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यूपी विधानसभा उपचुनाव: 2022 के चुनाव से पहले ताक़त दिखाने की कोशिश में सभी दल
उत्तर प्रदेश विधानसभा की 7 सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होगी। चुनाव नतीजे 10 नवंबर को जारी किए जाएंगे। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सात सीटों में एक पर सपा का कब्जा था, शेष 6 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।
अमित सिंह
24 Oct 2020
यूपी विधानसभा उपचुनाव
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : गूगल

दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा की सात सीटों पर 3 नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होना है। चुनाव नतीजे 10 नवंबर को जारी किए जाएंगे। जिन 7 सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें टूंडला (फिरोजाबाद), बुलंदशहर, नौगांवा सादात (अमरोहा), घाटमपुर (कानपुर नगर), बांगरमऊ (उन्नाव) और मल्हनी (जौनपुर), देवरिया सदर सीटें शामिल हैं।

इस उपचुनाव को लेकर सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से तैयारियों में जुटी हैं। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सात सीटों में एक पर सपा यानी समाजवादी पार्टी का कब्जा था, शेष 6 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत दर्ज की थी।

इस बार के चुनाव की खास बात यह है कि चारों प्रमुख दल भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा ने अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। उपचुनाव में भाजपा और सपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। वहीं, कांग्रेस और बसपा के पास खोने को कुछ नहीं है, लेकिन उपचुनाव से उम्मीदें जरूर हैं। कांग्रेस और बसपा को अगर एक सीट पर भी कामयाबी मिल जाती है, तो 2022 के चुनाव में दोंनों के पास सरकार पर निशाना साधने और अपनी ताकत बताने का एक आधार मिल जाएगा।

आपको बता दें कि जिन सात विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है उसमें से पांच सीटें निर्वाचित विधायकों की मृत्यु की वजह से रिक्त हैं। विधायक कमला रानी वरुण, पारसनाथ यादव, वीरेंद्र सिरोही, जनमेजय सिंह, चेतन चौहान का निधन इस वर्ष ही हुआ है। बंगारमऊ से विधायक कुलदीप सेंगर रेप मामले में उम्रकैद की काट रहे हैं। जिसके चलते उनकी विधायकी निरस्त की गई है। फिरोजाबाद की टूंडला विधानसभा सीट एसपी सिंह बघेल के सांसद बनने के बाद से खाली है।

विधानसभा चुनाव 2022 से पहले सात सीटों पर हो रहे इस उपचुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसलिए यह प्रदेश की सत्तारूढ़ योगी सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी है तो बाकी दल भी जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाह रहे हैं। इस सबके अलावा ये उपचुनाव कोरोना संकट, राम मंदिर निर्माण, हाथरस कांड और बेहाल होती कानून व्यवस्था के प्रति मतदाताओं के रुख को दर्शाएगा।

फिलहाल इस सबसे इतर हर सीट के अपने भी समीकरण हैं। वैसे इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में देवरिया सदर सीट की हो रही है। भाजपा विधायक जनमेजय सिंह के निधन से खाली हुई इस सीट पर सभी प्रमुख दलों ने ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया है और सभी का सरनेम त्रिपाठी है। यहां भाजपा ने सत्यप्रकाश मणि त्रिपाठी, सपा ने पूर्व कैबिनेट मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी, बसपा ने अभयनाथ त्रिपाठी और कांग्रेस ने मुकुंद भास्कर मणि त्रिपाठी को चुनाव में उतारा है। दिवंगत जनमेजय के बेटे पिंटू सिंह यहां पर बीजेपी से बगावत करके चुनाव लड़ रहे हैं। उपचुनाव में बीजेपी के लिए यह परेशानी वाली बात है। बता दें कि जनमेजय सिंह 2012 से लगातार दूसरी बार देवरिया सीट से भाजपा के विधायक चुने गये थे। इसी साल अगस्त के महीने में जनमेजय सिंह का निधन हो गया था।

