NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
चुनाव 2022
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
यूपी : सत्ता में आरक्षित सीटों का इतिहास और नतीजों का खेल
बीते तीन विधानसभा चुनावों पर नज़र डालें तो ये आरक्षित सीटें किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए सत्ता में आने या उसे गंवाने के लिहाज़ से काफ़ी अहम मानी जाती हैं। इसलिए आमतौर पर आरक्षित सीटों पर राजनीतिक दलों की रणनीति सामान्य सीटों से अलग होती है।
सोनिया यादव
28 Jan 2022
up elections

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों का खेल कुछ ऐसा है कि जिस पार्टी ने इन सीटों पर बाज़ी मारी, सरकार उसी पार्टी की बनी। बीते तीन विधानसभा चुनावों पर नज़र डालें तो ये आरक्षित सीटें किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए सत्ता में आने या उसे गंवाने के लिहाज़ से काफ़ी अहम मानी जाती हैं। इस चुनाव में भी इन रिजर्व सीटों पर सभी सियासी दल अपने समीकरण तय करने में जुटे हैं। हालांकि इस बार स्थिति थोड़ी अलग है, फिर भी सवाल वही बरकरार है कि क्या प्रदेश की आरक्षित सीटों पर नतीज़ों का इतिहास एक बार फिर से खुद को दोहराएगा या इस बार कुछ नया देखने को मिलेगा?

बता दें कि 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में इस बार कुल 86 सुरक्षित सीटों में से 84 सीटें अनुसूचित जातियों की हैं। वहीं 2 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित हैं। ये दोनों सीटें राज्य के दक्षिणी-पूर्वी ज़िले सोनभद्र में दुद्धी और ओबरा हैं। इन सीटों के लिए अब तक लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया है।

रिज़र्व सीटों पर पार्टियों का दांव

खुद को दलितों के प्रतिनिधित्व वाली पार्टी कहने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार आरक्षित सीटों पर खास ध्यान दे रही है। अध्यक्ष मायावती की पूरी कोशिश है कि अनुसूचित जाति के वोटों के अलावा अगड़ी जाति के ख़ासकर ब्राह्मण समुदाय के मतदाताओं को भी अपनी तरफ़ किया जाए। उधर, समाजवादी पार्टी भी इन सीटों पर अपने 2012 का इतिहास दोहराने की पूरी फिराक में है। पार्टी रिजर्व सीटों पर बढ़त क़ायम करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

इन सीटों का एक रोचक तथ्य ये भी है कि हर विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर सरकार विरोधी लहर रही है। ऐसे में सपा अपने हाथ से ये सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहती। वहीं बीजेपी भी आरक्षित सीटों पर जातियों के गणित को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों के चयन से लेकर दूसरी जातियों के मतदाताओं को लामबंद करने तक पूरी तैयारी में जुटी है। हिंदू-मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण में अनुसूचित जाति के वोट कहीं छिटक न जाएं इस पर बीजेपी की खास नज़र है।

क्या है आरक्षित सीटों का समीकरण?

हर राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सीटों की संख्या को जन प्रतिनिधित्व क़ानून, 1950 की धारा 7 के तहत तय किया गया है। निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन आदेश, 1976 के अनुसार 2004 में अनुसूचित जातियों के लिए उत्तर प्रदेश में 89 विधानसभा सीटें आरक्षित की गई थीं। लेकिन परिसीमन आदेश, 2008 से यह संख्या घटाकर 85 कर दी गई।

2012 के विधानसभा चुनाव के बाद संसद में अध्यादेश के जरिए परिसीमन आदेश में संशोधन हुआ। और फिर प्रदेश में अनुसूचित जातियों के लिए 84 और अनुसूचित जनजातियों के लिए 2 सीटें तय की गईं।

2022 के चुनाव में अब महज़ कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में आरक्षित सीटों पर मुक़ाबले के लिए सभी पार्टियां अपनी-अपनी रणनीति बना रही हैं। आमतौर पर आरक्षित सीटों पर राजनीतिक दलों की रणनीति सामान्य सीटों से अलग होती है, क्योंकि इन सीटों पर उम्मीदवार भले अनुसूचित जाति का होता है, लेकिन जीत-हार लगभग सभी जातियों के वोट से तय होती है। ऐसी स्थिति में आरक्षित सीटों पर ग़ैर-अनुसूचित जातियों के वोटों को लेकर राजनीतिक पार्टियों की रणनीति थोड़ी अलग होती है। वे उम्मीदवारों के चयन में इस बात का ख़ास ख़्याल रखते हैं कि अपनी जाति के अलावा उनकी दूसरी जातियों में कितनी पैठ है।

दरअसल, आरक्षित सीटों पर सभी उम्मीदवार अनुसूचित जाति के होते हैं। इसलिए अनुसूचित जातियों के वोट यहां बंट जाते हैं। ऐसे में दूसरी जातियों के वोट निर्णायक हो जाते हैं। कई बार पहले ऐसा देखा गया है कि जिस पार्टी की लहर होती है, आरक्षित सीटों पर अन्य जातियों के वोट भी उसी पार्टी के खाते में चले जाते हैं। इसके अलावा आरक्षित सीटों पर अगड़ी जाति के मतदाताओं के पास विकल्प कम होते हैं। उनके लिए उम्मीदवार से ज़्यादा पार्टी अहम होती है, जबकि सामान्य सीटों पर ऐसा नहीं होता।

आंकड़ों का गणित क्या कहता है?

