NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कृषि
भारत
राजनीति
यूपी: कृषि कानूनों को रद्दी की टोकरी में फेंक देने से यह मामला शांत नहीं होगा 
ऐसी एक नहीं, बल्कि ढेर सारी वजहें हैं जिसके चलते लोग, खासकर किसान, योगी-मोदी की ‘डबल इंजन’ वाली सरकार से ख़फ़ा हैं।
सुबोध वर्मा
22 Nov 2021
farmers movement

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह घोषणा कि उनकी सरकार तीन कृषि कानूनों को निरस्त्र करने जा रही है, वो भी एक ऐसे समय में जब उत्तरप्रदेश और पंजाब में महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों के लिए बस कुछ ही महीने बाकी हैं, जो इन कुख्यात कानूनों के खिलाफ साल भर से चल रहे किसानों के संघर्ष के लिए फैसला सुनाने की घड़ी थी। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि इस घोषणा और चुनावों के बीच में हर किसी के द्वारा कनेक्शन देखा जा रहा है।

जाहिर सी बात है कि प्रधानमंत्री द्वारा इन चुनावों में अपनी पार्टी की डूबती संभावनाओं की नैय्या पार लगाने की कोशिशें की जा रही हैं। पंजाब में तो वैसे भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की संभावनाएं पहले से ही ना के बराबर हैं, भले ही इसके द्वारा पूर्व-मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नये संगठन के साथ गठबंधन ही क्यों न कर लिया जाये।

असली जंग का मैदान तो यूपी है, जिसका नेतृत्व मोदी द्वारा चुने गए योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं। योगी के तहत भारत के सबसे बड़े राज्य का जिस प्रकार से कायापलट कर एक और प्रदर्शन में तब्दील कर दिया गया है कि कैसे आक्रामक हिंदुत्व असल में शासन करता है, और प्रधानमंत्री को बार-बार दर्द का अनुभव होने के बावजूद राज्य सरकार को समय-समय पर समर्थन करना पड़ता है। इसके अलावा, यह भी सच है कि यूपी ही वो राज्य है जो लोकसभा में सबसे अधिक संख्या में सांसद सदस्यों को भेजता है और 2024 के आम चुनावों में जीत हासिल करने के लिए राज्य पर मजबूत गिरफ्त का होना बेहद अहम है।

ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि क्या मोदी का यह यू-टर्न यूपी के नाराज और असंतुष्ट किसानों को वापस अपने पाले में खींच लाने में सफल हो सकेगा? क्या भाजपा पिछली बार 2017 के 403 में से 326 सीटें जीतने के अपने रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन को दोहरा सकती है?

इन सबके विश्लेषण में जाने से पहले इस बात को एक बार फिर से दोहराए जाने की जरूरत है कि किसानों के संघर्ष से जुड़े ऐसे ढेर सारे मुद्दे और कानून हैं जो अभी तक अनसुलझे पड़े हैं। असल में देखें तो मोदी सरकार को संसदीय प्रक्रिया के माध्यम से इन कानूनों को निरस्त करना होगा, जिसे इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे शीतकालीन सत्र में पूरा करने का वादा किया गया है।

इसके अलावा, विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक और सबसे महत्वपूर्ण विभिन्न कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए वैधानिक गारंटी की मांग जैसे लंबित मुद्दे अभी भी जस के तस बने हुए हैं। यह आखिरी मांग शायद सबसे महत्वपूर्ण है और मोदी के लिए इसे स्वीकार कर पाना सबसे दुश्कर भी है। वास्तव में, कुछ की राय में सरकार ने इस पहल को एमएसपी की मांग के खिलाफ तीन कृषि कानूनों के बीच किसानों के सामने सौदेबाजी के तौर पर रखा है। आने वाले दिनों में ये सभी मुद्दे लगातार खदबदाते रहने वाले हैं, और संभावना इस बात की है कि किसान वर्तमान जीत से उत्साहित होकर अपनी अन्य मांगों के लिए संघर्ष को जारी रखेंगे।