हाथरस कांड के बाद से उन्नाव की बांगरमऊ सीट भी चर्चा में है। यह भाजपा से विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर की सदस्यता जाने के कारण खाली हुई है। यह सीट बरकरार रखना बीजेपी के लिए चुनौती है। बीजेपी ने यहां से उन्नाव के पूर्व जिलाअध्यक्ष श्रीकांत कटियार को उतारा है। समाजवादी पार्टी ने सुरेश कुमार पाल और बीएसपी ने महेश प्रसाद को टिकट दिया है। कांग्रेस ने बांगरमऊ से आरती बाजपेयी को प्रत्याशी बनाया है।

सपा के लिए जौनपुर की मल्हली सीट भी प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई है। जिन सीटों पर उपचुनाव हो रहा है उसमें से इसी एकमात्र सीट पर 2017 के चुनाव में उनकी पार्टी ने जीत दर्ज की थी। सपा ने यहां से दिवंगत विधायक पारसनाथ के पुत्र लकी यादव को प्रत्याशी बनाया है। उनके सामने भाजपा ने मनोज सिंह को टिकट दिया है। मनोज सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष रहे हैं। बसपा ने जयप्रकाश दुबे और कांग्रेस ने राकेश मिश्रा को मैदान में उतारा है। इस सीट पर दो बार विधायक रहे धंनजय सिंह भी मैदान पर ताल ठोककर लड़ाई को रोचक बना रहे हैं।

आपको बता दें कि दो बार से इस सीट पर सपा का कब्जा रहा है। पारसनाथ यादव की मजबूत पकड़ और जिले में अपनी बिरादरी का छत्रप होने के कारण भरपूर कोशिशों के बावजूद इस सीट पर भाजपा एक बार भी जीत दर्ज नहीं कर सकी। पारसनाथ यादव के न रहने के कारण बदली हुई स्थितियों में भाजपा इस सीट को अपना बनाने की पूरी कोशिश में है। इसके लिए पार्टी ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। इसी सीट के लिए पूर्व बसपा सांसद धनंजय सिंह भी निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनौती दे रहे हैं। वे‌ जौनपुर संसदीय क्षेत्र से एक बार सांसद और इसी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुने जा चुके हैं।

इसके अलावा फिरोजाबाद की टूंडला सुरक्षित सीट योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है। इस सीट पर भाजपा ने प्रेमपाल धनगर को मैदान में उतारा है। इनके सामने सपा के महाराज सिंह धनगर चुनाव मैदान में हैं। बसपा ने संजीव कुमार चक को और कांग्रेस ने यहां से स्नेहलता को प्रत्याशी बनाया है।

इसी तरह कानपुर की घाटमपुर सुरक्षित सीट योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री कमलारानी वरुण के दिवंगत होने से खाली हुई है। भाजपा ने यहां से कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में अनुसूचित मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र पासवान को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने इंद्रजीत कोरी, बसपा ने कुलदीप कुमार संखवार और कांग्रेस ने कृपा शंकर को टिकट दिया है।

अमरोहा की नौगांवा सादात सीट पर कैबिनेट मंत्री रहे चेतन चौहान के निधन के कारण चुनाव हो रहे हैं। इस सीट पर भाजपा ने दिवंगत मंत्री चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान को टिकट दिया है। इनका मुकाबला सपा के सैयद जावेद अब्बास, बसपा के मोहम्मद फुरकान अहमद और कांग्रेस के कमलेश सिंह से है।

इसी तरह बुलंदशहर की सीट बीजेपी विधायक वीरेंद्र सिंह सिरोही के निधन से रिक्त हुई है। बीजेपी ने यहां भी सिरोही की पत्नी ऊषा को प्रत्याशी बनाया है। सपा रालोद गठबंधन से यहां प्रवीण सिंह, बसपा से मोहम्मद युनूस और कांग्रेस से सुशील चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं।

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