आंकड़ों को देखें तो पिछले तीन विधानसभा चुनावों में आरक्षित सीटों के नतीजों ने सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई है। 2007 में प्रदेश की 89 आरक्षित विधानसभा सीटों में से 61 पर बहुजन समाज पार्टी ने जीत हासिल की थी। और प्रदेश की कुल 403 सीटों में से बसपा ने तब 206 सीटों पर क़ब्ज़ा कर पर्याप्त बहुमत के साथ अपने दम पर सरकार बनाई थी।

2012 के विधानसभा चुनाव में भी यही कहानी देखने को मिली थी। हालांकि इस बार समाजवादी पार्टी जीत के मुहाने पर खड़ी थी। इस चुनाव में सपा ने कुल 85 आरक्षित सीटों में से 58 पर जीत दर्ज़ की थी। वहीं राज्य में कुल 224 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत पाते हुए सपा ने लखनऊ का सिंहासन पा लिया।

पिछले 2017 विधानसभा चुनावों को देखें, तो आरक्षित सीटों ने तब भी इतिहास दोहराया और इस बार बाज़ी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में गई। 2017 में बीजेपी ने राज्य की कुल 86 आरक्षित सीटों में से 70 सीटों पर जीत हासिल की थी और सूबे में अकेले 309 सीटों पर विजयी होने के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। इन आँकड़ों से साफ है कि जिस पार्टी ने आरक्षित सीटों पर बड़ी बढ़त हासिल की, उसने ही लखनऊ की सत्ता पर क़ब्ज़ा जमाया।

महिला उम्मीदवारों का आरक्षित सीटों पर नहीं चला जादू

रिजर्व सीटों के इतिहास में एक और अहम बात निकल कर सामने आती है कि इन सीटों पर महिला उम्मीदवारों के पक्ष में नतीजे बेहद कम रहे हैं। पिछले तीन चुनावों पर नज़र डालें तो आरक्षित सीटों पर साल 2007 में 8 महिलाओं ने सफलता हासिल की। वहीं, 2012 में केवल 12 और 2017 के चुनाव में 11 महिलाओं ने ही जीत दर्ज़ की। इस तरह, आरक्षित सीटों पर जीत हासिल करने वाले क़रीब 90 प्रतिशत उम्मीदवार पुरुष रहे। हालांकि इसका बहुत बड़ा कारण पितृसत्ता और लैंगिग भेदभाव भी रहा है। पार्टियों को अक्सर महिलाओं की याद वोटर के तौर पर आती है, उम्मीदवार के तौर पर नहीं। 2022 का चुनाव शायद ऐसा पहला चुनाव होगा जिसमें महिला उम्मीदवारों की सबसे अधिक संख्या देखने को मिल सकती है।

UttarPradesh
UP Assembly Elections 2022
UP election 2022
UP reserved seats
SC/ST
Dalits

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

बागपत: भड़ल गांव में दलितों की चमड़ा इकाइयों पर चला बुलडोज़र, मुआवज़ा और कार्रवाई की मांग

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे

गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया


बाकी खबरें

  • असद रिज़वी
    CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा
    06 May 2022
    न्यूज़क्लिक ने यूपी सरकार का नोटिस पाने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।
  • नीलाम्बरन ए
    तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है
    06 May 2022
    रबर के गिरते दामों, केंद्र सरकार की श्रम एवं निर्यात नीतियों के चलते छोटे रबर बागानों में श्रमिक सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।
  • दमयन्ती धर
    गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया
    06 May 2022
    इस मामले में वह रैली शामिल है, जिसे ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सरेआम पिटाई की घटना के एक साल पूरा होने के मौक़े पर 2017 में बुलायी गयी थी।
  • लाल बहादुर सिंह
    यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती
    06 May 2022
    नज़रिया: ऐसा लगता है इस दौर की रणनीति के अनुरूप काम का नया बंटवारा है- नॉन-स्टेट एक्टर्स अपने नफ़रती अभियान में लगे रहेंगे, दूसरी ओर प्रशासन उन्हें एक सीमा से आगे नहीं जाने देगा ताकि योगी जी के '…
  • भाषा
    दिल्ली: केंद्र प्रशासनिक सेवा विवाद : न्यायालय ने मामला पांच सदस्यीय पीठ को सौंपा
    06 May 2022
    केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में रहेंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License