NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
उत्तर प्रदेश: मजबूर हैं दूसरे धंधों को अपनाने के लिए ढीमरपुरा के किसान
झांसी में पाहुज इलाके के ज़्यादातर गांव वाले प्रवासी मज़दूरों में बदल गए हैं। क्योंकि उनकी ज़मीन साल के ज़्यादातर वक़्त पानी के भीतर रहती है। ऊपर से उनके पास यहां संचालित मत्स्य आखेटन का ठेका हासिल करने के लिए जरूरी संसाधन नहीं हैं।
सुजॉय तरफ़दार
03 Feb 2022
 farm

ढीमरपुरा, झांसी: ढीमरपुरा के किसानों की ज़मीन पाहुज बांध के डूब क्षेत्र में आती है, साल में ज़्यादातर वक़्त उनके खेत पानी से भरे रहते हैं। पिछले कई सालों से वे सरकार से किसी तरह के मुआवज़े की आस में हैं। दो दिन पहले तक उनके पास आजीविका का एक वैकल्पिक साधन था। लेकिन अब नहीं है।

ढीमरपुरा गांव अंग्रेजों के समय में बने बांध के तालाब के किनारे बसा है, जिसे 2018 में फिर से डिज़ाइन किया गया था। यह बांध बुंदेलखंड के गांवों की सिंचाई जरूरतों और झांसी शहर को पानी की उपलब्धता के लिए बनाया गया था। 

एक विशेष क्षेत्र में सिंचाई विभाग एक निश्चित मात्रा में पानी का भंडारण करके रखता है। लेकिन इस पानी के भंडारण वाले क्षेत्र पर किसान अपना दावा करते हुए कहते हैं कि यह उनके नाम पर दर्ज ज़मीन है। 

तीसरी पीढ़ी के किसान 28 साल के अमर सिंह कहते हैं, "कुल 10 एकड़ ज़मीन में से 8 एकड़ पानी के भीतर रहती है, बची हुई 2 एकड़ ज़मीन पर मैं किसानी करता हूं, जिसमें प्रशासन की तरफ से मुआवज़े की कोई मदद नहीं दी जाती। 

वह अपने बचपन के दिन याद करते हुए कहते हैं कि तब "भंडारित जल" स्थिर नहीं रहता था, तब वे और उनके चाचा चार एकड़ से ज़्यादा ज़मीन पर खेती कर पाते थे। जब पानी का स्तर बढ़ा, तो सभी ने पेशे के तौर पर मछली पालन अपना लिया, लेकिन अब यह पेशा भी धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।

मत्स्य पालन विभाग द्वारा मछली आखेटन का ठेका सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को दिया जाता है, जो दूसरे गांव वालों को तालाब से मछली नहीं निकालने देता। 

मूलत: हर कोई गांव में इस पानी से मछली पकड़ता था। लेकिन अब सिर्फ़ ठेका मिलने वाले ही ऐसा कर सकते हैं। ठेका लेने और भर्ती करने वाले लोग, हमारे पास जाल युक्त डीजल चलित बोट, भंडारण क्षमता जैसे संसाधन ना होने के चलते हमें काम पर नहीं रखते। दूसरे प्रदेश से आने वाले प्रवासी मज़दूरों के पास यह हैं और वे कम पैसे में भी काम करते हैं।"

एक कच्ची सड़क हमें गांव तक ले जाती है, जहां आधे रंगे-पुते घरों में दरवाजों पर ताले लगे हुए हैं। यह उस प्रवासी की कहानी जिसे में हमें लेखों और रिपोर्टों में पढ़ते रहे हैं। गांव की हर एक पीढ़ी बड़े शहरों में प्रवासी मज़दूरों के तौर पर काम कर रही है, क्योंकि इस क्षेत्र में रोज़गार के मौकों की कमी है। 

23 साल के राजेंद्र रैकवार कहते हैं, "प्रवासी मज़दूर के तौर पर काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हमारी ज़मीन पानी के भीतर है। हमें ठेका सिस्टम के चलते मछलियों का शिकार नहीं करने दिया जाता, लेकिन हमें अपने बच्चों की शिक्षा और दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे की जरूरत होती है।"

