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यूपी चुनाव: बुंदेलखंड से पलायन जारी, सरकारी नौकरियों का वादा अधूरा
बेहिसाब खराब मौसम ने इस क्षेत्र में कृषि को अव्यवहारिक या नुकसान का सौदा बना दिया है, जियाके कारण नौकरियों की तलाश में युवाओं का बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र से पलायन कर रहा जो चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभर रहा है।
सौरभ शर्मा
17 Dec 2021
Translated by महेश कुमार
manikpur
मानिकपुर रेलवे स्टेशन 

मानिकपुर, चित्रकूट: शनिवार की दोपहर का वक़्त है और 23 वर्षीय राजीव पटेल उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले से चंडीगढ़ जाने के लिए रेलवे आरक्षण हासिल करने की कोशिश में व्यस्त हैं.

बांदा-चित्रकूट के पाठा क्षेत्र के निवासी पटेल पिछले सात वर्षों से चंडीगढ़ और पंजाब और हरियाणा के अन्य शहरों में रसोइए के रूप में काम कर रहे हैं। उनके पास कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं है फिर भी रोज़गार की तलाश में अपना गांव छोड़ काम के लिए चले जाते हैं। 

पटेल का कहना है कि उन्हें सिर्फ पैसा कमाने के लिए अपना गांव छोड़ना पड़ता है क्योंकि क्षेत्र में पैसा कमाने का कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है। पटेल के साथ, सैकड़ों पुरुष नौकरी की तलाश में दूसरे शहरों में चले जा रहे हैं।

“यहाँ कोई उद्योग नहीं हैं इसलिए हमें काम की तलाश में बाहर जाना पड़ता है क्योंकि हमें अपना घर चलाने के लिए पैसे की ज़रूरत होती है। बुंदेलखंड में कृषि पर निर्भर रहना मूर्खता है क्योंकि पानी की कमी है, खराब मौसम रहता है, और फिर इलाके में आवारा मवेशी हैं जो हमारी फसल खा जाते हैं, ”पटेल आगे कहते हैं कि, “हमें नौकरी पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है; हम जो मेहनत करते हैं उसके लिए हमें सही दाम भी नहीं मिलता है और हमारा गंभीर शोषण होता है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में युवा गांवों से बड़े औद्योगिक शहरों में जा रहे हैं।

बुंदेलखंड क्षेत्र में व्यापक बेरोज़गारी युवाओं के भीतर बड़े पैमाने पर पलायन का एक प्रमुख कारण बन गया है। इस क्षेत्र में सैकड़ों गाँव हैं जहाँ केवल बुजुर्ग और महिलाएँ ही रहती हैं क्योंकि परिवारों के ज़्यादातर युवा और पुरुष सदस्य आजीविका कमाने के लिए शहर पलायन कर जाते हैं।

पटेल कहते हैं कि अगर किसी को इस क्षेत्र में दैनिक मजदूरी पर नौकरी मिल भी जाती है, तो बड़े शहरों में कमाई की तुलना में यहां मजदूरी बहुत कम है। इसके अलावा, सप्ताह के पांच दिन भी काम मिलने की कोई गारंटी नहीं है।

आरक्षण काउंटर पर प्रवासी मजदूर।

पटेल कहते हैं, “शहरों में, हम आठ घंटे की नौकरी और एक समय का भोजन, दो समय के नाश्ते के साथ प्रति दिन लगभग 400 रुपये कमाते हैं, लेकिन यहाँ बुंदेलखंड में हमें मुश्किल से 200 रुपये या 250 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं। शहरों में हमें आश्वासन है कि सप्ताह में कम से कम पांच से छह दिन काम मिलेगा, जबकि यहां ऐसी कोई सुरक्षा नहीं है। हमें नहीं पता कि यहां हमें अगले दिन काम मिलेगा या नहीं।” 

श्रमिकों के ठेकेदार ज्ञान चंद्र बुंदेलखंड क्षेत्र से बाहर अपने घरों से जाने वाले युवाओं के लिए जोकि दूसरे शहरों में नौकरी खोजने के इच्छुक हैं उनके लिए रसद की व्यवस्था करने में व्यस्त हैं।

उत्तर प्रदेश में सूखे से प्रभावित बुंदेलखंड क्षेत्र के चित्रकूट जिले के मानिकपुर निवासी चंद्रा 15 साल से अधिक समय से श्रमिक ठेकेदार हैं। वे बुंदेलखंड से मज़दूरों को देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजते हैं और बदले में उनसे कुछ कमीशन लेते हैं। 