लेकिन यूपी में इसके अलावा भी ऐसे कई कारक हैं जो भाजपा के विजय अभियान को परेशानी में डालने वाले साबित होने जा रहे हैं।

खेती-किसानी से संबंधित अन्य मुद्दे 

यूपी में किसानों को परेशान करने वाले सबसे बड़े मुद्दों में एक मुद्दा आवारा पशुओं का बना हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में बड़े पैमाने पर तकरीबन 10 लाख आवारा मवेशी हैं। इन संख्याओं को नियंत्रित करने के किसी भी प्रयास पर योगी सरकार की ओर से कड़ी कार्यवाई की जाती है। इतना ही नहीं, गौ-रक्षकों द्वारा घूम-घूमकर किसी को भी मवेशियों की “तस्करी” करने या “काटने” के लिए ले जाने के संदेह के आधार पर उनके साथ मारपीट करने से लेकर जान से मार डालने तक के लिए तैयार टीमें चक्कर काटती रहती हैं, और किसानों को उनके विवेक के भरोसे छोड़ दिया गया है।

ये आवारा पशु अक्सर खेतों में घुस जाते हैं, और खड़ी फसलों को बर्बाद कर डालते हैं और किसी की हिम्मत नहीं पड़ती कि एक ऊँगली तक उठा दे। इनकी देखभाल के लिए मुख्यमंत्री योगी ने किसानों को 30 रूपये प्रति मवेशी की मामूली धनराशि देने की घोषणा की थी। लेकिन 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक लाख के लक्ष्य में से केवल करीब 43,000 को ही अपनाया जा सका था। अपनी इस बदहाल स्थिति के लिए किसान सीधे तौर पर योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जिसे भारत का चीनी का कटोरा भी कहा जाता है, के गन्ना किसान योगी के इस आश्वासन कि सभी बकाया भुगतानों को चुकता कर दिया जायेगा, के बावजूद बकाया भुगतान न किये जाने के कारण बेहद मुश्किलों से जूझ रहे हैं। मई 2021 के अंत तक वर्ष 2020-21 के लिए कुल बकाया राशि 18,820 करोड़ रूपये की थी, और साथ ही पिछले वर्षों का 2,501 करोड़ रुपया भी चुकता किया जाना शेष था। निर्यात में भारी वृद्धि के चलते इस वर्ष बकाया राशि में कमी आई है, और वर्तमान में चालू वर्ष के लिए बकाया राशि 8,909 करोड़ रूपये लंबित है और पहले के वर्षों का 142 करोड़ रुपया अभी भी दिया जाना शेष है। हालाँकि इस साल लंबित बकाया राशि में काफी कमी आई है, किंतु पिछले वर्षों के भुगतान में हुई देरी के कारण जिन अथाह कष्टों से किसानों को दो-चार होना पड़ा था, वह अभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हो सका है। इसके अलावा, योगी सरकार द्वारा गन्ने के लिए वर्षों से लंबित राज्य सलाह मूल्य में वृद्धि करने से इंकार कर दिया गया है।

देश के कई अन्य हिस्सों की तरह राज्य में भी कुछ हफ्ते पहले उर्वरक की भारी किल्लत देखने को मिली थी, जब किसान रबी की बुआई की तैयारियों में जुटे हुए थे। कई किसानों को तीन से चार दिनों तक कतारों में लगकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ा, जबकि कुछ को तो इस प्रकिया में मौत भी हो गई। उस दौरान ब्लैक में डीएपी (डीअमोनियम फॉस्फेट) 1,350 रूपये प्रति बोरी के हिसाब से बिक रही थी, जबकि राज्य सरकार ने इसकी कीमत 1,200 रूपये प्रति बोरी घोषित की थी। डीएपी की अनुपलब्धता ने किसानों को ब्लैक मार्केट से खरीद करने के लिए मजबूर किया क्योंकि मानसून की वापसी इस बार देर से हुई थी, जिसके चलते गेहूं की बुआई के लिए समय काफी कम बचा था।