इस क्षेत्र से कुछ दूर हरे-हरे खेत दिखाई देते हैं, जहां किसान अपनी बची हुई ज़मीन पर किसानी कर रहे हैं। 

54 साल के लक्ष्मण दास कहते हैं, "किसानी में पानी के चलते देर होती है, जिससे कर्ज़ बढ़ता जाता है। इस बार मेरे लिए यह कीमत लगाना बहुत मुश्किल था। मेरे यहां इस बार 35 किलो पालक हुई, जिसकी 5 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मुझे कीमत मिली। मैं अपने बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं करवा पा रहा हूं।"

गांव के ज़्यादातर किसानों को थोक बाज़ार (मंडी) में एक निश्चित स्थान उपलब्ध नहीं है, इसलिए उन्हें दलालों पर निर्भर रहना पड़ता है और वे जो भी देते हैं, उसे कबूल करना पड़ता है। 

दास कहते हैं, "वे मंडी में हमारे उत्पाद को बेचने के लिए हमें बैठने नहीं देते, इसलिए दलाल हमें जो भी कीमत देता है, हम रख लेते हैं।"

बुंदेलखंड पथरीला इलाका है, जिसाक मतलब हुआ कि यहां की मिट्टी में विभिन्न प्रकार की फ़सले और व्यावसायिक फ़सलें नहीं हो पातीं, जिसके चलते किसानों को गेहूं, मोटे अनाज, चारा और कुछ प्रकार की सब्जियां उगानी पड़ती हैं, जिनकी बहुत ज़्यादा कीमत नहीं मिलती, लेकिन उन्हें उत्पादित करने में बहुत सारी तैयारी लगती है। 

लेकिन ढीमरपुरा में दिसंबर में जिस फ़सल को दिसंबर में कट जाना था, वह अब भी खेतों में हैं, क्योंकि इलाके में लगातार पानी भरा हुआ है, ऊपर अक्टूबर में जाकर ऊर्वरक मिल पाए थे, जिससे फसल में देरी हो गई थी। 

60 साल के मोहन रैकवार खराब हो चुकी फ़सल को गाय-भैंसों के लिए काट रहे हैं, उन्हें खेत साफ़ करने में 15-20 दिन लगेंगे। 

रैकवार कहते हैं, "मज़दूर के तौर पर काम करना संभव नहीं है। क्योंकि इन खेतों को देखने वाला फिर कोई नहीं है। मैं अगले कुछ महीने तक कमाई का ज़रिया देख रहा हूं, क्योंकि मेरे घर पर लोग हैं, जिनका पालन-पोषण मुझे करना है।"

राज्य का सिंचाई विभाग, तालाब पर ज़मींदार और भारत सरकार के बीच 1938 में हुए एक पुराने समझौते के चलते किसानों का ज़मीन का अधिकार नहीं मानता। 

झांसी डिवीज़न में सिंचाई विभाग के एक अधिकारी ने बताया, "हम ऐसे इलाकों की खोज करने की कोशिश कर रहे हैं, जो बांध और तालाबों के चलते प्रभावित हुए हैं। लेकिन हम तालाब के क्षेत्र में बदलाव नहीं कर सकते, क्योंकि झांसी शहर और इसके कई गांव रोजाना उपयोग और सिंचाई के लिए इस पानी पर निर्भर हैं। यह दशकों पुराना तंत्र है, जिस पर लाखों जिंदगियां टिकी हुई हैं।" 

हर चुनाव के दौरान ढीमरपुरा गांव के लोग देखते हैं कि कई राजनेता उनके गांव आते हैं और उन्हें उनकी समस्या के लिए स्थाई समाधान का भरोसा दिलाते हैं। लेकिन कुछ नहीं बदला, भले ही कोई भी पार्टी सत्ता में आए। 