ज्ञान चंद्र का कहना है कि बुंदेलखंड में रोज़गार के अवसरों की कमी है जिसके कारण लोग नौकरी की तलाश में भारत के अन्य क्षेत्रों में पलायन करते हैं।

डॉ ज्ञान चंद्र, श्रम ठेकेदार।

चंद्र ने बताया कि, “बुंदेलखंड के लोग पूरे भारत में अपनी उपस्थिति के बारे में डींग मारते हैं और यह सच भी है, लेकिन यह हमारे लिए गर्व की बात नहीं है। लोग नौकरी की तलाश में दूसरे शहरों में जाते हैं। अगर उन्हें यहां नौकरी मिल जाए तो वे दूसरी जगहों पर नहीं जाएंगे। राजनेता लंबे समय से इस क्षेत्र में रोज़गार सृजन का वादा कर रहे हैं लेकिन अब तक कुछ भी नहीं किया गया है। हर सरकार द्वारा चुने जाने पर विकास परियोजनाओं की घोषणा की जाती है और तथ्य यह है कि युवाओं का एक बड़ा हिस्सा हर दिन भारत के अन्य हिस्सों में पलायन कर रहा है।” 

चित्रकूट में मानिकपुर जंक्शन पर तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, 1800 से अधिक लोग विभिन्न ट्रेनों के माध्यम से भारत के विभिन्न हिस्सों में जाते हैं। अब, मानिकपुर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के कई रेलवे जंक्शनों में से एक है। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोग सड़क मार्ग से भी पलायन करते हैं।

उत्तर प्रदेश में 2019-20 में लगभग 1.3 करोड़ मनरेगा रोजगार दिवस सृजित हुए थे और इस अवधि में 1.33 लाख परिवारों को 100 दिन का रोजगार मिला था। 2018-19 में 71,992 घरों और 2016-17 में 41,362 परिवारों को रोजगार मिला था। इसका मतलब है कि पिछले चार वर्षों में रोज़गार के 100 दिन और रोज़गार के दिनों की संख्या लगभग तीन गुना हो गई है, लेकिन फिर भी, इस क्षेत्र में बेरोज़गारी की समस्या बड़ी बनी हुई है।

बांदा स्थित सामाजिक कार्यकर्ता राजा भैया का कहना है कि इस क्षेत्र में पलायन की समस्या इतनी बड़ी है कि पूरा गांव सूना हो जाता है और करीब-करीब सभी पलायन कर जाते हैं.

“इस क्षेत्र के सुदूर इलाकों में, आपको सैकड़ों गाँव में या तो बंद घर मिलेंगे या वहाँ केवल बुजुर्ग सदस्य रहते मिलेंगे। महामारी की चपेट में आने के बाद इस क्षेत्र में बहुत सारा रिवर्स माइग्रेशन भी हुआ है और उस समय बेरोज़गारी के साथ-साथ कई अन्य समस्याएं भी सामने आईं थीं।” राजा भैया उभरते हुए मुद्दों के बारे में बताते हुए कहते हैं, "लोगों ने स्थानीय साहूकारों से ऋण लेना शुरू कर दिया है, उनमें से कुछ ने आत्महत्या करने की कोशिश की और इससे बहुत सारी समस्याएं सामने आईं हैं।"

चित्रकूट की रहने वाली एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मीरा भारती का कहना है कि इस क्षेत्र में प्रवास एक प्रमुख मुद्दा है और जब बड़ी संख्या में लोग बाहर निकलते हैं, खासकर पुरुष, तो जो महिलाएं पीछे अकेली रह जाती हैं उन्हें फिर कुछ अलग ही तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

“सरकार हमें केवल एक वोट बैंक के रूप में देखती है और वे रोज़गार पैदा करने के बारे में नहीं सोचते हैं। प्रभुत्वशाली लोगों द्वारा महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं और अपने परिवार के पुरुषों की अनुपस्थिति के कारण ये महिलाएं अपराध की रिपोर्ट भी नहीं करती हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस क्षेत्र में लोगों को सूक्ष्म स्तर के उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रोज़गार पैदा करने पर ध्यान दे। अगर ऐसा होता है तो यह क्षेत्र से पलायन को रोकने के लिए बालू की थैली का काम करेगा। कृषि पर निर्भर होने के कारण, सरकार अब तक कुछ भी नहीं कर पाई है। वे आगे कहती हैं कि, इसलिए, मुझे लगता है कि सूक्ष्म-स्तरीय उद्योगों की स्थापना से हम सभी को मदद मिलेगी।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP Elections: Migration From Bundelkhand Continues as Govt’s Jobs Promise Remains Unrealised

Bundelkhand
migration
Migrant Labour
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