां विश्व का सबसे बड़ा आम का बाज़ार है। यहां काम करने वाले 25,000 प्रवासी मज़दूर काम पर वापस नहीं आ सके क्योंकि बाज़ार चालू नहीं हुआ। यद्यपि अंतर्राज्यीय माल परिवहन चालू किया गया है, 800 ट्रक,जो यहां से निर्यात के लिए माल मुम्बई ले जाते थे, नहीं चल रहे क्योंकि निर्यात बंद है। नतीजतन सैकड़ों टन आम पेड़ों पर सड़ रहे हैं। बाज़ार में मुर्गे का दाम बढ़ गया है। कोलार पोल्ट्री ओनर्स (मालिक) ऐसोसिएशन के अध्यक्ष, गोविन्दराजन बताते हैं कि कोलार और आस-पास के पोल्ट्री मालिक इस कारण अपनी गाड़ियां लगाकर हज़ारों मज़दूरों को ओडिशा से वापस ला रहे हैं। पर शास्त्री का कहना है, ‘‘बाज़ार की शक्तियां अलग-अलग खंडों में अलग-अलग ढंग से काम करती हैं और रीमाइग्रेशन-प्रक्रिया (re-migration process) को गतिशील करती हैं, पर सरकार इसमें तेजी लाने के लिए कुछ नहीं कर रही।’’

शास्त्री सवाल करते हैं,‘‘काम के लिए माइग्रेशन से जनता के बीच मेल-मिलाप होता है, विभिन्न राष्ट्रीय, संजातीय (एथनिक), जातीय और सांस्कृतिक समुदायों का एकीकरण होता है-कार्यस्थल पर और आवासीय स्थानों पर भी। बहुलतावादी समाज में यह स्वागतयोग्य परिघटना है। प्रवासी संकट लेबर मार्केट में इस तरह के एकीकरण में दीर्घकालिक व्यवधान पैदा करे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। इसलिए मोदी सरकार को इस प्रवासी संकट को हल करने के लिए नए पैकेज की घोषणा करनी चाहिये थी। पर निर्मला सीतारमण ने कह दिया है कि 31 मार्च 2021 तक कोई नई योजना नहीं आएगी। गहरे सामाजिक संकट के दौर में नीतिगत समाधानों का परित्याग क्या अपराधिक कृत्य नहीं है?’’

(लेखक श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Lockdown
unemployment
migrants
Migrant workers
Migrant crisis
MNREGA
Narendra modi
modi sarkar

Related Stories

हिमाचल : मनरेगा के श्रमिकों को छह महीने से नहीं मिला वेतन

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

कश्मीर: कम मांग और युवा पीढ़ी में कम रूचि के चलते लकड़ी पर नक्काशी के काम में गिरावट

यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!

मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

मनरेगा: ग्रामीण विकास मंत्रालय की उदासीनता का दंश झेलते मज़दूर, रुकी 4060 करोड़ की मज़दूरी

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

छत्तीसगढ़ :दो सूत्रीय मांगों को लेकर 17 दिनों से हड़ताल पर मनरेगा कर्मी


बाकी खबरें

  • BJP
    अनिल जैन
    खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं
    01 May 2022
    राजस्थान में वसुंधरा खेमा उनके चेहरे पर अगला चुनाव लड़ने का दबाव बना रहा है, तो प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत इसके खिलाफ है। ऐसी ही खींचतान महाराष्ट्र में भी…
  • ipta
    रवि शंकर दुबे
    समाज में सौहार्द की नई अलख जगा रही है इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा
    01 May 2022
    देश में फैली नफ़रत और धार्मिक उन्माद के ख़िलाफ़ भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) मोहब्बत बांटने निकला है। देशभर के गावों और शहरों में घूम कर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन किए जा रहे हैं।
  • प्रेम कुमार
    प्रधानमंत्री जी! पहले 4 करोड़ अंडरट्रायल कैदियों को न्याय जरूरी है! 
    01 May 2022
    4 करोड़ मामले ट्रायल कोर्ट में लंबित हैं तो न्याय व्यवस्था की पोल खुल जाती है। हाईकोर्ट में 40 लाख दीवानी मामले और 16 लाख आपराधिक मामले जुड़कर 56 लाख हो जाते हैं जो लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट की…
  • आज का कार्टून
    दिन-तारीख़ कई, लेकिन सबसे ख़ास एक मई
    01 May 2022
    कार्टूनिस्ट इरफ़ान की नज़र में एक मई का मतलब।
  • राज वाल्मीकि
    ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना
    01 May 2022
    “मालिक हम से दस से बारह घंटे काम लेता है। मशीन पर खड़े होकर काम करना पड़ता है। मेरे घुटनों में दर्द रहने लगा है। आठ घंटे की मजदूरी के आठ-नौ हजार रुपये तनखा देता है। चार घंटे ओवर टाइम करनी पड़ती है तब…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License