इस साल भी गांव वालों को विश्वास है कि उनके गांवों में स्थानीय नेताओं के काफिले पर काफिले आएंगे। लेकिन उनकी समस्या का समाधान अब भी दूर की कौड़ी नज़र आता है। 

लेखक एशियन कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज़्म, चेन्नई में छात्र हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

UP: Farmers of Dhimarpura in Pahuj Reservoir Area Being Forced out for Jobs

UP elections
Dhimarpura
Bundelkhand Farmers
Pahuj Dam
Fishing Contracts
Submerged land

Related Stories

सद्भाव बनाम ध्रुवीकरण : नेहरू और मोदी के चुनाव अभियान का फ़र्क़

पक्ष-प्रतिपक्ष: चुनाव नतीजे निराशाजनक ज़रूर हैं, पर निराशावाद का कोई कारण नहीं है

क्या भाजपा को महिलाओं ने जिताया? राशन योजना का वोटिंग पर क्या रहा असर 

क्या BJP के अलावा कोई विकल्प नहीं ?

विधानसभा चुनाव: एक ख़ास विचारधारा के ‘मानसिक कब्ज़े’ की पुष्टि करते परिणाम 

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !

यूपी चुनाव: सोनभद्र और चंदौली जिलों में कोविड-19 की अनसुनी कहानियां हुईं उजागर 

यूपी: चुनावी एजेंडे से क्यों गायब हैं मिर्ज़ापुर के पारंपरिक बांस उत्पाद निर्माता

यूपी चुनाव : मिर्ज़ापुर के ग़रीबों में है किडनी स्टोन की बड़ी समस्या

यूपी का रणः उत्तर प्रदेश की राजनीति में बाहुबलियों का वर्चस्व, बढ़ गए दागी उम्मीदवार


बाकी खबरें

  • MGNREGA
    सरोजिनी बिष्ट
    ग्राउंड रिपोर्ट: जल के अभाव में खुद प्यासे दिखे- ‘आदर्श तालाब’
    27 Apr 2022
    मनरेगा में बनाये गए तलाबों की स्थिति का जायजा लेने के लिए जब हम लखनऊ से सटे कुछ गाँवों में पहुँचे तो ‘आदर्श’ के नाम पर तालाबों की स्थिति कुछ और ही बयाँ कर रही थी।
  • kashmir
    सुहैल भट्ट
    कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक कार्यकर्ता सुरक्षा और मानदेय के लिए संघर्ष कर रहे हैं
    27 Apr 2022
    सरपंचों का आरोप है कि उग्रवादी हमलों ने पंचायती सिस्टम को अपंग कर दिया है क्योंकि वे ग्राम सभाएं करने में लाचार हो गए हैं, जो कि जमीनी स्तर पर लोगों की लोकतंत्र में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए…
  • THUMBNAIL
    विजय विनीत
    बीएचयू: अंबेडकर जयंती मनाने वाले छात्रों पर लगातार हमले, लेकिन पुलिस और कुलपति ख़ामोश!
    27 Apr 2022
    "जाति-पात तोड़ने का नारा दे रहे जनवादी प्रगतिशील छात्रों पर मनुवादियों का हमला इस बात की पुष्टि कर रहा है कि समाज को विशेष ध्यान देने और मज़बूती के साथ लामबंद होने की ज़रूरत है।"
  • सातवें साल भी लगातार बढ़ा वैश्विक सैन्य ख़र्च: SIPRI रिपोर्ट
    पीपल्स डिस्पैच
    सातवें साल भी लगातार बढ़ा वैश्विक सैन्य ख़र्च: SIPRI रिपोर्ट
    27 Apr 2022
    रक्षा पर सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले 10 देशों में से 4 नाटो के सदस्य हैं। 2021 में उन्होंने कुल वैश्विक खर्च का लगभग आधा हिस्सा खर्च किया।
  • picture
    ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अर्जेंटीना ने लिया 45 अरब डॉलर का कर्ज
    27 Apr 2022
    अर्जेंटीना की सरकार ने अपने देश की डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के साथ 45 अरब डॉलर की डील पर समझौता किया। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License