NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट की हैरान करने वाली चुप्पी
एक समय सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्यजनक सक्रियता दिखाते हुए इस मामले में दखल दिया था। हालांकि किसानों ने खुद को इससे अलग कर लिया था। लेकिन अब जब सात महीने से केंद्र सरकार और किसानों के बीच संवाद बंद है, और चार महीने से खुद उसकी बनाई कमेटी की रिपोर्ट बंद लिफाफ़े में उसके पास पड़ी है, सुप्रीम कोर्ट चुप्पी साधे है।
अनिल जैन
12 Aug 2021
किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट की हैरान करने वाली चुप्पी
Image courtesy : Bar and Bench

केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसानों के आंदोलन को साढ़े आठ महीने पूरे हो चुके हैं। यह आंदोलन न सिर्फ मोदी सरकार के कार्यकाल का बल्कि आजाद भारत का ऐसा सबसे बडा आंदोलन है जो इतने लंबे समय से जारी है। देश के कई राज्यों के किसान तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर सर्दी, गरमी और बरसात झेलते हुए छह महीने से दिल्ली की सीमाओं पर धरने पर बैठे हैं। इस दौरान आंदोलन में कई उतार-चढाव आए। आंदोलन के रूप और तेवर में भी बदलाव आते गए लेकिन यह आंदोलन आज भी जारी है।

हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण, गरमी की मार और खेती संबंधी जरूरी कामों में छोटे किसानों की व्यस्तता ने आंदोलन की धार को थोड़ा कमजोर किया है, लेकिन इस सबके बावजूद किसानों का हौसला टूटा नहीं है। चूंकि कृषि कानूनों को सरकार ने अपनी नाक का सवाल बना रखा है, इसलिए उसने तो किसानों के आंदोलन के प्रति उसने उपेक्षापूर्ण रवैया अपना ही रखा है, मगर इस मामले में सात महीने पहले हस्तक्षेप करने वाली देश की सर्वोच्च अदालत ने भी आश्चर्यजनक चुप्पी साध रखी है।

करीब सात महीने पहले केंद्र सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच कई दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्यजनक सक्रियता दिखाते हुए दखल दिया था। ऐसा लग रहा था कि सुप्रीम कोर्ट तीनों कानूनों की संवैधानिकता पर विचार करेगी और किसान आंदोलन को खत्म कराने का रास्ता भी निकालेगी। लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ भी नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को केंद्र सरकार के बनाए तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी थी और तीन सदस्यों की एक कमेटी बना कर इस मामले में सलाह-मशविरे की प्रक्रिया शुरू कराई थी। हालांकि आंदोलनकारी किसानों ने अपने को इस प्रक्रिया दूर रखा, फिर भी देश के दूसरे कुछ किसान संगठनों और कृषि मामलों के जानकारों ने अपनी राय सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को दी है। कमेटी 31 मार्च को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप चुकी है। लेकिन कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद उस पर आगे कार्यवाही करने के बजाय पहले तो सुप्रीम कोर्ट गरमी की छुट्टियों पर चला गया था और छुट्टियां खत्म होने के बाद भी अब तक इस मसले को लेकर अदालती प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।

सवाल है कि आखिर किसान आंदोलन के मामले में किस बात का इंतजार किया जा रहा है? केंद्र सरकार ने आंदोलनकारी किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ आखिरी बार 22 जनवरी को बातचीत की थी। उसके बाद से बातचीत का सिलसिला पूरी तरह बंद है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक से ज्यादा बार कह चुके हैं कि सरकार किसानों के साथ खुले मन से बातचीत करने के लिए तैयार है पर बातचीत के लिए कृषि मंत्रालय की ओर से कोई पहल नहीं हुई है।

अब स्थिति यह है कि न तो सुप्रीम कोर्ट अपनी बनाई कमेटी की रिपोर्ट के आधार कोई सुनवाई कर रहा है और न ही केंद्र सरकार तीनों कानूनों पर लगी रोक हटवाने के लिए प्रयास करती दिख रही है। इसीलिए सवाल है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनों किस बात का इंतजार कर रहे हैं? यह सही है कि धरने की जगहों पर पिछले दिनों किसानों की संख्या कम हो गई थी, मगर सवाल है क्या सरकार और अदालत का फैसला लोगों की भीड़ पर निर्भर करता है?

सरकार और उसके समर्थक आर्थिक विशेषज्ञों का कहना रहा है कि अगर इन कानूनों पर अमल नहीं हुआ तो 2022 तक किसानों की आय दोगुनी का करने लक्ष्य पूरा नहीं हो सकेगा। अगर सरकार अपने तय किए गए इस लक्ष्य के प्रति वाकई गंभीर है तो उसे अदालत में जाकर अपील करनी चाहिए कि इन कानूनों के अमल पर लगाई गई रोक हटाई जाए। लेकिन सरकार न रोक हटवाने जा रही है और न किसानों का आंदोलन खत्म कराने की दिशा में कोई पहल करती नजर आ रही है।