इसके साथ ही योगी सरकार पिछले कुछ वर्षों से खाद्यान्न की खरीद के मामले में गंभीर रूप से पिछड़ रही है। जहाँ वर्ष 2018-19 के दौरान 52.92 लाख टन की रिकॉर्ड खरीद देखने को मिली थी, 2019-20 में यह घटकर 37 लाख टन हो गई थी, और 2020-21 में यह और गिरकर 35.77 लाख टन ही रह गई। चालू वर्ष में अक्टूबर के अंत तक, यह 56.40 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गई है।

लेकिन किसान ख़ुश क्यों नहीं है, उसका कारण यह है: इस साल गेंहू का उत्पादन अनुमानतः 360 लाख टन होने जा रहा है, जबकि खरीद कुल उत्पादन के मात्र 15% हिस्से का ही किया जाना है। इसका अर्थ हुआ कि सिर्फ 15% गेंहूँ उत्पादकों को ही एमएसपी मिलने जा रहा है, जबकि बाकियों को कम कीमतों से ही संतोष करना होगा। 

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी 

योगी-मोदी के “डबल इंजन” शासन के रिकॉर्ड में सबसे घातक अभियोगों में से एक नौकरियों की स्थिति से उत्पन्न होता है। यूपी में जबसे 2017 से योगी सत्ता में आये हैं, के बाद से नौकरीपेशा लोगों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।

जैसा कि नीचे दी गई तालिका से पता चलता है, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगारशुदा व्यक्तियों की कुल अनुमानित संख्या जहाँ अक्टूबर 2017 में 4.4 करोड़ थी, वह अक्टूबर 2021 में घटकर 4.19 करोड़ रह गई है। शहरी क्षेत्रों में भी गिरावट दर्ज की गई है, हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में यह कम है, पहले के 1.4 करोड़ की तुलना में यह संख्या 1.35 करोड़ हो गई है। ये आंकड़े सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के सैंपल सर्वे से लिए गए हैं।

इस तालिका में जिन चार वर्षों को शामिल किया गया है, उसमें यदि श्रमबल में शामिल होने वाले व्यक्तियों की संख्या देखें तो इसकी संख्या दसियों लाख में होगी, इसके बावजूद कुल रोजगार की संख्या में कमी आई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों को अब श्रमबल के तौर पर नहीं गिना जा रहा है, जिसमें रोजगारशुदा और बेरोजगार दोनों ही प्रकार के लोग शामिल हैं। उन्होंने बस श्रमबल से बाहर रहने के विकल्प को चुना है। इसे इस अवधि के दौरान श्रमबल की भागीदारी की दर में चिंताजनक गिरावट में देखा जा सकता है: जो कि अक्टूबर 2017 के 38.94% से घटकर अक्टूबर 2021 में 34.07% रह गई है।  

ग्रामीण रोजगार में गिरावट की दर वैसे भी बेरोजगारी दर में पर्याप्त तौर पर परिलक्षित नहीं हो पाती है, जो कृषि क्षेत्र में गंभीर संकट को दर्शाता है। हालाँकि, मुख्यमंत्री योगी लगातार इस बात का दावा कर रहे हैं कि यूपी सभी राज्यों के बीच में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, लेकिन यह विकट स्थिति इस “आर्थिक विकास” की आंतरिक स्थिति का पर्दाफाश कर देता है।

इन सभी एवं अन्य कारकों जैसे कि कोविड महामारी के दौरान कुप्रबंधन, पुलिसिया ज्यादती, अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाने, विशाल दलित आबादी की उपेक्षा इत्यादि को एक साथ रखने पर देखने पर लगता है कि निश्चित तौर पर उत्तरप्रदेश में योगी के नेतृत्व वाली भाजपा के लिए तस्वीर सुखद नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की कवायद इस दयनीय हालात की स्वीकारोक्ति का प्रमाण है, और आगामी चुनावों में हार की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