सरकार ने तो कोरोना महामारी के बीच आपदा को अवसर बनाते हुए अध्यादेश के जरिए इन कानूनों को लागू किया था और बाद में संसद के उच्च सदन में सारे संसदीय कायदों और मान्य परंपराओं को नजरअंदाज कर जोर-जबरदस्ती से इस कानून को पास कराया था। अब वही कानून सात महीने से स्थगित हैं और सरकार को इसे लागू करने की कोई जल्दी नहीं है। साढ़े आठ महीने से किसानों का आंदोलन चल रहा है, सात महीने से केंद्र सरकार और किसानों के बीच संवाद बंद है, और चार महीने से सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी की रिपोर्ट बंद लिफाफ़े में अदालत के पास पड़ी है।

अगर केंद्र सरकार कोई फैसला नहीं करती है तो उसका कारण समझ में आता है। उसका राजनीतिक मकसद है और जिस कारोबारी मकसद के लिए उसने ये कानून बनाए हैं, उसे भी पूरा करना है। कुछ चुनिंदा कारोबारियों के हितों के आगे किसानों के हित उसके लिए ज्यादा मायने नहीं रखते।

वैसे किसान आंदोलन के प्रति सरकार के बेपरवाह होने की एक अहम वजह पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार भी है। इस चुनाव में किसान संगठनों के नेताओं ने भी बंगाल जाकर वहां सभाएं की थी और लोगों से भाजपा को हराने की अपील की थी। किसान नेताओं ने कहा था कि भाजपा बंगाल में हारेगी तभी वह दिल्ली में किसानों की बात सुनेगी।

तब ऐसा माना भी जा रहा था कि अगर बंगाल सहित पांचों राज्यों के चुनाव नतीजे भाजपा के अनुकूल नहीं आए तो सरकार को किसानों की मांगों के आगे झुकना पडेगा। पांचों राज्यों खासकर पश्चिम बंगाल में तो प्रधानमंत्री ने स्पष्ट तौर पर अपनी प्रतिष्ठा ही दांव पर लगा दी थी। इसके बावजूद नतीजे भाजपा की उम्मीदों के मुताबिक आए भी नहीं है, लेकिन सरकार जरा भी झुकती नहीं दिख रही है।

जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा किसान नेताओं के बंगाल जाकर भाजपा को हराने की अपील करने को लेकर नाराज है। उन्होंने इस प्रचार को भी अपने लिए एक चुनौती के रूप में लिया है कि बंगाल में भाजपा हारेगी तो ही किसानों की बात दिल्ली में सुनी जाएगी। ऐसा लग रहा है कि अब सरकार ने जिद ठान ली है कि हम हार गए तब भी किसानों की बात नहीं सुनेंगे। यही वजह है कि सरकार और किसानों के बीच गतिरोध खत्म नहीं हो रहा है।  

इस प्रकार एक तरफ सरकार किसानों के प्रति दुश्मनी का भाव रखते हुए चुपचाप बैठी है तो दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी बनाई कमेटी की रिपोर्ट आ जाने के बाद भी कोई पहल नहीं दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट की यह चुप्पी हैरान करने वाली है। सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट के सामने भी ऐसी क्या मजबूरी है, जो वह रिपोर्ट पर सुनवाई कर मामले का निबटारा नहीं कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट जब तक कोई फैसला नहीं करता तब तक यथास्थिति बनी रहेगी। अदालत ने कानूनों के अमल पर रोक लगाई है और किसान आंदोलन पर बैठे है। उन्हें और उनकी खेती को तीनों कानूनों से नुकसान होने का मुद्दा तो अपनी जगह है ही, कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर आने और उसके ज्यादा मारक होने के अंदेशे की वजह से उनकी सेहत और जान खतरे में है।

विपक्षी दलों के नेताओं ने ही नहीं, भाजपा के अपने सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी कहा है कि सरकार किसानों से बात करे और आंदोलन खत्म कराए। उन्होंने तो अपनी पार्टी की सरकार को यह भी बताया है कि कैसे आंदोलन खत्म कराया जा सकता है। स्वामी ने कहा कि सरकार किसानों से वादा करे कि जो भी राज्य इस कानून को लागू नहीं करना चाहते हैं, वे इसे लागू नहीं करने के लिए स्वतंत्र हैं।

लेकिन सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं दिख रहा है। इसके उलट वह तो मामले को और ज्यादा उलझाने और किसानों को चिढाने की दिशा में काम कर रही है। इस सिलसिले में उसने पंजाब और हरियाणा में किसानों को सीधा भुगतान शुरू कर दिया है, जिससे नाराजगी ही बढ़ रही है। जाहिर है कि सरकार का इरादा मामले का निबटारा कर आंदोलन खत्म कराने का नहीं बल्कि किसानों से टकराव बढ़ाने का है। और सरकार की ज़िद को देखते हुए अब किसानों ने भी एक बार फिर उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में अगले साल की शुरुआत में होने वाले चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने के लिए कमर कस ली है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Supreme Court
farmers protest
Farm Bills
Agriculture Laws
BJP
Narendra modi
Modi government
Narendra Singh Tomar
rakesh tikait

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License