UP: It’s not Back to Square One After Farm Law Scrapping

Farm Laws
UP elections
Yogi govt
Stray Cattle
Cattle Menace
UP Unemployment
UP Rural Jobs

Related Stories

एसकेएम की केंद्र को चेतावनी : 31 जनवरी तक वादें पूरे नहीं हुए तो 1 फरवरी से ‘मिशन उत्तर प्रदेश’

ख़बर भी-नज़र भी: किसानों ने कहा- गो बैक मोदी!

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

योगी सरकार का काम सांप्रदायिकता का ज़हर फैलाना है या नौजवानों को बेरोज़गार रखना?

कृषि क़ानूनों के निरस्त हो जाने के बाद किसानों को क्या रास्ता अख़्तियार करना चाहिए

'यूपी मांगे रोज़गार अभियान' के तहत लखनऊ पहुंचे युवाओं पर योगी की पुलिस का टूटा क़हर, हुई गिरफ़्तारियां

वे तो शहीद हुए हैं, मरा तो कुछ और है!

साम्राज्यवाद पर किसानों की जीत

यह जीत भविष्य के संघर्षों के लिए विश्वास जगाती है

किसान मोदी को लोकतंत्र का सबक़ सिखाएगा और कॉरपोरेट की लूट रोकेगा: उगराहां


बाकी खबरें

  • Yeti Narasimhanand
    न्यूज़क्लिक टीम
    यति नरसिंहानंद : सुप्रीम कोर्ट और संविधान को गाली देने वाला 'महंत'
    23 Apr 2022
    यति नरसिंहानंद और अ(संतों) का गैंग हिंदुत्व नेता यति नरसिंहानंद गिरी ने दूसरी बार अपने ज़मानत आदेश का उल्लंघन करते हुए ऊना धर्म संसद में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती बयान दिए हैं। क्या है यति नरसिंहानंद…
  • विजय विनीत
    BHU : बनारस का शिवकुमार अब नहीं लौट पाएगा, लंका पुलिस ने कबूला कि वह तलाब में डूबकर मर गया
    22 Apr 2022
    आरोप है कि उनके बेटे की मौत तालाब में डूबने से नहीं, बल्कि थाने में बेरहमी से की गई मारपीट और शोषण से हुई थी। हत्या के बाद लंका थाना पुलिस शव ठिकाने लगा दिया। कहानी गढ़ दी कि वह थाने से भाग गया और…
  • कारलिन वान हाउवेलिंगन
    कांच की खिड़कियों से हर साल मरते हैं अरबों पक्षी, वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के लिए कर रहे हैं काम
    22 Apr 2022
    पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले लोग, सरकारों और इमारतों के मालिकों को इमारतों में उन बदलावों को करने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके ज़रिए पक्षियों को इन इमारतों में टकराने से…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ :दो सूत्रीय मांगों को लेकर 17 दिनों से हड़ताल पर मनरेगा कर्मी
    22 Apr 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले वे 4 अप्रैल से हड़ताल कर रहे हैं। पूरे छत्तीसगढ़ के 15 हज़ार कर्मचारी हड़ताल पर हैं फिर भी सरकार कोई सुध नहीं ले रही है।
  • ईशिता मुखोपाध्याय
    भारत में छात्र और युवा गंभीर राजकीय दमन का सामना कर रहे हैं 
    22 Apr 2022
    राज्य के पास छात्रों और युवाओं के लिए शिक्षा और नौकरियों के संबंध में देने के लिए कुछ भी नहीं हैं। ऊपर से, अगर छात्र इसका विरोध करने के लिए लामबंद होते हैं, तो उन्हें आक्रामक राजनीतिक बदले की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License